मंगलवार, 13 अगस्त 2013

धर्म के नाम पर उ प्र चुनाव में आरक्षण की बात  करने वाली कांग्रेस धर्म निरपेक्ष कैसे ?
ओसामा को ओसामा जी कहकर मुस्लिम को बदनाम करने वाले दिग्विजय धर्म निरपेक्ष कैसे ?

रविवार, 11 अगस्त 2013

नरेन्द्र मोदी को लेकर २००२ में अटल जी ने कहा था कि  मोदी राज धर्म निभाएं । विपक्षियों ने इस बयान को पकड़ कर हंगामा कर रखा है कि  मोदी को अटल जी ने ऐसा कहा था । अरे भैया ! यह तो उस शासक ने सही ही कहा था कि  किसी भी मुख्यमंत्री को राज धर्म ही निभाना चाहिए इसलिए और अपने स्वच्छ शासन के लिए अटल जी जाने जाते हैं लेकिन क्या होगा देश की जनता का जिसने उन्हें दोबारा चुना  ही नहीं । करें क्या ? क्या किसी और pm  ने कभी किसी को राज धर्म निभाने की सलाह देने की हिम्मत दिखाई है ? क्या ८४ के सिख दंगों जो दिल्ली में हुए थे उस सम्बन्ध में आज तक किसी कांग्रेसी नेता या मंत्री ने कुछ कहा है कि  तत्कालीन सरकार ने राजधर्म नहीं निभाया बल्कि राजीव गाँधी ने कह दिया था कि  जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो थोड़ी बहुत मिटटी हिलती है । वाह , सिख संख्या में कम हैं इसलिए वोट कम हैं इसलिए आज तक सज्जन कुमार और टाइटलर  पर आजतक कोई कार्य वही नहीं हुई , लोग गवाह हैं लेकिन ३० साल हो गए कुछ नहीं , गुजरात में १० केस में से ७ में कार्यवाही हो चुकी , २ में हो रही है और १ लंबित है तो भी हाय तौबा ? खेकरा  को ससपेंड करने में क्या सोनिया या मनमोहन ने कोई राजधर्म निभाने की सलाह हरियाणा सरकार को दी है , सपा को राज धर्म क्यों नहीं सिखाया जाता जिसके राज में गुंडा गर्दी और लेपटॉप  बाटने के सिवाय कुछ नहीं रह गया है ।
क्या टोपी पहनने को लेकर कांग्रेस या सपा या बी एस पी जैसे दल मात्र राजनीति नहीं कर रहे ? अब तक नरेन्द्र मोदी पर टोपी न पहनने को लेकर निशाने साधे जाते रहे और दो दिन पहले शिवराज चौहान ने टोपी पहन ली तो कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि  टोपी पहनने से कोई धर्म निरपेक्ष नहीं हो जाता । क्योंकि इस बार टोपी शिवराज ने पहन ली थी । उनसे पूछा गया था कि  शिवराज और मोदी में से कौन धर्म निरपेक्ष है और कौन सांप्रदायिक ? तो साहब परेशान हो गए थे । किसे सांप्रदायिक कहें और किसे धर्मनिरपेक्ष ? तो कह डाला  कि  टोपी पहनने से कोई धर्म निरपेक्ष नहीं हो जाता । यानि एक बार फिर से मुसलमानों को टोपी पहना दी कांग्रेस के इस नेता ने ।यानि मामला कुल मिलकर बेवकूफ बनाने का है जैसा कि  तथाकथित धर्म निरपेक्ष पार्टियाँ वर्षों से बेवकूफ बनाती आ रही हैं । सोचिये , क्या कोई धर्म निरपेक्ष नेता धर्म के आधार पर कोई सुविधा देने की कोई बात कर सकता है ? या उसको ऐसा करना चाहिए ? नहीं , लेकिन ये तमाम तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता धर्म के आधार पर मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने की बात निरंतर करते आ रहे हैं । क्या यही धर्म निरपेक्षता है ? हैरानी होती है इस सोच पर और उन लोगों पर भी जो इस प्रवृति को समझ तक नहीं पाते । सच कहूं तो यह तो वास्तव में टोपी और मुसलमानों का मज़ाक उड़ाया जा रहा है और वे समझ नहीं रहे । जो नीतीश अपने को धर्म निरपेक्ष कहते फिर रहे हैं वे ईद पर टोपी पहन कर बधाइयां देते रहे और उधर चार जवान जो कश्मीर में मारे गए उनके लिए नीतीश के पास समय ही नहीं था । यह कौन सी धर्म निरपेक्षता है ? किसे बेवकूफ बनाया जा रहा है ? सोचिये और सोचिये साथ ही समझने की भी बहुत जरूरत है ।

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

 बंधुओं कुछ दिन से लिखना छूट गया था आज फिर से शुरू कर  रहा हूँ
कल ०८ अगस्त की रात तारिक अजीम साहब जो  नवाज शरीफ सरकार के खासम खास हैं और इंडिया टीवी पर दीपक चौरसिया की बहस की क्लास में फ़ोन लाइन पर मौजूद थे । इस बहस को आपमें से बहुत लोगों ने सुना होगा । बात जब पाक द्वारा भारत के सैनिकों को पाकिस्तान के सैनिकों द्वारा मारे जाने की आई तो जैसा की अंदेशा था वही हुआ और उन्होंने भी हमारे महान रक्षा मंत्री एंटनी महोदय के बदले हुए बयान की बात उठाकर हमारे मुख पर तमाचा सा मार दिया । कहा कि  आपके ही मंत्री ने पहले बताया कि  कुछ लोग पाक आर्मी की ड्रेस पहन कर आये और बाद में उन्होंने दबाव में वह बयान बदला ।
इस बात का हमारे पास कोई जवाब नहीं है क्योंकि जब बेवकूफी करेंगे तो मात भी खायेंगे ।
खैर , आगे , उन्होंने कह दिया कि  हाफिज सईद के जैसे भाषण पाक में हैं और नरेन्द्र मोदी के भाषण भी वैसे ही हिंदुस्तान में हैं । यानि कुल मिलाकर उन्होंने नरेन्द्र मोदी और हाफिज सईद  को एक ही कटघरे में खड़ा कर दिया जिस के बाद जब कांग्रेस के प्रवक्ता मीम अफजल साहब से भी दीपक चौरसिया ने यह पूछा  कि  आप क्या कहेंगे हाफिज सईद  और नरेन्द्र मोदी के बारे में तारिक अजीज साहब द्वारा दिए गए बयान के बारे में ? तो साहब का कहना था कि  मोदी को तो अमेरिका ने वीजा ही नहीं दिया है और मैं कोई नरेन्द्र मोदी को डिफेंड करने के लिए इस बहस में नहीं आया हूँ । इसके बाद जब नलिन कोहली ने कहा कि  पाक को भारत के मुसलमानो की चिंता नहीं करनी चाहिए , यहाँ के मुसलमान बहुत सुरक्षित है और सही है तो मीम अफजल साहब को यह लगा कि  ये लोग तो मुसलमानों की प्रशंसा कर के मुस्लिम मत न ले जाएँ इसलिए वे बोले कि  आप भारत के मुसलमानों को पाक के मुसलामानों के सामान साबित करने की साजिश कर रहे हैं  ।
मीम अफजल साहब के इस बयान के बाद बहुत हंगामाँ हुआ टीवी पर और अंततः बहस खत्म हो गयी ।
 बिहार सरकार के एक मंत्री द्वारा सैनिकों को यह कहना कि  वे तो शहादत के लिए ही सेना में भर्ती  होते हैं  और पत्रकार से उसके माता पिता के वहाँ न  जाने पर सवाल खड़े करना व बाद में माफ़ी माँगना यह साबित करता है कि  भले ही माफ़ी मांग ली हो लेकिन यदि यह व्यक्ति पद पर बना रहता है तो ऐसी मानसिकता वाला व्यक्ति सरकार में रहेगा । और यदि यह बर्खास्त नहीं होता तो यह सरकार की भी मानसिकता को दर्शायेगा । माफ़ी से नेता की मानसिकता तो नहीं बदलेगी , वह तो जाहिर है इसलिए इससे मंत्री के पाप नहीं धुल जाते । उसका और उस जैसों का सत्ता में बने रहना ही खतरा है इस देश के लिए , वहाँ की राज्य सरकार के लिए , देश की फौज का अपमान है यह । इसलिए माफ़ी कुछ नहीं है , यह तो पद से तुरंत हटाये जाने का मामला है । यदि नीतीश नहीं हटाते तो समझिये कि  वे भी उस बयान के साथ हैं और दिखावे के लिए ही नेता मंत्री को फटकार लगाई है । 

बुधवार, 7 अगस्त 2013

जब पाकिस्तान हमारे सैनिकों को मार रहा है और हमारे रक्षामंत्री पाकिस्तान की तरफ से बयान देते फिर रहे हैं यानि जो बचाव शायद पाकिस्तान करता कि  उसकी वर्दी पहन कर कुछ लोग इंडियन आर्मी के सैनिकों को मारने गए होंगे वह हमारे ही रक्षामंत्री कह रहे हैं मानो पाक में बैठे हों । ऐसे में जब शेर की दहाड़ की जरूरत हो और हमारे मन मोहन मौन हों तो फिर क्या किया जा सकता है सिर्फ इस बात के कि  हम इन्तजार करें कि  हिंदुस्तान की गद्दी पर गुजरात का वह शेर बैठे जिसके चलने भर से लोंगो को शेर की याद आ जाती है , जिसके कुछ बोलने भर से गीदड़ों की पार्टियों के लोग हुआं  हुआं  करने लगते हैं , जिसके  किसी को रमजान की बधाई देने से प्रतिद्वंदी इकट्ठे हो जाते हैं , जिसकी प्रशंसा करने मात्र से विरोधी अपने सदस्यों पर बिफर जाते हों जिसकी ताजपोशी की बात सोचने मात्र से विरोधियों को पसीने आ जाते हों । जिसके एक एक शब्द पर बोलने के लिए पार्टियों ने अपने अलग से प्रवक्ता तय कर रखे हों मात्र उसकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए । उसकी ताजपोशी का हमें इन्तजार है ताकि पाक को यह पता चल सके कि  भारत में उसको जवाब देने के लिए शेरों  की कमी नहीं है क्योंकि भय बिन होत  न प्रीती ।

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

 भाटी  का लोकतंत्र और मुस्लिमों की किस्मत
इस देश में हिन्दुओं को बहुत समय से धर्मनिरपेक्षता की अफीम सुंघाई जा रही है और मुसलमानो. को कट्टरपंथी की तरह प्रस्तुत किये जाने की परंपरा सी चल पड़ी सी दिखती है । ऐसा वर्षों से होता रहा है । गौतम बुद्ध नगर की निलंबित और चर्चित एस डी एम् दुर्गा शक्ति नागपाल द्वारा नोएडा में मंदिर का गिराया जाना व वहां के हिन्दुओं की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न आना एक प्रकार से इसी सुंघाई गई अफीम जैसी धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है किन्तु वहीँ प्राप्त समाचारों के अनुसार नरेन्द्र भाटी  द्वारा षड्यंत्रपूर्वक एक मस्जिद की नींव सरकारी जमीन पर रखते  हुए साजिशन दीवार गिराए जाने व उसके तथाकथित दंडस्वरूप दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित किये जाने के इस मामले में कुल मिलाकर मुसलमान बदनाम और कट्टर साबित किया गया है ।

रविवार, 4 अगस्त 2013

अमर उजाला - 05 /08 /13  ऋषिकेश संस्करण , अंतिम पृष्ठ की खबर -
दुबई में एक भारतीय को मात्र इसलिए वहां की मेट्रो ट्रेन में नहीं चढ़ने दिया गया क्योंकि उस भारतीय व्यक्ति ने धोती पहन रखी थी उन्होंने कहा कि  यह ड्रेस पहनकर मेट्रो में चलने की अनुमति नहीं है
मेरा सवाल - कृपया देश के सेक्युलर नेता दो शब्द कहें

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

 अम्बेडकर  ने पूना पैक्ट के तहत १० साल के लिए आरक्षण करवाया
नेहरु जी के सहयोग से आगे बढ़ा दिया गया
आर्थिक आधार क्या बुरा है ?
और फिर एक एस सी कमिश्नर क्यों नहीं कहता कि पहले मेरे एनी अन्य  भाइयों को जिन्हें  लाभ नहीं मिल पाया अभी तक , उन्हें दो , जब सबको एक एक बार आरक्षण मिल जाए तभी पहले से आरक्षण ले चुके लोगों के बारे में दोबारा सोचा जाए
यह कहने की हिम्मत नहीं है अब दलित और महादलित ये दो वर्ग हो गए हैं
दलित वे जो बार बार लाभ ले रहे हैं और महा दलित वे जो एक बार भी लाभ नहीं ले पा रहे दलितों द्वारा ही सब हथियाए जाने से
जो एक बार आरक्षण ले लेता है तो वो अन्यों को पहले क्यों नहीं लाभ दिलवाता
स्वार्थभ्रंशो हि  मूर्खता  यानि स्वार्थ छोड़ना मूर्खता है
 सॉरी रवीश  जी ! भाषा व्याकरण को कपडे पहनाता है आपने व्याकरण को भाषा का चीर हरण कहा है भाषा को जब व्याकरण के कपडे पहनाये जाते हैं तो वह हमेशा मर्यादित रहती है और मनुष्य का जीवन भी मर्यादित रहता है आज देश में जिस भाषा का बोलबाला है उसका अपना व्यवस्थित व्याकरण नहीं है इसलिए देश में मर्यादाएं भी नहीं हैं but  बट और put पुट की तरह नेताओं के अतार्किक बयान हो गए हैं
इस देश में कभी संस्कृत बोली जाती थी तो मर्यादाएं भी थी आप कहेंगे कि  उस समय ऐसा होता था वैसा होता था कुछ लोगों को पढने की आजादी ही नहीं थी तो ऐसे तो द्रोणाचार्य ने भी कभी अपने पुत्र अश्वत्थामा को अपात्र  होने के कारण ब्रह्मास्त्र विद्या नहीं सिखाई थी हालांकि पुत्र मोह में वे चुपचाप थोडा सा आधा अधूरा सिखा गए थे जिसका कुपरिणाम भी देखने में आया , खैर , इस पर अलग से बड़ी बहस की गुंजाइश है , फिर कभी , नमस्कार