शुक्रवार, 29 मई 2020

तो केस तो बढ़  रहें हैं। बढ़ते न तो क्या होता ? होता क्या ? सब ठीक हो जाता।  कैसे ? यदि मोदी जी ने पहले ही लोगों को उनके घर पहुंचा दिया होता। इतना इन्तजार न किया होता। राज्यों को भी भेजने की परमिशन दी होती। लोग घरों में होते। धारावी जैसी जगहों पर इतनी भीड़ न लगती। दिल्ली में कश्मीरी गेट पर इतना जमावड़ा न लगता। कोरोना न फैलता। सिर्फ उतना ही फैलता जितना तब्लीगी फैलाते। डिस्टेंस क्योर के जरिये हम सफल हो जाते। क्या अब  डिस्टेंस क्योर हो रहा है ? 
राज्यों से पूछ लिया। राज्य भी डरे हुए थे।  क्या करते। जैसा सरकार ने कहा उसी पर चलते रहे। कोई कैसे खिलाफ जाता। कोरोना मौत की तरह सामने था। चुनाव कौन हारना चाहता है भला। तो किसी एक के कहे पर चल लो। अच्छा रहेगा। तो वही किया और आज सोशल डिस्टन्सिंग की धज्जियाँ उड़ रही हैं। खैर। अब लोग आ रहे हैं और कोरोना फैला रहे हैं। वैसे ये जहां भी होते। कोरोना तो फैलाते ही। राष्ट्रीय स्तर पर गिनती तो बढ़ती ही। डराती तो यह तब भी।  पर अब हम सबके राज्य में भी बढ़ा रही है। 
क्या होता यदि  शुरू में ही सबको उनके घर पहुंचा दिया होता और कोरोना फैलने से रुक गया होता। लोग क्या कहते ? यही न कि अरे लॉक डाउन किया था तो वहीँ रोकना था। बेकार में सबको परेशां कर दिया। इतना खर्च करवाया। अनुभवहीनता। कुछ दिन लोग जहाँ थे वहीँ रुक जाते। 
क्या होता यदि लोगों को उनके घर पहुंचा दिया होता और तब कोरोना फ़ैल जाता। लोग क्या कहते ? यही न कि  अरे अगर लोगों को लॉक डाउन में वही रोक दिया होता तब यह इतना थोड़े ही फैलता। अनुभवहीनता है। सारे में फैला दिया। सरकार से जवाब नहीं बनता। सरकार को जवाब देना भारी पड़  जाता साहब। 
तो , सरकार ने साफ़ सुथरा काम किया। लॉक डाउन की विश्वनीति पर सरकार चली। विपक्ष इसी में उलझा रहा। लॉक डाउन होना चाहिए। गलत हुआ। क्यों नहीं हुआ। देर से हुआ। जल्दी हुआ। 
पर सरकार ने जो हो सकता था किया। यही एक उपाय था। यदि लोगों ने दूरी  नहीं बनायी तो उन्हें सोचना चाहिए।  सरकार खुद हाथ पकड़कर लोगों को एक दूसरे  तो नहीं करेगी। आँख कान बुद्धि आदि इसी लिए तो दिए हैं। दर्द सिर्फ एक है , सरकार के पास कुल आंकड़े नहीं थे कि कितने लोग कहाँ से कहाँ जाने हैं। जिस देश में लोक सभा इलेक्शन युद्ध स्तर पर होता है वहाँ इन्हें भी युद्ध स्तर पर घर पहुंचाने की नीति बन जानी चाहिए थी और तंत्र एक सुव्यवस्थित तरीके से इस काम को अंजाम दे पाता। मगर राजनीति  ने यह भी नहीं करने दिया। राज्य सरकारों की राजनीति। अपने अपने स्वार्थ आड़े आ गए।  ममता दीदी से लेकर उद्धव ठाकरे साहब। जिनके शेर की लगाम कांग्रेस के हाथों है और पूंछ सीढ़ी करने का प्रयास कर रहे हैं शरद पवार साहब। कार्टून तो यही बता रहे हैं। 
तो अब क्या होगा  ? जब लोग गाँव पहुँच जाएंगे।  ये कोरोना फैलाएंगे ? मन कहता है वहाँ से तो कम फैलाएंगे जितना वहाँ फैला देते जहाँ एक एक कमरे के मकान में बंद थे और दस दस बीस बीस रह रहे थे।  अभी तो ये ला रहे हैं। स्वाभाविक है , अब गाँव में रहेंगे। अपने घर के पास रहेंगे। भले ही अभी संख्या बढ़ रही है। नए प्रभावित क्षेत्रों  की संख्या बढ़ रही है। पर सोशल डिस्टन्सिंग गाँव में भी तो स्वाभाविक हो सकती है। क्यों नहीं। गाँव में स्थान ज्यादा होता है। उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार की और हम सबकी मुसीबत कुछ दिन और बढ़ने के बाद शायद कुछ कम होगी। 

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