गुरुवार, 20 अगस्त 2020

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बुधवार, 12 अगस्त 2020

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शनिवार, 8 अगस्त 2020

 दर्द तो हुआ होगा। जब मरहम लगा होगा किसी के घावों पर। अजीब है न ?  किसी के घावों पर मरहम लगे तो दूसरे को दर्द कैसा ? और दर्द हो भी क्यों ? पर यही तो कमाल है। जब दर्द खुद का दिया हो तो घाव हरा ही रहने में सुकून मिलता है। उसे कोई मरहम लगाकर ठीक करे तो दर्द तो होगा ही। और वह दर्द रह रहकर जुबान के रास्ते आह के रूप में नहीं बल्कि धमकियों के रूप में सामने आता है। क्यों ? और हैरान होना गैरजरूरी नहीं कि दर्द किसी और का दिया हो और उसकी गलतियों को शौक से अपने काँधे पर ढोये पाँच सौ साल से एक घाव को हरा ही रखने की कोशिश थी तुम्हारी। तुमने गर्व किया उस पर। शर्म नहीं की कि उसने तुम्हारे पुरखों पर भी वही कहर ढाया था जो तुम पर ढहाया और तुम बदल गए और पूरी तरह बदल गए पर लाखों करोड़ों अपनी अस्मिता को बचाये आज भी लड़ रहे हैं और बेर की झाड़ियों से तुमसे अपने कपडे बचाकर चलते चले जा रहे हैं राम नामी दुपट्टा ओढ़े।  तुम्हारी उम्मीदों पर पानी फिर ही तो गया ।

दर्द तो हुआ होगा। पर एक बात तो बताओ ? शर्म नहीं आयी तुम्हें उसके साथ खड़े होते। गंगा जमुनी तहजीब की बातें करते। मगर कभी बाबर के साथ खड़े होते तो कभी औरंगजेब के लिए लड़ते। इतनी मक्कारी। जब थोड़े हो तो गंगा जमुनी तहजीब और जब ज्यादा तब ? न किसी को जमीन देने को तैयार , न आकाश ,न पानी। किस्मत इतना कुछ कब किसके लिए लाती है कि जो खैरात में एक मुल्क पा जाये और दूसरे को बोनस की तरह पा ले और जमाई बनकर जिया चला जाये। जब चाहे धमकी दे दे कि तोड़ देंगे उस नयी इमारत को जिसे न्याय के देवता ने किसी को सौंप दिया। यह तुम्हीं कर सकते हो और देखो आसानी से कोई उस देवता पर की गयी टिप्पणियों के खिलाफ सड़क पर भी नहीं उतरता। मोहम्मद साद तो याद होगा। किसी को पता भी है ? कहाँ है। कोई पूछता भी नहीं है।

दर्द तो हुआ होगा पर तुम कमाल करते हो। कमाल। यहां तो हालात ये हैं कि किसी की दो लाइन को पसंद करने से पहले चार बार सोचना पड़ता है कि  कहीं लाइन गैर सेक्युलर तो नहीं। और एक तुम हो तुम सब , एक लाइन में एक साथ , एक सुर में सुर मिलाते , उसके सुर में सुर मिलाते जो कहता है - 15 मिनट ---- और फिर एक हल्ला होता है और कोई आलोचना नहीं।  जो कोई आलोचक हो जाये वह एक दल  विशेष का। 

पर तुम कौन ? जिसने थोड़ा भी दिमाग नहीं लगाया कि तुम्हारे  पुरखे भी तो कभी हमसे ही थे। औरंगजेब और बाबर ने तो हिसाब बराबर ही किया था न। तुमने खुद को बाबर से क्यों जोड़ लिया। हमने तो कभी खुद को न रावण से जोड़ा न कंस से और न दुर्योधन से। फिर तुम्हें क्यों नहीं सूझा कि  जिसके साथ साथ तुम यह गंगा जमुनी तहजीब का मंच सजाये बैठे हो उसका बाबर से कोई लेना देना नहीं।  तो क्या तुम्हारा लेना देना है ? और अगर तुम्हारा लेना देना है तो तुम मेरे कैसे हुए और अगर तुम उसके साथ खड़े हो जिसने हमें  क्रूरता से मारा तो क्या उसके किये पापों का जिम्मेदार मैं तुम्हें मान लूँ ? अगर तुम्हें जिम्मेदार मान लूँ  तो फिर यह गंगा जमुनी तहजीब का सो कॉल्ड नाटक क्यों ? और अगर तुम जिम्मेदार नहीं तो फिर तुम्हारा उस मस्जिद के ढहने पर यह रोना धोना क्यों ? कहीं और बनाये जाने पर हाय  हल्ला क्यों ? और सुनो , क्या तुम फिर से उसका नाम बाबरी मस्जिद रखने वाले हो ताकि हमें याद दिलाते रहो कि बाबर ने हमारे पूर्वजों के साथ क्या किया था। पर चलो इससे हमें यह तो याद रहेगा कि जिसे तुम अपना कहते हो उसने हमारे पुरखों के साथ क्या किया था। तलवार के दम पर तुम्हारे राज ने हमें तो इतना कमजोर कर दिया था कि जहां तुम्हारी संख्या बढ़ने लगती हम भागने की सोचने लगते। मकान बेचने की सोचने लगते। खौफ तो रहा है तुम्हारा।  तुम्हें कभी इस बात की जरूरत महसूस नहीं हुई होगी कि सोचो , ऐसा क्यों होता है ? 

पर ध्यान रखो , जितना तुम बाबर से खुद को जोड़ोगे उतना हमसे रामारामी में दूर ही होओगे। जितना बाबर से दूर होओगे हमें अपने नजदीक पाओगे। मगर तुम करोगे कैसे ? तुम्हें यह करने भी कौन देगा ? तुम्हारे अपने ? वो तो फतवा निकालने में देर नहीं लगाएंगे या टैग लगा देंगे कि तुम हमारे साथ मिल गए हो। मिलना ही तो है। फिर मिलोगे कैसे ? सोचो , 

पर इतना मुझे पता है कि दर्द तो हुआ होगा न ? धारा ३७० का दर्द देखा है मैंने तुम्हारे छोटे छोटे बच्चों तक में जिन्हें तीन तलाक़ से मुक्ति पा चुकी तुम्हारी पत्नियां भी महसूस करती हैं। छोटे छोटे बच्चे कश्मीर के लिए रोते फिरते हैं। उत्सवों पर गीत गाते हैं कि किसी तरह पुराना कश्मीर वापस आ जाए और हिंद्स्तान की छाती पर मूंग डालता रहे। देश का गृहमंत्री कोरोना हॉस्पिटल गया और तुमने ट्विटर पर गालियों और बद्दुआओं की बरसात कर दी। 

दर्द तो हुआ होगा पर दर्द तो उन्हें भी हुआ था जिनका घाव हरा था और अब जब भरा है तो तुम बैचैन हो गए। क्यों ?  

रविवार, 2 अगस्त 2020

रसकलशी -
जयन्ति ते सत्कवयो मनीषिणो
ज्वलन्ति यत्काव्यदिवाकरोदयात् ।
धियोsप्रयासं जडसूर्यकान्तो
पला इवात्यल्पधियां नृणामपि ।।