न तो गुमराह हों और न गुमराह करें ।
गृह मंत्रालय के आदेश से घबराये जयललिता , द्रमुक और उमर अब्दुल्ला से पूछा जाए कि जब वे इंग्लिश में बात करते हैं तब उनकी क्षेत्रीय भाषाओँ और अस्मिताओं को खतरा नहीं पैदा होता ? आखिर हिंदी का सबसे ज्यादा प्रचार तो हिंदी फ़िल्में कर रही हैं तो क्या हिंदी फिल्मों को भी वे बंद करना शुरू कर देंगे तब उनकी क्षेत्रीय भाषाओँ की फ़िल्में गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में चलती हैं क्या लोग उनका विरोध शुरू नहीं कर देंगे आखिर यदि हम इंग्लिश से अपनी भाषाओँ पर खतरा महसूस नहीं करते तो फिर हिंदी से क्यों ? देश को यदि किसी भाषा से सबसे ज्यादा खतरा है तो वह इंग्लिश से है क्योंकि यही भाषा हमारी क्षेत्रीय भाषाओँ सहित हिंदी संस्कृत को निगल रही है । आखिर एक युग वह था जब हमारे भारतीय राजा आपस में लड़ते रहते थे और अंग्रेजो ने अपने पाँव पसार कर हमें गुलाम बना दिया आज हम आपस में लड़ रहे हैं और उनकी भाषा इंग्लिश हमें और हमारी भाषा को गुलाम बना रहे हैं । आपस में झगड़ कर हम अनायास ही एक विदेशी भाषा को जगह दे रहे हैं और हिंदी को दर किनार कर रहे हैं । लगता है हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा । कभी कहा जाता था कि भाजपा आ गयी तो देश टूट जाएगा , कभी कहा जाता रहा कि मोदी आ गए तो देश में आग लग जायेगी , आज विपक्षी खुद जगह जगह आग लगा रहे हैं कही पुतले फूंक रहे हैं कहीं बसें फूंक रहे हैं , सरकार को पानी डालना पड़ रहा है इस आग को बुझाने के लिए । कइयों ने कहा वे देश छोड़ देंगे यदि मोदी पी एम बन गए , आज वे गायब हैं । पार्टियां अंदर अंदर भयभीत हैं कि कहीं उनका अस्तित्व ही खत्म न हो जाए इसलिए फिर से ऊटपटांग काम कर रही हैं । अब भाषा के नाम पर डराया जा रहा है । उधर कभी कहा जाता है कि यदि कश्मीर से धारा तीन सौ सत्तर हटाई गयी तो कश्मीर अलग हो जाएगा । आप यकीन मानें , अब समय आ गया है कि इन कृत्रिम भयों से निजात पायी जाए । न धारा ३७० हटने से कश्मीर अलग होगा , न हिंदी के विस्तार से क्षेत्रीय भाषाएँ ख़त्म होंगी क्योंकि अनेक भाषाओं का होना किसी देश की ख़ास पहचान होता है । हाल के नए शोधों के अनुसार एक से अधिक भाषाएँ जानने वाले लोग ज्यादा बुद्धिमान होते हैं और उनके शोध कार्य ज्यादा परिपक्व होते हैं । यह शोध पश्चिम की तरफ से किया गया है जिसे हम ज्यादा तरजीह देते हैं । शोध के नतीजों के अनुसार इंग्लैंड आदि देशों के नागरिकों को अब इंग्लिश के अलावा अन्य भाषाओं को भी पढ़ने की सलाह दी जा रही है ताकि उनके शोध ज्यादा परिपक्व हो सकें विशेषतया कला विषयों के क्षेत्र में । इसलिए हिंदी किसी भाषा को नहीं निगल रही बल्कि सरकार क्षेत्रीय भाषाओँ को भी बचाये रखने का पूर्ण प्रयत्न करेगी । इसलिए कृपया न तो गुमराह हों और न गुमराह करें ।
गृह मंत्रालय के आदेश से घबराये जयललिता , द्रमुक और उमर अब्दुल्ला से पूछा जाए कि जब वे इंग्लिश में बात करते हैं तब उनकी क्षेत्रीय भाषाओँ और अस्मिताओं को खतरा नहीं पैदा होता ? आखिर हिंदी का सबसे ज्यादा प्रचार तो हिंदी फ़िल्में कर रही हैं तो क्या हिंदी फिल्मों को भी वे बंद करना शुरू कर देंगे तब उनकी क्षेत्रीय भाषाओँ की फ़िल्में गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में चलती हैं क्या लोग उनका विरोध शुरू नहीं कर देंगे आखिर यदि हम इंग्लिश से अपनी भाषाओँ पर खतरा महसूस नहीं करते तो फिर हिंदी से क्यों ? देश को यदि किसी भाषा से सबसे ज्यादा खतरा है तो वह इंग्लिश से है क्योंकि यही भाषा हमारी क्षेत्रीय भाषाओँ सहित हिंदी संस्कृत को निगल रही है । आखिर एक युग वह था जब हमारे भारतीय राजा आपस में लड़ते रहते थे और अंग्रेजो ने अपने पाँव पसार कर हमें गुलाम बना दिया आज हम आपस में लड़ रहे हैं और उनकी भाषा इंग्लिश हमें और हमारी भाषा को गुलाम बना रहे हैं । आपस में झगड़ कर हम अनायास ही एक विदेशी भाषा को जगह दे रहे हैं और हिंदी को दर किनार कर रहे हैं । लगता है हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा । कभी कहा जाता था कि भाजपा आ गयी तो देश टूट जाएगा , कभी कहा जाता रहा कि मोदी आ गए तो देश में आग लग जायेगी , आज विपक्षी खुद जगह जगह आग लगा रहे हैं कही पुतले फूंक रहे हैं कहीं बसें फूंक रहे हैं , सरकार को पानी डालना पड़ रहा है इस आग को बुझाने के लिए । कइयों ने कहा वे देश छोड़ देंगे यदि मोदी पी एम बन गए , आज वे गायब हैं । पार्टियां अंदर अंदर भयभीत हैं कि कहीं उनका अस्तित्व ही खत्म न हो जाए इसलिए फिर से ऊटपटांग काम कर रही हैं । अब भाषा के नाम पर डराया जा रहा है । उधर कभी कहा जाता है कि यदि कश्मीर से धारा तीन सौ सत्तर हटाई गयी तो कश्मीर अलग हो जाएगा । आप यकीन मानें , अब समय आ गया है कि इन कृत्रिम भयों से निजात पायी जाए । न धारा ३७० हटने से कश्मीर अलग होगा , न हिंदी के विस्तार से क्षेत्रीय भाषाएँ ख़त्म होंगी क्योंकि अनेक भाषाओं का होना किसी देश की ख़ास पहचान होता है । हाल के नए शोधों के अनुसार एक से अधिक भाषाएँ जानने वाले लोग ज्यादा बुद्धिमान होते हैं और उनके शोध कार्य ज्यादा परिपक्व होते हैं । यह शोध पश्चिम की तरफ से किया गया है जिसे हम ज्यादा तरजीह देते हैं । शोध के नतीजों के अनुसार इंग्लैंड आदि देशों के नागरिकों को अब इंग्लिश के अलावा अन्य भाषाओं को भी पढ़ने की सलाह दी जा रही है ताकि उनके शोध ज्यादा परिपक्व हो सकें विशेषतया कला विषयों के क्षेत्र में । इसलिए हिंदी किसी भाषा को नहीं निगल रही बल्कि सरकार क्षेत्रीय भाषाओँ को भी बचाये रखने का पूर्ण प्रयत्न करेगी । इसलिए कृपया न तो गुमराह हों और न गुमराह करें ।
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