सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

मेरा एक नायक सा था । ख़त्म सा हो गया वह । कभी उसने अलख सी जगाई थी । सत्ता के खिलाफ । लेकिन फिर मैंने सत्ता के मद से पराजित सा होते देखा उसे । लेकिन वह पराजित हुआ नहीं । लेकिन उसके सुर जरूर धीमे पड़े । अब वह यदा कदा  दिखाई देता है । टी वी पर । टी वी पर दिखना एक बीमारी है । उसे भी लगी है । हालांकि वह संकल्प लिए हुए है कि जिन्होंने उसके संकल्प को कुचलने की  कोशिश की  वह उन्हें कुचल देगा । कहना मुश्किल है क्या होगा । उसका संन्यास भी उसे जीवन में प्रवेश से रोकता नहीं है । लेकिन एक बात तय है । यदि चाणक्य का जीवन दर्शन उसके जैसा होता तो चाणक्य शायद ही कभी नन्द को रोक पाते । दिक्कत यह है कि वह मननात् मन्त्रः की  गोपनीयता को नहीं समझ पाता  । खैर , उसने अपने विरोधियों के राजनैतिक कैरियर की  तेरहवीं की  सौगंध खाई है । देखते हैं , क्या होता है ।

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