शनिवार, 30 मई 2020

यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा - सबसे बड़ा सुख क्या है ? धर्मराज का जवाब था - संतोष। आज लगता है सही ही था। जब चाइना के वुहान में कोरोना था तो संतोष था कि चलो हम तो बच ही गए। चाइना में है। मज़ाक भी बनाया  गया चीन और चीनियों का। फिर इटली में कोरोना ,स्पेन में कोरोना आया और एक दिन एक केस अपने यहां भी। फिर भी संतोष कि एक ही है। ज्यादा तो नहीं है। फिर  केस बढे और मास्क का शुरूआती दौर शुरू हुआ और फिर दस बीस तीस पचास सौ और फिर घंटी घंटे शंख तालियां। बजाते समय संतोष  था कि उन बीमारों में हम तो नहीं हैं। जनता कर्फ्यू। संतोष हुआ कि देश में कोई तो है जिसकी एक आवाज पर देश में कर्फ्यू लग गया। फिर लॉक  डाउन। और लगा कि अब तो हमने मैदान मार लिया। 21 साल पीछे जाने से बच जाएंगे। फिर थोड़ी घबराहट और गुस्से में तब्लीगी जमात का प्रकरण। संतोष हुआ कि  पकडे तो गए।  और फिर दो सौ , पांच सौ और हज़ार।
अचानक हमने पाकिस्तान को देखना शुरू किया तो संतोष हुआ कि हमारे यहां उनके यहां से ज्यादा बेहतर व्यवस्थाएं हैं। वहाँ तो एकांतवास में मरीजों के साथ बहुत बुरा हो रहा था। वहाँ का बुरा हाल देखकर संतोष हुआ। फिर हम देखते रहे अपने यहाँ की बढ़ती संख्या और देखते रहे अन्य देशो की तरफ और हे भगवान , हे भगवन कहकर संतोष करते रहे। अमेरिका को देखकर तो बेहद संतोष होता रहा कि देखो , दुनियां का सबसे ताकतवर देश किस तरह लंगड़ा गया है। कराह रहा है। हमारे यहाँ तो संभला हुआ है। अन्य विकसित देशों में अब तक इंग्लैंड , जर्मनी , जापान , फ्रांस सभी शामिल होते गए हमारे लिए संतोष की बात रही कि इतनी विकसित व्यवस्थाओं वाले देश कितनी बुरी हालत में हैं। हमें यह भी संतोष रहा कि हमारे पास संतोष के लिए मोदी जी हैं , संभाल लेंगे। मोदी है तो मुमकिन है। हम आदतन हो गए हैं यह सुनने और कहने के।
संतोष बहुत बड़ी चीज है। अन्य राज्यों में बढ़ते केस और अपने उत्तराखंड में कम  केस। संतोष रहा। फिर अन्य देशों में जिस तरह से केस बढे वह संतोष देता रहा कि हम पीछे हैं केस में। बीच बीच में हमको पाकिस्तान ने बड़ा संतोष दिया।
हमें संतोष रहा कि हमारे यहां रिकवरी रेट बढ़िया है। मृत्यु दर कम है। हमारी तो आबादी बहुत ज्यादा है। केस कम  हैं। टेस्टिंग कम थी संतोष हो गया कि टेस्टिंग ज्यादा हो गयी  है। हमने कई बार संतोष से खुद को मनाया है।
फिर हम दस हज़ार से आगे बढ़ गए। बीस तीस पचास हज़ार और फिर एक लाख। और अब दो लाख के करीब। हमारे यहां भी उत्तराखंड में अब केस बढे। संतोष है कि अभी हज़ार नहीं हुए।
क्या हम स्पेन , इटली वगैरह से भी आगे निकलेंगे ? तब ? हमारे पास संतोष का एक कारण होगा कि अमेरिका तो हमसे आगे है। और ईश्वर ने करे यदि हम अमेरिका से भी आगे निकल गए तो ? हमें संतोष होगा कि अमेरिका की तो आबादी बहुत है और वहाँ बढ़िया ट्रीटमेंट के बावजूद बुरा हाल है। हम तो एक सौ पैंतीस करोड़ हैं।
तो संतोष के बहाने तलाशिये। और सुखी रहिये वरना  हालात  तो नींद उड़ाने वाले हैं। अपनी चिंता है तो खुद को खुद सम्भालिये और सोशल डिस्टन्सिंग बनाइये और साधारण जीवन बिताइए।  कुछ दिन अनावश्यक खर्च खरीददारी से बचिए। वरना  फिर संतोष से ही काम चलाना पड़ेगा। क्या चाहिए ?
संतोषमेव पुरुषस्य परं निधानं ।
क्या चाहिए - संतोष या सावधानी ? 

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