सोमवार, 30 दिसंबर 2013

सांप सूंघ गया है नमो नमो को ।
पिछले कई माह से जो नमो नमो चल रहा था उसे अब सांप सूंघ गया है । कितने ही दिनों से बीजेपी और इसके नेता नमो मंत्र का जाप कर रहे थे , टीवी पर मोदी मोदी था।  अब सब बदल गया है और बीजेपी को डर  लग गया है।  मुझे लगता है कि जैसे बीजेपी मोदी को ब्रांड बनाकर उनके विकास को बेच रही थी । उन्हें विकास पुरुष कह रही थी । मोदी का विकास माडल चल निकला था । सब विकास माडल की  , गुजरात के विकास की  मार्केटिंग कर रहे थे , अब अरविन्द का ईमानदारी माडल चल निकला है।  अरविन्द केजरीवाल ने अपनी ईमानदारी की  सही मार्केटिंग की  है । और पिछले दो साल से उन्हें एक ऐसा प्लेटफार्म मिला है जिसे उन्होंने भुनाने में कोई कोर कसर  नहीं छोड़ी है । हालाँकि यदि यह देखा जाय कि दिल्ली में क्या हुआ तो वहाँ पर यदि विजय गोयल ही बीजेपी के चीफ मिनिस्टर कैंडिडेट रहते और मोदी न आते तो बीजेपी भी कांग्रेस की  तरह दस बीस सीट्स पर सिमट चुकी होती । और अरविन्द पचास सीट्स ले गए होते । लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि मोदी आड़े आ गए यानि मोदी ने अरविन्द को रोका दिल्ली में , न कि अरविन्द ने मोदी को । खैर , अब अरविन्द केजरीवाल मॉडल मिला है । दिल्ली अधिकाधिक जनसँख्या घनत्व वाला क्षेत्र है और दूसरी सोच के साथ जी रहा है इसलिए आसान था , राष्ट्रीय नीति की  जरूरत नहीं थी लेकिन लोकसभा में बहुत जल्दी बहुत कुछ पा जाने की  आकांक्षा कुछ ज्यादा ही जल्दी है । दिल्ली संभाल लें और मॉडल पेश करें तो बात जमेगी , कितने अरविन्द केजरीवाल मिल पाएंगे ? शीला ने कम विकास नहीं किया था लेकिन दिल्ली सुरसा के मुह की तरह बढ़ रही है इसलिए समस्याएँ घटेंगी नहीं बढ़ेंगी ही । देखना होगा कि क्या क्या गुल खिलाती हैं आप ।
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां ,वाया रायवाला , देहरादून

शनिवार, 28 दिसंबर 2013

ये आसमान से जमीन नापने या मापने जैसा है।  क्या कभी आपने कल्पना की है कि हेलीकाप्टर से जमीन को नापा जाए।  शायद नहीं।  लेकिन अब ऐसा हो रहा है।  क्या है यह।  दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की विजय इसी का हिस्सा है । चुनाव से पहले अक्सर समीक्षक कहा करते थे कि आप चार पांच सीट्स ही ले पायेगी । भाजपा और कांग्रेस भी भाव देने से कतराते थे सो अब कतरा  कतरा  रो रहे हैं । लेकिन एक बात सही है । अक्सर तमाम राजनैतिक पार्टियां पहले पहल ग्राम प्रधान , पंचायत सदस्य , ब्लाक प्रमुख आदि क्रम से राजनीति में होते हुए विधायक मंत्री सांसद आदि का सफ़र तय करती हैं।  यह भारतीय राजनीति  के इतिहास में पहली बार हुआ है कि कोई सीधे ही अट्ठाइस  विधायकों के साथ दिल्ली का मुखिया बन बैठा है।  है न आकाश से जमीन नापना।  वह भी जमीन पर रहकर । ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था।  लेकिन यह हो चुका  है। अक्सर पार्टियां जमीनी स्तर  पर राजनैतिक कब्ज़ा करती हैं विभिन्न संघटनों , संस्थानो संस्थाओं आदि पर कब्ज़ा करती हैं और फिर ऊपर पकड़ बनाती हैं लेकिन पहली बार ऐसा नहीं हुआ है । कहीं यह दिवास्वप्न तो नहीं है । यकीनन दिवास्वप्न नहीं है ।
लेकिन क्या झांसा दिया जाना जरूरी था । बीजेपी कहती रही कि वह विपक्ष में बैठेगी । कांग्रेस ने पत्ते खोले और सोचा कहीं  ऐसा न हो कि लोकसभाचुनाव  में मोदी ब्रांड के साथ अगर दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए तो बीजेपी इस राज्य में भी सत्ता में न आ जाए । सो केजरीवाल को समर्थन दो । समर्थन दिया । कहा कि दोबारा चुनाव में नहीं धकेल सकते दिल्ली की  जनता को । लेकिन यह नहीं समझाया कि मई २०१४ में तो जनता को मतदान केंद्र जाना ही है । एक और बटन दबा देता मतदाता । दिल्ली विधान सभा के लिए भी वोट दे देता । सो दोबारा चुनाव होने देते । कांग्रेस ने क्या पांच साल के लिए समर्थन दिया है ? कोई गारंटी ? नहीं । तो फिर केजरीवाल को क्या हुआ ? इस से बेहतर तो यह होता कि केजरीवाल बीजेपी को समर्थन देते या बीजेपी से समर्थन लेते । लेकिन हमारे देश में धर्म निरपेक्ष दिखने का एक शौक है सभी को । और इसलिए केजरीवाल ने अपने घोषणा पत्र में लिख दिया कि दिल्ली में उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा । पंजाबी तो है ही द्वितीय राजभाषा । उर्दू भी । वाह । असल में राजनीति बीजेपी और गैर बीजेपी में फांसी है और इसलिए सही मायने में बीजेपी और शिवसेना जैसे दल एक तरफ हैं और शेष दल एक तरफ । केजरीवाल को जल्दी है । दिल्ली संभालेंगे या देश ? एक बिन्नी ने ही रातों की  नींद उड़ा  दी । देश में जिन लोगों को लोकसभा में भेजेंगे उनमे कितने बिन्नी होंगे क्या पता । सत्ता में वहाँ लोकसभा में तो नहीं आयेंगे ? फिर कुछ सीट्स मिल भी गयी तो अपने लोगों को कैसे रोक पाएंगे गाडी बंगला न लेने के लिए । वहाँ तो मिलेगा ही । बवाल नहीं होगा ? बिन्नी नहीं पैदा होंगे ? प्रलोभन न हो सामने तो ईमानदार बने रहना आसान है लेकिन जब सामने करोड़ों होंगे तो ? तब ईमानदार बनना होगा ? क्या वास्तव में सब बुद्धा ही हैं केजरीवाल पार्टी में । नहीं । लेकिन मैं केजरीवाल का विरोधी नहीं । समर्थक हूँ । चाहता हूँ धीरे धीरे बढ़ें ताकि विश्वसनीयता को कोई आंच नहीं आये । अभी जितना मिला है उसे पचाएं , जो कहा है करके दिखाएँ । तब बात जमेगी । और प्रत्याशी ? सभी की  पत्नियां तो नौकरी नहीं करती ? उनका परिवार कौन पालेगा । केजरीवाल की  तो पत्नी उनका अपना परिवार सम्भाल लेगी । लेकिन बाकी  क्या बाबा वैरागी लायेंगे । मिल जायेंगे ? ढूँढिये । बहुत जल्दी भी ठीक नहीं है । दुनिया बहुत बड़ी है और समय का इन्तजार करें । और हाँ , सुरक्षा जरूर लें , क्योंकि राजनीति में हैं ।

फ्रॉम -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां , रायवाला देहरादून

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013



                             आडवाणी और सुषमा जी की  नाराजगी का क्या करें \           


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मंगलवार, 10 दिसंबर 2013



          मजबूरी की  नैतिकता के मारे राजनैतिक दल क्या करें  \                 
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बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

इस देश में २००२ के सिवाय भी बहुत कुछ हैजिसे भुलाया नहीं जाना चाहिए लेकिन मीडिआ से लेकर सब पार्टियों तक मोदी मोदी के सिवाय कुछ नहीं जपते , मुजफ्फर नगर में हाल में दंगे हुए , भूल रहे हैं । याद रखना है तो सिर्फ २००२। हज़ारों लोग आज भी कैम्पों में सड़  रहे हैं लेकिन सिर्फ
 २००२ की  माला जपी जा रही है । 

रविवार, 22 सितंबर 2013

महोदय !                                                                                      2 2 -0 9 -2 0 1 3
मेरी एवं नौ अध्यापकों की नियुक्ति 08 /01 /2007 को सहायक अध्यापक के तौर पर म्युनिसिपल इंटर  कॉलेज ज्वालापुर हरिद्वार में हुई । नयी पेंसन व्यवस्था के अनुसार अब तक प्रान  नंबर मिल जाना चाहिए था जैसा अन्य  जनपदों में हो रहा है । लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है।  एक बैंक में एक खाता खोला गया है जिसमे पैसा जमा हो रहा है लेकिन ब्याज की निरंतर हानि हो रही है।  कई बार कहा जा चुका  है लेकिन विभाग की तरफ से अभी तक प्रान  नंबर के सम्बन्ध में कुछ नहीं किया गया है।  आपसे निवेदन है कि  इस कार्य को शीघ्र करवाने की कृपा करें ।
धन्यवाद ,

द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोबाइल नंबर - 9359768881

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

धर्म के नाम पर उ प्र चुनाव में आरक्षण की बात  करने वाली कांग्रेस धर्म निरपेक्ष कैसे ?
ओसामा को ओसामा जी कहकर मुस्लिम को बदनाम करने वाले दिग्विजय धर्म निरपेक्ष कैसे ?

रविवार, 11 अगस्त 2013

नरेन्द्र मोदी को लेकर २००२ में अटल जी ने कहा था कि  मोदी राज धर्म निभाएं । विपक्षियों ने इस बयान को पकड़ कर हंगामा कर रखा है कि  मोदी को अटल जी ने ऐसा कहा था । अरे भैया ! यह तो उस शासक ने सही ही कहा था कि  किसी भी मुख्यमंत्री को राज धर्म ही निभाना चाहिए इसलिए और अपने स्वच्छ शासन के लिए अटल जी जाने जाते हैं लेकिन क्या होगा देश की जनता का जिसने उन्हें दोबारा चुना  ही नहीं । करें क्या ? क्या किसी और pm  ने कभी किसी को राज धर्म निभाने की सलाह देने की हिम्मत दिखाई है ? क्या ८४ के सिख दंगों जो दिल्ली में हुए थे उस सम्बन्ध में आज तक किसी कांग्रेसी नेता या मंत्री ने कुछ कहा है कि  तत्कालीन सरकार ने राजधर्म नहीं निभाया बल्कि राजीव गाँधी ने कह दिया था कि  जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो थोड़ी बहुत मिटटी हिलती है । वाह , सिख संख्या में कम हैं इसलिए वोट कम हैं इसलिए आज तक सज्जन कुमार और टाइटलर  पर आजतक कोई कार्य वही नहीं हुई , लोग गवाह हैं लेकिन ३० साल हो गए कुछ नहीं , गुजरात में १० केस में से ७ में कार्यवाही हो चुकी , २ में हो रही है और १ लंबित है तो भी हाय तौबा ? खेकरा  को ससपेंड करने में क्या सोनिया या मनमोहन ने कोई राजधर्म निभाने की सलाह हरियाणा सरकार को दी है , सपा को राज धर्म क्यों नहीं सिखाया जाता जिसके राज में गुंडा गर्दी और लेपटॉप  बाटने के सिवाय कुछ नहीं रह गया है ।
क्या टोपी पहनने को लेकर कांग्रेस या सपा या बी एस पी जैसे दल मात्र राजनीति नहीं कर रहे ? अब तक नरेन्द्र मोदी पर टोपी न पहनने को लेकर निशाने साधे जाते रहे और दो दिन पहले शिवराज चौहान ने टोपी पहन ली तो कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि  टोपी पहनने से कोई धर्म निरपेक्ष नहीं हो जाता । क्योंकि इस बार टोपी शिवराज ने पहन ली थी । उनसे पूछा गया था कि  शिवराज और मोदी में से कौन धर्म निरपेक्ष है और कौन सांप्रदायिक ? तो साहब परेशान हो गए थे । किसे सांप्रदायिक कहें और किसे धर्मनिरपेक्ष ? तो कह डाला  कि  टोपी पहनने से कोई धर्म निरपेक्ष नहीं हो जाता । यानि एक बार फिर से मुसलमानों को टोपी पहना दी कांग्रेस के इस नेता ने ।यानि मामला कुल मिलकर बेवकूफ बनाने का है जैसा कि  तथाकथित धर्म निरपेक्ष पार्टियाँ वर्षों से बेवकूफ बनाती आ रही हैं । सोचिये , क्या कोई धर्म निरपेक्ष नेता धर्म के आधार पर कोई सुविधा देने की कोई बात कर सकता है ? या उसको ऐसा करना चाहिए ? नहीं , लेकिन ये तमाम तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता धर्म के आधार पर मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने की बात निरंतर करते आ रहे हैं । क्या यही धर्म निरपेक्षता है ? हैरानी होती है इस सोच पर और उन लोगों पर भी जो इस प्रवृति को समझ तक नहीं पाते । सच कहूं तो यह तो वास्तव में टोपी और मुसलमानों का मज़ाक उड़ाया जा रहा है और वे समझ नहीं रहे । जो नीतीश अपने को धर्म निरपेक्ष कहते फिर रहे हैं वे ईद पर टोपी पहन कर बधाइयां देते रहे और उधर चार जवान जो कश्मीर में मारे गए उनके लिए नीतीश के पास समय ही नहीं था । यह कौन सी धर्म निरपेक्षता है ? किसे बेवकूफ बनाया जा रहा है ? सोचिये और सोचिये साथ ही समझने की भी बहुत जरूरत है ।

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

 बंधुओं कुछ दिन से लिखना छूट गया था आज फिर से शुरू कर  रहा हूँ
कल ०८ अगस्त की रात तारिक अजीम साहब जो  नवाज शरीफ सरकार के खासम खास हैं और इंडिया टीवी पर दीपक चौरसिया की बहस की क्लास में फ़ोन लाइन पर मौजूद थे । इस बहस को आपमें से बहुत लोगों ने सुना होगा । बात जब पाक द्वारा भारत के सैनिकों को पाकिस्तान के सैनिकों द्वारा मारे जाने की आई तो जैसा की अंदेशा था वही हुआ और उन्होंने भी हमारे महान रक्षा मंत्री एंटनी महोदय के बदले हुए बयान की बात उठाकर हमारे मुख पर तमाचा सा मार दिया । कहा कि  आपके ही मंत्री ने पहले बताया कि  कुछ लोग पाक आर्मी की ड्रेस पहन कर आये और बाद में उन्होंने दबाव में वह बयान बदला ।
इस बात का हमारे पास कोई जवाब नहीं है क्योंकि जब बेवकूफी करेंगे तो मात भी खायेंगे ।
खैर , आगे , उन्होंने कह दिया कि  हाफिज सईद के जैसे भाषण पाक में हैं और नरेन्द्र मोदी के भाषण भी वैसे ही हिंदुस्तान में हैं । यानि कुल मिलाकर उन्होंने नरेन्द्र मोदी और हाफिज सईद  को एक ही कटघरे में खड़ा कर दिया जिस के बाद जब कांग्रेस के प्रवक्ता मीम अफजल साहब से भी दीपक चौरसिया ने यह पूछा  कि  आप क्या कहेंगे हाफिज सईद  और नरेन्द्र मोदी के बारे में तारिक अजीज साहब द्वारा दिए गए बयान के बारे में ? तो साहब का कहना था कि  मोदी को तो अमेरिका ने वीजा ही नहीं दिया है और मैं कोई नरेन्द्र मोदी को डिफेंड करने के लिए इस बहस में नहीं आया हूँ । इसके बाद जब नलिन कोहली ने कहा कि  पाक को भारत के मुसलमानो की चिंता नहीं करनी चाहिए , यहाँ के मुसलमान बहुत सुरक्षित है और सही है तो मीम अफजल साहब को यह लगा कि  ये लोग तो मुसलमानों की प्रशंसा कर के मुस्लिम मत न ले जाएँ इसलिए वे बोले कि  आप भारत के मुसलमानों को पाक के मुसलामानों के सामान साबित करने की साजिश कर रहे हैं  ।
मीम अफजल साहब के इस बयान के बाद बहुत हंगामाँ हुआ टीवी पर और अंततः बहस खत्म हो गयी ।
 बिहार सरकार के एक मंत्री द्वारा सैनिकों को यह कहना कि  वे तो शहादत के लिए ही सेना में भर्ती  होते हैं  और पत्रकार से उसके माता पिता के वहाँ न  जाने पर सवाल खड़े करना व बाद में माफ़ी माँगना यह साबित करता है कि  भले ही माफ़ी मांग ली हो लेकिन यदि यह व्यक्ति पद पर बना रहता है तो ऐसी मानसिकता वाला व्यक्ति सरकार में रहेगा । और यदि यह बर्खास्त नहीं होता तो यह सरकार की भी मानसिकता को दर्शायेगा । माफ़ी से नेता की मानसिकता तो नहीं बदलेगी , वह तो जाहिर है इसलिए इससे मंत्री के पाप नहीं धुल जाते । उसका और उस जैसों का सत्ता में बने रहना ही खतरा है इस देश के लिए , वहाँ की राज्य सरकार के लिए , देश की फौज का अपमान है यह । इसलिए माफ़ी कुछ नहीं है , यह तो पद से तुरंत हटाये जाने का मामला है । यदि नीतीश नहीं हटाते तो समझिये कि  वे भी उस बयान के साथ हैं और दिखावे के लिए ही नेता मंत्री को फटकार लगाई है । 

बुधवार, 7 अगस्त 2013

जब पाकिस्तान हमारे सैनिकों को मार रहा है और हमारे रक्षामंत्री पाकिस्तान की तरफ से बयान देते फिर रहे हैं यानि जो बचाव शायद पाकिस्तान करता कि  उसकी वर्दी पहन कर कुछ लोग इंडियन आर्मी के सैनिकों को मारने गए होंगे वह हमारे ही रक्षामंत्री कह रहे हैं मानो पाक में बैठे हों । ऐसे में जब शेर की दहाड़ की जरूरत हो और हमारे मन मोहन मौन हों तो फिर क्या किया जा सकता है सिर्फ इस बात के कि  हम इन्तजार करें कि  हिंदुस्तान की गद्दी पर गुजरात का वह शेर बैठे जिसके चलने भर से लोंगो को शेर की याद आ जाती है , जिसके कुछ बोलने भर से गीदड़ों की पार्टियों के लोग हुआं  हुआं  करने लगते हैं , जिसके  किसी को रमजान की बधाई देने से प्रतिद्वंदी इकट्ठे हो जाते हैं , जिसकी प्रशंसा करने मात्र से विरोधी अपने सदस्यों पर बिफर जाते हों जिसकी ताजपोशी की बात सोचने मात्र से विरोधियों को पसीने आ जाते हों । जिसके एक एक शब्द पर बोलने के लिए पार्टियों ने अपने अलग से प्रवक्ता तय कर रखे हों मात्र उसकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए । उसकी ताजपोशी का हमें इन्तजार है ताकि पाक को यह पता चल सके कि  भारत में उसको जवाब देने के लिए शेरों  की कमी नहीं है क्योंकि भय बिन होत  न प्रीती ।

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

 भाटी  का लोकतंत्र और मुस्लिमों की किस्मत
इस देश में हिन्दुओं को बहुत समय से धर्मनिरपेक्षता की अफीम सुंघाई जा रही है और मुसलमानो. को कट्टरपंथी की तरह प्रस्तुत किये जाने की परंपरा सी चल पड़ी सी दिखती है । ऐसा वर्षों से होता रहा है । गौतम बुद्ध नगर की निलंबित और चर्चित एस डी एम् दुर्गा शक्ति नागपाल द्वारा नोएडा में मंदिर का गिराया जाना व वहां के हिन्दुओं की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न आना एक प्रकार से इसी सुंघाई गई अफीम जैसी धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है किन्तु वहीँ प्राप्त समाचारों के अनुसार नरेन्द्र भाटी  द्वारा षड्यंत्रपूर्वक एक मस्जिद की नींव सरकारी जमीन पर रखते  हुए साजिशन दीवार गिराए जाने व उसके तथाकथित दंडस्वरूप दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित किये जाने के इस मामले में कुल मिलाकर मुसलमान बदनाम और कट्टर साबित किया गया है ।

रविवार, 4 अगस्त 2013

अमर उजाला - 05 /08 /13  ऋषिकेश संस्करण , अंतिम पृष्ठ की खबर -
दुबई में एक भारतीय को मात्र इसलिए वहां की मेट्रो ट्रेन में नहीं चढ़ने दिया गया क्योंकि उस भारतीय व्यक्ति ने धोती पहन रखी थी उन्होंने कहा कि  यह ड्रेस पहनकर मेट्रो में चलने की अनुमति नहीं है
मेरा सवाल - कृपया देश के सेक्युलर नेता दो शब्द कहें

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

 अम्बेडकर  ने पूना पैक्ट के तहत १० साल के लिए आरक्षण करवाया
नेहरु जी के सहयोग से आगे बढ़ा दिया गया
आर्थिक आधार क्या बुरा है ?
और फिर एक एस सी कमिश्नर क्यों नहीं कहता कि पहले मेरे एनी अन्य  भाइयों को जिन्हें  लाभ नहीं मिल पाया अभी तक , उन्हें दो , जब सबको एक एक बार आरक्षण मिल जाए तभी पहले से आरक्षण ले चुके लोगों के बारे में दोबारा सोचा जाए
यह कहने की हिम्मत नहीं है अब दलित और महादलित ये दो वर्ग हो गए हैं
दलित वे जो बार बार लाभ ले रहे हैं और महा दलित वे जो एक बार भी लाभ नहीं ले पा रहे दलितों द्वारा ही सब हथियाए जाने से
जो एक बार आरक्षण ले लेता है तो वो अन्यों को पहले क्यों नहीं लाभ दिलवाता
स्वार्थभ्रंशो हि  मूर्खता  यानि स्वार्थ छोड़ना मूर्खता है
 सॉरी रवीश  जी ! भाषा व्याकरण को कपडे पहनाता है आपने व्याकरण को भाषा का चीर हरण कहा है भाषा को जब व्याकरण के कपडे पहनाये जाते हैं तो वह हमेशा मर्यादित रहती है और मनुष्य का जीवन भी मर्यादित रहता है आज देश में जिस भाषा का बोलबाला है उसका अपना व्यवस्थित व्याकरण नहीं है इसलिए देश में मर्यादाएं भी नहीं हैं but  बट और put पुट की तरह नेताओं के अतार्किक बयान हो गए हैं
इस देश में कभी संस्कृत बोली जाती थी तो मर्यादाएं भी थी आप कहेंगे कि  उस समय ऐसा होता था वैसा होता था कुछ लोगों को पढने की आजादी ही नहीं थी तो ऐसे तो द्रोणाचार्य ने भी कभी अपने पुत्र अश्वत्थामा को अपात्र  होने के कारण ब्रह्मास्त्र विद्या नहीं सिखाई थी हालांकि पुत्र मोह में वे चुपचाप थोडा सा आधा अधूरा सिखा गए थे जिसका कुपरिणाम भी देखने में आया , खैर , इस पर अलग से बड़ी बहस की गुंजाइश है , फिर कभी , नमस्कार

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

यह हिन्दू संस्कृति ही है जो कहती है -
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुखभाग भवेत्
 सभी लोग सुखी हों  सभी निरोगी हों सभी कल्याण देखें और कोई भी दुःख भोगने वाला न हो
तथा
यत्र विश्वं भवत्येकनीडम
अर्थात
जहां सारा विश्व एक घोंसला बन जाता है
 इसलिए सम्पूर्ण विश्व के लिए हिन्दू संस्कृति ही जरूरी है

रविवार, 30 जून 2013

संवेदनाएं मर सी गयी हैं । जब आपको जीने के लिए जगह नहीं मिलती तो आप मर जाते हैं । अपने लिए स्थान पाने की जद्दोजहद में । भूखे प्यासे भी । जिनसे आपको भूख प्यास मिटाने की उम्मीद होती है वे जब मुकर जाते हैं तब ऐसा ही होता है । मेरे दिल में जहां कभी संवेदनाओं के लिए जगह थी वहाँ अब लाशों के ढेर हैं । संवेदनाएं अपने लिए जगह ढूंढ रही हैं लेकिन जगह है नहीं । ईश्वर  के द्वार पर भी नहीं । उस ऊँचे आकाश में भी नहीं जहां कभी निर्गंध हवा बहा करती थी वहाँ अब लाशों की गंध है । दूर उड़ते विमान उन गंधों से परेशां होकर तेजी से कहीं और चले जाते हैं । संवेदनाये जिन्दा थी जब मुझे कहीं कोई पीड़ित दीखता था ।  ढाढ़स बंधाता था मै  भी । अब शब्द कोष की कमी है । किस किस को ढाढ़स  बंधाऊं । उस माँ को जिसका लाल पूछकर गया था कि  शाम को लौटते वक़्त आज सब्जी में क्या क्या लाना है ? उस बहिन को जिसने अपने लिए दुपट्टा मंगाया था लाल रंग का । उस भाई को जो कई दिन से विडियो गेम का इन्तजार कर रहा था । उस पिता को जिसके जूते अब उसके बेटे के पाँव में आने लगे थे । उस पुत्र  को जो अपने पिता से जिद करता था कि  वह भी साथ जाएगा । मै  किस किस को ढाढस बंधाऊं ? वह पत्नी जो रोज राह देखा करती थी कि  कब वो आयेंगे जिन्होंने हाल ही में घर की जिम्मेदारी उठाई है । वह बच्चे जो रोज अपने पिता को आते देख कर कुछ पाने की लालसा में बाबा बाबा कह कर उनके आस पास मंडराने लगते थे । घर की उस मालकिन को जो पति से रोज पूछा करती कि  आज खाना क्या बनाना है ? या फिर उन सबको पूछूं जो ईश्वर  के दर्शन करने इस लालसा से आये थे कि  उनका यह लोक और परलोक अब सुधर जाएगा । शिव कल्याण करेंगे । वे शिव हैं । ईश  हैं । पशुपति भी हैं । शूली भी हैं । महेश्वर हैं । सर्व हैं । शंकर भी हैं । चंद्रशेखर हैं । उग्र हैं तो भोले भी हैं । लेकिन जो शिवदर्शन को आये थे शव में बदल गए , ईश  का आशीष लेने आये थे असमर्थ हो गए , जो पशुपति की शरण मे आये थे उन्होंने देखा , उस आपदा में मानुष क्या पशु भी बहते चले जा रहे थे , जो शूली से अपने जीवन के शूल दूर करने आये थे ऐसे शूल अपने दिल में लिए गए हैं कि  कसम खाए बैठे हैं कि  दोबारा चारों धाम नहीं आयेंगे । वे महेश्वर के पास आये और अपना ऐश्वर्य खो बैठे , जो सर्व दर्शन को आये अपना सर्वस्व खो कर शव में बदल गए । अपने जीवन में शम अर्थात कल्याण की कामना के साथ आये थे वे अशम  यानि  अकल्याण भोग गए , जो  उग्र को भोले समझ कर आये थे वे उनकी उग्रता को देखकर घबराए से अपने घर में बैठे हैं । उस भागीरथी के प्रवाह ने उन सबको अपने साथ बहा लिया जो कभी स्वयं भोले की जटाओं में उलझ गयी थी और उनसे अनुनय के बाद ही मुक्त हुयी थी । उस मंदाकिनी ने उन्हें अपने आगोश में लिए जो कभी कल कल करती बहा करती और अपने सुमधुर स्वर से अपने तट पर बैठे हुओं  के कानो में मिश्री घोल दिया करती थी । किसी ने उसके उग्र रूप की कामना क्या कल्पना भी नहीं की थी ।
बहुत से मर गए उस भूख प्यास से जो उन्होंने कभी नहीं झेली थी और उनके शरीर अनंत आकाश में उड़ते चील कौओं  का भोजन बन गए हैं । इस प्राकृतिक हिंसा ने बहुतों को जैनियों की श्रेणी में ला खडा किया है जो मरने के बाद अपने शरीर को पशुओं और पक्षिओं को दे दिए जाने की आशा के साथ अपना शरीर छोड़ते हैं । क्या आस्था हिल गयी है ? नहीं , आस्था नहीं हिली । उनके कुछ लोग फिर से अमरनाथ की यात्रा पर निकले हैं । वे अमरनाथ की यात्रा पर हैं । अमर नाथ । वही जोश । वही उमंग और वही उत्साह । उन्होंने तो लिख भी दिया है अपने बैनर में - अमरनाथ की यात्रा - २८ जून से प्रभु इच्छा तक । सही तो है प्रभु इच्छा तक।
खैर  , अब मै क्या करूं  । ऐसे ही बैठा रहूँ या उनकी चिंता करूं  जो मर गए उस संवेदन हीन सिस्टम के कारण जो कहीं भी तब पहुँचता है जब सब कुछ ख़त्म हो जाता है । या संवेदना व्यक्त करूं  उन नेताओं के प्रति जो सिर्फ इसलिए लड़ रहे थे कि  वे अपने लोगों को ले जायेंगे । लेकिन उन नेताओं के प्रति कैसे संवेदनाएं व्यक्त करूं  जिनकी वजह से मेरी संवेदनाएं ख़त्म हो रही है , दम तोड़ रही हैं ।
मैं तो उनके प्रति संवेदनाएं व्यक्त कर सकता हूँ जो चले गए , संवेदना के शब्द तो नहीं हैं मेरे पास , लेकिन खोजूं तो मिल जायेंगे । क्योकि शब्द ब्रह्म होता है और नित्य भी होता है उसी आत्मा की तरह जो उन तमाम शवों को छोड़कर निकल गयी है जो इस वक़्त राम के उस बाड़ा में बिखरे दबे पड़े हैं या पेड़ों पर शरण लिए पड़े हैं । मैं जिस राम के बाड़ा को राम की बाड़ समझता था वह अब टूट गयी है और मरघट में तब्दील है ।  शायद वे सभी उस श्वेत द्वीप नगर में चले गए हों जिसका जिक्र महाभारत का शांतिपर्व करता है । जो प्रकाश पुरुषों का स्थान है । मेरी संवेदनाएं हैं सब के प्रति - आत्मा एक है शरीर भिन्न - उस एक आत्मा की शान्ति के लिए -
न जायते म्रियते व कदाचित
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोयं  पुरानो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
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शनिवार, 29 जून 2013

मित्रों !  आज के सन्दर्भ में राजनीति है क्या ? यह वास्तव में हमारा नजरिया ही है जो किसी चीज को कभी राजनैतिक तो कभी सामाजिक या समाज सेवी दृष्टिकोण से ओतप्रोत कर देता है । मोदी उत्तराखंड आये । उन्हें कहा गया कि  आप पैदल नहीं जा सकते । वे कुछ गुजरातियों को लेकर लौट गए । उन्होंने कहा कि गुजरात सरकार केदारनाथ को संवार देगी , तैयार कर देगी । यह एक प्रस्ताव था । बहुगुणा जी ने मना कर दिया । कोई बात नहीं । लेकिन कहा गया कि  मोदी राजनीति कर रहे हैं । सोचिये , यदि कोई कांग्रेसी मुख्यमंत्री केदार नाथ को संवारने की बात कहते और यदि बहुगुणा हाँ या न करते तो भी क्या राजनीति होती । हरियाणा के सी एम् ने भी दस गाँव गोद लेने की बात कही तो राजनीति नहीं हुई । मोदी ने कह दिया तो राजनीति हो गयी और हुड्डा ने कहा तो समाज सेवा ।
मोदी गुजरातियों को ले गए जिनके प्रति वे वहाँ के मुख्यमंत्री होने के नाते उत्तरदायी हैं तो राजनीति हो गयी । और आंध्र प्रदेश के नेता एयर पोर्ट पर आन्ध्र प्रदेश के आपदा पीड़ितों को लेने के लिए लड़ते नजर आये तो समाज सेवा हो गयी  । उनसे किसी ने नहीं पूछा कि  भाई बाकियों को क्यों नहीं ले जा रहे हो । सिर्फ आन्ध्र वासियों को ही क्यों ? मोदी आजकल ऐसे टारगेट हो गए हैं कि  सब मिलकर मोदी से घबराए हैं और कोई मौका नहीं चूकते ।
मोदी को पैदल जाने की इजाजत नहीं , राहुल के लिए रास्ता साफ़ , क्यों ? यह राजनीति क्यों नहीं है ? अपने  अमूल बॉय को आप जाने देते हैं ताकि चुनाव में फायदा उठाया जा सके । क्या जनता वास्तव में इतनी ही बेवकूफ होती है जितना नेता इन्हें समझते हैं ? हैरानी होती है । लेकिन एक बात तो तय हैकि  राहुल को वहाँ लोगों ने जो खरी खोटी सुनाई है वह राहुल याद तो जरूर रखेंगे और अपने मातहत कांग्रेसियों को समझा कर रखेंगे कि  आगे से ऐसा न हो ।
खैर , कुल मिलाकर कई बार राजनीति हमारी दृष्टि में होती है , वस्तु स्थिति में नहीं । अगर वास्तव में हमारा दृष्टिकोण बात बात में राजनीति न ढूँढता तो आज लोग वहाँ आपदा में भूखे प्यासे न मरते । क्योंकि यह राजनीति ही तो हमारी लाल फीताशाही को भी बर्बाद कर रही है ।

शुक्रवार, 28 जून 2013

मित्रों ! किसी के बढ़ते कद का खौफ क्या होता है यह आप आजकल स्पष्ट महसूस कर सकते हैं । साथ ही सरकारें कितने खौफनाक इरादे रखती हैं और किसी को भी नष्ट करने की योजना किस तरह बनाती हैं इसकी बानगी भी हम देख सकते हैं । जिस तरह से नरेन्द्र मोदी ने गुजरात  में कांग्रेस को चित्त कर रखा है और निरंतर तीन चुनावों में हराया है और यह तब है जब इस व्यक्ति ने वी एच पी , आर एस एस तक की परवाह नहीं की और यहाँ तक कि  विगत गुजरात चुनावों में एक वर्ग विशेष के लोगों को चुनावों में टिकट तक नहीं दिया और फिर भी चुनाव भी जीते । यहाँ मई एक वर्ग विशेष के लोगों को टिकट न दिए जाने का पक्षधर नहीं हूँ लेकिन मुझे हैरानी इस बात पर भी है कि  इसके बाद भी इस वर्ग विशेष के लोगों का २0  प्रतिशत वोट मोदी के ही हक में गया । क्या इसे वाकई इस व्यक्ति की लोकप्रियता कहा जाय । मै  तो कहूँगा , अब रही बात इशरत जहां एनकाउंटर की , यह केश 20 0 ४ का है , आखिर ऐसा क्या है कि  ठीक चुनाव से पहले सरकार को इस केश को खोलने की जरूरत पद गयी । क्या सरकार को इशरत जहां को न्याय दिलाने की याद सिर्फ चुनाव के वक़्त आती है ? इतने सालों से सरकार सोई हुई थी । क्या सरकार को सिर्फ चुनाव के समय लगता है कि  इशरत जहां को न्याय दिलवाया जाय ? सरकार जिस तरह से काम कर रही है उससे सिर्फ एक शब्द ध्यान आता है कि  सामान्य भाषा में इसे ब्लैकमेलिंग कहा जाता है । समाजवादी पार्टी हो या बसपा , ये सभी सरकार की इस ब्लैकमेलिंग प्रक्रिया को बखूबी समझते हैं और इससे घबराते हुए सरकार के समर्थन में यह कह कह कर आगे आते हैं कि  नहीं तो साम्प्रदायिक शक्तियां आगे आ जायेंगी । यदि सरकार को इशरत जहां को न्याय दिलाना होता तो अब तक न्याय दिला भी   दिया गया होता चाहे इशरत आतंकवादी साबित होती या निर्दोष , लेकिन सरकार की मंशा ऐसे मुद्दों से किसी को न्याय दिलाने की नहीं दिखती बल्कि उसे डराने धमकाने में ही सरकार इन चीजों का लम्बे समय से इस्तेमाल कर रही है । डी  एम् के ने जैसे ही आँख दिखाई थी वैसे ही अगले दिन डी  एम् के के यहाँ सी बी आई का छापा पड़  गया था । इसलिए सरकार निश्चित तौर पर घबराई है और चाहती है कि  चार्जशीट में मोदी का और अमित शाह का नाम डालकर इन्हें फंसाया जाय ताकि चुनाव की नैया पार  लग सके। अमित शाह को बेहतर चुनावी मैनेजमेंट के लिए जाना जाता है और मोदी को बेहतर प्रशासन के लिए । जयराम रमेश तक पिछले दिनों मोदी की प्रशंसा कर चुके हैं और इसी प्रशंसा से चिढ़कर सत्यव्रत चतुर्वेदी ने यह तक कह दिया था कि  जयराम रमेश को भाजपा ज्वाइन कर लेनी चाहिए । अब यह कांग्रेस की परेशानी है कि  उसके ही मंत्री कई बार मोदी की प्रशंसा कर चुके हैं । अब यह तय है कि  कांग्रेस को लगता है कि  यदि मोदी सत्तासीन हो गए तो हो सकता है कि  कांग्रेस के लिए वर्षों तक सत्ता में लौटना ही कही मुश्किल न हो जाए । मोदी का काम आसान हो जाता यदि बी जे पी के बुजुर्ग और मोदी विरोधी लोग मोदी की राह का काँटा नहीं बनते । मोदी के लिए बाहरी चुनौतियां ही नहीं हैं बल्कि अन्दर भी ऐसे शत्रु खड़े हैं जिनकी आँख में मोदी कांटे की तरह चुभते हैं । देखते हैं , मोदी से कांग्रेस और मोदी विरोधी कैसे निपटते हैं और मोदी कैसे इनसे निपटते हैं । तब तक नमो नमः । रही बात मोदी के मुख्यमंत्री से हटने की , तो यदि नमो नमः सफल रहा तो मोदी स्वयं ही २ 0 १ ४ में यह कुर्सी छोड़ देंगे , कांग्रेस के लिए नहीं , अपने उत्तराधिकारी के लिए । 
मित्रो ! सरकार राम बाड़ा का सच छिपा रही है और यह बेहद जरूरी है कि  लापरवाह सरकारों का सच हर हाल में सामने आना चाहिए । यह शर्म का विषय है कि  जो स्थानीय लोग हैं उनकी संख्या क्या है इसका आकलन न होने देने के लिए सरकार मीडिया तक को वहां न जाने देने की कोशिश कर रही है । सेना के मुताबिक़ राम बाड़ा में ही हज़ारों शव बिखरे पड़े हैं और यह देख कर सेना का दिल भी असहज हो गया है । और ये वे शव उन लोगों के हैं जो बाहरी तौर पर दिख रहे हैं । मलबे के अन्दर जो लोग दबे हैं वे कितने हैं इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है । कितने बह गए , कौन जानता है । कितने ऐसे भी रहे होंगे जिनका पूरा का पूरा परिवार बह गया होगा और उनके बारे में किसी ने पूछा भी नहीं होगा । सरकार अपनी विफलता कैसे छिपाती है , इसका एक ताजा तरीन उदाहरण यह प्रकरण है । इतने दिन बाद भी सरकार राहत सामग्री स्थानीय लोगों तक नहीं पहुंचा पा रही है और ये ट्रक वापस जा रहे हैं । यहाँ तक कि  राहुल महोदय ने जो ट्रक रवाना  किये थे वे तक वापस जा रहे हैं क्योंकि उन्हें डीजल तक के पैसे नहीं दिए गए । वे सामान बेच रहे हैं और उससे पैसा इकट्ठा करके वापस जा रहे हैं । यह उत्तराखंड सरकार का हाल है । इश्वर सरकार को सद्बुद्धि दे जिससे वह लोगों की सही मायने मे मदद कर सके ।

मंगलवार, 25 जून 2013

उत्तराखंड  में प्राकृतिक आपदा में मारे गए लोगों के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि - ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे और उनके परिवार जनों को इस दुःख को सहने की शक्ति दे । दुःख की इस घड़ी  में हम सभी ह्रदय से उनके साथ हैं । -

वासांसि जीर्णाणि  यथा विहाय नवानि संयाति नवानि देही । 
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥ 
अर्थात जिस प्रकार से मनुष्य पुराने वस्त्र को त्यागकर नए वस्त्र को धारण करता है उसी प्रकार से आत्मा भी पुराने या कटे फटे मृत शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करता है ॥
न जायते म्रियते व कदाचित
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोयं पुरानो,
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।। 
यह आत्मा उत्पन्न नहीं होता और कभी मरता भी नहीं,
यह होकर फिर कभी नहीं होता ।
पुराणों  में कथित यह आत्मा अज है अर्थात कभी उत्पन्न नहीं होने वाला है , नित्य है शाश्वत है अर्थात अनादि काल से अनंत काल तक है ।
यह मारे जाने वाले शरीर में कभी मारा भी नहीं जाता ॥

सोमवार, 24 जून 2013

उत्तराखंड में आई आपदा की भयानक तस्वीर सामने आने के बाद अब सभी तरफ से सरकार  के इस ऑपरेशन के चीरफाड़ की बारी आ गयी है । इससे पूर्व ही उत्तराखंड के आपदा मंत्री ने खुद कह दिया है कि  हम नाकाम रहे । राज्य सरकार ने भी पचास सवालों के बाद यह मान ही लिया है कि  सरकार इस दिशा में नाकाम रही है । इस सबके बीच बहुगुणा विरोधी लाबी खुश हो रही होगी कि  चलो , बहुगुणा फेल  हुए और अब इस लाबी को यह मौका मिल गया है कि  यह अपने आलाकमान के कान भर सके कि  बहुगुणा के कमजोर प्रशासन ने देश में कांग्रेस की भद पिटवा  दी है और अब मुख्यमंत्री बदला जाना चाहिये और हो सकता है कि  कुछ दिन में यह आवाज उठे  ।
इस आपदा का सार यही कहा जा सकता है कि  सरकार बादल को नहीं रोक सकती थी लेकिन जो लोग भूख से मर गए , दम घुटने , ठण्ड लगने , कुचलने से मर गए या रास्ता भटक  कर इधर उधर मर गए या नेपाली युवकों द्वारा लूट लिए गए और मार भी दिए गए , यह सब सरकार की जिम्मेदारी थी और सरकार इस मामले में पूरी तरह से फेल  हो गयी है ।
यही नहीं , जब रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ तब शुरुआत में सिर्फ २ २ हेलीकाप्टर लगाए गए , जैसे जैसे देखा गया देर हो रही है तो हेलीकाप्टर की संख्या बधाई गयी । और सात दिन बाद टी वी पर देखा गया कि  ८३ हेलीकाप्टर हैं । लेकिन तब तक दोबारा बारिश शुरू हो गयी । क्या अब जो लोग फंस गए हैं और रास्ते फिर टूटने शुरू हो गए हैं तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है । यदि पहले ही यह काम तेजी से कर लिया जाता तो वे लोग भी अब तक सुरक्षित बचाए जा सकते थे । लेकिन ऐसा हो नहीं सका और यह स्थिति तब है जब दो दिन बाद ही मनमोहन और सोनिया गाँधी का दौर हो चुका  था । लेकिन जब केंद्र सरकार ही ७ दिन बाद तक इस इन्तजार में बैठी रही कि  उसके युवराज स्पेन से लौटेंगे तब उनके हाथों से ही राहत सामग्री बंटवाई जायेगी तब इस बेचारी सरकार का क्या कहें ।
आपदा प्रबंधन कुशल होता तो जिस दिन केदारनाथ में यह घटना घटी उस दिन वहाँ पर यह टीम यदि पहले से सक्रिय  होती तो वहाँ पर सैकड़ों लोगों को बचा लिया जाता । कुछ लोग ठण्ड से मर रहे थे , कुछ दम घुटने से तो कुछ भूख से , कुछ लोग उन बंद मकानों में भी फंसे थे जिन में मलबा भर गया था । लेकिन सरकार के पास सोचने का कोई तंत्र नहीं था इसलिए पिता की गोद में उसका बच्चा भूख और पानी की प्यास से अपने पिता से पानी पानी मांगता हुआ दम तोड़ गया । जो स्थानीय पुलिस सात दिन बाद दिखाई दी वह अगर सक्रिय  होती तो उन महिलाओं के पतियों को बचाया जा सकता था जिन्हें कुछ नेपाली गुंडों ने लूटने के बाद खाई में फेंक दिया । लेकिन बेचारी सरकार का क्या कहें । जो २ ० ०  कमांडो छठवे दिन उतारे गए वे पहले भी उतारे जा सकते थे । जो मानव रहित विमान लोगों को खोजने के लिए सातवें दिन लगाने की बात सामने आई वह पहले भी लगाए जा सकते थे । लोगों तक कम से कम रोटी और पानी तो पहुंचाई जा सकती थी । सेना जो कर रही है वह भगवान् का रूप निभा रही है । लेकिन सरकार कहाँ है । क्या सरकार के पास कोई सोच भी नहीं है जो किसी का भला कर सके ।
राष्ट्रीय  आपदा घोषित करने से कतरा रहे गृह मंत्री नहीं समझ सकते कि  जब किसी आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाता है तब समस्त राज्यों की सरकारें उस आपदा से निपटने में तत्परता दिखाती हैं । गृहमंत्री इसे राष्ट्रीय संकट मानने को तो तैयार थे लेकिन राष्ट्रीय आपदा नहीं । क्या वे बता पायेंगे कि  आखिर राष्ट्रीय आपदा और संकट में क्या फर्क है । क्या वे नहीं जानते कि  संकट और आपदा एक ही बात है । ये दोनों पर्याय वाची शब्द हैं । लेकिन यह मांग चूंकि विपक्ष की तरफ से थी इसलिए राष्ट्रिय आपदा और संकट में फर्क दिखने की कोशिश की गयी है । इसे कहते हैं विरोध के लिए विरोध अंततः राज्य सरकार को मानना पड़ा कि  वह नाकाम रही , और आपदा मंत्री भी कह चुके हैं कि  हम नाकाम रहे । क्या यदि एक माह बाद इश्वर न करे कोई बादल फिर फट जाए तो सरकार के पास तैयारी है । नहीं , बिलकुल नहीं ।
खैर , राहुल देहरादून पहुंचे , कल तक जो सरकार यह कह रही थी कि  कोई भी हवाई सर्वे तो कर सकता है लेकिन जमीन पर नहीं उतार जाएगा क्योंकि इससे सिस्टम पर असर पड़ता है उसे अब क्या हो गया है । राहुल ऐसा क्या करने स्पेन से सीधे जमीन पर आ गए हैं जिससे विकास कार्य को गति मिल जायेगी । लेकिन राजनीति है यह भी । खैर राजनेता राजनीती नहीं करेंगे तो उनकी दूकान कैसे चलेगी ?
कुल मिलाकर इस देश के सबसे बड़े खेल संगठन बी सी सी आई ने उत्तराखंड के लिए कुछ भी देने से मना कर दिया है । इस देश का वह करिश्माई कप्तान भी इसी राज्य का ही है । वाह , इसे कहते हैं देश भक्ति । जिन्हें जरूरत है उन्हें कुछ नहीं लेकिन जो पहले से मालामाल हैं उन्हें एक एक करोड़ ।
खैर , यह इस देश की नियति है कि  यहाँ समय पर कुछ नहीं होता और जब होता है तो पानी सर पर से गुजर चुका  होता है ।
इस घटना से कुल मिलाकर राज्य सरकार के पर्यटन उद्योग को अच्छा ख़ासा घाटा होने वाला है । जो लोग भी बचकर आये हैं कसम खाए हुए हैं कि  दुबारा इस यात्रा पर नहीं आयेंगे और दूसरों को भी सलाह देंगे कि  यहाँ न आयें क्योंकि यहाँ का प्रशासन पंगु है ।
सभी लोग आर्मी का धन्यवाद दे रहे हैं । मेरी भी तरफ से आर्मी को हज़ार सलाम । कोई तो है जो हमको बचा लेगा ।
जो चले गए हैं  , उनकी आत्मा को ईश्वर  शांति दे ।
न जायते म्रियते व कदाचित
नायं भूत्वा भविता व न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोयं पुराणों ,
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
राहुल जी आ गए है
राहुल जी आ गए हैं । मम्मी का फ़ोन गया था । बेटा  ! यहाँ उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा आ पड़ी हैं । ये विपक्ष वाले हल्ला मचा रहे हैं कि  तुम कहाँ हो । ऐसा है , अगले साल चुनाव हैं । इनके नेता तो वहाँ पहुँच गए हैं । एक जहाज ले के अपने यात्रियों को अपने स्टेट पहुंचा भी दिया है लेकिन सब कह रहे हैं कि  तुम कहाँ हो । इनको पता नहीं किसने बता दिया है कि  तुम स्पेन में हो । तुम काहे सबको बता कर जाते हो कि  कहाँ जा रहे हो ? अब नुकसान करवा दिया न । अब ऐसा है कि  फ़टाफ़ट कोई सी ट्रेन , या अगर ट्रेन न मिले तो जहाज पकड़ कर आ जाओ । यहाँ मैंने पच्चीस ट्रक रसद संभाल कर रखी  है ताकि तुम आओ तो पहुँचाओ । सात दिन तो हो गए हैं । उधर जो भी जिन्दा बचकर आ रहा है वो आर्मी का तो धन्यवाद कर रहा है लेकिन हमारी सरकार को गाली दे रहा है । अब ऐसे में तुम और गायब हो । जानते नहीं कि  इनका नेता कितना चालाक है । वो वहाँ पहुँच कर कह रहा है कि  उसने वहाँ बहुत लोगों की मदद की । और केदारनाथ को ठीक करने का ठेका मांग रहा था । वो तो हमारे दिग्गी ने कह दिया कि  तुमसे पहले तो हमारे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने दस करोड़ रुपये देकर केदार नाथ के उद्धार के लिए कह दिया था । और अब हम उस चालाक विपक्षी नेता के द्वारा दिए गए २ करोड़ रूपये पर उसकी टाँग  खींच रहे हैं । बड़ा कहता था - गुजरात विकास कर रहा है । अब जब देने की बात आई तो २ करोड़ दिए । गरीब प्रदेश का मालिक । क्या ख़ाक विकास किया है ? खैर , उसको छोडो , रात दिन उसके बारे में ही तो सोचते रहते हैं । नींद हराम कर रखी  है उसने । तुम आ जाओ । नहीं तो लोग तुम्हें भूल जायेंगे । ये राशन वितरित हो जाए तो कुछ सांस में सांस आये । इधर , हमारा खाद्यान्न सुरक्षा बिल ये विपक्ष वाले पास नहीं होने दे रहे हैं और उधर हमारी सरकार के इस प्रदेश में लोग इस तबाही में भूखे मर रहे हैं । कोई पत्ती  चबा रहा है , कोई लकड़ी चूस रहा है , कोई कच्ची मैगी खा रहा है , दो रुपये की चीज पचास में बिक रही है । आठ माह बाद चुनाव हैं , क्या होगा कैसे होगा बताओ । अब तुम आ जाओ । नहीं तो सब गड़बडा  जाएगा । वहाँ हमारी किरकिरी हो रही है । जल्दी आओगे तो कुछ जवाब भी तुम्हें रटने हैं । हर बार तुम्हें मेहनत  करानी पड़ती है और तब जाकर तुम कुछ करते हो । जब निर्भया काण्ड था तब भी तुम उत्तराखंड के प्रशासन की तरह एन मौके पर गायब हो गए थे । जब अन्ना  आये थे तब तुम ग्यारह दिन बाद निकले थे बाहर । तुम्हें सजाने संवारने में हमें कितनी मेहनत  करनी पड़ती है तुम क्या जानो । उनका नेता देखो कैसे फ़टाफ़ट बोल लेता है । अब कुर्ती की बांह तो तुम चढ़ा लेते हो बखूबी , लेकिन यूपी में यह सब काम नहीं आया । अब उत्तराखंड में लोग कुर्ती की बांह चढ़ाए पीड़ित हैं , उनकी कुर्ती की बांह नीचे करो . यहाँ जल्दी आ जाओ । इधर ये मीडिया वाले केदार घाटी तक पहुँच कर बार बार कह रहे हैं कि मैं पहले पहुंचा हमारा चैनल पहले पहुंचा , और चैनल पर लाइन चला रखी  है कि  राहुल गाँधी कहाँ हैं ? वहाँ चैनल्स  में जल्दी पहुँचने की होड़ लगी हैं और इस मौके पर तुम गायब हो । जल्दी नहीं तो कम से कम उत्तराखंड की स्थानीय पुलिस की तरह सातवें दिन तो बाहर निकल आओ बेटा  । जल्दी आ जाओ । बड़ी फजीहत हो रही है । और हाँ लोगों से ये  कह देना कि  मैं स्पेन गया था घूमने । ठीक है । आ  जाओ अब ।

रविवार, 23 जून 2013

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्याति  संयाति नवानि देही  ।।
गीतायां  कथितमस्ति  यत यथा मनुष्यः एकं वस्त्रं त्यक्त्वा अन्यं वस्त्रं गृह्णाति अर्थात धारयति तथैव आत्मा अपि  जीर्णं शरीरं विहाय अन्यं शरीरं धारयति ॥
उत्तराखंडे  प्राकृतिकजलविपदायां यत  दृष्टं , श्रुतं तत्सर्वं दृष्ट्वा श्रुत्वा विचारयामि - आत्मा जीर्णं एव शरीरं त्यक्त्वा नूतनं शरीरं धारयति अथवा नूतनं शरीरं त्यक्त्वा अपि  अन्यं शरीरं अपि  धारयति । यथा जनाः बालाः युवानः युवतयः वृद्धाश्च तत्र समानभावेन जलजाले निमग्नाः  जाताः  तेन तु  प्रतीयते यत आत्मा तु  जीर्णं शरीरं न पश्यति , यस्य शरीरस्य समयः पूर्णः जातः तं शरीरं त्यक्त्वा अपरं शरीरं धारयितुम अनंते ब्रह्मांडे विचरति  तथा एकं शरीरं चिनोति , पुनः पृथिव्याम समायाति । शरीरास्तु तत्र शिशूनाम अपि  आसन ये आत्मना परित्यक्ता ।

शुक्रवार, 21 जून 2013

उत्तराखंड की इस आपदा के समय उत्तराखंड के ७0  विधायक इस समय कहाँ हैं ? या वे भी यह सोचकर चुप बैठे हैं कि  यह तो उस विधायक का क्षेत्र है या यह इस विधायक का क्षेत्र है । जैसे पुलिस अक्सर किसी घटना के समय सोचती है कि  यह उस क्षेत्र की घटना है ? या नेता सोच रहे हैं कि  चलो इससे बहुगुणा सरकार जितना बदनाम हो जाये उतना अच्छा । या हरीश रावत यह सोच रहे हैं कि चलो बहुगुणा बदनाम तो सत्ता हस्तांतरण में आसानी होगी ।

सोमवार, 10 जून 2013

जैसे आत्मा जीर्ण शीर्ण शरीर को त्यागकर नए शरीर को धारण कर लेती है वैसे ही  दल भी अपने पुराने जीर्ण शीर्ण हो चुके नेताओं को त्यागकर नए नेता को चुन लेता है ।
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा । अर्थात तृष्णा जीर्ण नहीं होती हम ही जीर्ण हो जाते हैं । ईश्वर  आडवाणी जी को उनकी तृष्णा की तरह ही जवान रखे ।
शीर्षक और कुछ विचार एक प्रसिद्ध कविता से प्रेरित हैं -
आडवाणी जी के प्रति - एक भाव -

द्रुत झरो जगत के शीर्ण पत्र
कुछ नव कोंपल अब आने दो
हो चुका  तुम्हारा समय धैर्य
अब नया जोश भर जाने दो ।
है सही यही तुम आये थे
जब तम  था तमहर बनकरके
था चला काफिला साथ , किया दल
का उद्धार तारणहार बनके
पर समय मांगता अब कुछ है
उसकी  पूरी हो जाने दो
हैं नयी राह और नया खून
उसको  रग रग भर जाने दो
जो लिखता काल कपाल पे था
वह शांत दांत अब बैठा है
दे गया प्रकाश जो पहले वह
उजियारा अब तक फैला है
तुम भी थे सतत अक्षर नभ में
थी अभिलाषा और आशाएं
हो सकी न पूरी वो अब तक
उनको  पूरी हो जाने दो ।
यह समय चक्र है चलता है
सूर्यास्त से सूर्य निकलता है
एक नए जोश और नयी आस में
फिर दिन नया एक खिलता है
अस्ताचल की गरिमा रख लो
नूतन  संध्या आने दो
हो चुका  समय , है  देर हुई
अब नया सवेरा आने दो ।\



रविवार, 28 अप्रैल 2013

अन्ना  जी ! सादर प्रणाम । आपका पत्र पढ़ा । अच्छा लगा । कोई आप जैसा तो है जिसका धैर्य अभी तक नहीं टूटा है । यह जरूरी भी है । हम जैसे साधारण लोग तो बहुत जल्दी निराश हो जाते हैं । आप के धैर्य की प्रशंसा करता हूँ । आपने उस राहुल गाँधी को पत्र लिखा है जो आपके आन्दोलन में ग्यारह दिन बाद अपने बिल से कुछ बोलने के लिए निकले थे । उन्हें देख कर मुझे लगा था कि  कहीं वे फ़्रांस की उस राजकुमारी की तरह कुछ न कह बैठें जिसने जनता को रोटी न मिलने पर कहा था कि  यदि जनता को रोटी नहीं मिल रही तो वह केक क्यों नहीं खा लेती । खैर , वे आये थे और लोकपाल को संवैधानिक संस्था बनाने की बात कह कर चुप हो गए और फिर संसद में अपना भाषण ऐसे पढ़ गए थे मानो कोई क्रान्ति करने जा रहे हों । यू  पी ए  की यह सरकार बहुत कुछ कर जाती यदि राहुल गाँधी को कुछ करना होता । सच तो यह है कि  अभी तक राहुल गाँधी को वह समझ ही नहीं है जिसकी उम्मीद आप उनसे लगाए बैठे हैं ।
जब आपका आन्दोलन हुआ । लोग आये । संसद ने सर नवाकर आपको मनाया । हमने नया स्वतंत्रता दिवस मनाया । और लोग भी शपथ खाते दिखे कि वे कभी बेईमानी नहीं करेंगे । धीरे धीरे आपके आन्दोलन की आग किस तरह से ठंडी पड़ी आप भी जानते हैं । क्या जिन्होंने शपथ ली उनके ही जीवन में कुछ परिवर्तन आया । अगर आया तो सिर्फ इतना कि  हाँ लोग कह देते हैं कि  अन्ना  जी कहते तो सही हैं । लेकिन मैं बताऊँ ? इनमे से अगर दस प्रतिशत भी सुधर जाते तो भी देश का बहुत कुछ भला हो जाता । लेकिन कुछ नहीं हुआ ।
लोग तो एक दुसरे को देखकर चले आते हैं । कैंडल जलाते हैं । अपने आस पास जताते हैं कि  वे भी बुद्धिजीवी हैं । intellectual  हैं । यह एक fashion  हो  गया है । इस देश में चलो अमेरिका लिखी हुई टी शर्ट पहने व्यक्ति चुपचाप अपनी कार से घर से निकलता है और कहीं भी अपने पोलिथीन का कूड़ा फेंक आता हैं ।
बलात्कार की शिकार एक लड़की जब  दिल्ली की सड़कों पर पुल पर पड़ी थी और लोग उसको देखकर आगे निकल रहे थे मानो वह कोई मुसीबत हो और उसने लिखकर बताया था कि  उसके साथ बलात्कार हुआ है तब भी लोग नहीं चेते और चलते रहे । आधे घंटे बाद किसी भले मानस ने उसकी मदद की शायद उसके प्रेरक आप रहे होंगे । यही समाज कैंडल लेकर निकलने में देर नहीं करता । उनमे कितने ही कैंडल लेकर निकले होंगे । लेकिन जब वक्त आता है तो एक सूक्ति है - सर्वः  स्वार्थं समीहते यानि सभी अपना स्वार्थ देखते हैं । और दूसरी सूक्ति भी है - स्वर्थाभ्रन्शो ही मूर्खता । कोई परोपकारी रहा होगा जिसने क्रमश ये सूक्तियां लिखी होंगी । अपने जीवन का सार । जब परोपकार करते करते थक गया होगा । इसी समाज से नेता निकलते हैं और जब इस स्टार पर संवेदना का यह हाल है तो वहाँ क्या होगा , सोच सकते है । यह समाज कम , भीड़ ज्यादा है जो चली तो आती है लेकिन बहुत जल्दी सब कुछ भूल भी जाती है । रामदेव बाबा पर अत्याचार किसे नहीं पता है । सब जानते हैं । लेकिन ? सब भूल जायेंगे । जब १ अक्टूबर से सीधे अकाउंट में आधार पर पैसा मिलेगा तो सब भूल जायेंगे । सरकार के पास तो घूस देने के लिए पैसा है । टेबलेट भी है । मैं क्या वादा करू । मेरे पास पैसे नहीं हैं । मैं जनता को या भीड़ को क्या समझाऊँ । उसे बिजली पानी तो चाहिए लेकिन यदि कैश मिल जाए तो सौ गुनाह माफ़ । आप लोकपाल की लड़ाई लड़ रहे हैं और सरकार घूस बाँट रही है । चुनाव आयोग को समझ नहीं आता की मेरे और सरकार के अधिकार चुनाव लड़ने के सन्दर्भ में एक जैसे क्यों नहीं होने चाहिए । पर चलिए , समरथ को नहीं दोष  गुसाईं । आप लगे रहें । हम आपके साथ हैं । मन से , कर्म से , वचन से । जब महाभारत में सभी कौरव मर चुके थे तब संजय ने dhritrashtra को कहा - राजन ! आप चिंता न करें । शल्य पांडवों को जीत लेंगे । यदि वहाँ इतनी उम्मीद कौरवों को थी तो यहाँ पांडवों को तो यह उम्मीद होनी ही चाहिए । क्यों /
सधन्यवाद ,

बुधवार, 24 अप्रैल 2013




शमशाद बेगम का जाना और मेरे पिया गए रंगून 


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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

उत्तराखंड के वर्तमान निकाय चुनावों में इंदिरा हृदयेश एवं कुंजवाल की सन्तति के टिकट काटकर राहुल गाँधी ने एक ओर  तो यह संकेत देने की कोशिश की है कि  अब वंशवाद नहीं चलेगा तो दूसरी ओर  उन्होंने स्वयं को प्रधान मंत्री बनने  के झंझट से मुक्त कर लिया है । अब शायद राहुल जी राहुल जी कहकर उनके पीछे लगे रहने वाले चापलूसों की कीमत थोडा कम हो जाए । पी एम् पद और चापलूसों से पिंड छुड़ाने का और सर्वे सर्वा बने रहने यानी किंगमेकर बने रहने का यह एक अच्छा  तरीका साबित होगा । 

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

मंगलमयो भवतु नूतनाब्दः । 
नरेन्द्र मोदी जी को भारतीय नव वर्ष पर बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं , इस आशा के साथ कि  यह नव वरउन्हें गुजरात से राष्ट्रीय पटल पर सर्व प्रमुख की भूमिका देने में पूर्ण सहयोग प्रदान करेगा और देश को एक सक्षम नेतृत्व  प्रदान करने वाला वर्ष सिद्ध होगा । 
सभी फेसबुक मित्रों को भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं इस आशा के साथ कि  हम अपना अतीत भूले बिना उस पर केवल गर्व न करते हुए बल्कि उससे बहुत कुछ सीखते हुए और उसे छोड़े बगैर हर उस नवीनता को अपनाते चलें जो हमारे स्व को क्षति न पहुंचाते हुए पर के लिए भी हितकारी हो ।
सभी ब्लोगी मित्रों को मेरी तरफ से भारतीय नव वर्ष के शुभ पावन पर्व पर इस आशा के साथ हार्दिक शुभ कामनाएं कि  हम सभी अपने अच्छे और पावन अतीत को छोड़े बिना ही उससे बहुत कुछ सीखते हुए उसे साथ लेते हुए सकारात्मक सोच के साथ अपना भविष्य तय करना सुनिश्चित करें । 

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और राहुल गाँधी की मजबूरी


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