मित्रों ! किसी के बढ़ते कद का खौफ क्या होता है यह आप आजकल स्पष्ट महसूस कर सकते हैं । साथ ही सरकारें कितने खौफनाक इरादे रखती हैं और किसी को भी नष्ट करने की योजना किस तरह बनाती हैं इसकी बानगी भी हम देख सकते हैं । जिस तरह से नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में कांग्रेस को चित्त कर रखा है और निरंतर तीन चुनावों में हराया है और यह तब है जब इस व्यक्ति ने वी एच पी , आर एस एस तक की परवाह नहीं की और यहाँ तक कि विगत गुजरात चुनावों में एक वर्ग विशेष के लोगों को चुनावों में टिकट तक नहीं दिया और फिर भी चुनाव भी जीते । यहाँ मई एक वर्ग विशेष के लोगों को टिकट न दिए जाने का पक्षधर नहीं हूँ लेकिन मुझे हैरानी इस बात पर भी है कि इसके बाद भी इस वर्ग विशेष के लोगों का २0 प्रतिशत वोट मोदी के ही हक में गया । क्या इसे वाकई इस व्यक्ति की लोकप्रियता कहा जाय । मै तो कहूँगा , अब रही बात इशरत जहां एनकाउंटर की , यह केश 20 0 ४ का है , आखिर ऐसा क्या है कि ठीक चुनाव से पहले सरकार को इस केश को खोलने की जरूरत पद गयी । क्या सरकार को इशरत जहां को न्याय दिलाने की याद सिर्फ चुनाव के वक़्त आती है ? इतने सालों से सरकार सोई हुई थी । क्या सरकार को सिर्फ चुनाव के समय लगता है कि इशरत जहां को न्याय दिलवाया जाय ? सरकार जिस तरह से काम कर रही है उससे सिर्फ एक शब्द ध्यान आता है कि सामान्य भाषा में इसे ब्लैकमेलिंग कहा जाता है । समाजवादी पार्टी हो या बसपा , ये सभी सरकार की इस ब्लैकमेलिंग प्रक्रिया को बखूबी समझते हैं और इससे घबराते हुए सरकार के समर्थन में यह कह कह कर आगे आते हैं कि नहीं तो साम्प्रदायिक शक्तियां आगे आ जायेंगी । यदि सरकार को इशरत जहां को न्याय दिलाना होता तो अब तक न्याय दिला भी दिया गया होता चाहे इशरत आतंकवादी साबित होती या निर्दोष , लेकिन सरकार की मंशा ऐसे मुद्दों से किसी को न्याय दिलाने की नहीं दिखती बल्कि उसे डराने धमकाने में ही सरकार इन चीजों का लम्बे समय से इस्तेमाल कर रही है । डी एम् के ने जैसे ही आँख दिखाई थी वैसे ही अगले दिन डी एम् के के यहाँ सी बी आई का छापा पड़ गया था । इसलिए सरकार निश्चित तौर पर घबराई है और चाहती है कि चार्जशीट में मोदी का और अमित शाह का नाम डालकर इन्हें फंसाया जाय ताकि चुनाव की नैया पार लग सके। अमित शाह को बेहतर चुनावी मैनेजमेंट के लिए जाना जाता है और मोदी को बेहतर प्रशासन के लिए । जयराम रमेश तक पिछले दिनों मोदी की प्रशंसा कर चुके हैं और इसी प्रशंसा से चिढ़कर सत्यव्रत चतुर्वेदी ने यह तक कह दिया था कि जयराम रमेश को भाजपा ज्वाइन कर लेनी चाहिए । अब यह कांग्रेस की परेशानी है कि उसके ही मंत्री कई बार मोदी की प्रशंसा कर चुके हैं । अब यह तय है कि कांग्रेस को लगता है कि यदि मोदी सत्तासीन हो गए तो हो सकता है कि कांग्रेस के लिए वर्षों तक सत्ता में लौटना ही कही मुश्किल न हो जाए । मोदी का काम आसान हो जाता यदि बी जे पी के बुजुर्ग और मोदी विरोधी लोग मोदी की राह का काँटा नहीं बनते । मोदी के लिए बाहरी चुनौतियां ही नहीं हैं बल्कि अन्दर भी ऐसे शत्रु खड़े हैं जिनकी आँख में मोदी कांटे की तरह चुभते हैं । देखते हैं , मोदी से कांग्रेस और मोदी विरोधी कैसे निपटते हैं और मोदी कैसे इनसे निपटते हैं । तब तक नमो नमः । रही बात मोदी के मुख्यमंत्री से हटने की , तो यदि नमो नमः सफल रहा तो मोदी स्वयं ही २ 0 १ ४ में यह कुर्सी छोड़ देंगे , कांग्रेस के लिए नहीं , अपने उत्तराधिकारी के लिए ।
शुक्रवार, 28 जून 2013
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