शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

दर्द तो होता होगा।  तकलीफ तो सताती होगी।  मन तो दुखता होगा। जब वह बोलता होगा जिसके उच्चारण में न हार्वर्ड , कैंब्रिज या ऑक्सफ़ोर्ड की ध्वनि उच्चारण मिलता होगा। न वह आरोह अवरोह , न अंग्रेजी बोलते हुए दिखने वाला वह दम्भ।  स्वाभाविक है , वह भी  जानता है कि उसकी अंग्रेजी अच्छी नहीं है लेकिन मेरे जैसे लाखों करोड़ों तो जानते हैं कि उसकी अंग्रेजी हमसे तो अच्छी ही है। बोल तो रहा है।  उनकी तरह सरपट गिटर पिटर तो नहीं पर हाँ सोच सोच कर कि कहीं गलती न हो जाए। गलती तो होती होगी मुझ जैसों की नजर में नहीं पर उनकी नजर में जिन्होंने इस  देश पर अपना एकाधिकार समझा है। जिन्हें वह हर कदम खटकता है। वे कई साल से दर बदर भटक से रहे हैं और अभी उन्हें पता नहीं हैं कि उन्हें और कितना भटकना है। वे आश्वस्त नहीं हैं कि उनका भटकना बंद होगा क्योंकि इसके आसार नहीं हैं और कुछ उनके कर्म भी नहीं हैं। तो वे सिर्फ अफ़सोस कर सकते हैं , आह भर सकते हैं , इंतजार कर सकते हैं। और कुछ नहीं। तो सबसे बुरा तो उन्हें ही लगता होगा कि कैसी अंग्रेजी  बोलकर सत्तासीन हो गया है वह। जिनके अपने एक नेता ने जो दिल्ली के प्रतिष्ठित कॉलेज का छात्र रहा ,अपनी ही पार्टी के दूसरे बड़े नेता को जो उस कॉलेज का छात्र था जहाँ से अमिताभ  स्नातक होकर छाये हैं , एक शब्द मात्र dichotomous पर घेरने में कोई कमी नहीं की थी और पुरजोर उपहास किया था वह भला कैसे इसे बर्दास्त करे जिसकी अंग्रेजी में उसे न कहीं उच्चारण दिखता होगा न ध्वनि , न आरोह अवरोह , यति , गति , लय से शून्य अंग्रेजी वह भी संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिये सारे विश्व को सम्बोधन में  , वह नेता जो पिछले छह साल से गुमनामी की दुनिया का हिस्सा है इस सत्तासीन लोकप्रिय नेता को  चाय बेचने के लिए जगह देने के लिए तैयार था मगर दिल में जगह देने को तैयार नहीं था , पाक जाकर इसे हटाने की गुहार लगाने को तैयार था मगर अपनाने को तैयार नहीं था , कैसे चुपचाप इसकी अंग्रेजी को बर्दास्त करता होगा। ये पूरी ब्रिगेड लन्दन ऑक्सफ़ोर्ड कैंब्रिज हार्वर्ड के लोगों के होते हुए UN के लोगों को इसकी अंग्रेजी झेलनी पड़ रही है। वे क्या सोचते होंगे - कहाँ गए वे लोग जो वहाँ से पढ़कर इण्डिया लौटे थे। बेरोजगार हो गए क्या ? क्यों उनको छह साल से काम नहीं मिला। उनके क्लासमेट क्या सोचते होंगे। जिस खानदान के नाती को भी नाना के नाम से गुजारा करना पड़े उसका अपना भाई अविवाहित जो कुछ भी बोलता रहता है , अपनी बेहतर अंग्रेजी कहाँ दिखाए। कैसे उसे झेले जिसकी डिग्री तक एक पूरी पार्टी अभी तक नहीं ढूंढ पायी ? वरना उस यूनिवर्सिटी में कुछ लोग तो उसकी पार्टी के भी होंगे जो मदद कर सकते थे। पर उनकी नजर में यह गलत सलत अंग्रेजी बोलने वाला जिद्दी है , बोलता  ही नहीं है , बताता ही नहीं है। आज भी UN में बोल रहा था। अच्छी अंग्रेजी वालों के होते हुए। सच में कितना दर्द होता होगा।। मरहम की सीसी भी नहीं है। पार्टी घायल है। पर क्यों भाई ! तुम पांच प्रतिशत वालों ने पचपन साल राज कर लिया , 95 प्रतिशत वालों को भी तो राज करने दो न। छ साल ही तो हुए हैं। वह अगर अंग्रेजी नहीं सीख पाया तो इसमें पोल तो तुम्हारी ही खुलेगी कि तुम भारत के लोगों को ठीक से अंग्रेजी भी नहीं सीखा पाए। पोल खुलने से काहे डरते हो यार। और 5 साल वाले तुम  55 साल राज कर गए और 95 प्रतिशत वालों को तुम दो चार साल भी देने को तैयार नहीं।  कुछ साल तो इस चाय वाले को दे ही दो क्योंकि इसकी चाय में जिस गाय का दूध पड़ता है वह गाय वाला भी तो यू  पी में तैयार बैठा है। पता नहीं उसको अंग्रेजी आती है या नहीं। बोलते तो देखा नहीं। ब्याह किया नहीं। संसार छोड़ दिया। कुर्सी पर बैठ गया। पता नहीं क्यों ?
पर एक बात कहूँ तकलीफ तो तब भी होगी ही जब अगर वो गाय वाला भी कुर्सी पर बैठ गया और उसने भी अंग्रेजी बोलनी शुरू कर दी। पर तब तक तो तुम्हें ये वाली अंग्रेजी की आदत पड़  ही चुकी होगी होगी। क्यों ? फिर  भी दर्द तकलीफ तो देता ही है। पर जब आदत पड़  जाती है तब दर्द कम  होता है। है न।