शनिवार, 7 जून 2014

यह एक सच है कि यदि देश में सरकारी विद्यालयों की स्थिति सुधारनी है तो यदि सरकार के पास अन्य कोई बेहतर विकल्प नहीं है तो एक रामबाण औषधि है कि पी एम से लेकर चपरासी तक सभी के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ें । इसका प्रभाव देखने के लिए दक्षिण की एक घटना का जिक्र करना चाहूंगा । एक आई ए एस  ने अपनी लड़की को दो साल पहले नवीं  क्लास में सरकारी स्कूल में भर्ती कर दिया था । तीन माह बाद वह स्कूल बदल चुका  था । सब कुछ व्यवस्थित हो चुका  था । आज की तारीख में सरकारी स्कूल में वे बच्चे पढ़ते हैं जिनकी हैसियत किसी भी तरह से  पब्लिक स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने की नहीं होती । इसलिए सरकारी स्कूल मजदूर पैदा करने की कंपनी बन गए हैं और पब्लिक स्कूल अफसर पैदा करने  की कंपनी । इन गरीब माँ बाप की आवाज में भी  इतना दम  नहीं होता कि  इनकी आवाज हालात सुधारने में मदद कर  पाये ।  जब कोई अफसर मैनेजर या अफसर स्कूल में जाएगा तो सवाल भी करेगा और उस सवाल का जवाब भी स्कूल को देना पड़ेगा । टीचर्स के बच्चे भी किसी न किसी सरकारी स्कूल में ही अपने बच्चों को बढ़ाएंगे तो फिर वे कोताही नहीं बरत  पाएंगे । जब पब्लिक स्कूल नहीं थे तब ज्यादा बेहतर पढ़ाई होती थी जिसमे मानविकी  का जरूर सबसे ज्यादा जोर व ध्यान रहता  था । इससे सरकारी स्कूल के अध्यापकों के बेदम स्टेटस में भी सुधार आएगा । इसके साथ ही यह आठवीं तक अनिवार्यतया पास करने की प्रवृति व नियम पर भी अंकुश लगाना होगा जिसने सरकारी  शिक्षा का भी सर्वनाश  कर दिया है ।साथ ही जिन बच्चों को मिड डे मील खाने की इच्छा नहीं है उनको जरूरी नहीं कि  मिड डे मील खिलाया ही जाए । बहुत से ऐसे बच्चे भी मिड डे मील खा रहे हैं जिनको उसकी जरूरत ही नहीं है और विद्यालयों के लिए भी कुछ ऐसा नियम बना दिया गया है कि  उन्हें पैसा पूरा प्रयोग करना पड़ता है वे वापस करना चाहें तो दिक्कत होती है । और इससे भ्रष्टाचार पनपता है ।  इसलिए यह तीन  कदम उठाने बहुत जरूरी हैं । 

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