गुरुवार, 23 मई 2019

यह कहर ही तो है।  मोदी योगी के प्रति जनता के विश्वास का कहर।  मोदी नीतीश की ईमानदारी का कहर। बीजेपी शिवसेना के गठजोड़ का कहर।  जनता के मन के भावों के प्रति ममता की कटुता का कहर।  कहीं खट्टर राज की निर्मलता और विश्वास का कहर। कहीं किसी एक बात का कहर। कहीं किसी और का कहर।  यह कहर ही तो है जिसने एक मजदूर को यह कहने को मजबूर कर दिया था कि  उसके बस्ती में कमल खिलेगा।  उसके ससुराल बहराइच में कमल खिलेगा।  उसके रिश्तेदारों के शहर शाहजहांपुर में कमल खिलेगा।  आज जब चुनाव परिणाम देखता हूँ तो देखता हूँ कि यू पी के इन तीन शहरों में कमल ही खिला है।  उसने कहा था - वह आखिरी घंटे में वोट करने जाता है , उसके बूथ पर कमल का बटन काला पड़ चुका  था।  ढीला भी।  उसने सही कहा था। ई  वी  एम और उसपर होने वाला हल्ला अब ख़त्म हो गया है।  बवाल मचाने वाले चुप हो गए हैं।  उन्होंने हार मान ली है। अब आज रात प्राइम टाइम में मेरा एक पसंदीदा टीवी एंकर भी मान गया है कि  जो सरकार आयी है वह विश्वास अर्जित कर  चुकी है और इतना विश्वास अर्जित कर चुकी है कि  अब किसी और के भी एक साथ आ जाने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।  यह एंकर वैसे तो घबराया हुआ है मगर उम्मीद है कि वह अपनी नकारात्मकता को नहीं छोड़ेगा और कुछ नया जरूर करेगा।  लोगों ने कहा - मोदी ने किया क्या ? लोग कहते थे - मोदी ने शौचालय दिया है।  लोग सवाल करते थे - उससे क्या होगा ? पैसे तो प्रधान खा जाता है।  लोग पूछते थे - मोदी ने किया क्या है ? जवाब मिलता था - गैस दी है।  फिर सवाल होता था - दोबारा सिलेंडर कौन भराएगा ? जवाब देना भारी हो जाता था।  लोग सवाल रखते थे  - मोदी ने किया क्या है ? जवाब आता था - उज्ज्वला योजना के तहत लाइट कनेक्शन दिया है।  फिर सवाल होता था - बिल कौन भरेगा ? जवाब कौन दे।  लोग कहते - मोदी ने किया क्या है ? जवाब में आयुष्मान योजना का जिक्र करना पड़ता था।  फिर पूछा जाता था - पर सारे  हॉस्पिटल कहाँ शामिल हैं ? और इलाज के लिए जाने पर मरीजों को भगा दिया जाता है।  तो इनको जवाब देना पड़ता था - समय लगेगा। लोग पूछते - मोदी ने किया क्या है ? कहना पड़ता - जन धन खाते खुलवाए हैं। सुनना पड़ता - पर पंद्रह लाख तो आये नहीं।  समझाना मुश्किल होता कि  मोदी ने कभी पंद्रह लाख अकाउंट में डलवाने की बात कही ही नहीं।  लोग कहते - मोदी ने दो करोड़ रोजगार तो दिए ही नहीं ? पूछना पड़ता - कब कहा था और कहाँ लिखा था कि  देंगे ? और फिर क्या पिछली सरकारों ने इतनी बेरोजगारी फैलाई थी कि दो करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष देने से ही बेरोजगारी ख़त्म होती ? लोग सवाल पर सवाल करते और जवाब चाहते।  फिर एक दिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद एयर स्ट्राइक भी हो गयी।  बिजली गिरी।  पूछा - लाशें गिनीं या पेड़ गिरा आये।  क्रेडिबिलिटी किस तरह गिरती है , यह इस तरह से पता चलना शुरू हुआ और वह गिरनी शुरू हो गयी।  पहले सर्जिकल स्ट्राइक पर और फिर एयर स्ट्राइक पर सवाल।  अभिनन्दन का आना और सरकार का उसे भुनाना और विपक्ष का फिर सवाल - सरकार फायदा उठा रही है ? तो ? यदि स्ट्राइक फेल  हो जाती तो राजनीति नहीं होती क्या ? होती। यह एयर स्ट्राइक ने परिदृश्य ही बदल दिया।  राष्ट्रवाद हावी हुआ और फिर वो हुआ जो हम आज देख रहे हैं।  मगर मेरा प्रिय एंकर कह रहा है कि अब पता चल रहा है कि अगर राष्ट्रवाद का मुद्दा न भी हुआ होता तो भी यह पता चला है कि लोग यही सरकार चुनते।  उसे भी अब पता चल गया है कि  सरकार ने कुछ तो किया ही है।  कुछ लोगों को लोकतंत्र खतरे में दिखाई दे रहा है और अपना आराम भी।  ईश्वर उनके आराम की रक्षा करे। और आज देश के उस नायक ने अपना वक्तव्य दिया है कार्यकर्ताओं के सामने।  उसको सुनने के बाद भी यदि लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा है तो ईश्वर उन लोगों की समझ विकसित करे।  

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