गुरुवार, 27 नवंबर 2014

सर ! नमस्कार , इस बार के बजट में लड़कियों के लिए एक विशेष योजना चलायी जानी चाहिए जिसमे जिस भी व्यक्ति की भविष्य में कोई लड़की होगी उसको सरकार एक सरकारी ऍफ़ डी  सर्टिफिकेट देगी जिसकी वैल्यू पांच या दस लाख  हो सकती है जैसा सरकार को उचित लगे । यह सर्टिफिकेट कैश  तभी होगा जब वह लड़की २१ साल की होगी यानि यदि उसके माता पिता २१ या अगर सरकार चाहे तो १८ भी हो सकता है , यानि जब वह लड़की २१ या १८ साल की होगी तब वह सर्टिफिकेट कैश  कराया जा सकेगा उसके माता पिता द्वारा । ऐसा करने से कन्या के जन्म के समय जो हताशा या निराशा का माहौल घर में बना दिया जाता है वह ख़त्म हो जाएगाऔर कन्याओं के प्रति एक सोच में बदलाव भी आएगा  । और आज से अट्ठारह साल या इक्कीस साल बाद भारत इतना उन्नत तो हो ही जाएगा कि पैसा दिया जा सके । साथ ही तात्कालिक लाभ के लिए कन्याओं के पिताओं को इनकम टैक्स रिबेट भी एक्स्ट्रा दी जा सकती है भविष्य में जन्म लेने वाली कन्याओं के पिता को । वर्तमान में भी आप एक्स्ट्रा छूट दे सकते हैं कन्या के विवाह से पूर्व तक । शेष जैसा आपको उचित लगे  । 

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2014

रिश्ते के बीच एक श  श  श  होता है । आजकल बीजेपी ने शिवसेना के खिलाफ यही श अपना रखा है । पी एम मोदी कह रहे हैं वे शिव सेना के खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे । शिव सेना के लोग बीजेपी के खिलाफ बोलते हुए झिझक तो रहे हैं लेकिन बोल कर रो भी रहे होंगे । दस सीट्स की ही तो बात थी । अब यदि मोदी लहर ने अपना असर दिखा दिया  तो क्या होगा ? लेकिन श के दोनों तरफ जो अक्षर बचे हैं वे रिते  या कह लें रीते से लगने लगे  हैं विशेषकर इन दोनों के सम्बन्ध में । आडवाणी जी को लगा कुछ तो बोला जाए वैसे भी मोदी सरकार में उन्हें वह पद दे दिया गया है जिसमे भ्रष्टाचार के मामले में वे जिस भी सांसद के खिलाफ कुछ करेंगे वही  उनके खिलाफ हो जाएगा और यदि कार्यवाही नहीं करेंगे तो मोदी जी को क्या जवाब देंगे ? उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि  मोदी का यह मायाजाल किसी मकड़जाल से कम  तो नहीं ही होगा । खैर , इधर अब समझ आने लगा है कि  शिवसेना भी क्यों मोदी के नाम का पी एम के लिए समर्थन करने से बचती थी । खैर , अब तो जो हो गया उसे भुगतना ही है । यह अफजल कौन है ? अब जो अफजल है तो फिर औरंगजेब कौन है ? मोदी क्या हैं शिवसेना की नजर में ? अफजल या औरंगजेब ? चुनाव क्योंकि बी जे पी लड़ रही है तो अफजल तो मोदी  हुए और यदि ऐसा तो क्या अमित शाह औरंगजेब हैं क्योंकि बी जे पी के औरंगजेब तो अमित शाह हैं । खैर , लेकिन यदि मोदी औरंगजेब हैं तो अमित शाह अफजल हैं ? तो शिवाजी को ज्यादा परेशानी अफजल से थी या औरंगजेब से ? निश्चित ही औरंगजेब से । तो फिर शिवसेना को ज्यादा परेशानी किस से है ? मोदी से या अमित शाह से ? तय कर लीजिये । दूसरे  का तो पता स्वतः चल जाएगा । एक अफजल वह भी था जिसके नाम पर बी जे पी को बेचारे  मनमोहन सिंह जी में भी औरंगजेब दिखाई देता रहा होगा  । लेकिन सोच रहा हूँ , यदि भाजपा के लोग अफजल या औरंगजेब हो गए तो ध्रुवीकरण की जरूरत बी जे पी अब भी समझेगी ? 

रविवार, 22 जून 2014

आदरणीय प्रधानमन्त्री जी ! सादर प्रणाम , सरकार के रेल किराया बढ़ाने की नीति  का विपक्ष चाहे जितना विरोध करे लेकिन यह बिलकुल ठीक है । एक समस्या की ओर  आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ । ट्रैन में लाखों लोग फ्री सफर करते हैं । बहुत से पकडे जाते हैं तो चेकर या टी टी की जेब गरम करके छूट जाते हैं या यात्रा कर लेते हैं । कृपया दिल्ली मेट्रो जैसी ऐसी व्यवस्था अपनायी जाए जिससे कोई भी व्यक्ति स्टेशन के अंदर बिना टिकट न घुस पाये । इससे सरकार को करोङो का लाभ होगा । आशा है , यदि विचार उचित लगे तो ध्यान देने की कृपा करेंगे । धन्यवाद ।
फ्रॉम
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां , रायवाला
देहरादून २४९२०५
९३५९७६८८८१  
 आदरणीय प्रधानमन्त्री जी ! सादर प्रणाम , सुनने में आया है कि  सरकार पचास दवाएं फ्री करने  जा रही है । लेकिन यदि ये दवाएं फ्री की गयी तो इसके  कुछ दुष्परिणाम भी सामने आ सकते हैं । लोग फ्री की चीजों की क़द्र नहीं करते । और दवा विक्रेता भी बिना प्रॉफिट की दवा रखने बेचने में रूचि कम लेंगे और इसे टालने में ज्यादा रूचि लेंगे इससे एक और समस्या पैदा होगी जिस पर निगरानी भी रखनी होगी जिससे एक काम और बढ़ जाएगा । इसलिए इन दवाओं  को न्यूनतम लागत मूल्य पर विक्रेता के भी दस प्रतिशत प्रॉफिट  के साथ बेचा जाए । ताकि खरीदने वाला भी क़द्र करे और बेचने वाला भी अपने  शॉप में दवाएं रखे । मैं दवा विक्रेता नहीं लेकिन इसकी व्यावहारिक जरूरत समझता हूँ । आशा है , यदि उचित लगे तो ध्यान देने के कृपा करेंगे ।
फ्रॉम 
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा 
मोतीचूर हरिपुर कलां 
रायवाला देहरादून २४९२०५ 
९३५९७६८८८१ 
आदरणीय प्रधानमन्त्री जी ! सादर प्रणाम ,
 स्विस बैंक में भारतीयों के पैसे की जो जानकारी प्राप्त हुई है उससे एक बात का एहसास होता है कि  यह रकम उतनी नहीं लगती जितनी सुनने में आ रही थी । कहीं ऐसा तो नहीं कि  नयी सरकार के आने से पहले ही पूर्ववर्ती सरकार ने या लोगों ने सारा पैसा बैंक से कहीं और शिफ्ट कर दिया हो । इस बात की भी जांच जरूरी है । आशा है , ध्यान देने की कृपा करेंगे ।
फ्रॉम -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां , रायवाला , देहरादून २४९२०५
९३५९७६८८८१ 

शनिवार, 21 जून 2014

आदरणीय प्रधानमन्त्री जी ! नमस्कार , हमारे गांव में एक सड़क है जो पहले टूटी फूटी थी । यह चार सौ फ़ीट लम्बी है । इसके लिए राज्य योजना आयोग से सत्रह लाख चालीस हज़ार रुपया पास हुआ और सी सी सड़क का निर्माण हुआ  । छह माह बाद इस सड़क को खोद दिया गया क्योंकि यहां पर पानी की पाइप लाइन डाली जानी थी । अब पाइप लाइन  डाल  दी गयी है । और सड़क को यूँ ही ढक  कर रख दिया गया है । मिटटी आदि दाल कर । पहले सड़क बनवाना  और फिर तुड़वाना और  बनवाना । अब यह सड़क फिर बनवायी जायेगी । सुना है , उसके बाद सीवर लाइन भी डाली जायेगी । यानि सड़क फिर टूटेगी । क्या यह सब योजना बद्ध  तरीके से नहीं  सकता । 

शुक्रवार, 20 जून 2014

न तो गुमराह हों और न गुमराह करें । 
गृह मंत्रालय के आदेश से घबराये जयललिता , द्रमुक और उमर अब्दुल्ला से पूछा जाए कि जब वे इंग्लिश में बात करते हैं तब उनकी क्षेत्रीय भाषाओँ और अस्मिताओं को खतरा नहीं पैदा होता ? आखिर हिंदी का सबसे ज्यादा प्रचार तो हिंदी फ़िल्में कर रही हैं तो क्या हिंदी फिल्मों को भी वे बंद करना शुरू कर देंगे तब उनकी क्षेत्रीय भाषाओँ की फ़िल्में गैर हिंदी  भाषी क्षेत्रों में चलती हैं क्या लोग उनका विरोध शुरू नहीं कर देंगे आखिर यदि  हम इंग्लिश से अपनी भाषाओँ पर खतरा महसूस नहीं करते तो फिर हिंदी  से क्यों ? देश को यदि किसी भाषा से सबसे ज्यादा खतरा है तो वह इंग्लिश से है क्योंकि यही भाषा हमारी क्षेत्रीय भाषाओँ सहित हिंदी संस्कृत को निगल रही है । आखिर एक युग वह था जब हमारे भारतीय राजा आपस में लड़ते रहते थे और अंग्रेजो ने अपने पाँव  पसार कर हमें गुलाम बना दिया आज हम आपस में लड़ रहे हैं और उनकी भाषा इंग्लिश हमें और हमारी भाषा को गुलाम बना रहे हैं । आपस में झगड़ कर हम अनायास ही एक विदेशी भाषा को जगह दे रहे हैं और हिंदी  को दर किनार कर रहे हैं । लगता है हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा ।  कभी कहा जाता था कि  भाजपा आ गयी तो देश टूट जाएगा , कभी कहा जाता रहा कि मोदी आ गए तो देश में आग लग जायेगी , आज विपक्षी खुद जगह जगह आग लगा रहे हैं कही पुतले फूंक रहे हैं कहीं बसें फूंक रहे हैं , सरकार को पानी डालना पड़  रहा है इस आग को बुझाने के लिए । कइयों ने कहा वे देश छोड़ देंगे यदि मोदी पी एम बन गए , आज वे गायब हैं । पार्टियां अंदर अंदर भयभीत हैं कि कहीं उनका अस्तित्व ही खत्म न हो जाए इसलिए फिर से ऊटपटांग काम  कर रही हैं । अब भाषा के नाम पर डराया जा रहा है । उधर कभी कहा जाता है कि  यदि कश्मीर से धारा तीन सौ सत्तर हटाई गयी तो कश्मीर अलग हो जाएगा । आप यकीन मानें , अब समय आ गया है कि  इन कृत्रिम भयों से निजात पायी जाए । न धारा ३७० हटने से कश्मीर अलग होगा , न हिंदी के विस्तार से क्षेत्रीय भाषाएँ ख़त्म होंगी क्योंकि अनेक भाषाओं का होना किसी देश की ख़ास पहचान होता है । हाल के नए शोधों के अनुसार एक से अधिक भाषाएँ जानने वाले लोग ज्यादा बुद्धिमान होते हैं और उनके शोध कार्य ज्यादा परिपक्व होते हैं । यह शोध पश्चिम की तरफ से किया गया है जिसे हम ज्यादा तरजीह देते हैं । शोध के नतीजों के अनुसार इंग्लैंड आदि देशों के नागरिकों को अब इंग्लिश के अलावा अन्य भाषाओं को भी पढ़ने की सलाह दी जा रही है ताकि उनके शोध ज्यादा परिपक्व हो सकें विशेषतया कला विषयों के क्षेत्र में । इसलिए हिंदी किसी भाषा को नहीं निगल रही बल्कि सरकार क्षेत्रीय भाषाओँ को भी बचाये रखने का पूर्ण प्रयत्न करेगी । इसलिए कृपया न तो गुमराह हों और न गुमराह करें । 

बुधवार, 18 जून 2014

आदरणीय प्रधानमंत्री जी ! सादर प्रणाम ,
एक  महत्वपूर्ण योजना की तरफ आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ । सरकारी विद्यालयों में अाठवीं कक्षा  तक मध्याह्न भोजन योजना लागू है । इस योजना  में बहुत  भ्रष्टाचार पनप रहा है । ऊपर से तो भ्रष्टाचार होगा ही । मैं तो विद्यालयों  के  भ्रष्टाचार की बात कर रहा हूँ जहां पर विद्यालयों में उन बच्चों को भी जबरन  खाना खिलाने की बात की जाती है जिन्हें इसकी जरूरत ही नहीं है । इससे सरकार को भी लाखों करोङों  का नुक्सान होता है । साथ ही नियम कुछ ऐसे बनाये गए हैं कि  जितने बच्चे आये हैं उतने बच्चों का भोजन बनेगा ही । ऐसे में कई जगह यदि कुछ बच्चे भोजन नहीं खाते हैं तो या तो उनका भोजन बर्बाद होता है या फिर यदि नहीं बनाया जाता तो बचे हुए पैसे को गलत तरीका से खपाया गया दिखाने की कोशिश की जाती है । यह नियम बहुत से ईमानदार  लोगों को जबरन भ्रष्ट भी कर रहा है और  सरकारी नुक्सान भी  होता है । यदि सरकार इसके नियमों में जरूरत के हिसाब से फेरबदल करे तो हजारों करोड़ रूपया बचाया जा सकता है । कृपया इस सम्बन्ध  ध्यान देने की कृपा करें और स्कूलों को जबरन यह नियम इस रूप में लागूं करने की अनिवार्यता से बचा जाए ।
द्वारा - डॉ   द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा 

शनिवार, 7 जून 2014

यह एक सच है कि यदि देश में सरकारी विद्यालयों की स्थिति सुधारनी है तो यदि सरकार के पास अन्य कोई बेहतर विकल्प नहीं है तो एक रामबाण औषधि है कि पी एम से लेकर चपरासी तक सभी के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ें । इसका प्रभाव देखने के लिए दक्षिण की एक घटना का जिक्र करना चाहूंगा । एक आई ए एस  ने अपनी लड़की को दो साल पहले नवीं  क्लास में सरकारी स्कूल में भर्ती कर दिया था । तीन माह बाद वह स्कूल बदल चुका  था । सब कुछ व्यवस्थित हो चुका  था । आज की तारीख में सरकारी स्कूल में वे बच्चे पढ़ते हैं जिनकी हैसियत किसी भी तरह से  पब्लिक स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने की नहीं होती । इसलिए सरकारी स्कूल मजदूर पैदा करने की कंपनी बन गए हैं और पब्लिक स्कूल अफसर पैदा करने  की कंपनी । इन गरीब माँ बाप की आवाज में भी  इतना दम  नहीं होता कि  इनकी आवाज हालात सुधारने में मदद कर  पाये ।  जब कोई अफसर मैनेजर या अफसर स्कूल में जाएगा तो सवाल भी करेगा और उस सवाल का जवाब भी स्कूल को देना पड़ेगा । टीचर्स के बच्चे भी किसी न किसी सरकारी स्कूल में ही अपने बच्चों को बढ़ाएंगे तो फिर वे कोताही नहीं बरत  पाएंगे । जब पब्लिक स्कूल नहीं थे तब ज्यादा बेहतर पढ़ाई होती थी जिसमे मानविकी  का जरूर सबसे ज्यादा जोर व ध्यान रहता  था । इससे सरकारी स्कूल के अध्यापकों के बेदम स्टेटस में भी सुधार आएगा । इसके साथ ही यह आठवीं तक अनिवार्यतया पास करने की प्रवृति व नियम पर भी अंकुश लगाना होगा जिसने सरकारी  शिक्षा का भी सर्वनाश  कर दिया है ।साथ ही जिन बच्चों को मिड डे मील खाने की इच्छा नहीं है उनको जरूरी नहीं कि  मिड डे मील खिलाया ही जाए । बहुत से ऐसे बच्चे भी मिड डे मील खा रहे हैं जिनको उसकी जरूरत ही नहीं है और विद्यालयों के लिए भी कुछ ऐसा नियम बना दिया गया है कि  उन्हें पैसा पूरा प्रयोग करना पड़ता है वे वापस करना चाहें तो दिक्कत होती है । और इससे भ्रष्टाचार पनपता है ।  इसलिए यह तीन  कदम उठाने बहुत जरूरी हैं । 

मंगलवार, 20 मई 2014

कहाँ गए वो लोग
कहाँ गए वो लोग जो कहा करते थे जो कहा करते थे कि  मोदी प्रधानमन्त्री बने तो देश में आग लग जायेगी । जिन्हें मोदी में एक शैतान नजर आता था । जो इस व्यक्तित्व में एक हैवान और दरिंदा देखते थे । जिन्हे यह आदमी हत्यारा नजर आता था । जो कहा करते थे कि  वह कसाई है । जिनको इसमें एक आदमखोर दिखाई देता था । जो नरेंद्र मोदी की तुलना बलात्कारी आसाराम से करते थे । जिन्होंने उन्हें कुत्ते के बच्चे के बड़े भाई कहकर उनके  पिता को ही गाली दे डाली थी । वे सब अब कहाँ है ?
वे लोग अब कहाँ मुंह छिपाए बैठे हैं जिन्होंने इस महानायक को बेवकूफ और गधा कहा था । वे कहाँ हैं जिन्होंने  कहा था कि  मोदी एकांत में लड़कियों के फ़ोन सुनते हैं । मैं उन्हें ढूंढ रहा हूँ जिन्होंने कहा था कि उनके आने पर देश  अँधेरा छा जाएगा । जिन्होंने उन्हें खून के समंदर में नहाया हुआ बताया था । जिन्होंने कहा था मोदी के मन में महिलाओं के प्रति कुंठा है वे अब बाहर क्यों नहीं आते ? वह दलित नेत्री  कहाँ है जिसने कहा था मोदी देश को बर्बाद कर देंगे । उसे ढूंढना चाहता हूँ जिसने कहा था कि  मोदी देश  होली खेलना  हैं । मोदी को नीच राजनीति करने वाला कहने वाले कहाँ हैं । उनकी कमर में रस्सी डालकर उन्हें जेल  डाल  देने की बात करने वाले अब चुप क्यों हैं ।
लोकतंत्र के मंदिर में प्रवेश करने से पहले उसे प्रणाम करने वाले इस नायक को यह कहने वाले कहाँ हैं कि  - लोकतंत्र एक मंदिर है और कुछ कुत्ते इस मंदिर में प्रवेश कर जाते हैं और टांग खड़ी  कर देते हैं ।उन्हें दीखता नहीं है कि  वह व्यक्ति अब पी एम बन रहा है । वे कहाँ छिप गए जो मोदी के टुकड़े करने वाले थे । नया नया मुल्ला कहने वाले अपनी पार्टी को बचाने और इस्तीफे का नाटक करने में लगे हैं । मोदी को दानव कहने वाले  दिखाने में शर्माने लगे हैं । मोदी को देश  खतरा बताने वाले बुढ़ापे में दूजा ब्याह रचाने की तैयारी में लगे हैं । उन्हें रावण कहने वाले अपने राम को बचाने में लगे हैं । जिन्होंने उनको चायवाला कहकर उनकी क्षमता  पर सवाल उठाया था उनका पारिवारिक समाजवाद यू  पी में नष्ट हो गया है  और चाय अब गले से नहीं उतरती  । जिन्हें मोदी बड़बोले दिखते  थे वे अब खुद मौन बैठे हैं । उन्हें चोर कहने वाला अपनी आस्तीन समेटे हास्य का पात्र बन बैठा है । उनके पी एम बनने पर बाइस हज़ार मरेंगे कहने वाला हताश बैठा है । उन्हें भारत माता की मूर्ति को विकृत करने वाला कुत्ता कहने वालों को सांप सूंघ बैठा है । उन्हें वोट देने को गद्दारी कहने वाला दिल्ली की सरकार के जुगाड़ में बैठा है । मोदी से दोस्ती उजागर होने पर परेशान होने वाले परेशान बैठे हैं ।
मोदी के पी एम बनने  पर लड़कियों का क्या होगा कहने वाला खिसियानी हंसी हंस रहा है । गुजरात मॉडल को कत्लेआम कहने वाला गुमशुदा है \।
और दूसरी तरफ यह महानायक कहता है कि  खत्म हो गयी चुनावी गर्मी । यह सरकार गरीबों की है । युवाओ की है । माताओं बहनों की है । यह इस मंदिर को प्रणाम करता है । विनम्रता की मिसाल पेश करता है । यकीन दिलाता है कि  वह परिश्रम की पराकाष्ठा करेगा । वह कहता है कि  किसने क्या किया यह महत्वपूर्ण नहीं है ,जरूरी है कि  आगे क्या करना है । वह श्रेय लेने से भी हिचकिचाता है । भावुक  होता है ।वह धर्म जाति से परे  एक सौ पच्चीस करोड़ की बात करता है ।
सोचता हूँ , अब इन सबका क्या करें जो बड़बड़ाते फिर रहे थे ?



रविवार, 18 मई 2014

वे क्या दिन थे जब हर कोई गाली देता था मोदी को । कोई जाति  पूछता था । तो कोई कुत्ते के बच्चे के बडे  भाई कहता तो दूसरा दरिंदा कह देता । कोई जहरीला कहता तो कोई मौत का सौदागर बताता । कोई कहता मोदी जालिम है तो कोई जेल में डाल  देने की बात करता । कोई शिकायत करता कि  वह जानवर है और उसे हंटर से काबू में लाया जाना चाहिए । कोई कहता वह एकांत में लड़कियों के फ़ोन सुनते हैं । तो कोई कह डालता कि  मोदी आवारा थे इसलिए घर छोड़कर भाग गए । कोई उन्हें गुजरात का कसाई बताता तो दूसरा तत्काल आदमखोर कह देता । किसी की नजर में मोदी शैतान थे तो किसी के लिए उनके मन में स्त्री के प्रति सम्मान न होने की बात छिपी होती । किसी को मोदी के हाथ खून में रंगे  दीखते तो कोई उन्हें खून के समंदर में नहाया देखता । किसी को दीखता कि  यदि मोदी से सेकुलरिज्म सीखना पड़ा तो देश छोड़ देंगे तो किसी को लगता कि  मोदी देश में खून की होली खेलना चाहते हैं । किसी को उनमे लुटेरा और एक घमंडी आदमी नजर आता तो किसी को वे जल्लाद नजर आते । कोई कहता कि  यदि मोदी देश के पी एम बने तो वे हिन्दुस्तान छोड़ देंगे तो कोई उन्हें कायर बताता । कोई मोदी के आने पर बाइस हज़ार मरने की बेवकूफी करता तो कोई उन्हें शान्ति के लिए खतरा समझता । कोई उनसे दोस्ती साबित होने पर राजनीति छोड़ देने की बात करता तो कोई कहता मोदी पी एम बने तो लड़कियों का क्या होगा । कोई कहता उन्हें वोट देना देश द्रोह है तो कोई कहता वे नीच राजनीति करते हैं । किसी ने उनके गुजरात मॉडल को कत्ले आम का मॉडल बताया तो किसी ने उन्हें बेवकूफ झूठा और गधा तक कह डाला । किसी ने कहा वे पी एम बने तो प्राकृतिक आपदा घोषित करेंगे  तो किसी ने भाजपा वालों को कब्रिस्तान भेजने की बात कही किसी ने उनकी तुलना आसाराम  की तो किसी को वे नपुंसक नजर आये । किसी ने इशारों में ही उन्हें लकड़बग्घा कहा तो किसी को उनमे न्युक्लीअर बम दिखा । किसी ने कहा कि  लोकतंत्र एक मंदिर है और कुछ कुत्ते इस मंदिर में घुसकर टांग उठा देते हैं तो किसी ने उनकी बोटी बोटी कर देने की बात कही। किसी ने उनमे पी एम बनने   योग्यता ही नहीं देखी  तो किसी ने उनके लिए कब्र खोदी हुई होने की बात कही और लोगों को कहा कि  वे मिटटी डालने आएं । कोई उन्हें दंगाई और हत्यारा कहता तो कोई गुंडा बताता । कोई उन्हें समुन्दर में फेंक देने की बात कहता तो कोई बी जे पी के बहाने इन्हे ड्रेकुला कहता । किसी ने उनके अचार  बनने  की बात कही तो किसी ने उन्हें दिमागी अस्पताल में इलाज करवाने की बात कही । किसी ने उन्हें हैवान कहा तो किसी ने उनके पी एम बनने  पर देश में आग लग जाने की बात कही । किसी ने कहा कि  मोदी विरोधियों को मरवा देते हैं तो किसी ने उन्हें जहर की खेती करने वाला कहा । किसी ने बड़बोला कहा तो किसी ने कहा कि  एक चायवाला कभी पी एम नहीं बन सकता । किसी ने नया नया मुल्ला कहा तो किसी ने दानव कहा । किसी ने भस्मासुर कहा  तो किसी ने यमराज कहा । किसी ने तेंदुआ कहा । 

सोमवार, 7 अप्रैल 2014

हैरानी होती है जब यह सुनता हूँ कि किस प्रकार से नरेंद्र मोदी के द्वारा कहे किसी भी वक्तव्य को विपक्ष लपक लेता है मानो इसी का इन्तजार कर रहा था । अपने घोषणा पत्र के उद्घोषणा के दिन नरेंद्र मोदी जी ने तीन वाक्य कहे - मैं मेहनत से काम करूंगा । अपने लिए कुछ नहीं करूंगा । बद  इरादे से कोई काम नै करूंगा नहीं करूंगा ।
विपक्ष को इंतजार था कि कुछ तो ऐसा निकले जिसे वे लपक सकें । सो लपक लिया । सिर्फ तीसरा वाक्य । क्या जो व्यक्ति यह कहता है कि वह ईमानदारी से काम करेगा । उस पर हम यह आरोप लगाते हैं कि अरे देखो यह ईमानदारी की  बात कर रहा है इसलिए इसके मन में बेईमानी थी । इसीलिए इसने ईमानदारी का जिक्र किया । इसके मन में चोर है । यह सफाई दे रहा है । क्या जब कोई संविधान के अनुसार काम करने की  शपथ लेता है तो हम उस पर यह आरोप लगाते  हैं कि देखो यह संविधान के अनुसार काम करने की  शपथ ले रहा है यानि इसके मन में चोर था । यह संविधान के विपरीत जाकर काम करने का विचार रखता था । सफाई दे रहा है । तो फिर मोदी पर शक क्यों ?
शक इसलिए कि उन्होंने यह नहीं कहा कि मैं सही इरादे से काम करूंगा ? यह कहा कि मैं बद इरादे से कोई काम नहीं करूंगा । बद इरादे से काम नहीं करने का मतलब भी तो यही है । तो फिर मोदी को यह कहने की  क्या जरूरत पड़  गई । इस देश के तथाकथित धर्म निरपेक्ष दल लम्बे समय से यह हल्ला मचाते रहे हैं कि मोदी आ गया तो यह हो जाएगा , मोदी आ गया तो देश टूट जाएगा , मोदी आ गया तो खून की  होली खेली जायेगी । अब इस तरह की  बातों से एक वर्ग पर भय का भूत बैठा दिया गया है सिर्फ वोटों के लिए । यह वर्ग इतना पिछड़ा है कि समझ ही नहीं पाता  कि यही मोदी को गाली देने वाले लोग अचानक मोदी की  शरण में क्यों चले जाते हैं? यह वर्ग समझ नहीं पाता  कि आखिर कोई अचानक धर्म निरपेक्ष होते होते मोदी के साथ कैसे हो जाता है ? मतलब साफ़ है कि यह सब सिर्फ बेवकूफ बनाने के लिए है ।इसलिए जब मोदी ने यह कहा कि बाद इरादे से कोई काम नहीं करूंगा तो खलबली मच गयी । अब ये दल क्या कहना चाहते हैं ? क्या मोदी को यह कहना चाहिए था कि मैं बद  इरादे से काम करूंगा ? तब यह सब खुश हो जाते । लेकिन मोदी ने यदि यह कहा होता कि मैं नेक इरादे से काम करूंगा तो भी आरोप लगता कि देखो नेक इरादे की  बात कर रहा है । इसके मन में चोर है । वरना  ऐसी बात क्यों करता ?
साफ़ सी बात है मोदी उस वर्ग को भी समझाना चाहते हैं कि वे अपने मन में कोई भ्रम न पालें । और बाकि दल परेशान हैं कि कहीं मोदी सत्ता में आ गए तो इन सबकी पोल न खुल जाए ।  याद होना चाहिए कि वाजपेयी सरकार के आने से पहले भी यह कहा जाता था कि बीजेपी आयी तो देश टूट जाएगा । लेकिन बीजेपी तो आयी पर देश नहीं टूटा पर भ्रम टूट गया । लेकिन उस वर्ग को आज तक भरमाया जा रहा है । ईश्वर उस वर्ग को सदबुद्धि दे । और हाँ , मोदी सम्भवतः यह भी कहना चाहते हैं कि कोई दल भी यह न सोचे कि कहीं मोदी आ गए तो वे सी बी आई का दुरूपयोग करेंगे जैसा कि कांग्रेस पिछले बारह साल से मोदी के खिलाफ सी बी आई का दुरुपयोग करती रही है । 

बुधवार, 26 मार्च 2014

केजरीवाल को मोदी द्वारा पाक का एजेंट कहे जाने पर हुए हल्ले के सन्दर्भ में यह समझा जाना बहुत जरूरी है कि ये आप वाले किस प्रकार अघोषित पाक एजेंट साबित हो रहे हैं । पाकिस्तान आखिर भारत में क्या चाहता है ? पाक भारत में अस्थिरता फैलाना चाहता है । अपनी रैलियों में केजरीवाल पूछते हैं कि ये स्थिरता पर वोट मांगे जा रहे हैं तो ये स्थिरता क्या है । स्थिरता की  जरूरत ही क्या है ? इस देश को एक ईमानदार सरकार चाहिए न कि स्थिरता । वाह , जो केजरीवाल खुद तो भाग गए उनपचास दिन की  सरकार के बाद और वे यह दावा करते हैं कि इस देश को स्थिरता के बजाय ईमानदार सरकार चाहिए । सही है लेकिन केजरीवाल के मुह से अच्छी नहीं लगती । पाक भी तो यही चाहता है कि भारत में स्थिरता नहीं आनी  चाहिए क्योंकि स्थिरता से भारत मजबूत होगा ।
केजरीवाल कहते हैं कि मई अराजक हूँ । पाकिस्तान क्या चाहता है ? भारत में अराजकता ? तो भाई यह तो पाक की  ही इच्छा पूरी हुई । आखिर केजरीवाल किसके उद्देश्यों को पूरा कर रहे हैं ? पाक के न ।
पाक क्या चाहता है कि कश्मीर पर उसका अधिकार हो जाए । तो उसका यह उद्देश्य भी केजरीवाल पूरा कर रहे है । इनकी अपनी साईट पर कश्मीर को भारत का हिस्सा ही नहीं दिखाया गया । भारत का नक्शा कश्मीर रहित दिखाया गया हालांकि पोल खुलने के बाद इन्होने फ़टाफ़ट हटा लिया । प्रशांत भूषन जब तब हरकत करते ही रहते हैं ।
पाक क्या चाहता है ? कश्मीर पर जनमत संग्रह । ये भी चाहते हैं कि कश्मीर पर जनमत संग्रह हो ।
पाक क्या चाहता है ? भारत में नक्सल समस्या बरकरार रहे । ये भी नक्सलियों को सपोर्ट करते ही हैं ।
पाक क्या चाहता है कि भारत कभी भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से न निपट सके और तंगहाल रहे । ये भी मोदी
पाक मोदी से नाखुश है मगर केजरीवाल से खुश है । वहाँ के अख़बार इन केजरीवाल की प्रशंसा में रंगे  पड़े हैं । यानि यदि ये पाक को खुश करने में लगे हैं तो फिर हमारे शत्रु को खुश करने वाला क्या कहलायेगा ।
इन्हे सबसे सवाल पूछने का शौक है पर जवाब देने का नहीं ।
क्या कमाल है । यूं पी ए  को यह हराना चाहते हैं । एन डी  ए  को आने नहीं देना चाहते । खुद सत्ता में आना नहीं चाहते । हो गयी न अराजकता । पाक की  इच्छापूर्ति  ।
हाफिज सईद  जैसे लोग इनसे और हमारे गृहमंत्री रक्षामंत्री आदि से बड़े खुश हैं क्योंकि इनकी बातें उनकी मदद गार ही साबित होती हैं । सो समझिये इनके इरादों को । 
विरोध के द्वारा और यू पी ए  को बनाये रखकर यही हाल देश का करना चाहते हैं ।
मजेदार बात यह है कि यू पी ए  सत्ता में है लेकिन इनकी लड़ाई मोदी से हो गयी है । ये सारा ध्यान देश व यूं पी ए  के भ्रष्टाचार से हटाकर मोदी और गुजरात पर ले जाना चाहते हैं और मोदी और गुजरात को बदनाम कर के पाक के नापाक उद्देश्यों को पूरा करना चाहते हैं ।
इसलिए मोदी कहें या न कहें , ये देश के शत्रुओं की  ही मदद कर रहे हैं । इनके लोग कह रहे हैं कि नक्शे में तो किन्ही अन्य कारणों से कश्मीर को हाईलाइट नहीं किया गया । लेकिन इनके भारत नक़्शे में कश्मीर है ही नहीं । और यदि कोई अन्य कारण था तो हटा क्यों लिया ।
इसलिए केजरीवाल नापाक साबित हो गए हैं जिनका नाम लेने पर अन्ना  तक को कहा पड़ा कि शुभ शुभ बोलें ।  इसलिए केजरीवाल को समझना बहुत जरूरी है । वे पाक के ही मदद गार साबित हुए है ।

रविवार, 23 मार्च 2014

कोई बुराई नहीं है हर हर मोदी में । 
दिग्विजय सिंह के बयान के बाद जिस प्रकार से शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी हर हर मोदी के विरोध में उतर आये हैं वह बहुत ही हास्यास्पद सा मामला है । ये वही शंकराचार्य हैं जिनसे जब एक पत्रकार ने यह पूछ लिया था कि यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमन्त्री बनते हैं तो ……… इतना कहते ही इन्होने उस पत्रकार महोदय के मुह पर एक थप्पड़ मार दिया था । यही वे शंकरचार्य हैं जिन्होंने सोनिया गांधी के अमेरिका में इलाज के दौरान भारत में उनके स्वास्थ्य  लाभ के लिए यज्ञ करवाया था । इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन जिस पद पर वे बैठे हैं उसमे उनके हर कार्य पर नजर राखी ही जायेगी । यदि शंकराचार्य  दिग्विजय सिंह जी की  टिपण्णी से पहले यह सब कह देते तब तो बात समझ आती लेकिन अपने राजनैतिक शिष्य की  आपत्ति के बाद शंकराचार्य को होश आना कि यह तो गलत है , विषय को ही संदिग्ध बना देता है । 
खैर , आइये , बात करें , हर हर मोदी की ।
जो बेकार की  बातें की  जा रही हैं उनका निस्तारण किया जाना जरूरी है । 
क्या डॉक्टर भगवान् होता है ? यदि नहीं तो क्या डॉक्टर को भगवान् कहना भगवान् का अपमान नहीं है ? यदि हाँ तो क्या खराब डॉक्टर को हम भगवान् मानेंगे या नहीं ? इस झगड़े में पड़ना चाहेंगे आप ? नहीं न ? तो फिर हर हर मोदी में क्यों ?
क्या जनता जनार्दन होती है ? जनार्दन यानि विष्णु । जनता को भी नेता की  निगाह में भगवान् का दर्जा दिया गया है । तो क्या यह भगवान् विष्णु का अपमान है ? यदि हाँ तो फिर अब तक आपत्ति क्यों नहीं ? और यदि नहीं तो फिर भावना क्या है ? और यदि उस विष्णु रूपा जनता ने हर हर मोदी कह दिया तो फिर हर हर मोदी में बवाल क्यों ?
शंकराचार्य स्वरूपानंद जी तो पार्टी विशेष के प्रति लगाव रखने के लिए जाने जाते हैं लेकिन आदि शंकराचार्य ने ब्रह्म सूत्र की  रचना की  । स्वरूपानंद जी ने भी ब्रह्मसूत्र अवश्य ही पढ़ा होगा । उसका पहला सूत्र है - तत् त्वम् असि । यानि वह तुम हो । यानि वह ब्रह्म तुम हो । यानि पहले ही सूत्र में गुरु शिष्य को समझाता है - तुम ब्रह्म हो । तो क्या यह उस ब्रह्म का अपमान हो गया । शंकराचार्य जी ने यह सीखा भी होगा और सिखाया भी होगा । तो क्या यह ब्रह्म का अपमान हो गया ।
फिर शिष्य से कहा जाता है कि वह बोले और आत्मसात करे - अहम् ब्रह्मास्मि । यानि मैं ब्रह्म हूँ । तो क्या यह ब्रह्म का अपमान हो गया ? शंकराचार्य विद्वान् हैं और यह भी उन्होंने पढ़ा होगा अवश्य ही । तो फिर हर हर मोदी में बवाल क्यों ?
शास्त्रों में कहा गया है कि - शुनि चैव श्वपाके च पंडिता समदर्शिनः । यानि पंडित लोग कुत्ते में और चांडाल में भी भेद नहीं करते । वे कुत्ते में और चांडाल में भी उस ही ब्रह्म को देखते हैं  जिसे वे स्वयं में ढूंढते हैं । तो फिर यहाँ पर किसका अपमान हो गया ? क्या कुत्ते और चांडाल में उसी ब्रह्म को देखना ब्रह्म का अपमान हो गया ? यदि नहीं तो फिर हर हर मोदी में बवाल क्यों ?
श्रीमद्भागवत में लिखा है कि भगवान् कहते हैं कि जो भक्त निरपेक्ष भाव से जीवन यापन करता है मैं उसके पैरों की धूल  से अपने को पवित्र कर लेता हूँ । क्या भगवान् अपना अपमान कर रहे हैं ? इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया कहने पर तो कुछ नहीं हुआ था ? वाजपेयी जी ने इंदिरा गांधी जी को दुर्गा कहा था तब तो दुर्गा जी का कोई अपमान नहीं हुआ था ? पांच दिन बाद नवरात्रों में कन्या पूजन उसी दुर्गा भावना से होने वाला  है तब तो देवी का कोई अपमान नहीं होगा तो फिर यह व्यर्थ की  बकवास क्यों ?
यह बकवास इसलिए क्योंकि जिस प्रकार पापी अपने पाप से मरता है वैसे ही कांग्रेस अपने आप ही ख़त्म होगी । इस प्रकरण से भी नरेंद्र मोदी जी को ही फायदा होगा क्योंकि प्रकृति ऐसा ही चाहती है ।
इसलिए जोर से बोलिये -
हर हर मोदी , घर घर मोदी ।

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

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सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

मेरा एक नायक सा था । ख़त्म सा हो गया वह । कभी उसने अलख सी जगाई थी । सत्ता के खिलाफ । लेकिन फिर मैंने सत्ता के मद से पराजित सा होते देखा उसे । लेकिन वह पराजित हुआ नहीं । लेकिन उसके सुर जरूर धीमे पड़े । अब वह यदा कदा  दिखाई देता है । टी वी पर । टी वी पर दिखना एक बीमारी है । उसे भी लगी है । हालांकि वह संकल्प लिए हुए है कि जिन्होंने उसके संकल्प को कुचलने की  कोशिश की  वह उन्हें कुचल देगा । कहना मुश्किल है क्या होगा । उसका संन्यास भी उसे जीवन में प्रवेश से रोकता नहीं है । लेकिन एक बात तय है । यदि चाणक्य का जीवन दर्शन उसके जैसा होता तो चाणक्य शायद ही कभी नन्द को रोक पाते । दिक्कत यह है कि वह मननात् मन्त्रः की  गोपनीयता को नहीं समझ पाता  । खैर , उसने अपने विरोधियों के राजनैतिक कैरियर की  तेरहवीं की  सौगंध खाई है । देखते हैं , क्या होता है ।

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

धर्म एव हतो  हन्ति , धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्मात्धर्मो न हन्तव्यो , मा  नो धर्मो हतोवधीत् ॥ मनुस्मृति ८,१५
अर्थात्
मारा हुआ धर्म मारने वाले को ही मार देता है और रक्षा किया हुआ धर्म अपने रक्षक की  ही रक्षा करता है । इसलिए धर्म का हनन नहीं करना चाहिए , ऐसा न हो कि हनन किया हुआ धर्म हमें नष्ट कर दे ।
यानि यदि हम धर्म की  रक्षा नहीं करते हैं यानि धर्म को मार देते हैं तो यही मरा हुआ धर्म हमें मार देता है और यदि हम धर्म की  रक्षा करते हैं तो यही धर्म हमें बचाता है यानि धर्म हमारी रक्षा करने के लिए ही होता है । इसलिए धर्म को बचाएं । कहीं ऐसा न हो कि मारा गया धर्म हमें ही न मार दे ।


                                 डॉ द्विजेन्द्र शर्मा , हरिपुर कलां , देहरादून

शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

उद्योगिनं  हि  पुरुषसिंघमुपैति लक्ष्मी
 दैवं हि  दैवमिति कापुरुषा वदन्ति ।
दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या
यत्ने  कृते यदि न सिध्यति कोत्र दोषः ॥
अर्थ -
परिश्रमी व्यक्ति को ही संपत्ति मिलती है
भाग्य ही सब कुछ है यह कायर लोग बोलते हैं ।
भाग्य को मारकर अपनी शक्ति से पुरुषार्थ करो ,
यत्न करने पर यदि सिद्ध नहीं होता तो इसमें दोष भी क्या ?
नमो नमः

बुधवार, 29 जनवरी 2014

केजरीवाल जानते हैं चर्चा में रहकर लोगों के दिमाग में कैसे घुसना है ।
वे इस मांग के द्वारा सिर्फ सिख वोट्स पर नजर गड़ाए बैठे हैं ।
उन्हें पता है कांग्रेस से रूठे सिख बीजेपी को वोट करते हैं ।
अकाली दल बीजेपी गठबंधन के वोट्स को प्रभावित करना चाहते हैं केजरीवाल ।
केजरीवाल वह सब कर रहे हैं जिसका आरोप वे अब तक अन्य दलों पर लगाते आये ।
इस तरह की  बातों से वे अपनी विफलता छिपकर खुद को चर्चा में भी बनाये रखना चाहते हैं ।
इस तरह की  बातों से केजरीवाल को कोई फायदा नहीं होने वाला ।
सिख भी निराश हैं जो 30 साल में न हुआ वह एस आई टी से नहीं होगा ।
राहुल जितना बोलेंगे उतना भाजपा को फायदा होगा ।
राहुल का मुँह  खोलना हमेशा एक नए विवाद को जन्म देता है ।
राहुल हर भाषण के साथ अपनी अपरिपक्वता का भरपूर परिचय देते हैं ।
राहुल ज्यादा न ही बोलें तो ही उनका फायदा है । पी एम से कम बोलना सीखें ।

द्विजेन्द्र शर्मा , देहरादून


सोमवार, 27 जनवरी 2014

 Ajeet Mishra Recently, India's most well-known film script-writer Salim Khan (actor Salmaan Khan's father) has said to a senior journalist in an interview: "Does anyone remember who the chief minister of Maharashtra was during the Mumbai riots which were no less deadly than the Gujarat riots of 2002?

Does anyone recall the name of the chief minister of UP during Malliana and Meerut riots or that of the Bihar CM when the Bhagalpur or Jamshedpur riots under Congress regimes took place?

Do we hear names of earlier chief ministers of Gujarat under whose charge, hundreds of riots took place in post-Independence India?

Does anyone remember who was in-charge of Delhi's security when
the 1984 massacre of Sikhs took place in the capital of India?

How come Narendra Modi has been singled out as the Devil Incarnate as if he personally carried out all the killings during the
riots of 2002?"

No speck of doubt about what Salim Khan has said.

When one says Gujarat's agriculture growth is 10-11% since whole last decade
The other says 2002 Riots!

When one says he made the Asia's biggest solar plant,
The other says 2002 Riots!

When one says Gujarat is the only state in the whole of India to provide 24*7 and 365 days electricity to almost all of its 18,000
villages,
The other says 2002 Riots!

When one says - World Bank's statement of 2011 said, Gujarat roads are equivalent to international standards,
The other says 2002 Riots!

When one says Gujarat is the first State in country to have "high speed wireless Broadband service in its all 18,000 villages,
The other says 2002 Riots!

When one says Forbes Magazine rated Ahmadabad as the fastest
growing city in India and 3rd in the world,
The other says 2002 Riots!

When one says Gujarat Tourism is growing faster than ever before,
The other says 2002 Riots!

When one says according to central govt's Labour Bureau's report, Gujarat has the lowest unemployment rate in country,
The other says 2002 Riots!

When Narendra Modi is being chosen as the best current Indian leader in
almost all surveys & polls again and again
The other says 2002 Riots!

When one says 2003-2013 are the only 10 straight years in Gujarat history which are totally riot-free,
The other STILL says 2002 Riots!

But when we remind them about riots which occurred during Congress and in Communist Party rule :

1947
Bengal....5,000 to 10,000 dead ...CONGRESS RULE.

1967
Ranchi....200 DEAD..........CONGRESS RULE.

1969
Ahmedabad...512 DEAD........CONGRESS RULE.

1970
Bhiwandi....80 DEAD.............CONGRESS RULE.

1979
Jamshedpur..125 DEAD......CPIM RULE (COMMUNIST PARTY)

1980
Moradabad...2,000 DEAD...CONGRESS RULE.

1983
Nellie Assam.....5,000 DEAD...CONGRESS RULE.

1984
anti-Sikh Delhi...2,733 DEAD...CONGRESS RULE

1984
Bhiwandi....146 DEAD....CONGRESS RULE

1985
Gujarat.....300 DEAD..CONGRESS RULE

1986
Ahmedabad......59 DEAD.....CONGRESS RULE

1987
Meerut....81 DEAD...CONGRESS RULE

1989
Bhagalpur......1,070 DEAD......CONGRESS RULE

1990
Hyderabad......300 PLUS DEAD....CONGRESS RULE

1992
Mumbai....900 TO 2000 DEAD....CONGRESS RULE

1992
Aligarh....176 DEAD.....CONGRESS RULE

1992
Surat.......175 DEAD.....CONGRESS RULE

they become totally deaf ..................because they have no answer.

Congress is a government of hypocrites.

The youth of India says:............

We are not interested in 2002, We are interested in 2022

Please share if u wish ....

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

चालाक हैं केजरीवाल , नब्ज पहचानते हैं , टीवी कवरेज चाहिए हर वक़्त ।
केजरीवाल किसी भी तरह टीवी पर रहकर देश के जनमानस में घुसना चाहते हैं ।
आप पर हमला इसे और प्रचार देगा , केजरीवाल यह जानते हैं
जिस तरह से देश में बहुत से येडे इस पार्टी में घुस रहे हैं उससे तो लगता है येड़ा पार्टी 
डॉ द्विजेन्द्र शर्मा , हरिपुर कलां , देहरादून

बुधवार, 22 जनवरी 2014

झूठ के पाँव नहीं होते । केजरी के झूठों के भी नहीं । नहीं चलेगी सरकार ।
डॉ द्विजेन्द्र हरिपुर , देहरादून
जिम्मेदारी के बोझ से दबे केजरीवाल फ्लॉप होने के कगार पर हैं ।
डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर देहरादून

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

कृपया मोदी जी तक जरूर पहुंचाएं -
आदरणीय मोदी जी ! प्रणाम , जिस कारण से ये पंक्तियाँ लिख रहा हूँ वह बहुत जरूरी हैं क्योंकि ऐसा सुन और देख रहा हूँ -
मेरे कई मित्र हैं जो आरक्षित वर्ग से हैं और अच्छे भी हैं । ये सभी वर्त्तमान आरक्षण व्यवस्था से दुखी हैं । इनका मानना है कि वर्त्तमान आरक्षण व्यवस्था जिस रूप में चल रही है वह अच्छी नहीं है । इसमें यदि एक व्यक्ति को आरक्षण मिलता है तो उसकी तो पीढ़ियां तर  जाती हैं लेकिन वह निरंतर आरक्षण पाता  जाता है और ऐसे लोगों के कारण वह तबका अब बहुत पीछे छूट गया है जिसको आज तक कुछ नहीं मिला । इन सबकी सोच है कि यह तो फिर से वही  प्रवृति शुरू हो रही है जिसका खामियाजा एक वर्ग को भुगतना पड़ा और पड़  रहा है । आज दलित के साथ एक वर्ग और उभर रहा है - वह है - महादलित । यह वह वर्ग है जो कुछ भी हासिल नहीं कर पा रहा है । कहीं पर भी नियुक्तियों में अक्सर देखा जाता है कि नियुक्त आरक्षित लोगों में वे लोग ही ज्यादा नियुक्तियां पाते हैं जिनको पहले भी लाभ मिल चुका  है और जिन्हें कोई लाभ अब तक नहीं मिला वे वहीँ रह जाते हैं । आपसे अनुरोध है कि आप कोई ऐसे व्यवस्था बनाने की  घोषणा बीजेपी की  तरफ से करें कि पहले जब तक सभी व्यक्तियों को आरक्षण एक एक बार नहीं मिल जाता तब तक किसी को दोबारा क्यों आरक्षण मिले ? जब एक एक बार सभी को आरक्षण मिल जाए तब दोबारा सभी को आरक्षण दिया जाना शुरू किया जाये । उदाहरण के तौर पर - यदि कहीं पर सौ आरक्षित सीट्स हैं तो पहले इन सीट्स पर सिर्फ आरक्षण लाभ से दूर रहे लोगों की  नियुक्ति की  जाए मिमिमम  एलिजिबिलिटी के आधार पर । यदि सिर्फ  सत्तर सीट्स ही उदाहरण के तौर पर भरें तो फिर बाकी सीट्स पर एक बार लाभ प्राप्त लोगों को यह सीट्स दी जाए और यदि इन बची हुई तीस सीट्स में से बीस सीट्स ही भर पाती  हैं तो बाकि दस सीट्स पर दो बार आरक्षण प्राप्त लोगों को नियुक्ति दी जाए । इस  प्रकार से कम से कम एक बार तो पहले सबको आरक्षण मिल ही जाना चाहिए । फार्म में ही यह व्यवस्था होगी कि व्यक्ति को बताना होगा कि उसके पिता दादा को आरक्षण लाभ मिला था या नहीं । एक एक बार सबको आरक्षण मिलने के बाद यदि किसी के पिता को आरक्षण मिल चुका  है तो पुत्र को नहीं । लेकिन यदि पिता को आरक्षण लाभ नहीं मिला तो पुत्र को आरक्षण लाभ मिले भले ही दादा को लाभ मिल चुका  हो । यानि पिता पुत्र के आधार पर भी देखा जाये । इससे इस वर्ग में भी सामाजिक न्याय मिलेगा जो सामान होगा और सम्पूर्ण वर्ग के उन्नति के अवसर खुलेंगे ।
इसके अतिरिक्त एक तथ्य और है । आज कल आर्थिक आरक्षण पर बात चल रही है और कोई भी पार्टी आर्थिक आरक्षण पर कुछ कहने से बच रही है । मेरा कहना है कि भाजपा इस पर एक स्टैंड ले सकती है वह ऐसे है - पहले जो मैंने एक बात कही है कि यदि कहीं सौ सीट्स हैं और विज्ञापन निकलने पर यदि अभी तक आरक्षण से वंचित परिवारों के द्वारा यदि सत्तर ही सीट्स भर पाती हैं तब यदि सवर्ण जातियों के गरीबों का सही सूचीकरण जाए तब बाकि तीस सीट्स को सवर्ण जाति  के गरीबों के लिए आरक्षित  कर दिया जाए । लेकिन इसमें यह ध्यान रखा जाए , नियम बनाया जाए कि यदि सवर्ण जाति  के किसी व्यक्ति ने कोई गलत आय प्रमाण पत्र बनाया तो इसे सज्ञेय अपराध की  श्रेणी में रखा जाए । आय प्रमाण पत्र के नियम कड़े बनाये जाएँ । और जब तक ऐसी सवर्ण गरीब सूची नहीं बनती तब तक तो संपूर्ण आरक्षण एस सी एस टी को ही दिया जाए । ऐसा करने से भाजपा के पास वह वोट भी आयेगा जो अब तक आरक्षण से वंचित रहकर महादलित में बदल गया है । और सवर्ण के गरीबों का वोट भी आएगा । यह तरीका मुझे तो कारगर लगता है ।
उम्मीद करते हैं कि बीजेपी के मोदी जी कुछ ऐसा करने की  कृपा करेंगे । इसी प्रकार पहले विकास कार्य मलिन बस्तियों में किये जाएँ और इनके लिए एक कमीशन बनाया जाये ताकि इनके जीवन स्तर  को भी उठाया जाए । मलिन बस्तियों के विकास के लिए एक अलग कमीशन बनाने से भी वोटर पर असर पड़ेगा । इन मलिन बस्तियों में जाति धर्म का कोई मतलब न हो । यह सबके लिए हो ।
डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर कलां , मोतीचूर , रायवाला देहरादून
 केजरीवाल का यह तरीका बिलकुल भी जनतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। आखिर वे क्यों नहीं दुबारा चुनाव के लिए तैयार हो जाते यदि उनसे सरकार नहीं संभल रही है । आखिर वे क्या मानते हैं कि जो वादे उन्होंने जनता से किये हैं यदि उन्होंने वे सारे  वादे पूरे नहीं किये तो जनता उन्हें माफ़ नहीं करेगी । क्या इसलिए वे जिम्मेदारियों से भागने की  कोशिश कर रहे हैं ? यदि वे ऐसा सोचते हैं तो गलत हैं । क्यों नहीं वे आसानी से अपने कामों को अंजाम देने की  कोशिश करते ? उन्हें यह समझना चाहिए ? जनता उनकी नियत देखेगी । यदि उनकी नियत ठीक होगी तो उनको वह दोबारा भी चुनेगी । यदि वे कहेंगे कि उनके कुछ मंत्री अनुभवहीन भी हैं । तो वह भी वह माफ़ करेगी  लेकिन अराजकता पसंद नहीं करेगी । दिल्ली की  जनता हर मुद्दे पर आप को माफ़ करेगी लेकिन यह नौटंकी वह बर्दाश्त नहीं करेगी । केजरीवाल इस तरह से तो ख़त्म ही हो जायेंगे राजनैतिक स्तर  पर । वे भारत में एक नयी उम्मीद बन कर आये हैं और उन्होंने बड़े बड़े दलों को अपनी नीति बदलने को मजबूर कर दिया था । ऐसे में उनके नए मार्ग की  देश की  जनता को जरूरत है । लेकिन जो रास्ता वे अख्तियार कर रहे हैं वह गलत है । यदि केजरीवाल अराजक हैं तो कांग्रेस इसकी समर्थक हैं ।
केजरी की सरकार ने उम्मीद जगाई थी जिसे उन्होंने ही ख़त्म कर दिया ।
वे यदि नियत ही साबित कर देते तो भी जनता माफ़ करती ।
डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर कलां , देहरादून
उनकी विफलता से कांग्रेस बीजेपी की लाटरी लग जायेगी ।
 डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर कलां , देहरादून
जो गणतंत्र का नहीं वह किसी तंत्र का नहीं ।

सोमवार, 20 जनवरी 2014

कृपया  एक बार लोकसभा 2 0 1 4   के लिए वोट अवश्य दें -
यदि आप दिल्ली के हैं तो -
आप के लिए 1
बीजेपी के लिए 2
कांग्रेस के लिए 3
बसपा के लिए 4
सपा के लिए 5
अन्य के लिए 6
यदि दिल्ली  बाहर के हैं तो -
आप के लिए     01
बीजेपी के लिए  02
कांग्रेस के लिए  03
बसपा के लिए  04
सपा के लिए    05
अन्य के लिए  06


केजरीवाल को लगता था कि सरकार चलाना आसान होता होगा लेकिन अब सरकार संभल नहीं रही है । भगवान् ने लेन्टर  फाड़ कर दे दिया है । लेंटर भारी है , सो संभालेगा कैसे।  वे  कुचले  कुचले से महसूस कर रहे हैं । वे अपने कानून मंत्री के गैर कानूनी कार्यों को भी सपोर्ट कर रहे हैं । आंदोलन का कार्यकर्ता अब मुख्मंत्री बन गया है यह उनकी समझ नहीं आ रहा । क्या वे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को ताक  पर रखना चाहते हैं या जनता के दिमाग में बैठ जाना चाहते हैं कि हाँ , कोई है जो सरकार से सीधे पंगा ले सकता है । यह कतई  ठीक नहीं है । यदि सरकार ने रामलीला मैदान की  तरह रामदेव के आंदोलन की तरह इनको उखाड़ने की  कोशिश की  तो ये सरकार को घेरेंगे और शायद जनता के प्रति जवाबदेही  से बच जायेंगे । क़ानून मंत्री का पुलिस से जो विवाद है उसमे वे इंतजार करने को तैयार नहीं हैं । लेकिन अपने वायदों को पूरा करने के लिए वे पहले समय देकर अब समय मांग रहे हैं । कोई बात नहीं , पर आप काम तो करें । यह काम जो अरविन्द कर रहे हैं यह तो उनके कार्यकर्त्ता कर सकते थे दिल्ली सरकार के समर्थन में और केंद्र सरकार के खिलाफ । लेकिन ऐसा वे नहीं कर रहे । दिनोंदिन  उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा है । यह उनके स्वास्थ्य के लिए भी ठीक नहीं है । उन्हें सचिवालय संभालना चाहिए । न कि अन्य चिंताएं करनी चाहिए । वे पुलिस वालों से कह रहे हैं कि अपनी वर्दी छोड़कर हमारे साथ आ जाओ । भैया ! आपकी तो पत्नी आपका घर सम्भाल लेगी लेकिन जिनकी हाउस वाइफ हैं उनका क्या होगा ? बच्चे कौन पालेगा ?

 

रविवार, 19 जनवरी 2014

आम तौर पर ईश्वर हर किसी को छप्पर फाड़ कर नहीं देता लेकिन केजरीवाल को भगवान् ने लेंटर फाड़ कर दिया है । दिल्ली दी है । अब उनसे दिल्ली संभल नहीं रही है । लेंटर भारी होता है । केजरीवाल को चाहिए था कि वे लोकसभा को छोड़कर दिल्ली सँभालते ।  दिल्ली दिल है भारत का , दिल्ली सम्भाल लेते तो अन्य राज्यों के दरवाजे भी सम्भाल लेते । लेकिन क्या करें ? उन्हें जल्दी पड़ी है । पी एम् बनना  है । अब उनके क़ानून मंत्री जो कर रहे हैं , हो सकता है , हर जगह उनका दोष न हो लेकिन एक प्रोसेस होता है और जब तक आप कानूनी प्रक्रिया द्वारा इन को बदलेंगे नहीं तब तक आपको उन पर चलना पड़ेगा क्योंकि अब आप मूवमेंट नहीं चला रहे , सरकार चला रहे एक बात जगजाहिर है , कानून मंत्री को ज्ञान नहीं है । लेकिन कोई बात नहीं , वे मदद ले सकते थे । लेकिन स्वीकार कैसे करें ? ज्ञान नहीं है । अहम् है । केजरीवाल भी नहीं मान रहे कि उनके मंत्री को ज्ञान नहीं । अरे ! नीयत तो आपकी ठीक है न ? फिर क्या बात है ? ज्ञान भी समय पर हो जाएगा । पर अपनी हरकतों से अपना अज्ञान तो न बखारें । इसी से यह कुल मिलाकर ड्रामा लग रहा है । केजरीवाल के काम का मूल्यांकन सौ दिन बाद होना चाहिए पहले भी लोग सौ दिन का तो इन्जार करते रहे हैं । अब हमें भी समझना चाहिए कि वे बुरे फंस गए हैं इसलिए धैर्य से उन्हें सौ दिन देने चाहिए और काम करने देना चाहिए । सौ दिन बाद पूछा जाए कि आपने क्या किया । केजरीवाल भी सौ दिन का समय मांग लें कहें , सौ दिन बाद पूछना । और फिर चुपचाप काम करें । लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है ।

शनिवार, 18 जनवरी 2014

ये तमाम सरकारी विभाग  एक ही शर्त पर ठीक हो सकते हैं जब सरकारी लोगों के लिए भी सरकारी विभागों में ही अपने कार्य कराने की  अनिवार्यता हो । यानि यदि मंत्री से लेकर सरकारी चपरासी तक के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ें तो सरकारी स्कूल बहुत आसानी से ठीक हो जायेंगे । क्योंकि सरकारी स्कूल में जब सभी  सरकारी लोग जायेंगे तो व्यवस्था बनानी ही पड़ेगी । आज सरकारी स्कूल में जब गरीब के बच्चे पढ़ते हैं तो वहाँ इनकी सुनने वाला कोई नहीं होता लेकिन जैसे कि दक्षिण में हुआ एक आई ए  एस ने अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में भर्ती करवा दिया तो स्कूल की  पहले हालत खराब थी बाद में तीन माह में स्कूल सुधर गया और बहुत बदलाव आये । ऐसे ही सरकारी लोग अपने बच्चों का इलाज सरकारी हॉस्पिटल में कराएं तब ठीक होंगे हॉस्पिटल । सरकार के बड़े बड़े अधिकारी तक जब सरकारी हॉस्पिटल में इलाज कराएंगे तो व्यवस्था को दबाव में ठीक होना ही होगा । यही एकमेव इलाज है सरकारी उपक्रमों के ठीक करने का । 
डॉ द्विजेन्द्र हरिपुर ,  देहरादून

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

नैषधकार श्री हर्ष अपने काव्य नैषधीयचरितम् में कहते हैं -
अमहतितारासतादृकतारा न लोचनगोचरा
स्तरणीकिरना द्यामन्चन्ति क्रमादपरस्परा ।
कथयति परिश्रान्तिं रात्रीतमः सह युध्वनाम् 
अयमपि  दरिद्राणप्राणस्तमीदयितस्विषाम् ॥
स्वरूप से ही कमजोर सूक्ष्म तारिकाएं पहले की  तरह दिखाई नहीं देती । चन्द्रमा भी रात के अन्धकार से लड़ते लड़ते थक गया है । और सूर्य की  किरणें अहमहमिकया यानि पहले मैं पहले मैं की  प्रवृत्ति से तेजी से गगन में व्याप्त हो रही हैं ।
लगता है हर्ष को पता था कि मोदी का सूर्य इसी तरह से देश भर में छा जायेगा । और कांग्रेस और अन्य दलों के नेता तारिकाओं की  तरह गायब से हो जायेंगे । राहुल चन्द्रमा की  तरह अपनी पार्टी के अंधेरों से  लड़ते लड़ते थक जाएगा ।
डॉ द्विजेन्द्र ,हरिपुर कलां , देहरादून
आज राहुल गांधी जी का भाषण सुना । सुना कि वे पीछे मुड़कर नहीं  देखते । देख लेते तो पता चलता कि उनके लोगों ने देश में  कितनी गरीबी छोड़ी है । देखते तो पता चलता कि जिस कलावती के घर का एक वक़्त का भोजन वे खा आये थे उसका दामाद और बेटी कर्ज में डूबकर मर चुके हैं और वह  भी मरणासन्न है ।
वे कहते हैं कि कांग्रेस का इतिहास तीन हज़ार साल पुराना है । सॉरी , कांग्रेस का इतिहास तीन हज़ार साल पुराना नहीं है । अठारह सौ पचासी में स्थापित हुयी थी कांग्रेस । एक सौ उन्तीस वर्ष हुए हैं । लेकिन आप क्या कहना चाहते हैं ? देश की  आजादी का श्रेय लेना चाहते हैं । तो फिर उन्नीस सौ सैंतालीस के दंगों का भी श्रेय आपको लेना पड़ेगा  । गांधी जी ने आजादी के बाद कहा था कि कांग्रेस को  ख़त्म कर दो । वे जानते थे कि देश को आजाद करने का श्रेय लेकर कौन लोग मजे लूटना चाहेंगे । लेकिन ऐसा हुआ नहीं । क्या आज जो लोग अन्य पार्टियों में हैं उनके पुरखों या पार्टियों के लोगों को कोई श्रेय नहीं मिलेगा ? क्यों ?
राहुल ने कहा कि कांग्रेस एक सोच है संगठन नहीं । अच्छा ? लेकिन इस देश की  तीन हज़ार वर्ष  सोच  इतनी भ्रष्ट नहीं रही है । यह देश स्वर्णिम इतिहास रखता है । यदि आजादी के बाद की  कांग्रेस को हटा दिया जाय तो भारत का इतिहास बहुत स्वर्णिम रहा है । इसलिए अपनी सोच अपने पास रखिये ।
आपने कहा विपक्ष गंजों को कंघी बेचता है । जी हाँ।  कांग्रेस पार्टी की  तरह देश नहीं बेचता । टू जी । थ्री जी । koal  घोटाले नहीं करता ।
आप सिलेंडर बढ़ा रहे हैं ।  बेवकूफ समझते हैं हमें। हमें सिलेन्डर  देना चाहते हैं या अपने लिए ऑक्सीजन सिलेंडर जुटाना चाहते हैं ।
आप कहते हैं देश के गरीबों के लिए काम करेंगे । आपके मंत्री तो चाय वालों को  आदमी ही मानने को तैयार नहीं हैं ।   उन्हें तो समझाइये ।
छोड़िये भी । आप क्या जानेंगे गरीबों का दर्द ।
डॉ द्विजेन्द्र हरिपुर , देहरादून
कांग्रेस का इतिहास भ्रष्टों का है और इस देश का स्वर्णिम ।
डॉ द्विजेन्द्र हरिपुर , देहरादून
कांग्रेस को खुद ऑक्सीज़न  सिलेंडर  चाहिए जिन्दा रहने के लिए ।
डॉ द्विजेन्द्र हरिपुर , देहरादून
चायवालों का इतना अपमान शायद ही कभी किसी ने किया हो ।
डॉ द्विजेन्द्र हरिपुर , देहरादून
विपक्ष गंजो को कंघी बेचता है और कांग्रेस भ्रष्टों को देश बेचती है ।
डॉ द्विजेन्द्र हरिपुर , देहरादून
राहुल ने पीछे मुड़कर देखा होता तो पता चलता कि आप छोड़ आये हैं - गरीब जनता ।
डॉ द्विजेन्द्र हरिपुर , देहरादून

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

अपने केजरीवाल से कहना - समर्थक तो हम भी बन रहे थे लेकिन तुम्हारी हरकतों ने लौटने पर मजबूर कर दिया । दिल्ली सम्भाली नहीं जा रही देश कैसे संभालोगे ? तुम्हारा हारना हमें बहुत दुखी करेगा । तुमने सबको गाली दे देकर सत्ता कब्जायी थी हमने सोचा था चलो अब कुछ बदलेगा लेकिन तुम्हारे सपने बहुत ऊँची छलांग लगा रहे हैं । दिल है दिल्ली देश का । उसे सम्भालो तो देश  सर आँखों पर बैठायेगा । जल्दी क्या है । लेकिन भ्रष्ट कांग्रेस का साथ ? बहुत बुरा किया । अरे फंस रहे थे तो बीजेपी को समर्थन दे देते । पांच साल आराम से कटते  । तुम्हारे नए नए चेहरे बहुत कुछ सीखते इन पांच सालों में । जिम्मेदारी ज्यादा होती नहीं । अपने क्षेत्र में विकास कार्य करके अपनी अट्ठाईस  सीट्स पक्की कर लेते पांच साल बाद के चुनाव में । बीजेपी को समर्थन देने की  शर्त रखते कि जब तक बीजेपी असाम्प्रदायिक की  तरह काम करेगी तब तक समर्थन करोगे । बीजेपी साम्प्रदायिक नहीं है फिर भी कह रहा हूँ । मैं तो मोदी का हूँ फिर भी कह रहा हूँ । जब कांग्रेस समर्थन वापस ले या तुम्हारी सरकार गिरे तब बीजेपी को समर्थन कर देना । बच जाओंगे वरना  नाम भी कोई नहीं लेगा । सुनो , कांग्रेस के ख़त्म होने का समय आ गया है तो एक विपक्ष तो चाहिए । तुम हो सकते हो । सोच समझ कर फैसले लो । समझे ,

शनिवार, 11 जनवरी 2014

जन आंदोलन में जो भीड़ केजरीवाल साहब को सुहाती थी वही भीड़ जब माँगने आयी तो समझ में आया कि भीड़ क्या होती है ? भैया ! आपको जिसने वोट दिया वह मांगने भी आएगा । कब तक छत पर चढ़ेंगे ? कल लोग सीढ़ी लेकर आने लगेंगे तब क्या करेंगे ? हेलीकाप्टर पर चढ़ेंगे ?
आम आदमी पार्टी के नेता मनीष शिशोदिया से जब पूछा गया कि यदि लोकसभा में भी hung पार्लियामेंट रही और आपकी स्थिति दिल्ली जैसी ही रही तो आप क्या करेंगे - देश में पूछने जायेंगे कि सरकार बनाएँ कि नहीं बनाएँ  । वे बोले - हाँ , हम सारे देश में जायेंगे । जनता से पूछेंगे । क्या बुराई है ? लो कर लो बात भैया ।
अरविन्द केजरीवाल जी ने अपनी साईट से शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ सारे सबूत मिटा दिए हैं । बधाई अरविन्द जी ! अच्छा एहसान चुकाया आपने कांग्रेस का । अगर आप या कांग्रेस लोकसभा में आने का सपना देख रहे हैं तब तो खुल गया टू  जी , कामनवेल्थ , koal  घोटाला आदि आदि ।
दिल्ली में जनता दरबार लगा । और समाप्त हो गया है । क्या आप ऐसा ही पी एम भी देखना चाहते हैं ? क्या आप चाहते हैं कि देश में ऐसा ही अफरा तफरी का माहौल हो । केजरीवाल साहब को इतनी जल्दी सब कुछ करने और हथिया लेने की  पड़ी है कि वे सोच रहे हैं कि सब को सबकुछ दे दें । लेकिन यह सम्भव नहीं है । उन्होंने वायदे तो कर दिए लेकिन वे वायदों को जल्दी पूरा करने की जल्दी दिखा रहे हैं । सीधे सीधे उन्हें तमाम कामों को बिना किसी भावना के वशीभूत हुए करना चाहिए । अब वे भूल जाएँ कि उन्होंने क्या वादे किये वे सिर्फ काम करें । वे जो काम करेंगे जनता के लिए ही करेंगे । धीरे धीरे करें । केजरीवाल साहब ! यदि आपने दो चार काम भी आसानी से कर दिए और तब भले ही आपकी सरकार गिर जाये लेकिन तब जनता समझ जायेगी कि आप  को समय कम मिला । समय ज्यादा मिलता तो आप कुछ और भी अच्छा करते । लेकिन करें तो क्या करें । आप को तो लोकसभा भी जीतना है अपनी टीम के सदस्यों को आपने लोकसभा जीतने के लिए भी लगा रखा है । उन सबको वापस बुलाइए । और सबकी मदद से इस काम को करें । भूल जाएँ लोकसभा को । अगर आपने दिल्ली को संवार दिया तो अन्य राज्यों में आपको कोई नहीं हरा पायेगा । जगह अपने आप बनती जायेगी । अभी आप को अंदाजा भी नहीं होगा कि आपकी पार्टी में कितने लुच्चे लफंगे सदस्यता ले रहे हैं । ये सब आपकी पार्टी को ही बदनाम कर रहे हैं । आप सब कुछ खुद ही कर लेना चाहते हैं लेकिन यह उचित भी नहीं है । एक सिस्टम होता है । आप उस पर चलें । यह जो सोच है कि मोदी को रोको जिसके लिए आपने लोकसभा चुनाव लड़ना तय किया है इससे आप की  छवि गिर रही है आप लोग कब तक माफ़ी मांगते रहेंगे। आपकी माफ़ी से लोंगों ने कहना शुरू कर दिया है कि एक माफ़ी मंत्रालय आपको सबसे पहले खोलना चाहिए । लेकिन करें तो क्या करें । आप तो ऐसे हो गए हैं जैसे एक स्कूल का प्रिंसिपल घंटी भी खुद बजाये , क्लर्क का काम भी खुद करे । पानी भी खुद पिलाये । प्रिंसिपलशिप भी करे । अरे भैया ! माना कि समाज को आपने चोरों से मुक्त करने का ठेका लिया है पर स्वयं को तो संभालिये । एक चोर से तो आपने हाथ मिला लिया है और अब घबराये जा रहे हैं । भूल जाइये सब कुछ । सारे वादे । यह सस्ता तरीका । धीरे धीरे काम करिये । ठोस काम करिये । ताकि लोग आपको सस्ते काम के लिए नहीं बल्कि ठोस कार्यों के लिए याद करें । समझे ।

बुधवार, 8 जनवरी 2014

मोदी का खौफ
जबसे जिन्दा हूँ और होशोहवाश में हूँ । मैंने इतना खौफ किसी का नहीं देखा  जितना नरेंद्र मोदी का देखा है विपक्षियों में । कांग्रेस तो अस्तित्व के संकट से जूझ रही है और बौखलाई हुई है । उसके नेता जानते हैं कि उसके पप्पू सरीखे नेता ने उनको पूरी तरह से निराश कर दिया है । अब प्रियंका गांधी को ढोल नगाड़े  के साथ वे कंधे पर बैठाएंगे । इधर मोदी को जिस तरह  से गुजरात दंगों में लपेटकर घेरा जा रहा है और सिर्फ दो हज़ार दो ही याद करवाया जा रहा है कि कहीं दो हज़ार दो  मत भूल जाना ।  उससे लगता है कि मोदी विरोधियों के पास इसके सिवाय कुछ है भी नहीं । तो क्या यह अन्य दलों के लिए ही अस्तित्व की  लड़ाई हो गयी है ?

बीजेपी में भी कुछ लोग घबराये हैं । सुषमा जी का और अब आडवाणी जी का चेहरा दिखाई नहीं देता है और वे दोनों अब राजनैतिक परिदृश्य से गायब से हो गए हैं । उनकी मुस्कान गायब है । चेहरा उतरा हुआ है । वे कदाचित इन्तजार कर रहे हों और प्रार्थना कर रहे होंगे कि किसी तरह से इस मोदी नाम के कांटे को निकाला जाए । उनकी दिक्कत यह है कि वे मोदी की  सीधे बुराई नहीं कर सकते । वरना  वे भी मोदी को दो हज़ार दो पर घेरने में पीछे नहीं रहते  । लेकिन अपनी पार्टी की  बुराई कैसे करें । सिर्फ पराजय की  दुआ कर सकते हैं । खैर ,
इधर एन डी  ए  के एक सहयोगी राज ठाकरे अलग परेशान हैं । वे शायद महाराष्ट्र में मोदी की  रैली में बाल  ठाकरे की  रैलियों जैसी भीड़ देख कर घबराये है । उनका मराठी मानुष मन बेचैन है । इसलिए मोदी को सलाह देते हैं कि उन्हें अब गुजरात का मुख्यमंत्री पद छोड़ देना चाहिए । और कहते हैं कि मोदी अब पी एम् उम्मीदवार हैं इसलिए सिर्फ गुजरातियों की  बात न करें । प्रशंसा भी करते हैं भारी मन से । अब उत्तर भारतीयों को गाली देने वाला इंसान सलाह दे रहा है ? जो अब तक मराठी मानुष मन से बाहर न निकल पाये वे देश की  सीख दे रहे हैं ।
जिस तरह से दो हज़ार दो को रटाया जा रहा है और गुजरात के विकास को दर किनार किया जा रहा है वह हैरानी पैदा करता है । अब एक नयी पार्टी आयी है जिसके बारे में सोचकर कांग्रेस खुश है क्योंकि वहाँ जहां दिल्ली में पहले आप ने कांग्रेस को डुबाया वहाँ उसने समर्थन देकर आप की  नैतिकता को डुबा  दिया है । और अब उसी के भरोसे वह अपना बेडा पार देख रही है । इधर आप वाले कहते हैं कि वे मोदी कल्चर में विश्वास नहीं करते । उनके गोपाल राय कहते है - मोदी कल्चर मतलब मारकाट का कल्चर , दो हज़ार दो की  संस्कृति , यानि दंगे की  संस्कृति । हैरानी होती है आप पर , जो पार्टी नयी सोच का हवाला देकर राजनीति में आयी हो वह वही सडे  गले विचार रखे जो अब तक और पार्टियां रखती आयी हैं तो हैरत होना स्वाभाविक है । गुजरात दंगा गोधरा की  क्रिया की  प्रतिक्रिया था यह तो सब मानते हैं । तो क्या गोपालराय यह कहना चाहते हैं कि गोधरा फिर दोहराया जाएगा और क्रिया पर प्रतिक्रिया फिर होगी । तो क्या वे मुसलामानों पर यह आरोप लगाना चाहते हैं कि वे फिर दंगे करेंगे ? गुजरात में दो हज़ार दो के बाद क्रिया नहीं हुयी तो प्रतिक्रिया भी नहीं हुयी । ११ साल से एक राज्य शांत और प्रगति पथ पर है । गोपाल राय  क्या कहेंगे जब उन्हें पूछा  जाए कि वो उन्नीस सौ चौरासी के कत्लेआम के आरोपियों के साथ खड़े हैं और सरकार बनाये हुए हैं । आज मोदी सिर्फ विकास की  बात करते हैं । इससे इतर कुछ नहीं । मनमोहन जैसे पी एम् ने मोदी को विनाशक कह दिया , क्या पी एम् को यह शोभा देता है ? नहीं । लेकिन खौफ ही ऐसा है मोदी का कि हर तरफ हाहाकार मचा है । बटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी कहने वाली आप ने इस सम्बन्ध में अपने विचार कभी नहीं रखे । उनके प्रशांत भूषन कश्मीर पर अपना विवादस्पद बयान फिर से दोहराते हैं लेकिन पार्टी उनके बयान से किनारा कर लेती है । क्या यह धोखा नहीं है । क्या पार्टी को उन्हें डपटना या नोटिस नहीं देना चाहिये था । आप कहेंगे कि भाई , और पार्टियां कौन सा ऐसा करती हैं ? लेकिन और पार्टियां ऐसे वैसे बयान भी नहीं जारी करती ।  प्रशांत भूषन ने अभी तक इस बयान पर कोई न तो शोक प्रकट किया न माफ़ी मांगी । और न तो यह आश्वासन दिया कि दोबारा वे विचार कर ऐसे बयान देंगे ।आप तो शिंदे वाली  पार्टी के तौर तरीकों पर अपनाने में लगी है । आपने उर्दू को दिल्ली में द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने की  बात कही । क्या है यह ? सिर्फ वोटों के लिए ?आप तो अलग मूल्यों की  बात करते हैं न । तो फिर यह मत कहिये कि औरों ने क्या किया है ? मैं तो मोदी समर्थक हूँ और चाहता हूँ कि मोदी पी एम् बनें । लेकिन जहां जहां भ्रष्ट राज्य सरकारें हैं वहाँ स्वच्छ आप की  सरकार आये । लेकिन आप का मोदी विरोध मुझे अरविन्द विरोधी बना रहा है ।
मोदी खौफ के नहीं विकास के प्रतीक हैं और सभी को यह समझना होगा कि मोदी दबाव में अच्छी बैटिंग करते हैं । इसलिए करिये मोदी विरोध ।
                                                                   डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर कलां , देहरादून

सोमवार, 6 जनवरी 2014

                                   अतिआत्मविश्वासी कुमार और पोंगा

सुना है कि अमेठी से समाजवादी पार्टी से एक किन्नर चुनाव लड़ने की  तैयारी  में है । हक़ बनता है । ठीक है । आप से कुमार विश्वास चुनाव लड़ रहे हैं । कांग्रेस के तो शहजादे हैं ही । बीजेपी का अभी तक पता नहीं ।फेसबुक पर एक चुटकुला पढ़ा - उद्धृत कर रहा हूँ - एक राजा था । राजा बहुत ही क्रूर था । अजीब अजीब सजाएं देता था । सजाओं के नाम भी अजीब अजीब होते थे । एक बार दो चोर पकडे गए । दोनों को राजा के पास लाया गया । राजा ने पूछा - तुम्हें सजा तो मिलेगी ही । बताओ , क्या सजा चाहिए ? मौत चाहिए या पोंगा ? पहला चोर सोच में पड़  गया । सोचने लगा - मौत से अच्छा तो पोंगा ही है । उसने पोंगा मांग लिया । राजा ने अपने एक सैनिक को बुलाया - कहा - छह लोहे की  गरम छड़ें लाओ और इसके पेट में भौंक दो । अब दूसरे  चोर ने सोचा यह पोंगा तो बहुत ही खतरनाक है । जब उससे सजा के बारे में पूछा गया तो वह बोला - मुझे तो मौत ही दे दो । राजा ने दूसरे  सैनिक को बुलाया - कहा - छह लोहे की  गरम छड़ें लाओ और इसके पेट में भौंक दो और तब तक भौंक कर रखो जब तक इसे मौत न आ जाए । अब अमेठी वालों से पूछना होगा कि उन्हें मौत चाहिए या पोंगा ।
खैर , अब आगे बढ़ते हैं । कुमार विश्वास लड़ रो रहे हैं लेकिन घबरा भी रहे हैं क्योंकि वे केजरीवाल नहीं हैं । वे कहते हैं । नरेंद्र मोदी में हिम्मत है तो वे अमेठी से लड़कर दिखाएं । ऐसे में वे एक तरफ तो ये साबित करने की  कोशिश कर रहे हैं कि वे बहुत ही हिम्मती हैं क्योंकि वे राहुल के सामने चुनाव लड़ रहे हैं और दूसरी ओर  बता रहे हैं कि नरेंद्र मोदी अगर हिम्मती होंगे तो अमेठी से चुनाव लड़ेंगे । उधर वे राहुल को भी महिमामंडित करने की  कोशिश कर रहे हैं कि राहुल के खिलाफ लड़ना बहुत हिम्मत की  बात है । लेकिन कुमार विश्वास स्वयं क्यों नहीं मोदी के खिलाफ लड़ लेते । तिकोनी लड़ाई की  मलाई खाना चाहते हैं कुमार , वे अति आत्मविश्वास के शिकार हैं और बीजेपी जिस कारण से अमेठी में चुनाव हारती रही है उन वोट्स को कुमार ले जायेंगे । और बीजेपी का ही रास्ता प्रशस्त करेंगे क्योंकि जनता कभी भी इस करोड़पती  आम आदमी को स्वीकार नहीं करेगी । बड़बोलापन  खूबी नहीं कमजोरी होता है कुमार महोदय । आपका आगमन बीजेपी का रास्ता प्रशस्त करेगा पूरे उत्तर प्रदेश में । कांग्रेस से हाथ मिला कर दिल्ली में आपने जो खेल खेल है उससे हर आपको गाली महसूस हुई है । अरविन्द कभी अर्जुन थे अन्ना  के , अन्ना  ने अंगूठा मांग लिया था तो अरविन्द एकलव्य बन गए और चुनाव के बाद दिल्ली का राजा बना कर कांग्रेस ने उन्हें कर्ण  बना दिया । उत्तर प्रदेश में अब कांग्रेस रुपी दुर्योधन का कर्ज़  उतारने का समय आया है । लड़िये चुनाव । जो भीड़ आप तक आ रही है वह आपसे दूर छिटकने में देर नहीं लगाएगी । दिल्ली संभालिये । फिर देश की  सोचिये ।
डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर कलां , देहरादून

शनिवार, 4 जनवरी 2014

मुझे लगता है कि एक सही राह का चुनाव करके केजरीवाल की  पार्टी अब गलत राह पर चल पड़ी है।  ऐसा इसलिए लगता है कि जब द्रौपदी का चीर हरण हुआ था तब भीष्म चुपचाप बैठे थे और शर शय्या पर जब भीष्म थे तब द्रौपदी ने उनसे पूछा था कि तात  ! जब मेरा चीरहरण हुआ तो आप चुप क्यों हो गए थे ? भीष्म बोले - मैंने कौरवों का नमक खाया था दुर्योधन का नमक खाया था इसलिए मैं कुछ नहीं  कर सका । मेरा आत्माभिमान मर गया था क्योंकि नमक आत्माभिमान को मार देता है । कांग्रेस से समर्थन लेकर आप की  कहीं यही हालत न हो जाए । एक सवाल है । क्या आप लोकसभा में यदि कुछ सीट्स जीतती है तो कांग्रेस की  सरकार के लिए मदद नहीं करेगी ? आखिर दिल्ली के इस एहसान को वह उतारेगी कैसे ? कांग्रेस का समर्थन लेकर वह करजदार हो गयी है । शेष गाडी बंगला ले लें कोई बात नहीं पर बातें वह करें जो सम्भव हों । अब बता दूं । जल्दी ही इन सबके पूरी तनख्वाह लेने की  खबर आएगी भत्ते भी । कोई बात नहीं । लेकिन ऐसे अनाउंसमेंट करने की  जरूरत ही क्या थी ? केजरीवाल जी ! ईश्वर आपकी नैतिकता की  रक्षा करे । मनोहर परिकर और माणिक लाल जैसे मुख्यमंत्री भी हैं देश में , जिन्होंने कभी अपनी सादगी का हल्ला नहीं मचाया । थोडा उनकी और भी देखें ।

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

                                          प्रधानमन्त्री बोले हैं कुछ
प्रधानमन्त्री बोले हैं कुछ। देश बर्बाद हो जाएगा अगर मोदी आ गए । यह बात वह आदमी कह रहा है जो यह स्वीकार कर रहा है कि वह रोजगार कम नहीं कर पाया , वह महंगाई  न कम कर पाया । वह व्यक्ति कहता है कि मोदी से देश बर्बाद हो जाएगा।  हैरानी होती है । उस व्यक्ति ने माना कि वह रोजगार नहीं दे पाया मतलब उसके राज में देश का नौजवान बर्बाद और बेकार घूमता रहा । उसे काम नहीं मिला । यानि बर्बादी बढ़ी । उसने माना कि वह महंगाई कम न कर पाया यानि उसने माना कि लोगों के घर में चूल्हे जले भले ही हों लेकिन वहाँ पर महंगाई के कारण आटा  इतना गीला था कि रोटी बन ही नहीं सकी । यानि लोगों के चूल्हे आबाद न हो सके यानि बर्बाद हो गए । वह आदमी कहता है कि विकास के क्षेत्र में गुजरात को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले मोदी के आने से देश बर्बाद हो जाएगा । हैरानी होती है । खुद स्वीकार करना कि गलतियां हुई है लेकिन कहना कि दूसरा बर्बाद कर देगा , है न मजेदार बात । वह व्यक्ति बोलता है कि वह जरूरत पड़ने पर बोलता था । यह नहीं बताता कि कोई उसे सुनता भी था या नहीं । क्या वह सपने में बोलता था ? या वाकई में कहीं बोलता था । वह शायद सत्ता के दूसरे  केंद्र में बोलता था जहां की  सरकार उसे चलानी पड़ती थी । वह वहाँ बोलता होगा । यस सर । नो सर । शायद यही बोलता होगा । उसकी पार्टी के चापलूस ब्लू टर्बन को हटाओ का नारा लगा रहे हैं । वह ईमानदार है । लेकिन बेईमानी को नहीं रोक सकता । वह अर्थ शास्त्री है  मगर महंगाई नहीं रोक सकता । ज्ञान यदि व्यवहारशून्य हो तो नाकारा बन जाता है । ईमानदारी यदि कायर हो तो वह ईमानदारी को तो गली है ही , किसी काम की भी नहीं । चाणक्य ने कहा था कि समाज को दुष्ट व्यक्तियों की  सक्रियता से उतना नुकसान नहीं है जितना सज्जनों की  निष्क्रियता से । ईमानदारी निष्क्रिय हो और दुष्टता के आगे , बेईमानी के आगे घुटने टेक दे तो वह किस काम की  ? साहस ही ईमानदारी को आगे बढ़ाता है और कायरता ईमानदारी के लिए अपशब्द है । लेकिन यह चाणक्य ने कहा था , चाणक्य राष्ट्र वादी थे । सो राष्ट्रवादी शब्द अपने धर्म निरपेक्ष देश में अपशब्द और साम्प्रदायिक शब्द है । वह क्यों सुनना चाहेगा । वह कहता है कि तीसरी बार पी एम् नहीं बनेगा । दो बार काफी नहीं है क्या । अब बचा ही क्या है जिसको वे बर्बाद करना चाहते हैं उन्होंने तो पी एम् की  गरिमा को भी दागदार करने मो कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । पी एम् का इतना अपमान शायद ही कभी हुआ हो जितना उनका हुआ लेकिन वे जाने  क्यों पी एम् पद से चिपके रहे । अब कहते हैं कि देश बर्बाद हो जाएगा । ईश्वर उसे और हमें ऐसे दिन दोबारा न दिखाए ।
डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर कलां , रायवाला देहरादून
ब्लॉग - द्वंद्व

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

दिल्ली के हालत को देखकर सन 1 9 9 1  के हालात याद आते हैं जब बीजेपी की  लहर थी और यदि तब चुनाव हो जाते तो शायद बीजेपी सत्ता में आ जाती लेकिन कांग्रेस ने अपने समर्थन की  बैसाखी से चन्द्र शेखर को पी एम् बना दिया था और सब कुछ धरा का धरा रह गया और फिर इक्कीस मई को राजीव गांधी की  हत्या के बाद एक दूसरी लहर चली कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की  , और बीजेपी वहीँ की  वहीं  रह गयी।  उस दौरान कांग्रेस ने जो रचा बुना उसे फिर से दोहरा दिया है । दिल्ली में बीजेपी की  मजबूरी थी कि उसे समर्थन हासिल नहीं था और यदि वह सरकार बनाती तो विश्वास मत हासिल नहीं ही कर पाती । तो फिर वही हुआ कि अपनी तो दुर्गति हुई ही कांग्रेस की  , लेकिन बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने का सुख उसे जरूर मिल गया।  लेकिन इतना कम नहीं है , उसे आप से गालियां भी खानी पड़  रही हैं और दोनों एक दूसरे  के खिलाफ मीडिया में बोल भी रहे हैं और आप भी साथ साथ कह रही है कि सरकार तो हम बना रहे हैं लेकिन कांग्रेस का समर्थन नहीं ले रहे । कांग्रेस के एक नेता ने तो केजरीवाल को सब्सिडी के मुद्दे पर बिजली कंपनियों का दलाल तक कह डाला । लेकिन आप और कांग्रेस इसलिए चल रहे हैं क्योंकि बीजेपी को दूर रखना है । आप से गाली खा रही है कांग्रेस लेकिन समर्थन दिए भी जा रही है और गाली भी खाये जा रही है क्योंकि उसे यह तो पता है कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रख कर जो सुख मिलेगा वह गाली खाने के दुःख को कम कर देगा । साथ ही उसे यह भी पता है कि उसके समर्थन से आप भी थोडा सॉफ्ट कार्नर तो उसके प्रति रखेगी ही क्योंकि अन्यथा दिल्ली के घोटालों का पर्दाफाश होने से लोकसभा चुनाव में कई और घोटालों का जिक्र होगा और मर चुकी सी कांग्रेस को और बड़ा झटका लगते देर नहीं लगेगी इसलिए कांग्रेस ने आपको समर्थन तो दिया है लेकिन सोच में है कि किसी तरह लोकसभा चुनाव निपट जाएँ और केजरीवाल लोकसभा में भी अपने कैंडिडेट खड़े कर के मोदी राग को कम कर सकें । लेकिन यदि अरविन्द को मिलने वाले मत कांग्रेस , बसपा  , सपा के खाते से छिटक कर आप के साथ चले गए और मोदी को इसका फायदा मिल गया तो क्या होगा इसके बारे में कुछ अंदाजा शायद ही कांग्रेस ने लगाया होगा । राहुल को तो मोदी लहर ने निपटा दिया लेकिन अब केजरीवाल के सहारे मोदी को निपटाने की  जो रणनीति कांग्रेस ने बनायी है कहीं उसके गले ही न पड़  जाए । मोदी को निपटाने के चक्कर में ही कमाल फारुकी जैसे लोग भी अब आप में शामिल हो रहे हैं । यदि अन्ना  ने कोई लाईन  अरविन्द के पक्ष में बोल दी तो इसका जरूर जबर्दस्त असर चुनावों  में देखने को मिल सकता है जिसकी कल्पना भी मोदी ने नहीं की  होगी लेकिन यदि चुनाव में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ तो सब कुछ बदलने में भी देर नहीं लगेगी । लेकिन दिक्कत यह है कि अरविन्द इतना सब कैसे संभालेंगे ? वैसे अभी दिल्ली में हैं और देखना है कि पांच माह में अरविन्द क्या करते हैं  ?
डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर कलां ,मोतीचूर , वाया रायवाला देहरादून