रविवार, 22 जून 2014

आदरणीय प्रधानमन्त्री जी ! सादर प्रणाम , सरकार के रेल किराया बढ़ाने की नीति  का विपक्ष चाहे जितना विरोध करे लेकिन यह बिलकुल ठीक है । एक समस्या की ओर  आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ । ट्रैन में लाखों लोग फ्री सफर करते हैं । बहुत से पकडे जाते हैं तो चेकर या टी टी की जेब गरम करके छूट जाते हैं या यात्रा कर लेते हैं । कृपया दिल्ली मेट्रो जैसी ऐसी व्यवस्था अपनायी जाए जिससे कोई भी व्यक्ति स्टेशन के अंदर बिना टिकट न घुस पाये । इससे सरकार को करोङो का लाभ होगा । आशा है , यदि विचार उचित लगे तो ध्यान देने की कृपा करेंगे । धन्यवाद ।
फ्रॉम
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां , रायवाला
देहरादून २४९२०५
९३५९७६८८८१  
 आदरणीय प्रधानमन्त्री जी ! सादर प्रणाम , सुनने में आया है कि  सरकार पचास दवाएं फ्री करने  जा रही है । लेकिन यदि ये दवाएं फ्री की गयी तो इसके  कुछ दुष्परिणाम भी सामने आ सकते हैं । लोग फ्री की चीजों की क़द्र नहीं करते । और दवा विक्रेता भी बिना प्रॉफिट की दवा रखने बेचने में रूचि कम लेंगे और इसे टालने में ज्यादा रूचि लेंगे इससे एक और समस्या पैदा होगी जिस पर निगरानी भी रखनी होगी जिससे एक काम और बढ़ जाएगा । इसलिए इन दवाओं  को न्यूनतम लागत मूल्य पर विक्रेता के भी दस प्रतिशत प्रॉफिट  के साथ बेचा जाए । ताकि खरीदने वाला भी क़द्र करे और बेचने वाला भी अपने  शॉप में दवाएं रखे । मैं दवा विक्रेता नहीं लेकिन इसकी व्यावहारिक जरूरत समझता हूँ । आशा है , यदि उचित लगे तो ध्यान देने के कृपा करेंगे ।
फ्रॉम 
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा 
मोतीचूर हरिपुर कलां 
रायवाला देहरादून २४९२०५ 
९३५९७६८८८१ 
आदरणीय प्रधानमन्त्री जी ! सादर प्रणाम ,
 स्विस बैंक में भारतीयों के पैसे की जो जानकारी प्राप्त हुई है उससे एक बात का एहसास होता है कि  यह रकम उतनी नहीं लगती जितनी सुनने में आ रही थी । कहीं ऐसा तो नहीं कि  नयी सरकार के आने से पहले ही पूर्ववर्ती सरकार ने या लोगों ने सारा पैसा बैंक से कहीं और शिफ्ट कर दिया हो । इस बात की भी जांच जरूरी है । आशा है , ध्यान देने की कृपा करेंगे ।
फ्रॉम -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां , रायवाला , देहरादून २४९२०५
९३५९७६८८८१ 

शनिवार, 21 जून 2014

आदरणीय प्रधानमन्त्री जी ! नमस्कार , हमारे गांव में एक सड़क है जो पहले टूटी फूटी थी । यह चार सौ फ़ीट लम्बी है । इसके लिए राज्य योजना आयोग से सत्रह लाख चालीस हज़ार रुपया पास हुआ और सी सी सड़क का निर्माण हुआ  । छह माह बाद इस सड़क को खोद दिया गया क्योंकि यहां पर पानी की पाइप लाइन डाली जानी थी । अब पाइप लाइन  डाल  दी गयी है । और सड़क को यूँ ही ढक  कर रख दिया गया है । मिटटी आदि दाल कर । पहले सड़क बनवाना  और फिर तुड़वाना और  बनवाना । अब यह सड़क फिर बनवायी जायेगी । सुना है , उसके बाद सीवर लाइन भी डाली जायेगी । यानि सड़क फिर टूटेगी । क्या यह सब योजना बद्ध  तरीके से नहीं  सकता । 

शुक्रवार, 20 जून 2014

न तो गुमराह हों और न गुमराह करें । 
गृह मंत्रालय के आदेश से घबराये जयललिता , द्रमुक और उमर अब्दुल्ला से पूछा जाए कि जब वे इंग्लिश में बात करते हैं तब उनकी क्षेत्रीय भाषाओँ और अस्मिताओं को खतरा नहीं पैदा होता ? आखिर हिंदी का सबसे ज्यादा प्रचार तो हिंदी फ़िल्में कर रही हैं तो क्या हिंदी फिल्मों को भी वे बंद करना शुरू कर देंगे तब उनकी क्षेत्रीय भाषाओँ की फ़िल्में गैर हिंदी  भाषी क्षेत्रों में चलती हैं क्या लोग उनका विरोध शुरू नहीं कर देंगे आखिर यदि  हम इंग्लिश से अपनी भाषाओँ पर खतरा महसूस नहीं करते तो फिर हिंदी  से क्यों ? देश को यदि किसी भाषा से सबसे ज्यादा खतरा है तो वह इंग्लिश से है क्योंकि यही भाषा हमारी क्षेत्रीय भाषाओँ सहित हिंदी संस्कृत को निगल रही है । आखिर एक युग वह था जब हमारे भारतीय राजा आपस में लड़ते रहते थे और अंग्रेजो ने अपने पाँव  पसार कर हमें गुलाम बना दिया आज हम आपस में लड़ रहे हैं और उनकी भाषा इंग्लिश हमें और हमारी भाषा को गुलाम बना रहे हैं । आपस में झगड़ कर हम अनायास ही एक विदेशी भाषा को जगह दे रहे हैं और हिंदी  को दर किनार कर रहे हैं । लगता है हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा ।  कभी कहा जाता था कि  भाजपा आ गयी तो देश टूट जाएगा , कभी कहा जाता रहा कि मोदी आ गए तो देश में आग लग जायेगी , आज विपक्षी खुद जगह जगह आग लगा रहे हैं कही पुतले फूंक रहे हैं कहीं बसें फूंक रहे हैं , सरकार को पानी डालना पड़  रहा है इस आग को बुझाने के लिए । कइयों ने कहा वे देश छोड़ देंगे यदि मोदी पी एम बन गए , आज वे गायब हैं । पार्टियां अंदर अंदर भयभीत हैं कि कहीं उनका अस्तित्व ही खत्म न हो जाए इसलिए फिर से ऊटपटांग काम  कर रही हैं । अब भाषा के नाम पर डराया जा रहा है । उधर कभी कहा जाता है कि  यदि कश्मीर से धारा तीन सौ सत्तर हटाई गयी तो कश्मीर अलग हो जाएगा । आप यकीन मानें , अब समय आ गया है कि  इन कृत्रिम भयों से निजात पायी जाए । न धारा ३७० हटने से कश्मीर अलग होगा , न हिंदी के विस्तार से क्षेत्रीय भाषाएँ ख़त्म होंगी क्योंकि अनेक भाषाओं का होना किसी देश की ख़ास पहचान होता है । हाल के नए शोधों के अनुसार एक से अधिक भाषाएँ जानने वाले लोग ज्यादा बुद्धिमान होते हैं और उनके शोध कार्य ज्यादा परिपक्व होते हैं । यह शोध पश्चिम की तरफ से किया गया है जिसे हम ज्यादा तरजीह देते हैं । शोध के नतीजों के अनुसार इंग्लैंड आदि देशों के नागरिकों को अब इंग्लिश के अलावा अन्य भाषाओं को भी पढ़ने की सलाह दी जा रही है ताकि उनके शोध ज्यादा परिपक्व हो सकें विशेषतया कला विषयों के क्षेत्र में । इसलिए हिंदी किसी भाषा को नहीं निगल रही बल्कि सरकार क्षेत्रीय भाषाओँ को भी बचाये रखने का पूर्ण प्रयत्न करेगी । इसलिए कृपया न तो गुमराह हों और न गुमराह करें । 

बुधवार, 18 जून 2014

आदरणीय प्रधानमंत्री जी ! सादर प्रणाम ,
एक  महत्वपूर्ण योजना की तरफ आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ । सरकारी विद्यालयों में अाठवीं कक्षा  तक मध्याह्न भोजन योजना लागू है । इस योजना  में बहुत  भ्रष्टाचार पनप रहा है । ऊपर से तो भ्रष्टाचार होगा ही । मैं तो विद्यालयों  के  भ्रष्टाचार की बात कर रहा हूँ जहां पर विद्यालयों में उन बच्चों को भी जबरन  खाना खिलाने की बात की जाती है जिन्हें इसकी जरूरत ही नहीं है । इससे सरकार को भी लाखों करोङों  का नुक्सान होता है । साथ ही नियम कुछ ऐसे बनाये गए हैं कि  जितने बच्चे आये हैं उतने बच्चों का भोजन बनेगा ही । ऐसे में कई जगह यदि कुछ बच्चे भोजन नहीं खाते हैं तो या तो उनका भोजन बर्बाद होता है या फिर यदि नहीं बनाया जाता तो बचे हुए पैसे को गलत तरीका से खपाया गया दिखाने की कोशिश की जाती है । यह नियम बहुत से ईमानदार  लोगों को जबरन भ्रष्ट भी कर रहा है और  सरकारी नुक्सान भी  होता है । यदि सरकार इसके नियमों में जरूरत के हिसाब से फेरबदल करे तो हजारों करोड़ रूपया बचाया जा सकता है । कृपया इस सम्बन्ध  ध्यान देने की कृपा करें और स्कूलों को जबरन यह नियम इस रूप में लागूं करने की अनिवार्यता से बचा जाए ।
द्वारा - डॉ   द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा 

शनिवार, 7 जून 2014

यह एक सच है कि यदि देश में सरकारी विद्यालयों की स्थिति सुधारनी है तो यदि सरकार के पास अन्य कोई बेहतर विकल्प नहीं है तो एक रामबाण औषधि है कि पी एम से लेकर चपरासी तक सभी के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ें । इसका प्रभाव देखने के लिए दक्षिण की एक घटना का जिक्र करना चाहूंगा । एक आई ए एस  ने अपनी लड़की को दो साल पहले नवीं  क्लास में सरकारी स्कूल में भर्ती कर दिया था । तीन माह बाद वह स्कूल बदल चुका  था । सब कुछ व्यवस्थित हो चुका  था । आज की तारीख में सरकारी स्कूल में वे बच्चे पढ़ते हैं जिनकी हैसियत किसी भी तरह से  पब्लिक स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने की नहीं होती । इसलिए सरकारी स्कूल मजदूर पैदा करने की कंपनी बन गए हैं और पब्लिक स्कूल अफसर पैदा करने  की कंपनी । इन गरीब माँ बाप की आवाज में भी  इतना दम  नहीं होता कि  इनकी आवाज हालात सुधारने में मदद कर  पाये ।  जब कोई अफसर मैनेजर या अफसर स्कूल में जाएगा तो सवाल भी करेगा और उस सवाल का जवाब भी स्कूल को देना पड़ेगा । टीचर्स के बच्चे भी किसी न किसी सरकारी स्कूल में ही अपने बच्चों को बढ़ाएंगे तो फिर वे कोताही नहीं बरत  पाएंगे । जब पब्लिक स्कूल नहीं थे तब ज्यादा बेहतर पढ़ाई होती थी जिसमे मानविकी  का जरूर सबसे ज्यादा जोर व ध्यान रहता  था । इससे सरकारी स्कूल के अध्यापकों के बेदम स्टेटस में भी सुधार आएगा । इसके साथ ही यह आठवीं तक अनिवार्यतया पास करने की प्रवृति व नियम पर भी अंकुश लगाना होगा जिसने सरकारी  शिक्षा का भी सर्वनाश  कर दिया है ।साथ ही जिन बच्चों को मिड डे मील खाने की इच्छा नहीं है उनको जरूरी नहीं कि  मिड डे मील खिलाया ही जाए । बहुत से ऐसे बच्चे भी मिड डे मील खा रहे हैं जिनको उसकी जरूरत ही नहीं है और विद्यालयों के लिए भी कुछ ऐसा नियम बना दिया गया है कि  उन्हें पैसा पूरा प्रयोग करना पड़ता है वे वापस करना चाहें तो दिक्कत होती है । और इससे भ्रष्टाचार पनपता है ।  इसलिए यह तीन  कदम उठाने बहुत जरूरी हैं ।