सोमवार, 10 जून 2013

शीर्षक और कुछ विचार एक प्रसिद्ध कविता से प्रेरित हैं -
आडवाणी जी के प्रति - एक भाव -

द्रुत झरो जगत के शीर्ण पत्र
कुछ नव कोंपल अब आने दो
हो चुका  तुम्हारा समय धैर्य
अब नया जोश भर जाने दो ।
है सही यही तुम आये थे
जब तम  था तमहर बनकरके
था चला काफिला साथ , किया दल
का उद्धार तारणहार बनके
पर समय मांगता अब कुछ है
उसकी  पूरी हो जाने दो
हैं नयी राह और नया खून
उसको  रग रग भर जाने दो
जो लिखता काल कपाल पे था
वह शांत दांत अब बैठा है
दे गया प्रकाश जो पहले वह
उजियारा अब तक फैला है
तुम भी थे सतत अक्षर नभ में
थी अभिलाषा और आशाएं
हो सकी न पूरी वो अब तक
उनको  पूरी हो जाने दो ।
यह समय चक्र है चलता है
सूर्यास्त से सूर्य निकलता है
एक नए जोश और नयी आस में
फिर दिन नया एक खिलता है
अस्ताचल की गरिमा रख लो
नूतन  संध्या आने दो
हो चुका  समय , है  देर हुई
अब नया सवेरा आने दो ।\



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