- तो ? करीब दो साल पहले sprinter हिमा दास ने जब iiaf world u20 championship में गोल्ड जीता था तब यह उम्मीद कतई किसी को नहीं थी कि वह स्वर्ण जीत लेगी। लेकिन यह ख़ुशी कई दिन तक बरकरार रही।
- वह रेस अद्भुत थी और एक झटके में बहुत कुछ बदल गया था।कई फ़िल्में भी बनीं हैं जो रेस 1 , रेस 2 और रेस 3 के टाइटल से आयीं और रियल लाइफ नहीं बल्कि रील लाइफ का हिस्सा बनीं।
- तो ? रियल लाइफ की रेस क्या है ? वह जो जिंदगी में हम पैसा या मान प्रतिष्ठा कमाने के लिए करते हैं या कुछ और। यदि पैसा और मान सम्मान ही रेस है तो फिर आजकल यह क्या है ? जिंदगी बचाने की रेस ?
- कई दिनों से देख रहा हूँ और नोट कर रहा हूँ एक एक रिकॉर्ड उन दो धावकों का जिनमें एक जिंदगी लील जाने को आतुर है और दूसरा जिंदगी बचाने को आतुर। योद्धा तो कितनों को कह दो। क्या फर्क पड़ता है। बच्चों को मन बहलाने के लिए कह देना कि तू तो सबसे बड़ा शेर है। असली आदमखोर शेर तो कोरोना ही है न। और उससे लड़ने को और उसे उसकी ही मौत मारने के लिए तैयार डॉक्टर और नर्सेज।
- आज तो इन्हीं दोनों के बीच रेस है। एक लील जाना चाहता है और दूसरा दिन रात लगा है उन्हें बचाने को जिन पर कोरोना की निगाह है। और जानते हैं कौन जीत के करीब है ? बचाने वाला। पचास प्रतिशत पर पहुँच जाता अगर 48 घंटे में थोड़ा गड़बड़ न हुई होती तो। सैंतालीस के पार तो अभी हैं ही। और इन्तजार है कि 47 से ज्यादा की रिकवरी देने वाले हमारे कोरोना योद्धा डॉक्टर , नर्सेज और स्वास्थ्यकर्मी और पुलिस , उस लाइन के पास खड़े हैं जिस पचास प्रतिशत के पार निकलते ही हमारी जीत तय है। जैसे ही हमारा रिकवरी रेट 50 प्रतिशत पर पहुंचेगा और इसे पार करेगा , समझ लें कि जीत की शुरुआत हो गयी है। रियल लाइफ की जीत। हमारे डॉक्टर्स की जीत जो कोरोना योद्धा से भी बड़ा दर्जा पहले ही पा चुके हैं वह भी भगवान् का। भले ही शैतान ने उन पर पत्थर बोतल बम लाठी कुछ भी फेंके पर वह डटे रहे और शैतान का इलाज करने से भी उन्होंने कोई गुरेज नहीं किया। और अब बीच की इस लकीर के एक तरफ कबड्डी की उस नंबर दिलाने वाली लकीर को छूने की तरह बिलकुल पास खड़े होकर हम जीत का जश्न मना सकते हैं जब हमारे रिकवरी रेट को हम 50 प्रतिशत से ज्यादा होता देखें और मान कर चलें कि हम जीत जाएंगे। उनको प्रोत्साहित करने के लिए किये गए प्रयासों को , उनके लिए बजायी गई ताली थाली शंख , जलाये गए दिये , मोमबत्ती और बरसाए गए फूल भले ही आपको खटके हों पर इससे उनकी हिम्मत तो बंधी होगी वरना बिना प्रोत्साहन के हारने वाले , बीच में ही काम छोड़ देने वाले कितने ही लोग थक भी तो जाते हैं। पर हमारे डॉक्टर्स को रिकवरी में 50 प्रतिशत पर पहुँचते देख और इस लाइन को पार करने की प्रतीक्षा ख़ुशी दे रही है और यह इंतजार सुखद है और यह संतोष नहीं हक़ीकत में बदलता एक स्वप्न है जिसे हम जल्दी फलता देखेंगे। थोड़ा दुःख है तो यह कि वे छह हज़ार भी हमारे बीच होते जो आज नहीं हैं। उनके लिए विनम्र श्रद्धांजलि।
बुधवार, 3 जून 2020
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