सॉरी रवीश जी ! भाषा व्याकरण को कपडे पहनाता है आपने व्याकरण को भाषा का चीर हरण कहा है भाषा को जब व्याकरण के कपडे पहनाये जाते हैं तो वह हमेशा मर्यादित रहती है और मनुष्य का जीवन भी मर्यादित रहता है आज देश में जिस भाषा का बोलबाला है उसका अपना व्यवस्थित व्याकरण नहीं है इसलिए देश में मर्यादाएं भी नहीं हैं but बट और put पुट की तरह नेताओं के अतार्किक बयान हो गए हैं
इस देश में कभी संस्कृत बोली जाती थी तो मर्यादाएं भी थी आप कहेंगे कि उस समय ऐसा होता था वैसा होता था कुछ लोगों को पढने की आजादी ही नहीं थी तो ऐसे तो द्रोणाचार्य ने भी कभी अपने पुत्र अश्वत्थामा को अपात्र होने के कारण ब्रह्मास्त्र विद्या नहीं सिखाई थी हालांकि पुत्र मोह में वे चुपचाप थोडा सा आधा अधूरा सिखा गए थे जिसका कुपरिणाम भी देखने में आया , खैर , इस पर अलग से बड़ी बहस की गुंजाइश है , फिर कभी , नमस्कार
इस देश में कभी संस्कृत बोली जाती थी तो मर्यादाएं भी थी आप कहेंगे कि उस समय ऐसा होता था वैसा होता था कुछ लोगों को पढने की आजादी ही नहीं थी तो ऐसे तो द्रोणाचार्य ने भी कभी अपने पुत्र अश्वत्थामा को अपात्र होने के कारण ब्रह्मास्त्र विद्या नहीं सिखाई थी हालांकि पुत्र मोह में वे चुपचाप थोडा सा आधा अधूरा सिखा गए थे जिसका कुपरिणाम भी देखने में आया , खैर , इस पर अलग से बड़ी बहस की गुंजाइश है , फिर कभी , नमस्कार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें