केजरीवाल को लगता था कि सरकार चलाना आसान होता होगा लेकिन अब सरकार संभल नहीं रही है । भगवान् ने लेन्टर फाड़ कर दे दिया है । लेंटर भारी है , सो संभालेगा कैसे। वे कुचले कुचले से महसूस कर रहे हैं । वे अपने कानून मंत्री के गैर कानूनी कार्यों को भी सपोर्ट कर रहे हैं । आंदोलन का कार्यकर्ता अब मुख्मंत्री बन गया है यह उनकी समझ नहीं आ रहा । क्या वे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को ताक पर रखना चाहते हैं या जनता के दिमाग में बैठ जाना चाहते हैं कि हाँ , कोई है जो सरकार से सीधे पंगा ले सकता है । यह कतई ठीक नहीं है । यदि सरकार ने रामलीला मैदान की तरह रामदेव के आंदोलन की तरह इनको उखाड़ने की कोशिश की तो ये सरकार को घेरेंगे और शायद जनता के प्रति जवाबदेही से बच जायेंगे । क़ानून मंत्री का पुलिस से जो विवाद है उसमे वे इंतजार करने को तैयार नहीं हैं । लेकिन अपने वायदों को पूरा करने के लिए वे पहले समय देकर अब समय मांग रहे हैं । कोई बात नहीं , पर आप काम तो करें । यह काम जो अरविन्द कर रहे हैं यह तो उनके कार्यकर्त्ता कर सकते थे दिल्ली सरकार के समर्थन में और केंद्र सरकार के खिलाफ । लेकिन ऐसा वे नहीं कर रहे । दिनोंदिन उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा है । यह उनके स्वास्थ्य के लिए भी ठीक नहीं है । उन्हें सचिवालय संभालना चाहिए । न कि अन्य चिंताएं करनी चाहिए । वे पुलिस वालों से कह रहे हैं कि अपनी वर्दी छोड़कर हमारे साथ आ जाओ । भैया ! आपकी तो पत्नी आपका घर सम्भाल लेगी लेकिन जिनकी हाउस वाइफ हैं उनका क्या होगा ? बच्चे कौन पालेगा ?
सोमवार, 20 जनवरी 2014
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