वो बहेलिया है। जाल बिछाता है। कबूतर फंस जाते हैं। पांच साल से फंस रहे हैं। वे उसे समझ ही नहीं पाते। वह बार बार जाल डालता है। वे बार बार फंसते हैं। उनके बीच कई बूढ़े कबूतर हैं। नाराज है। क्योंकि मुखिया एक जवान को बनाया गया है। जवान ने अपने साथ युवा लिए है। बूढ़ों को दर किनार कर दिया है। बूढ़े चिढ़े हुए हैं। वे बीच बीच में गड़बड़ कर देते हैं। चाहते तो वे थे कि कबूतरों की दिग्विजय हो। उसके पास एक ऐसी मणि हो जो अलादीन के चिराग का काम करे। लेकिन यह मणि बहेलिये के लिए अलादीन का चिराग साबित हो रही है। उन बूढ़ों की कोई सुनता ही नहीं है। वे अवसादी से दिखते हैं। महत्व नहीं मिल रहा है। जवान कबूतर कई साल से अभी तक सीख ही रहा है और फंस जाता है। वह जवान कबूतर सोने का है। उस का बहुत महत्व है। मगर उस तक हर एक की पहुँच नहीं है। मिटटी से जुड़े विचार उस सोने से बने कबूतर के पास पहुँचते ही नहीं हैं। जाल मिट्टी में बिछा है। कबूतर उस जाल में फंसते हैं। उसको धीरे धीरे शायद कभी मिट्टी का महत्व समझ आये ? कबूतर बहेलिये से चिढ़ते हैं। नफ़रत करते हैं। स्वाभाविक है , कबूतर क्यों प्यार करें ?
गीता में कहा है - संगात संजायते कामो कामात क्रोधोभिजायते। क्रोधात भवति सम्मोहः सम्मोहात स्मृति विभ्रमः। स्मृति भ्रंशात बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात प्रणश्यति।।
यानि - संग से काम , काम से क्रोध , क्रोध से सम्मोह , सम्मोह से स्मृति विभ्रम , स्मृति विभ्रम से बुद्धि नाश , बुद्धि नाश से मनुष्य नष्ट हो जाता है।
सम्मोह यानि किसी के प्रति अतिशय आसक्ति। धनात्मक या ऋणात्मक। सकारात्मक या नकारात्मक। धनात्मक आसक्ति सही मार्ग में लग जाए तो कल्याण ही कर देती है। ऋणात्मक यानि नकारात्मक आसक्ति नफ़रत बढाती है। उन सबके दिमाग में वह बहेलिया इतने ऋणात्मक भाव से भरा है कि वे उससे आगे सोच ही नहीं पाते। उनकी गुटरगूँ सिर्फ उसको गाली देने तक ही है। वे बहेलिये को बहेलिया ही मानते हैं। अपने परिवार का हिस्सा नहीं मानते। वह भी ऐसे ही खुश है। चावल कहाँ हैं ? उसके कार्य जो लीक से हटकर होते हैं जिनसे कबूतर चिढ़ते हैं वही चावल का काम कर जाते हैं। इससे उसे गालियां मिल जाती हैं। यहीं वे कबूतर फंस जाते हैं। उनकी गालियां तोते , मैना , चीया , गोरैया , कोयल को अच्छी नहीं लगती। वह समझा भी देता है। देखो , मुझे गाली दे रहे हैं। बाकी पक्षी उसके साथ हो जाते हैं। वह सबको कहता है , मेरे साथ रहो , घर बनाकर दूंगा। वे सब साथ रहते हैं। कबूतर फंस जाते हैं। वह बार बार जाल बिछाता है। वे फंस जाते हैं। बहेलिया काम करके बहुत थक सा गया है। आज 18 मई 2019 को पहाड़ चढ़ गया है। कहता है ध्यान लगाएगा। ध्यान लगा रहा है। आम के आम गुठलियों के दाम। वह ध्यान लगाकर आराम कर रहा है। कबूतर अपनी मायावी दुनिया में व्यस्त हैं। माया मोह में फंसे हैं और फिर से बहेलिये को गाली दे रहे हैं। यही तो बहेलिये का जाल है। उसने फिर जाल बिछा दिया है। वह बहुत दूर चला गया है और यहाँ जाल बिछा गया है। कबूतर उसे कोस रहे हैं। वह ध्यान कर रहा है। कबूतर समझ ही नहीं पाते कि वह कब कैसे कहाँ जाल बिछा देगा। कबूतरों को पता ही नहीं है कि जाल कितने तरह के होते हैं। वे हर बार फंस जाते हैं। कबूतर मिल जुल रहे हैं। सोचते हैं इस बार बहेलिये बहेलिये को फंसा देंगे पर वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वह जो जाल बिछा गया है उसमे वे फिर फंस गए हैं। कल गौरैया चीया तोते फिर बहेलिये के साथ साथ हो जाएंगे क्योंकि बहेलिया यही तो चाहता है कि कबूतर फिर फंस जाएँ। वो ध्यान में है ईश्वर के और कबूतरों के भी। कबूतर हर वक़्त उसका ध्यान ही तो करते हैं।
गीता में कहा है - संगात संजायते कामो कामात क्रोधोभिजायते। क्रोधात भवति सम्मोहः सम्मोहात स्मृति विभ्रमः। स्मृति भ्रंशात बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात प्रणश्यति।।
यानि - संग से काम , काम से क्रोध , क्रोध से सम्मोह , सम्मोह से स्मृति विभ्रम , स्मृति विभ्रम से बुद्धि नाश , बुद्धि नाश से मनुष्य नष्ट हो जाता है।
सम्मोह यानि किसी के प्रति अतिशय आसक्ति। धनात्मक या ऋणात्मक। सकारात्मक या नकारात्मक। धनात्मक आसक्ति सही मार्ग में लग जाए तो कल्याण ही कर देती है। ऋणात्मक यानि नकारात्मक आसक्ति नफ़रत बढाती है। उन सबके दिमाग में वह बहेलिया इतने ऋणात्मक भाव से भरा है कि वे उससे आगे सोच ही नहीं पाते। उनकी गुटरगूँ सिर्फ उसको गाली देने तक ही है। वे बहेलिये को बहेलिया ही मानते हैं। अपने परिवार का हिस्सा नहीं मानते। वह भी ऐसे ही खुश है। चावल कहाँ हैं ? उसके कार्य जो लीक से हटकर होते हैं जिनसे कबूतर चिढ़ते हैं वही चावल का काम कर जाते हैं। इससे उसे गालियां मिल जाती हैं। यहीं वे कबूतर फंस जाते हैं। उनकी गालियां तोते , मैना , चीया , गोरैया , कोयल को अच्छी नहीं लगती। वह समझा भी देता है। देखो , मुझे गाली दे रहे हैं। बाकी पक्षी उसके साथ हो जाते हैं। वह सबको कहता है , मेरे साथ रहो , घर बनाकर दूंगा। वे सब साथ रहते हैं। कबूतर फंस जाते हैं। वह बार बार जाल बिछाता है। वे फंस जाते हैं। बहेलिया काम करके बहुत थक सा गया है। आज 18 मई 2019 को पहाड़ चढ़ गया है। कहता है ध्यान लगाएगा। ध्यान लगा रहा है। आम के आम गुठलियों के दाम। वह ध्यान लगाकर आराम कर रहा है। कबूतर अपनी मायावी दुनिया में व्यस्त हैं। माया मोह में फंसे हैं और फिर से बहेलिये को गाली दे रहे हैं। यही तो बहेलिये का जाल है। उसने फिर जाल बिछा दिया है। वह बहुत दूर चला गया है और यहाँ जाल बिछा गया है। कबूतर उसे कोस रहे हैं। वह ध्यान कर रहा है। कबूतर समझ ही नहीं पाते कि वह कब कैसे कहाँ जाल बिछा देगा। कबूतरों को पता ही नहीं है कि जाल कितने तरह के होते हैं। वे हर बार फंस जाते हैं। कबूतर मिल जुल रहे हैं। सोचते हैं इस बार बहेलिये बहेलिये को फंसा देंगे पर वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वह जो जाल बिछा गया है उसमे वे फिर फंस गए हैं। कल गौरैया चीया तोते फिर बहेलिये के साथ साथ हो जाएंगे क्योंकि बहेलिया यही तो चाहता है कि कबूतर फिर फंस जाएँ। वो ध्यान में है ईश्वर के और कबूतरों के भी। कबूतर हर वक़्त उसका ध्यान ही तो करते हैं।
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