सोमवार, 15 जून 2020

सुशांत। शांत से भी अधिक शांत। अच्छा शांत। उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को लतियाने वाले बॉलीवुड को अमिताभ बच्चन ने यूपी वालों की तरफ से जो थप्पड़ मारा है उससे आहत वे लोग आज भी अमिताभ के उस ओरा से लड़ने के लिए एक हकले का सहारा लेकर गुजरा कर रहे हैं और करते रहेंगे। उस क्रम में तुम दूसरे हो सकते थे मगर तब के और अब के समय के फर्क और बढ़ते दबाव में दब गए तुम । तुम्हें हँसते देखा तो देखा हँसते हँसते अपने मुंह पर हाथ रख लेने का तुम्हारा वह संकोच तुमसे तुम्हारी बात औरों तक नहीं कहलवा पाया। तुमने थोड़ा सहारा लिया होता अपने नाम  सिंह का या राजपूत का। मगर तुम ऐसे कैसे अपने नाम के पहले ही अक्षर के सहारे उस जंगल में घुस गए जहां हर तरफ  हर कोई गॉड फादर की तलाश में रहता है या गॉड फादर बनकर शिकार की तलाश में रहता है। तुम्हारा अंतर्मुखी होना , अच्छा होना शांत कर गया तुम्हें हमेशा के लिए। शायद तुम बॉलीवुड के गैंगवार के हिस्सा  ही नहीं बन पाए और बड़ी आसानी से काल के मुँह में तब चले गए जब अपनी पिछली फिल्म छिछोरा में तुम आत्महत्या न करने का ही सन्देश लेकर गए थे। शायद उस फिल्म में उस उम्र में बाप का अभिनय करना भी तुम्हें अवसाद में धकेल गया होगा जब तुम्हारी शादी तक अभी नहीं हुई और तुम एक बूढ़ा बाप बनकर फिल्म में आ गए। एक tag  लगने का भय लगा होगा कि कहीं एक टाइप्ड में न सिमट जाऊं। और फिर आजकल का एकांत और खा गया होगा। चांदनी में नहाने की आदत पड़ जाये तो अँधेरा कितना सालता होगा , यह आसान है समझना। और फिर तुम अच्छी  तरह शांत हो गए।  सुशांत। तुम्हारे ट्विटर अकाउंट पर अवसाद ग्रस्त विल्सन की पेंटिंग का होना तुम्हारे तथाकथित समझने वालों को न समझा पाया कि तुम किस दौर से गुजर रहे हो। विल्सन ने 1990 में अवसाद अवस्था में ही खुद को गोली मार की थी। तुमने उस अवसादी को ही अपना आदर्श मान लिया और चले गए। पूरी तरह से शांत। सुशांत। श्रद्धांजलि। 

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