गुरुवार, 26 जनवरी 2012

अन्ना हजारे द्वारा फिल्म गली गली में चोर है देखने के बाद भ्रष्टाचारियों को थप्पड़ मारने के प्रकरण पर जो सियासी दंगल मचा हुआ है उस सन्दर्भ में एक तथ्य विचारणीय है . साहित्य में एक शब्द है साधारणीकरण . इस शब्द का अर्थ है किसी भी साहित्य आदि के साथ उसके नायक नायिका या उस फिल्म में अपने आदर्श के साथ एकवत या एकाकार हो जाना . फिल्म भी साहित्य जगत का एक चल चित्र है और जब भी कोई व्यक्ति फिल्म देखता है . फिल्म दुखांत हो तो तीन घंटे की यह फिल्म देखने के बाद व्यक्ति अपने घर तक ग़मगीन होकर जाता है . हास्य फिल्म में व्यक्ति बहुत देर तक हास्य मूड में रहता है . हिंसक फिल्म का प्रभाव भी थोड़ी देर तक मनुष्य पर रहता है जिसके उदाहरण हमें कभी कभी समाज में भी लोगों द्वार अनुकरण  किये जाने पर मिल जाते हैं .अन्ना हजारे ७४ वर्षीय हैं और आम तौर पर इस उम्र में फिल्मों का प्रभाव पड़ा क्योंकि सरकार की चालाकियों ले अन्ना हद दर्जे तक निराश हुए हैं . इसलिए फिल्म का प्रभाव इस वृद्ध पर भी पड़ा और उन्होंने तत्काल एक प्रतिक्रिया दी और इस पर बवाल मच गया है . साधारणीकरण सहृदय की विशेषता  होती है . सहृदय उसे कहते हैं जो किसी भी नाटक उपन्यास या चल चित्र के साथ स्वयं को एकाकार कर लेता है यानी साधारणीकरण हो जाता है . ऐसा ही अन्ना के साथ भी हुआ है . वस्तुतः बवाल न भी मचता लेकिन चूंकि अन्ना भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रतीक बने हुए हैं इसलिए कम से कम जो लोग अन्ना को बदनाम करना चाहते हैं या इसका अवसर ढूँढते हैं . वे तत्काल हल्लाबोल की मुद्रा में आ जाते हैं. फिल्मों का तो कुछ लोगों पर इस हद तक कुप्रभाव पड़ता है की वे गलत कदम तक उठा जाते हैं जो निहायत ही गलत होता है .

26.1.12


विदेशी और हम
अमेरिकी टी वी होस्ट जे लेनो के द्वारा पंजाब के स्वर्ण मंदिर परिसर के बारे में दिए गए बयान पर आजकल हल्ला मचा हुआ है जिसमे उन्होंने इस परिसर को छुट्टियां बिताने  का स्थान यानि ऐशगाह माना है . उनकी  इस बात ने हमें और विशेष रूप से सिख समाज को झिंझोड़ कर रख दिया है और अचानक हमें हमारे आत्मसम्मान की और देखने का अवसर दिया है .  ज्यादा हैरानी की बात नहीं कि यह बयान तब दिया गया है जब अमेरिका कि ही एक टाक शो होस्ट ओपरा विनफ्रे भारत दौरे पर हैं और भारत का मीडिया जगत उसके किये पलक पांवड़े बिछाए उसी तरह खडा है जिस तरह किसी भी विदेशी यात्री को देखकर हमारे देश में ऑटो रिक्शे उसके पीछे उम्मीद से ज्यादा पाने की उम्मीद में चल देते हैं . यह ऐसा भी है जैसे हमारे देश के बहुत से पढ़े लिखे युवा भारत में अपनी पढ़ाई या प्रशिक्षण पूरा कर  के बाद में विदेश में नौकरी करना अपना सौभाग्य समझते हैं या विदेश में पढ़ाई  करना बेहतर समझते हैं.भले ही हमें वहाँ पर दोयम दर्जे का ही नागरिक समझा जाए , रेड इंडियन या स्लम डॉग कहा जाए या आस्ट्रेलिया जैसे देशों में हमारे नागरिकों की हत्याएं नस्लवादी संस्कृति के कारण कर दी जाए . अक्सर ऐसा होता है जब कभी न्यूजीलैंड का कोई टी वी एंकर तो कभी अमेरिका का कोई टी वी होस्ट या अन्य कोई भी हमारे बारे में  टिप्पणी   करता है और हम आग बबूला हो जाते और बाद में हमारा यह गुस्सा भी चाय की प्याली में तूफ़ान की मानिंद गायब भी हो जाता है . अमेरिका तो अपने नागरिकों का बचाव करेगा ही . हमारे नेता यहाँ तक कि राष्ट्रपति तक अमेरिका जैसे देशों के क़ानून के आगे जब तक अपमानित होते रहते हैं लेकिन हमें फिर भी यह समझ नहीं आता कि क्यों कोई भी विदेशी आने पर हमें अपनी हीनता का अहसास होने लगता है . सच माने , क्योंकि जब हम स्वयं अपने स्व को भूल चुके हैं और जो कुछ बचा है उसे भूलते जा रहे हैं तो ऐसा होगा ही . हिंदी बोलना गुनाह और अंग्रेजी बोलना लिखना जिंदगी मान चुके हम लोगों के बारे में विदेशियों का क्या सोचना है यह सब इन घटनाओं से पता चलता है .ग्लोबलाइजेशन के नाम पर हिंदी से किनारा कर चुके हम लोगों को कदाचित ही सुध आये . यह स्वर्ण मंदिर देश के उस पंजाब प्रांत में स्थित है देश में जिस राज्य के कदाचित सबसे ज्यादा युवा विदेश जाने के लिए तत्पर रहते हैं और जाते भी हैं. दो वर्ष पूर्व इंग्लैंड में भारतीय डाक्टरों की जो दुर्गति हुई थी और जिस प्रकार से वे कई दिनों तक वहाँ के मंदिरों और गुरुद्वारों में पड़े रहे थे उसे हम भूले नहीं हैं लेकिन दुखद यह है की किसी भी डाक्टर को तत्कालीन परिस्थितियों में अपने आत्मसम्मान की याद नहीं आई और कोई लौट के भी नहीं आये था . सभी वहाँ पड़े रहे जब तक ब्रिटिश सरकार उन पर नहीं पसीजी .
अपना मूल भूलते जा रहे और सब कुछ पराया अपनाने की होड़ में लगे हम भारतीयों को या तो इन शूलों को सहने की क्षमता विकसित कर लेनी चाहिए या अपनी तरफ देखना शुरू कर देना चाहिए . उनके आगे पीछे नाचेंगे तो यह दुर्गति तो होगी ही और जब तब अपमानजनक टिप्पणी भी सहनी ही पड़ेगी.

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

आजकल टी वी पर जब देखो तब चुनावी हलचल . आइये बात करें उमा भारती के उ प्र से चुनाव लड़ने की . जब से बी जे पी ने उमा भारती को उ प्र से चुनाव लड़ने की बात की है तब से सभी पार्टियाँ उमा के स्थानीय नहीं होने की बात उठा कर उन्हें मध्य प्रदेश का साबित करने की कोशिश कर रहे हैं. एक ऐसी राजनीति में जहां जब चाहे कोई नेता अपनी पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में चला जाता है वहाँ  एक नेता के एक प्रदेश से दूसरी जगह आकर चुनाव लड़ना व प्रचार करना किस प्रकार मुद्दा बन जाता है और पार्टियों को परेशान करने लगता है ये देखने लायक बात है . यहाँ तक की इससे सबसे ज्यादा चिंता कांग्रेस पार्टी को है. उनके भोले भाले महासचिव जिनका राजनीतिक कैरियर दांव पर लगा है बड़े ही भोले भले अंदाज में सब जगह बताते फिर रहे हैं कि क्यों उमा भारती मध्य प्रदेश छोड़कर उत्तर प्रदेश में आ गयी हैं . उनके इस सवाल के जवाब में उमा ने भी बम दाग दिया है कि जब रोम की सोनिया गाँधी हिंदुस्तान में स्वीकार्य हो सकती हैं तो मैं तो मध्य प्रदेश की हूँ. पहले राहुल अपनी माँ को जाने तब अपनी बुआ के बारे में बोलें . अब राहुल बाबा तो फंस गए न . बड़ी मुश्किल से बुन्देल खंड का गणित बनाया था जिसे बी जे पी चट करने में लगी है. आखिर कांग्रेस करे तो क्या करे . एक बार सत्ता हाथ से गयी तो दोबारा हाथ को दो दो हाथ करने में पसीना बहाना पड़ रहा है. खैर , जिस राजनीति में बड़े बड़े गुंडे मवाली हाथ आजमा रहे हों वहाँ पर ये कहना कि एक बाहरी व्यक्ति क्यों चुनाव लड़ रहा है एक बचकाना सा सवाल लगता है . जब राजनीति और जंग और प्यार में सब कुछ जायज है तो फिर ये सवाल बेकार सा ही लगता है. हर पार्टी अपनी संख्या बल बढ़ाने के लिए व्याकुल है . और वो किसी को भी अपने राज्य या चुनाव क्षेत्र में बुला सकता है और चुनाव भी लड़ा सकता है. अब ये विपक्षी टीम का दायित्व बनता है कि वो किस प्रकार से अपनी सीट बचाए . कोई सवाल उठा सकता है कि व्यक्ति अपने अपने संसदीय या विधान सभा क्षेत्र में ही चुनाव प्रचार करे तो राहुल तो उत्तर प्रदेश के अमेठी से हैं तो क्या वे अमेठी तक सीमित रहना पसंद करेंगे ? और फिर वे तो पार्लियामेंट के सदस्य हैं क्यों भला उत्तर प्रदेश से प्रचार कर रहे हैं . उत्तर प्रदेश के ही नेता चुनाव करें , केंद्र से लोग क्यों आ रहे हैं तो कोई कह सकता है कि ये तो महासचिव हैं . फिर भी हैं तो अमेठी संसदीय क्षेत्र से ही . इसलिए ये सब बातें फिजूल हैं और कांग्रेस को लगता है कि उसका नुक्सान है तो वो सही तर्क ही दे . ये फिजूल की बातें कह कर वो क्या कहना चाहती है ?

रविवार, 15 जनवरी 2012


बटला हाउस प्रकरण में दिग्विजय सिंह का बयान तथा उसका विरोधी चिदंबरम का बयान तथा उन दोनों  का कांग्रेस में बने रहना तथा कांग्रेस मुखिया की चुप्पी वस्तुतः इशारे भर से यह साबित करने के लिए पर्याप्त है की यह सब कांग्रेस मुखिया की ही शह पर हो रहा है | अन्यथा की स्थिति में कांग्रेस मुखिया की तरफ से कोई न कोई प्रतिक्रिया आनी ही चाहिए थी लेकिन आये कैसे ? जब कांग्रेस के युवराज भी इसी प्रकार का बयान देते फिर रहे हैं और उम्मीद लगाए बैठे हैं की इसी प्रकार की बयानबाजी उन्हें उ प्र के चुनावों में विजयश्री दिला सकती है क्योंकि इससे पिछले चौसठ साल से गुमराह किये गए मुसलामानों को एक बार फिर गुमराह किया जा सकता है तो क्यों न यही फार्मूला अपनाया जाय . आखिर दिग्विजय सिंह का यह बयान मुसलमानों को यह सोचने को तो मजबूर करेगा ही कि हो सकता है कि बटला हाउस का प्रकरण फर्जी हो. भले ही गृहमंत्री कुछ भी बयान देते रहें लेकिन राहुल गाँधी व उनको प्रधान मंत्री पद का सपना दिखा रहे या खुद राहुल के प्रधानमन्त्री बनने का सपना देखकर अपने अपने टिकटों के जुगाड़ को पक्का कर रहे दिग्विजय सिंह के बयान से कदाचित यह मुठभेड़ फर्जी ही साबित हो जाए . और फर्जी न भी हो तो कुछ दिन तो यह हवा बनायी ही जा सकती है और इससे यह लाभ उठाया ही जा सकता है . रही बात प्रधानमंत्री या गृहमंत्री के बयान की तो उनकी क्या बिसात जो राहुल जी के बयान का विरोध कर दें . आखिर राहुल तो युवराज हैं . और मन से ही मौन पी ऍम को कांग्रेस में पूछता ही कौन है ? संसद में उनके द्वारा टीम अन्ना व अन्ना को दिया गया वचन जिस हश्र को प्राप्त हुआ व जिस तरह की बातें अक्सर सुनने में आती हैं वे तो कम से कम यही साबित करती हैं कि पी एम या एच एम सभी राहुल के सामने बौने हैं . अब मुसलामानों को धोखे में रखने के लिए दिया गया यह बयान वास्तव में उन्हें इस विषय में भरमाये रखने के लिए दिया गया है ताकि वे इसी चक्कर में वोट दे दें . लेकिन कहीं हिन्दू नाराज न हो जाए तो पी एम और पी चिदंबरम का बयान भी जारी कर दिया गया ताकि हिन्दू मत भी सुरक्षित रहे . यानी एक मत सुरक्षित रखकर मुसलमानों का मत अपने पक्ष में करने की  यह सारी कवायद वास्तव में कांग्रेस हाई कमान की नपी तुली सोच का हिस्सा है . एक सूक्ति है - वारान्गनेव नृपनीतिरनेकरूपा यानी जैसे वारांगना के लिए सिर्फ पैसा ही सब कुछ होता है वैसे ही राजनीति के लिए सत्ता के कारण सब कुछ नेता लोग करते हैं . इसी को कदाचित युद्ध और प्यार में सब कुछ जायज का नाम दिया गया है. आजकल इसी का रूप सब तरफ देखने को मिल रहा है.
इधर एक खबर है कि बाबा रामदेव के ऊपर कामरान नाम के एक व्यक्ति ने काली स्याही फेंक दी है . दिग्गी बाबू के पास उस व्यक्ति की उसके बारे में सारी जानकारी है . जिसे भी कुछ नया जानना हो तो वो दिग्गी बाबू से संपर्क कर सकता है. घटना के दिन ही दिग्गी बाबू उसके बारे में सब कुछ बताते फिर रहे थे उसके प्रवक्ता की तरह .मुझे हैरानी हुई . राजनाथ सिंह के साथ एक फोटो देखा गया है और शायद उस कामरान ने राजनाथ के लिए काम या प्रचार भी किया हो . खैर , जो भी हो . इस वक्त रामदेव सिर्फ कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने का काम का रहे थे . अन्ना ने जहां सोच समझ कर कांग्रेस विरोध से हाथ पीछे खींच लिया है वहीँ रामदेव अभी भी कांग्रेस का विरोध कर रहे हैं तो कांग्रेस की चिंता तो स्वाभाविक है. लगता है के कांग्रेस ने बहुत से लोगों की सूची बना रखी है जिनका डाटा उसके पास है जो उसके लिए विरोधियों पर बाण का काम करेंगे . राजनीति का यह स्वरुप कितना भयानक है इसका अंदाजा इसी घटना से लगाया जा सकता है.
खैर , कौन जाने इसी तरह की बढती घटनाएं ही जनता को यह सोचने पर मजबूर कर दें तथा धीरे धीरे वो इतनी समझदार तो हो ही जाए के कोई उसे बेवकूफ ही न बना सके . पर क्या यह संभव होगा उस देश में जहां की आधी से अधिक आबादी अनपढ़ हो.
इश्वर खैर करे .

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

दस जनपथ
जनपथ
यानि आम आदमी का पथ
आम आदमी से दूर
आम आदमी का पथ
जन के सम्बन्ध का पथ
जन के सम्बन्ध का पथ
या जन से अपादान लेकर दूर पथ
तत्पुरुष को छलता 
तत्पुरुष का पथ
तत्पुरुष जो दूर कहीं झोपडी में
अपने ही कारक चिह्नों को ढूंढता
उनमे ही फंसा ने , के , द्वारा , के लिए , में , से , का आदि के द्वंद्व में
चिह्नों को पहचानता किन्तु उनसे दूर
वह तत्पुरुष

द्वारा द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा