सांप सूंघ गया है नमो नमो को ।
पिछले कई माह से जो नमो नमो चल रहा था उसे अब सांप सूंघ गया है । कितने ही दिनों से बीजेपी और इसके नेता नमो मंत्र का जाप कर रहे थे , टीवी पर मोदी मोदी था। अब सब बदल गया है और बीजेपी को डर लग गया है। मुझे लगता है कि जैसे बीजेपी मोदी को ब्रांड बनाकर उनके विकास को बेच रही थी । उन्हें विकास पुरुष कह रही थी । मोदी का विकास माडल चल निकला था । सब विकास माडल की , गुजरात के विकास की मार्केटिंग कर रहे थे , अब अरविन्द का ईमानदारी माडल चल निकला है। अरविन्द केजरीवाल ने अपनी ईमानदारी की सही मार्केटिंग की है । और पिछले दो साल से उन्हें एक ऐसा प्लेटफार्म मिला है जिसे उन्होंने भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है । हालाँकि यदि यह देखा जाय कि दिल्ली में क्या हुआ तो वहाँ पर यदि विजय गोयल ही बीजेपी के चीफ मिनिस्टर कैंडिडेट रहते और मोदी न आते तो बीजेपी भी कांग्रेस की तरह दस बीस सीट्स पर सिमट चुकी होती । और अरविन्द पचास सीट्स ले गए होते । लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि मोदी आड़े आ गए यानि मोदी ने अरविन्द को रोका दिल्ली में , न कि अरविन्द ने मोदी को । खैर , अब अरविन्द केजरीवाल मॉडल मिला है । दिल्ली अधिकाधिक जनसँख्या घनत्व वाला क्षेत्र है और दूसरी सोच के साथ जी रहा है इसलिए आसान था , राष्ट्रीय नीति की जरूरत नहीं थी लेकिन लोकसभा में बहुत जल्दी बहुत कुछ पा जाने की आकांक्षा कुछ ज्यादा ही जल्दी है । दिल्ली संभाल लें और मॉडल पेश करें तो बात जमेगी , कितने अरविन्द केजरीवाल मिल पाएंगे ? शीला ने कम विकास नहीं किया था लेकिन दिल्ली सुरसा के मुह की तरह बढ़ रही है इसलिए समस्याएँ घटेंगी नहीं बढ़ेंगी ही । देखना होगा कि क्या क्या गुल खिलाती हैं आप ।
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां ,वाया रायवाला , देहरादून
पिछले कई माह से जो नमो नमो चल रहा था उसे अब सांप सूंघ गया है । कितने ही दिनों से बीजेपी और इसके नेता नमो मंत्र का जाप कर रहे थे , टीवी पर मोदी मोदी था। अब सब बदल गया है और बीजेपी को डर लग गया है। मुझे लगता है कि जैसे बीजेपी मोदी को ब्रांड बनाकर उनके विकास को बेच रही थी । उन्हें विकास पुरुष कह रही थी । मोदी का विकास माडल चल निकला था । सब विकास माडल की , गुजरात के विकास की मार्केटिंग कर रहे थे , अब अरविन्द का ईमानदारी माडल चल निकला है। अरविन्द केजरीवाल ने अपनी ईमानदारी की सही मार्केटिंग की है । और पिछले दो साल से उन्हें एक ऐसा प्लेटफार्म मिला है जिसे उन्होंने भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है । हालाँकि यदि यह देखा जाय कि दिल्ली में क्या हुआ तो वहाँ पर यदि विजय गोयल ही बीजेपी के चीफ मिनिस्टर कैंडिडेट रहते और मोदी न आते तो बीजेपी भी कांग्रेस की तरह दस बीस सीट्स पर सिमट चुकी होती । और अरविन्द पचास सीट्स ले गए होते । लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि मोदी आड़े आ गए यानि मोदी ने अरविन्द को रोका दिल्ली में , न कि अरविन्द ने मोदी को । खैर , अब अरविन्द केजरीवाल मॉडल मिला है । दिल्ली अधिकाधिक जनसँख्या घनत्व वाला क्षेत्र है और दूसरी सोच के साथ जी रहा है इसलिए आसान था , राष्ट्रीय नीति की जरूरत नहीं थी लेकिन लोकसभा में बहुत जल्दी बहुत कुछ पा जाने की आकांक्षा कुछ ज्यादा ही जल्दी है । दिल्ली संभाल लें और मॉडल पेश करें तो बात जमेगी , कितने अरविन्द केजरीवाल मिल पाएंगे ? शीला ने कम विकास नहीं किया था लेकिन दिल्ली सुरसा के मुह की तरह बढ़ रही है इसलिए समस्याएँ घटेंगी नहीं बढ़ेंगी ही । देखना होगा कि क्या क्या गुल खिलाती हैं आप ।
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां ,वाया रायवाला , देहरादून
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें