गुरुवार, 16 मई 2019

कृपया व्हाट्स ऍप  यूनिवर्सिटी के छात्र न पढ़ें -

हम सब क्या वत्स व्हाट्स ऍप  यूनिवर्सिटी के छात्र हैं ? क्या हमारी व्युत्पत्ति क्षमता ख़त्म हो चुकी है ? क्या हमने कुछ कहने से पहले सोचना विचारना  छोड़ दिया है ? क्या ऐसा कुछ है ?
आज के इस  दौर में जब देश में यह एक तथाकथित अवधारणा फैलाई जा रही है कि बोलने की  आज़ादी नहीं है तब , जब यह कहा जा रहा है कि पी एम मोदी के खिलाफ बोलना देशद्रोह सा समझा जा रहा है तब क्या वाकई ऐसा है ? शायद नहीं।  पी एम क्या देश होता है ? नहीं।  तो फिर एक व्यक्ति के खिलाफ बोलना देशद्रोह कैसा ? देश व्यक्ति से कहीं  बहुत आगे है।  है न ?
क्या शाब्दिक हिंसा का भी कोई स्थान होना चाहिए ? नहीं।  क्या मोदी जी के खिलाफ की गई शाब्दिक हिंसा देश के प्रति की गई हिंसा मानी जा सकती है ? नहीं।  क्यों ? क्योंकि मोदी जी देश नहीं हैं।  न मनमोहन जी देश थे।  और न उनसे पूर्व के प्रधानमंत्री या अन्य कोई।  तो फिर यह तय है कि  व्यक्ति  के प्रति की गयी शाब्दिक हिंसा या कुछ भी किया गया उस देश के प्रति किया गया नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वह व्यक्ति देश नहीं है।  क्योंकि इस देश में 130  करोड़ लोग हैं जो उस स्थान को भर सकते हैं यदि काबिलियत पैदा करें तो ?
क्या गाँधी जी देश थे  ? यदि हाँ तो गोडसे देश द्रोही था।  यदि नहीं तो फिर गोडसे देशद्रोही कैसे ? गाँधी जी देश के नायक थेऔर गोडसे उस नायक का हत्यारा।  एक ऐसा हत्यारा जो गाँधी जी के प्रति क्रोध से भरा था।  विभाजन के बाद जब धार्मिक आधार पर लोग अपने वतन जाने लगे तब गाँधी जी का यह विचार कि  जो जहां है वह वहीँ रहेगा और उनके  प्रति यह आरोप कि  वे पाक के प्रति जरूरत से ज्यादा उदार होने की कोशिश  थे और पाक को 55 करोड़ रुपये देने के लिए अनशन पर बैठ गए थे तब उन हालातों में एक व्यक्ति उनके विचारों से असहमत होकर उनकी हत्या कर देता है। जीवन देने की क्षमता न हो तो जीवन लेने का तो कोई अधिकार नहीं है।  गोडसे को फांसी हुई और सही हुई।  किसी की हत्या को किसी तरह से भी जायज ठहराना नाजायज कृत्य से कम  नहीं है। विचार को विचार से मारा जाता है और शरीर की हत्या से विचार नहीं मारा करते। गाँधी जी देश के नायक थे।  कोई कहे कि  पिता थे राष्ट्र पिता थे तो आर टी आई से तो पता ही नहीं चला कि  उन्हें किसने राष्ट्रपिता कहा ? लोग कहते हैं कि  पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने कहा था।  खैर , पर देश को किसने तोडा ? जिन्ना ने ? तो क्यों न जिन्ना को देशद्रोही कहा जाए। परिवार को तोड़ने वाला परिवार द्रोही हो सकता है तो देश को तोड़ने वाला देश द्रोही क्यों नहीं ? क्या  गोडसे  ने देश को तोडा था ? नहीं।  उसे देशद्रोही कैसे कहूँ।  गाँधी जी देश नहीं थे नायक थे गोडसे हत्यारा था सजा मिली।  मिलनी भी चाहिए थी।  पर वह देशद्रोही कैसे ? उसने जो किया वैचारिक असहमति के कारण  किया और उसके कारण  शायद उसकी नजर में जायज रहे होंगे तभी वह रेडियो पर पांच मिनट का समय चाहता था ताकि लोगों को बता सके कि  उसने गाँधी जी को क्यों मारा ? मगर उसे वह समय नहीं दिया गया।  यह भी वैचारिक हिंसा थी। किसी को फांसी होने वाली हो और वह पांच मिनट के लिए बोलने का समय मांगे और उसे समय न मिले।  मगर उस समय के हालातों में जिसे जब जो ठीक लगा वह किया  गया।  मगर बात वही है कि  गाँधी जी का हत्यारा होना एक अलग बात है और देश भक्त या देश द्रोही होना अलग बात है।
आतंकवाद एक विचारधारा  होती है जो किसी उद्देश्य को लेकर चलती है।  उसका एक संगठन होता है।  उनका एक उद्देश्य होता है।  मगर एकल व्यक्ति कभी आतंकवादी नहीं होता। वरना  हमें हर हत्यारे को आतंकवादी कहना पड़ेगा।  खालिस्तान का आतंकवाद एक उद्देश्य के साथ किया गया था।  जैश ए  मोहम्मद , लश्कर  ए  तोयबा , आइसिस जैसे संगठन आतंकवादी हैं क्योंकि एक उद्देश्य के साथ चल रहे हैं पर एकल व्यक्ति जो किसी को किसी घृणा या किसी पर गुस्से से हमला करता है हत्या करता है वह आतंकवादी नहीं हो सकता।
इसलिए जब कोई गोडसे को देशद्रोही कहने लगता है तब सोचने लगता हूँ कि  किसी ने आजतक जिन्ना को तो देश द्रोही नहीं कहा।  क्यों ? जिन्ना देशद्रोही क्यों नहीं ? और गोडसे जिसे देश तोड़ने का जिम्मेदार तो कतई  नहीं माना  जा सकता वह देश द्रोही कैसे ? वह हत्यारा है।  निंदनीय है।  मगर देशद्रोही या आतंकवादी कैसे ? और फिर यह राष्ट्र तो हज़ारों वर्षों से है , न की कुछ वर्षों से। देश के खिलाफ की गयी साज़िश देश द्रोह में आएगी या फिर मानव या महामानव के खिलाफ की गयी साज़िश या हत्या भी देश द्रोह में है ? सोचना गलत क्यों हैं ? लेकिन गोडसे गलत था इसमें कोई दो राय नहीं है क्योंकि उसे हत्या का हक़ नहीं था।  यह बात अलग है कि  रेडियो पर अपने उद्बोधन में वह अपने को सही ठहराता  या उसके भाई गोपाल गोडसे ने जो अपनी पुस्तकों - गाँधी वध क्यों और गाँधी वध और मैं , के द्वारा इसे सही ठहरने की कोशिश की है , उस पर किताब पढ़ने वाले स्वयं सोचेंगे जो ebook  के रूप में नेट पर pdf  के रूप में उपलब्ध है।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें