शुक्रवार, 12 जून 2020

कुछ चीजें hypothetical होती हैं। काल्पनिक। कल्पना का क्या है ?  कुछ भी कर लो। क्या जाता है। आकाश कुसुम की तरह है। पर मजा कम नहीं है कल्पना में। सोचो। कोरोना कण्ट्रोल हो गया होता।  मोदी मोदी मोदी। मगर हुआ तो नहीं। अब मोदी मोदी नहीं। पर तलाश जारी है। 
तीन लॉक डाउन का फेलियर। और आज तीन लाख से ज्यादा मरीज। 
एक दिन सोचा।  कहाँ हुई गलती। तब्लीगी प्रकरण के प्रकाश में आने के बाद अगर तुरंत  भविष्य के संकट को देखते हुए सरकार  ने लोगों को डिस्टेंट क्योर के साथ घर भेजना शुरू कर दिया होता तो ? अगर पहला लॉक डाउन शुरू ख़त्म होते और दूसरा शुरू होते ही सरकार ने ऐसा करना शुरू कर दिया होता तो ? क्या होता  ? क्या इतने केस बढ़ते ? नहीं न। कैसे बढ़ते ? लोग गांव में पहुँच जाते।  डिस्टेंस क्योर आसान हो जाता। धारावी जैसी जगहें जहाँ जनसंख्या घनत्व बहुत ज्यादा है वहां जनसंख्या घनत्व कम हो जाता। मगर ऐसा न किया। देर से भेजा। उत्तराखंड में ही 91 पर सिमट गया था दायरा। मगर अब १६०० के पार। ऐसे ही देश में। 
मगर ये जो लोग हैं ये कहीं भी होते तो कोरोना फैलता ही।
अब सोचिये। यदि मोदी जी ने इन्हें पहले ही डिस्टेंस क्योर के साथ भेज ही दिया होता तो ? और अगर तब कोरोना फ़ैल जाता तो ? 
कोई सुनवाई होती क्या ? कोई नहीं। अरे , मोदी जी की ऐतिहासिक गलती।  जब सारी  दुनिया लॉक डाउन में थी। जब सब घर बैठे थे तब मोदी जी लोगों को घर भेज रहे थे। यदि इन्हें उस समय घर न भेजा होता तो यह कोरोना न फैलता। देश की जीडीपी न गिरती। मगर लोगों को घर भेजकर जीडीपी ही गिरा दी और कोरोना को फैलाया सो अलग। क्यों ? 
विपक्ष क्या करता। इस्तीफे की मांग। इस्तीफ़ा दो। बड़ी मुश्किल से उसे एक सही मुद्दा मिलता।  इस्तीफे का। लोग कोसते सो अलग।  पर अब। मोदी जी थोड़ी दया किया करें विपक्ष पर। कोई तो सही मुद्दा दें जिस पर वह आपके इस्तीफे की सही मांग कर सके। 

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