रविवार, 30 जून 2013

संवेदनाएं मर सी गयी हैं । जब आपको जीने के लिए जगह नहीं मिलती तो आप मर जाते हैं । अपने लिए स्थान पाने की जद्दोजहद में । भूखे प्यासे भी । जिनसे आपको भूख प्यास मिटाने की उम्मीद होती है वे जब मुकर जाते हैं तब ऐसा ही होता है । मेरे दिल में जहां कभी संवेदनाओं के लिए जगह थी वहाँ अब लाशों के ढेर हैं । संवेदनाएं अपने लिए जगह ढूंढ रही हैं लेकिन जगह है नहीं । ईश्वर  के द्वार पर भी नहीं । उस ऊँचे आकाश में भी नहीं जहां कभी निर्गंध हवा बहा करती थी वहाँ अब लाशों की गंध है । दूर उड़ते विमान उन गंधों से परेशां होकर तेजी से कहीं और चले जाते हैं । संवेदनाये जिन्दा थी जब मुझे कहीं कोई पीड़ित दीखता था ।  ढाढ़स बंधाता था मै  भी । अब शब्द कोष की कमी है । किस किस को ढाढ़स  बंधाऊं । उस माँ को जिसका लाल पूछकर गया था कि  शाम को लौटते वक़्त आज सब्जी में क्या क्या लाना है ? उस बहिन को जिसने अपने लिए दुपट्टा मंगाया था लाल रंग का । उस भाई को जो कई दिन से विडियो गेम का इन्तजार कर रहा था । उस पिता को जिसके जूते अब उसके बेटे के पाँव में आने लगे थे । उस पुत्र  को जो अपने पिता से जिद करता था कि  वह भी साथ जाएगा । मै  किस किस को ढाढस बंधाऊं ? वह पत्नी जो रोज राह देखा करती थी कि  कब वो आयेंगे जिन्होंने हाल ही में घर की जिम्मेदारी उठाई है । वह बच्चे जो रोज अपने पिता को आते देख कर कुछ पाने की लालसा में बाबा बाबा कह कर उनके आस पास मंडराने लगते थे । घर की उस मालकिन को जो पति से रोज पूछा करती कि  आज खाना क्या बनाना है ? या फिर उन सबको पूछूं जो ईश्वर  के दर्शन करने इस लालसा से आये थे कि  उनका यह लोक और परलोक अब सुधर जाएगा । शिव कल्याण करेंगे । वे शिव हैं । ईश  हैं । पशुपति भी हैं । शूली भी हैं । महेश्वर हैं । सर्व हैं । शंकर भी हैं । चंद्रशेखर हैं । उग्र हैं तो भोले भी हैं । लेकिन जो शिवदर्शन को आये थे शव में बदल गए , ईश  का आशीष लेने आये थे असमर्थ हो गए , जो पशुपति की शरण मे आये थे उन्होंने देखा , उस आपदा में मानुष क्या पशु भी बहते चले जा रहे थे , जो शूली से अपने जीवन के शूल दूर करने आये थे ऐसे शूल अपने दिल में लिए गए हैं कि  कसम खाए बैठे हैं कि  दोबारा चारों धाम नहीं आयेंगे । वे महेश्वर के पास आये और अपना ऐश्वर्य खो बैठे , जो सर्व दर्शन को आये अपना सर्वस्व खो कर शव में बदल गए । अपने जीवन में शम अर्थात कल्याण की कामना के साथ आये थे वे अशम  यानि  अकल्याण भोग गए , जो  उग्र को भोले समझ कर आये थे वे उनकी उग्रता को देखकर घबराए से अपने घर में बैठे हैं । उस भागीरथी के प्रवाह ने उन सबको अपने साथ बहा लिया जो कभी स्वयं भोले की जटाओं में उलझ गयी थी और उनसे अनुनय के बाद ही मुक्त हुयी थी । उस मंदाकिनी ने उन्हें अपने आगोश में लिए जो कभी कल कल करती बहा करती और अपने सुमधुर स्वर से अपने तट पर बैठे हुओं  के कानो में मिश्री घोल दिया करती थी । किसी ने उसके उग्र रूप की कामना क्या कल्पना भी नहीं की थी ।
बहुत से मर गए उस भूख प्यास से जो उन्होंने कभी नहीं झेली थी और उनके शरीर अनंत आकाश में उड़ते चील कौओं  का भोजन बन गए हैं । इस प्राकृतिक हिंसा ने बहुतों को जैनियों की श्रेणी में ला खडा किया है जो मरने के बाद अपने शरीर को पशुओं और पक्षिओं को दे दिए जाने की आशा के साथ अपना शरीर छोड़ते हैं । क्या आस्था हिल गयी है ? नहीं , आस्था नहीं हिली । उनके कुछ लोग फिर से अमरनाथ की यात्रा पर निकले हैं । वे अमरनाथ की यात्रा पर हैं । अमर नाथ । वही जोश । वही उमंग और वही उत्साह । उन्होंने तो लिख भी दिया है अपने बैनर में - अमरनाथ की यात्रा - २८ जून से प्रभु इच्छा तक । सही तो है प्रभु इच्छा तक।
खैर  , अब मै क्या करूं  । ऐसे ही बैठा रहूँ या उनकी चिंता करूं  जो मर गए उस संवेदन हीन सिस्टम के कारण जो कहीं भी तब पहुँचता है जब सब कुछ ख़त्म हो जाता है । या संवेदना व्यक्त करूं  उन नेताओं के प्रति जो सिर्फ इसलिए लड़ रहे थे कि  वे अपने लोगों को ले जायेंगे । लेकिन उन नेताओं के प्रति कैसे संवेदनाएं व्यक्त करूं  जिनकी वजह से मेरी संवेदनाएं ख़त्म हो रही है , दम तोड़ रही हैं ।
मैं तो उनके प्रति संवेदनाएं व्यक्त कर सकता हूँ जो चले गए , संवेदना के शब्द तो नहीं हैं मेरे पास , लेकिन खोजूं तो मिल जायेंगे । क्योकि शब्द ब्रह्म होता है और नित्य भी होता है उसी आत्मा की तरह जो उन तमाम शवों को छोड़कर निकल गयी है जो इस वक़्त राम के उस बाड़ा में बिखरे दबे पड़े हैं या पेड़ों पर शरण लिए पड़े हैं । मैं जिस राम के बाड़ा को राम की बाड़ समझता था वह अब टूट गयी है और मरघट में तब्दील है ।  शायद वे सभी उस श्वेत द्वीप नगर में चले गए हों जिसका जिक्र महाभारत का शांतिपर्व करता है । जो प्रकाश पुरुषों का स्थान है । मेरी संवेदनाएं हैं सब के प्रति - आत्मा एक है शरीर भिन्न - उस एक आत्मा की शान्ति के लिए -
न जायते म्रियते व कदाचित
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोयं  पुरानो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
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शनिवार, 29 जून 2013

मित्रों !  आज के सन्दर्भ में राजनीति है क्या ? यह वास्तव में हमारा नजरिया ही है जो किसी चीज को कभी राजनैतिक तो कभी सामाजिक या समाज सेवी दृष्टिकोण से ओतप्रोत कर देता है । मोदी उत्तराखंड आये । उन्हें कहा गया कि  आप पैदल नहीं जा सकते । वे कुछ गुजरातियों को लेकर लौट गए । उन्होंने कहा कि गुजरात सरकार केदारनाथ को संवार देगी , तैयार कर देगी । यह एक प्रस्ताव था । बहुगुणा जी ने मना कर दिया । कोई बात नहीं । लेकिन कहा गया कि  मोदी राजनीति कर रहे हैं । सोचिये , यदि कोई कांग्रेसी मुख्यमंत्री केदार नाथ को संवारने की बात कहते और यदि बहुगुणा हाँ या न करते तो भी क्या राजनीति होती । हरियाणा के सी एम् ने भी दस गाँव गोद लेने की बात कही तो राजनीति नहीं हुई । मोदी ने कह दिया तो राजनीति हो गयी और हुड्डा ने कहा तो समाज सेवा ।
मोदी गुजरातियों को ले गए जिनके प्रति वे वहाँ के मुख्यमंत्री होने के नाते उत्तरदायी हैं तो राजनीति हो गयी । और आंध्र प्रदेश के नेता एयर पोर्ट पर आन्ध्र प्रदेश के आपदा पीड़ितों को लेने के लिए लड़ते नजर आये तो समाज सेवा हो गयी  । उनसे किसी ने नहीं पूछा कि  भाई बाकियों को क्यों नहीं ले जा रहे हो । सिर्फ आन्ध्र वासियों को ही क्यों ? मोदी आजकल ऐसे टारगेट हो गए हैं कि  सब मिलकर मोदी से घबराए हैं और कोई मौका नहीं चूकते ।
मोदी को पैदल जाने की इजाजत नहीं , राहुल के लिए रास्ता साफ़ , क्यों ? यह राजनीति क्यों नहीं है ? अपने  अमूल बॉय को आप जाने देते हैं ताकि चुनाव में फायदा उठाया जा सके । क्या जनता वास्तव में इतनी ही बेवकूफ होती है जितना नेता इन्हें समझते हैं ? हैरानी होती है । लेकिन एक बात तो तय हैकि  राहुल को वहाँ लोगों ने जो खरी खोटी सुनाई है वह राहुल याद तो जरूर रखेंगे और अपने मातहत कांग्रेसियों को समझा कर रखेंगे कि  आगे से ऐसा न हो ।
खैर , कुल मिलाकर कई बार राजनीति हमारी दृष्टि में होती है , वस्तु स्थिति में नहीं । अगर वास्तव में हमारा दृष्टिकोण बात बात में राजनीति न ढूँढता तो आज लोग वहाँ आपदा में भूखे प्यासे न मरते । क्योंकि यह राजनीति ही तो हमारी लाल फीताशाही को भी बर्बाद कर रही है ।

शुक्रवार, 28 जून 2013

मित्रों ! किसी के बढ़ते कद का खौफ क्या होता है यह आप आजकल स्पष्ट महसूस कर सकते हैं । साथ ही सरकारें कितने खौफनाक इरादे रखती हैं और किसी को भी नष्ट करने की योजना किस तरह बनाती हैं इसकी बानगी भी हम देख सकते हैं । जिस तरह से नरेन्द्र मोदी ने गुजरात  में कांग्रेस को चित्त कर रखा है और निरंतर तीन चुनावों में हराया है और यह तब है जब इस व्यक्ति ने वी एच पी , आर एस एस तक की परवाह नहीं की और यहाँ तक कि  विगत गुजरात चुनावों में एक वर्ग विशेष के लोगों को चुनावों में टिकट तक नहीं दिया और फिर भी चुनाव भी जीते । यहाँ मई एक वर्ग विशेष के लोगों को टिकट न दिए जाने का पक्षधर नहीं हूँ लेकिन मुझे हैरानी इस बात पर भी है कि  इसके बाद भी इस वर्ग विशेष के लोगों का २0  प्रतिशत वोट मोदी के ही हक में गया । क्या इसे वाकई इस व्यक्ति की लोकप्रियता कहा जाय । मै  तो कहूँगा , अब रही बात इशरत जहां एनकाउंटर की , यह केश 20 0 ४ का है , आखिर ऐसा क्या है कि  ठीक चुनाव से पहले सरकार को इस केश को खोलने की जरूरत पद गयी । क्या सरकार को इशरत जहां को न्याय दिलाने की याद सिर्फ चुनाव के वक़्त आती है ? इतने सालों से सरकार सोई हुई थी । क्या सरकार को सिर्फ चुनाव के समय लगता है कि  इशरत जहां को न्याय दिलवाया जाय ? सरकार जिस तरह से काम कर रही है उससे सिर्फ एक शब्द ध्यान आता है कि  सामान्य भाषा में इसे ब्लैकमेलिंग कहा जाता है । समाजवादी पार्टी हो या बसपा , ये सभी सरकार की इस ब्लैकमेलिंग प्रक्रिया को बखूबी समझते हैं और इससे घबराते हुए सरकार के समर्थन में यह कह कह कर आगे आते हैं कि  नहीं तो साम्प्रदायिक शक्तियां आगे आ जायेंगी । यदि सरकार को इशरत जहां को न्याय दिलाना होता तो अब तक न्याय दिला भी   दिया गया होता चाहे इशरत आतंकवादी साबित होती या निर्दोष , लेकिन सरकार की मंशा ऐसे मुद्दों से किसी को न्याय दिलाने की नहीं दिखती बल्कि उसे डराने धमकाने में ही सरकार इन चीजों का लम्बे समय से इस्तेमाल कर रही है । डी  एम् के ने जैसे ही आँख दिखाई थी वैसे ही अगले दिन डी  एम् के के यहाँ सी बी आई का छापा पड़  गया था । इसलिए सरकार निश्चित तौर पर घबराई है और चाहती है कि  चार्जशीट में मोदी का और अमित शाह का नाम डालकर इन्हें फंसाया जाय ताकि चुनाव की नैया पार  लग सके। अमित शाह को बेहतर चुनावी मैनेजमेंट के लिए जाना जाता है और मोदी को बेहतर प्रशासन के लिए । जयराम रमेश तक पिछले दिनों मोदी की प्रशंसा कर चुके हैं और इसी प्रशंसा से चिढ़कर सत्यव्रत चतुर्वेदी ने यह तक कह दिया था कि  जयराम रमेश को भाजपा ज्वाइन कर लेनी चाहिए । अब यह कांग्रेस की परेशानी है कि  उसके ही मंत्री कई बार मोदी की प्रशंसा कर चुके हैं । अब यह तय है कि  कांग्रेस को लगता है कि  यदि मोदी सत्तासीन हो गए तो हो सकता है कि  कांग्रेस के लिए वर्षों तक सत्ता में लौटना ही कही मुश्किल न हो जाए । मोदी का काम आसान हो जाता यदि बी जे पी के बुजुर्ग और मोदी विरोधी लोग मोदी की राह का काँटा नहीं बनते । मोदी के लिए बाहरी चुनौतियां ही नहीं हैं बल्कि अन्दर भी ऐसे शत्रु खड़े हैं जिनकी आँख में मोदी कांटे की तरह चुभते हैं । देखते हैं , मोदी से कांग्रेस और मोदी विरोधी कैसे निपटते हैं और मोदी कैसे इनसे निपटते हैं । तब तक नमो नमः । रही बात मोदी के मुख्यमंत्री से हटने की , तो यदि नमो नमः सफल रहा तो मोदी स्वयं ही २ 0 १ ४ में यह कुर्सी छोड़ देंगे , कांग्रेस के लिए नहीं , अपने उत्तराधिकारी के लिए । 
मित्रो ! सरकार राम बाड़ा का सच छिपा रही है और यह बेहद जरूरी है कि  लापरवाह सरकारों का सच हर हाल में सामने आना चाहिए । यह शर्म का विषय है कि  जो स्थानीय लोग हैं उनकी संख्या क्या है इसका आकलन न होने देने के लिए सरकार मीडिया तक को वहां न जाने देने की कोशिश कर रही है । सेना के मुताबिक़ राम बाड़ा में ही हज़ारों शव बिखरे पड़े हैं और यह देख कर सेना का दिल भी असहज हो गया है । और ये वे शव उन लोगों के हैं जो बाहरी तौर पर दिख रहे हैं । मलबे के अन्दर जो लोग दबे हैं वे कितने हैं इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है । कितने बह गए , कौन जानता है । कितने ऐसे भी रहे होंगे जिनका पूरा का पूरा परिवार बह गया होगा और उनके बारे में किसी ने पूछा भी नहीं होगा । सरकार अपनी विफलता कैसे छिपाती है , इसका एक ताजा तरीन उदाहरण यह प्रकरण है । इतने दिन बाद भी सरकार राहत सामग्री स्थानीय लोगों तक नहीं पहुंचा पा रही है और ये ट्रक वापस जा रहे हैं । यहाँ तक कि  राहुल महोदय ने जो ट्रक रवाना  किये थे वे तक वापस जा रहे हैं क्योंकि उन्हें डीजल तक के पैसे नहीं दिए गए । वे सामान बेच रहे हैं और उससे पैसा इकट्ठा करके वापस जा रहे हैं । यह उत्तराखंड सरकार का हाल है । इश्वर सरकार को सद्बुद्धि दे जिससे वह लोगों की सही मायने मे मदद कर सके ।

मंगलवार, 25 जून 2013

उत्तराखंड  में प्राकृतिक आपदा में मारे गए लोगों के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि - ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे और उनके परिवार जनों को इस दुःख को सहने की शक्ति दे । दुःख की इस घड़ी  में हम सभी ह्रदय से उनके साथ हैं । -

वासांसि जीर्णाणि  यथा विहाय नवानि संयाति नवानि देही । 
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥ 
अर्थात जिस प्रकार से मनुष्य पुराने वस्त्र को त्यागकर नए वस्त्र को धारण करता है उसी प्रकार से आत्मा भी पुराने या कटे फटे मृत शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करता है ॥
न जायते म्रियते व कदाचित
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोयं पुरानो,
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।। 
यह आत्मा उत्पन्न नहीं होता और कभी मरता भी नहीं,
यह होकर फिर कभी नहीं होता ।
पुराणों  में कथित यह आत्मा अज है अर्थात कभी उत्पन्न नहीं होने वाला है , नित्य है शाश्वत है अर्थात अनादि काल से अनंत काल तक है ।
यह मारे जाने वाले शरीर में कभी मारा भी नहीं जाता ॥

सोमवार, 24 जून 2013

उत्तराखंड में आई आपदा की भयानक तस्वीर सामने आने के बाद अब सभी तरफ से सरकार  के इस ऑपरेशन के चीरफाड़ की बारी आ गयी है । इससे पूर्व ही उत्तराखंड के आपदा मंत्री ने खुद कह दिया है कि  हम नाकाम रहे । राज्य सरकार ने भी पचास सवालों के बाद यह मान ही लिया है कि  सरकार इस दिशा में नाकाम रही है । इस सबके बीच बहुगुणा विरोधी लाबी खुश हो रही होगी कि  चलो , बहुगुणा फेल  हुए और अब इस लाबी को यह मौका मिल गया है कि  यह अपने आलाकमान के कान भर सके कि  बहुगुणा के कमजोर प्रशासन ने देश में कांग्रेस की भद पिटवा  दी है और अब मुख्यमंत्री बदला जाना चाहिये और हो सकता है कि  कुछ दिन में यह आवाज उठे  ।
इस आपदा का सार यही कहा जा सकता है कि  सरकार बादल को नहीं रोक सकती थी लेकिन जो लोग भूख से मर गए , दम घुटने , ठण्ड लगने , कुचलने से मर गए या रास्ता भटक  कर इधर उधर मर गए या नेपाली युवकों द्वारा लूट लिए गए और मार भी दिए गए , यह सब सरकार की जिम्मेदारी थी और सरकार इस मामले में पूरी तरह से फेल  हो गयी है ।
यही नहीं , जब रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ तब शुरुआत में सिर्फ २ २ हेलीकाप्टर लगाए गए , जैसे जैसे देखा गया देर हो रही है तो हेलीकाप्टर की संख्या बधाई गयी । और सात दिन बाद टी वी पर देखा गया कि  ८३ हेलीकाप्टर हैं । लेकिन तब तक दोबारा बारिश शुरू हो गयी । क्या अब जो लोग फंस गए हैं और रास्ते फिर टूटने शुरू हो गए हैं तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है । यदि पहले ही यह काम तेजी से कर लिया जाता तो वे लोग भी अब तक सुरक्षित बचाए जा सकते थे । लेकिन ऐसा हो नहीं सका और यह स्थिति तब है जब दो दिन बाद ही मनमोहन और सोनिया गाँधी का दौर हो चुका  था । लेकिन जब केंद्र सरकार ही ७ दिन बाद तक इस इन्तजार में बैठी रही कि  उसके युवराज स्पेन से लौटेंगे तब उनके हाथों से ही राहत सामग्री बंटवाई जायेगी तब इस बेचारी सरकार का क्या कहें ।
आपदा प्रबंधन कुशल होता तो जिस दिन केदारनाथ में यह घटना घटी उस दिन वहाँ पर यह टीम यदि पहले से सक्रिय  होती तो वहाँ पर सैकड़ों लोगों को बचा लिया जाता । कुछ लोग ठण्ड से मर रहे थे , कुछ दम घुटने से तो कुछ भूख से , कुछ लोग उन बंद मकानों में भी फंसे थे जिन में मलबा भर गया था । लेकिन सरकार के पास सोचने का कोई तंत्र नहीं था इसलिए पिता की गोद में उसका बच्चा भूख और पानी की प्यास से अपने पिता से पानी पानी मांगता हुआ दम तोड़ गया । जो स्थानीय पुलिस सात दिन बाद दिखाई दी वह अगर सक्रिय  होती तो उन महिलाओं के पतियों को बचाया जा सकता था जिन्हें कुछ नेपाली गुंडों ने लूटने के बाद खाई में फेंक दिया । लेकिन बेचारी सरकार का क्या कहें । जो २ ० ०  कमांडो छठवे दिन उतारे गए वे पहले भी उतारे जा सकते थे । जो मानव रहित विमान लोगों को खोजने के लिए सातवें दिन लगाने की बात सामने आई वह पहले भी लगाए जा सकते थे । लोगों तक कम से कम रोटी और पानी तो पहुंचाई जा सकती थी । सेना जो कर रही है वह भगवान् का रूप निभा रही है । लेकिन सरकार कहाँ है । क्या सरकार के पास कोई सोच भी नहीं है जो किसी का भला कर सके ।
राष्ट्रीय  आपदा घोषित करने से कतरा रहे गृह मंत्री नहीं समझ सकते कि  जब किसी आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाता है तब समस्त राज्यों की सरकारें उस आपदा से निपटने में तत्परता दिखाती हैं । गृहमंत्री इसे राष्ट्रीय संकट मानने को तो तैयार थे लेकिन राष्ट्रीय आपदा नहीं । क्या वे बता पायेंगे कि  आखिर राष्ट्रीय आपदा और संकट में क्या फर्क है । क्या वे नहीं जानते कि  संकट और आपदा एक ही बात है । ये दोनों पर्याय वाची शब्द हैं । लेकिन यह मांग चूंकि विपक्ष की तरफ से थी इसलिए राष्ट्रिय आपदा और संकट में फर्क दिखने की कोशिश की गयी है । इसे कहते हैं विरोध के लिए विरोध अंततः राज्य सरकार को मानना पड़ा कि  वह नाकाम रही , और आपदा मंत्री भी कह चुके हैं कि  हम नाकाम रहे । क्या यदि एक माह बाद इश्वर न करे कोई बादल फिर फट जाए तो सरकार के पास तैयारी है । नहीं , बिलकुल नहीं ।
खैर , राहुल देहरादून पहुंचे , कल तक जो सरकार यह कह रही थी कि  कोई भी हवाई सर्वे तो कर सकता है लेकिन जमीन पर नहीं उतार जाएगा क्योंकि इससे सिस्टम पर असर पड़ता है उसे अब क्या हो गया है । राहुल ऐसा क्या करने स्पेन से सीधे जमीन पर आ गए हैं जिससे विकास कार्य को गति मिल जायेगी । लेकिन राजनीति है यह भी । खैर राजनेता राजनीती नहीं करेंगे तो उनकी दूकान कैसे चलेगी ?
कुल मिलाकर इस देश के सबसे बड़े खेल संगठन बी सी सी आई ने उत्तराखंड के लिए कुछ भी देने से मना कर दिया है । इस देश का वह करिश्माई कप्तान भी इसी राज्य का ही है । वाह , इसे कहते हैं देश भक्ति । जिन्हें जरूरत है उन्हें कुछ नहीं लेकिन जो पहले से मालामाल हैं उन्हें एक एक करोड़ ।
खैर , यह इस देश की नियति है कि  यहाँ समय पर कुछ नहीं होता और जब होता है तो पानी सर पर से गुजर चुका  होता है ।
इस घटना से कुल मिलाकर राज्य सरकार के पर्यटन उद्योग को अच्छा ख़ासा घाटा होने वाला है । जो लोग भी बचकर आये हैं कसम खाए हुए हैं कि  दुबारा इस यात्रा पर नहीं आयेंगे और दूसरों को भी सलाह देंगे कि  यहाँ न आयें क्योंकि यहाँ का प्रशासन पंगु है ।
सभी लोग आर्मी का धन्यवाद दे रहे हैं । मेरी भी तरफ से आर्मी को हज़ार सलाम । कोई तो है जो हमको बचा लेगा ।
जो चले गए हैं  , उनकी आत्मा को ईश्वर  शांति दे ।
न जायते म्रियते व कदाचित
नायं भूत्वा भविता व न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोयं पुराणों ,
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
राहुल जी आ गए है
राहुल जी आ गए हैं । मम्मी का फ़ोन गया था । बेटा  ! यहाँ उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा आ पड़ी हैं । ये विपक्ष वाले हल्ला मचा रहे हैं कि  तुम कहाँ हो । ऐसा है , अगले साल चुनाव हैं । इनके नेता तो वहाँ पहुँच गए हैं । एक जहाज ले के अपने यात्रियों को अपने स्टेट पहुंचा भी दिया है लेकिन सब कह रहे हैं कि  तुम कहाँ हो । इनको पता नहीं किसने बता दिया है कि  तुम स्पेन में हो । तुम काहे सबको बता कर जाते हो कि  कहाँ जा रहे हो ? अब नुकसान करवा दिया न । अब ऐसा है कि  फ़टाफ़ट कोई सी ट्रेन , या अगर ट्रेन न मिले तो जहाज पकड़ कर आ जाओ । यहाँ मैंने पच्चीस ट्रक रसद संभाल कर रखी  है ताकि तुम आओ तो पहुँचाओ । सात दिन तो हो गए हैं । उधर जो भी जिन्दा बचकर आ रहा है वो आर्मी का तो धन्यवाद कर रहा है लेकिन हमारी सरकार को गाली दे रहा है । अब ऐसे में तुम और गायब हो । जानते नहीं कि  इनका नेता कितना चालाक है । वो वहाँ पहुँच कर कह रहा है कि  उसने वहाँ बहुत लोगों की मदद की । और केदारनाथ को ठीक करने का ठेका मांग रहा था । वो तो हमारे दिग्गी ने कह दिया कि  तुमसे पहले तो हमारे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने दस करोड़ रुपये देकर केदार नाथ के उद्धार के लिए कह दिया था । और अब हम उस चालाक विपक्षी नेता के द्वारा दिए गए २ करोड़ रूपये पर उसकी टाँग  खींच रहे हैं । बड़ा कहता था - गुजरात विकास कर रहा है । अब जब देने की बात आई तो २ करोड़ दिए । गरीब प्रदेश का मालिक । क्या ख़ाक विकास किया है ? खैर , उसको छोडो , रात दिन उसके बारे में ही तो सोचते रहते हैं । नींद हराम कर रखी  है उसने । तुम आ जाओ । नहीं तो लोग तुम्हें भूल जायेंगे । ये राशन वितरित हो जाए तो कुछ सांस में सांस आये । इधर , हमारा खाद्यान्न सुरक्षा बिल ये विपक्ष वाले पास नहीं होने दे रहे हैं और उधर हमारी सरकार के इस प्रदेश में लोग इस तबाही में भूखे मर रहे हैं । कोई पत्ती  चबा रहा है , कोई लकड़ी चूस रहा है , कोई कच्ची मैगी खा रहा है , दो रुपये की चीज पचास में बिक रही है । आठ माह बाद चुनाव हैं , क्या होगा कैसे होगा बताओ । अब तुम आ जाओ । नहीं तो सब गड़बडा  जाएगा । वहाँ हमारी किरकिरी हो रही है । जल्दी आओगे तो कुछ जवाब भी तुम्हें रटने हैं । हर बार तुम्हें मेहनत  करानी पड़ती है और तब जाकर तुम कुछ करते हो । जब निर्भया काण्ड था तब भी तुम उत्तराखंड के प्रशासन की तरह एन मौके पर गायब हो गए थे । जब अन्ना  आये थे तब तुम ग्यारह दिन बाद निकले थे बाहर । तुम्हें सजाने संवारने में हमें कितनी मेहनत  करनी पड़ती है तुम क्या जानो । उनका नेता देखो कैसे फ़टाफ़ट बोल लेता है । अब कुर्ती की बांह तो तुम चढ़ा लेते हो बखूबी , लेकिन यूपी में यह सब काम नहीं आया । अब उत्तराखंड में लोग कुर्ती की बांह चढ़ाए पीड़ित हैं , उनकी कुर्ती की बांह नीचे करो . यहाँ जल्दी आ जाओ । इधर ये मीडिया वाले केदार घाटी तक पहुँच कर बार बार कह रहे हैं कि मैं पहले पहुंचा हमारा चैनल पहले पहुंचा , और चैनल पर लाइन चला रखी  है कि  राहुल गाँधी कहाँ हैं ? वहाँ चैनल्स  में जल्दी पहुँचने की होड़ लगी हैं और इस मौके पर तुम गायब हो । जल्दी नहीं तो कम से कम उत्तराखंड की स्थानीय पुलिस की तरह सातवें दिन तो बाहर निकल आओ बेटा  । जल्दी आ जाओ । बड़ी फजीहत हो रही है । और हाँ लोगों से ये  कह देना कि  मैं स्पेन गया था घूमने । ठीक है । आ  जाओ अब ।

रविवार, 23 जून 2013

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्याति  संयाति नवानि देही  ।।
गीतायां  कथितमस्ति  यत यथा मनुष्यः एकं वस्त्रं त्यक्त्वा अन्यं वस्त्रं गृह्णाति अर्थात धारयति तथैव आत्मा अपि  जीर्णं शरीरं विहाय अन्यं शरीरं धारयति ॥
उत्तराखंडे  प्राकृतिकजलविपदायां यत  दृष्टं , श्रुतं तत्सर्वं दृष्ट्वा श्रुत्वा विचारयामि - आत्मा जीर्णं एव शरीरं त्यक्त्वा नूतनं शरीरं धारयति अथवा नूतनं शरीरं त्यक्त्वा अपि  अन्यं शरीरं अपि  धारयति । यथा जनाः बालाः युवानः युवतयः वृद्धाश्च तत्र समानभावेन जलजाले निमग्नाः  जाताः  तेन तु  प्रतीयते यत आत्मा तु  जीर्णं शरीरं न पश्यति , यस्य शरीरस्य समयः पूर्णः जातः तं शरीरं त्यक्त्वा अपरं शरीरं धारयितुम अनंते ब्रह्मांडे विचरति  तथा एकं शरीरं चिनोति , पुनः पृथिव्याम समायाति । शरीरास्तु तत्र शिशूनाम अपि  आसन ये आत्मना परित्यक्ता ।

शुक्रवार, 21 जून 2013

उत्तराखंड की इस आपदा के समय उत्तराखंड के ७0  विधायक इस समय कहाँ हैं ? या वे भी यह सोचकर चुप बैठे हैं कि  यह तो उस विधायक का क्षेत्र है या यह इस विधायक का क्षेत्र है । जैसे पुलिस अक्सर किसी घटना के समय सोचती है कि  यह उस क्षेत्र की घटना है ? या नेता सोच रहे हैं कि  चलो इससे बहुगुणा सरकार जितना बदनाम हो जाये उतना अच्छा । या हरीश रावत यह सोच रहे हैं कि चलो बहुगुणा बदनाम तो सत्ता हस्तांतरण में आसानी होगी ।

सोमवार, 10 जून 2013

जैसे आत्मा जीर्ण शीर्ण शरीर को त्यागकर नए शरीर को धारण कर लेती है वैसे ही  दल भी अपने पुराने जीर्ण शीर्ण हो चुके नेताओं को त्यागकर नए नेता को चुन लेता है ।
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा । अर्थात तृष्णा जीर्ण नहीं होती हम ही जीर्ण हो जाते हैं । ईश्वर  आडवाणी जी को उनकी तृष्णा की तरह ही जवान रखे ।
शीर्षक और कुछ विचार एक प्रसिद्ध कविता से प्रेरित हैं -
आडवाणी जी के प्रति - एक भाव -

द्रुत झरो जगत के शीर्ण पत्र
कुछ नव कोंपल अब आने दो
हो चुका  तुम्हारा समय धैर्य
अब नया जोश भर जाने दो ।
है सही यही तुम आये थे
जब तम  था तमहर बनकरके
था चला काफिला साथ , किया दल
का उद्धार तारणहार बनके
पर समय मांगता अब कुछ है
उसकी  पूरी हो जाने दो
हैं नयी राह और नया खून
उसको  रग रग भर जाने दो
जो लिखता काल कपाल पे था
वह शांत दांत अब बैठा है
दे गया प्रकाश जो पहले वह
उजियारा अब तक फैला है
तुम भी थे सतत अक्षर नभ में
थी अभिलाषा और आशाएं
हो सकी न पूरी वो अब तक
उनको  पूरी हो जाने दो ।
यह समय चक्र है चलता है
सूर्यास्त से सूर्य निकलता है
एक नए जोश और नयी आस में
फिर दिन नया एक खिलता है
अस्ताचल की गरिमा रख लो
नूतन  संध्या आने दो
हो चुका  समय , है  देर हुई
अब नया सवेरा आने दो ।\