आज एक और थप्पड़। किसलिए ? इसलिए कि उसने कुछ वादे किये थे और वह उन्हें पूरे नहीं कर सका। तो ? थप्पड़ ? तो फिर उनके थप्पड़ कहाँ हैं जिनके द्वारा नहीं पूरे किये गए कामों को करने का वादा उसने किया था ? इस देश के नेता आज भी उसी झोपडी से निकलते हैं और चुनाव की शुरुआत करते हैं जिस झोपडी से कभी उनके पुरखे निकले थे तो फिर इतने लम्बे काल खंड में ऐसे कितने ही वादे किस किसने नहीं किये ? 1945 में जब नागासाकी और हेरोशिमाँ बर्बाद हो गए तब यह कौन सी प्रेरणा थी कि वह देश आज कहीं और हैं और ठीक दो वर्ष बाद आज़ाद भारत आज कहीं भी नहीं है ? यह कहना गुनाह से कम नहीं होगा कि हमारी आबादी ज्यादा थी। तो फिर क्यों हम आज भी एक बुलेट ट्रैन के लिए तरस रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि 2022 में अहमदाबाद और मुंबई के बीच चलने वाली ट्रैन चल पड़ेगी और एक नया युग शुरू होगा ? तो फिर इतने लम्बे काल खंड में जिस जिस ने वादों का संसार रचा है उस उस के हिस्से के थप्पड़ कहाँ हैं ? या फिर सिर्फ एक ही व्यक्ति है जिस पर हम वादाखिलाफी का आरोप लगाकर जब चाहे उस पर थप्पड़ बरसा दें ?
उसने कहा था मैं यह करूंगा , मैं वह करूंगा मगर वह कर नहीं पाया , ठीक हैं , मगर यह तो बहुतों ने कहा। फिर एक से नाराजगी क्यों ? वह तो पहले डेढ़ माह में ही सरकार छोड़ गया था पहली बार। और दूसरी बार आपने ही उसे मौका दिया। कुछ थप्पड़ दूसरों के लिए भी बचाकर रखते। हिम्मत नहीं हुई होगी दूसरों पर थप्पड़ चलाने की। यह नया है। जितना चाहे ---
उसने आरोप लगाए। ठीक है। किसने आरोप नहीं लगाए। किसने आरोप लगाने के बाद सत्ता में आने के बाद किस किसको जेल भेजा ? और कितनों ने सेटिंग नहीं की । तो फिर उनके थप्पड़ कहाँ हैं?
उसने अपने गुरु को साधकर उल्लू सीधा किया। ठीक है। मगर इस देश में वर्षों से जनता को बेवकूफ बनाकर जो अपना उल्लू सीधा किया जा रहा है उनके थप्पड़ कहाँ हैं ?
उसके विचार मुझे पसंद नहीं। ठीक हैं। मगर मुझे तो कइयों के विचार पसंद नहीं हैं। तो फिर उनके थप्पड़ कहाँ हैं।
वह पढ़ा लिखा है। क्या सिर्फ इसलिए सॉफ्ट टारगेट है? मुझे पता है कि वह राजनीति में नया है। उसने अपने अहंकार के ही कारण अपने कितनों को ही दूर कर लिया है। उनका यह अहंकार उनके लिए भरी पड़ने वाला है मगर यह भी दिलचस्प है कि सिर्फ यही है जो लगातार थप्पड़ ही खा रहा है। पर राजनीति में इस तरह थप्पड़ मारने वाले निहायत ही गलत हैं और माफ़ी के लायक नहीं हैं। शुरुआत तो कहीं और से होनी चाहिए थी। वो सब तो मजे ले रहे हैं जो इन थप्पड़ों के सही मायने में हक़दार हैं। कुछ थप्पड़ औरों के लिए भी बचा कर रखिये यदि हिम्मत है तो ? किसी से सहमत न होना सबका हक़ है मगर थप्पड़ सिर्फ किसी एक के लिए संरक्षित रखे जाएँ यह अन्याय ही है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें