डर। डर और खौफ में से ज्यादा डर किससे लगता है ? खौफ से। क्योंकि डर में अल्पप्राण अक्षर हैं। खौफ में महाप्राण अक्षर। जिसमें ज्यादा प्राण वाले अक्षर हों तो ज्यादा डर स्वाभाविक है। वर्ग के तीसरे पहले पांचवे अक्षर अल्पप्राण कहे जाते हैं और चौथा और दूसरा महाप्राण। ख और फ। दोनों दूसरे अक्षर हैं। महाप्राण हैं और इन सबसे ज्यादा बेचारा शब्द है - दुःख। एक अक्षर अल्पप्राण और दूसरा महाप्राण फिर अल्पप्राण वाला स जो विसर्ग में बदल गया है सिमट कर। तो अब उत्तराखंड में डर है अभी भी और दिल्ली में खौफ तैरने लगा है। मुंबई ? बेचारगी की तरफ बढ़ चला है। दुःख होने लगा है।
जब कोरोना चीन में था तब ? हंसी थी और दुःख भी था। लोग मजाक भी कर लेते थे। चीन से तो नहीं आया है ? बस में सीट चाहिए ? कह दो चीन से आया हूँ। लोग भाग जाएंगे सीट मिल जायेगी।अब सीट ही सीट है। बैठने वाले गायब हैं।
फिर अपने यहां आया। शुरुआत में लोगों को मास्क लगाते देखा। लगा - ओह भाई साहब कुछ ज्यादा ही जागरूक हैं। अब अपने भी मास्क है।
संख्या बढ़ी। और फिर तब्लीगी। डर लगना शुरू हो चुका था। और फिर पुलिस डॉक्टर पर पत्थर हमले। गुस्से के साथ डर। फिर एक दिन दिल्ली बस अड्डे पर अफवाह और हज़ारों लोग एकत्रित। और फिर डर। ज्यादा डर। ये लोग कोरोना फैलाएंगे। और एक दिन मुंबई में भीड़। और फिर डर ने धीरे धीरे खौफ की शक्ल लेना शुरू किया। उत्तराखंड में डर सिमटने वाला है कि खौफ की शक्ल में लोग आने शुरू हुए और डर ने अपना वजूद पसारना शुरू किया है। पर जनसँख्या घनत्व कम है। यह डर यहाँ भी सिमट ही जायेगा। पर दिल्ली की क्या होगा ? और मुंबई ? खौफ में सिमटे हुए। सोचिये ? जब सब खुल गया हो। बारिश शुरू हो गयी हो। अब यह तो हो नहीं सकता कि आषाढ़ के पहले दिन की बारिश की मिट्टी वाली खुशबु सब समेत ले। उम्मीद का क्या ? कहीं से भी लगा लो ? सर्दी से और गर्मी से निपट चुका है कोरोना। लगा था कि गर्मी में पिघल जाएगा। मगर पिघलकर फ़ैल गया और मरा भी नहीं। तो क्या बारिश बहा ले जाएगी ? और बहा बहाकर एक जगह से दूसरी जगह ले गयी तो ? क्या होगा ? कैसे होगा ? शुरू शुरू में बिजली आई होगी तो मीटर नहीं लगे होंगे अब कोरोना मीटर लग गया है। बिल भरने को तैयार। भारत और उसकी सरकार। पहले लोग दूसरे देशों की ओर देखकर डरते थे। आज इतने। आज इतने। हे राम। क्या होगा ? अब ? आदत हो गयी है। मीटर देख लो। पता चल जायेगा। दर ख़त्म। जहाँ है वहां हो। दिल्ली में खौफ है। मुंबई में ठाकरे परिवार की उद्धव कृष्ण के उद्धव की याद दिलाते हैं जिनकी हालत गोपियों ने पतली कर दी थी। मगर इनकी हालत कोरोना ने पतली कर दी है। कोरोना योग तो नहीं सुनता जो कृष्ण के उद्धव गोपियों को सुनाने गए थे मगर से डरता तो होगा। योग गोपियों का इलाज तो नहीं कर पाया क्योंकि उन्होंने उसे सुना ही नहीं। मगर यह योग कोरोना से लड़ने में मदद तो जरूर करेगा। इसलिए योग करिये। सबसे बड़े योगी भी तो कृष्ण ही हैं। कर्मयोगी। कर्म भी करिये और योग भी। गीता में डर भी तो कृष्ण ही भगाते हैं। न। न जायते म्रियते वा कदाचित ---- वगैरह वगैरह। और आजकल तो सब कोरोना योद्धा हो रहे हैं। जातस्य ही ध्रुवो मृत्युः ध्रुवं जन्म मृतस्य च। पैदा होने वाले की मृत्यु निश्चित और मरने वाले का जन्म निश्चित। तो फिर डर काहे। वैसे भी - कृष्ण ने कहा - हतो वा प्राप्स्यसे स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम। मरकर स्वर्ग पाओगे जीकर धरती भोगोगे। समझ न आये तो सोमैया तारा वालों से पूछ लेना - बहत्तर हूर वाले। उनकी आस्था तो ज्यादा है न। अपनी कम भी हो तो ? फिर भी डर ? खौफ ? क्यों ? हमारा सबसे बड़ा साथी तो है न ? अमेरिका। सबसे बड़ा हाथी। संतोष की दवा। मोदी ट्रम्प की दोस्ती। रंग नहीं लाएगी ? ट्रम्प का सब ट्रम्प कार्ड फेल होता दिख रहा है। हाउडी मोदी पर सब पानी फिर गया है। ट्रम्प का डर कभी उनसे किसी को follow कराता है कभी unfollow . तो दुःख तो है दिल्ली मुंबई पर। देश की राजधानी और आर्थिक राजधानी हैं । सरकार कोई और है तो क्या ? है तो अपनी। देश तो देश है। एक दुःख बहुतों को है। सोचा था।जब कोरोना चला जायेगा तब मोदी मोदी करेंगे। पर अब ?
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