रविवार, 6 मार्च 2016

उसे समझ नहीं आता कि क्या करना है । उसके सलाहकार गलत हैं या उसे समझ ही नहीं है कि  करना क्या है । वह बड़ा हो गया है । मैं भी उसकी उम्र का ही हूँ । मेरा बड़ा बेटा चौदह साल का है और छोटा बेटा बारह साल का । मगर उसकी अभी शादी भी नहीं हुई है । या उसके आसपास रहने वाले उसके सलाहकार ऐसे हैं कि  वे शायद उसे कुंवारा ही रखने पर आमादा हों । कहीं ऐसा न हो कि  शादी के बाद कोई अक्ल वाली आ जाए और उसे समझाने लगे और फिर सलाहकारों के दिन फिर जाएँ । इसलिए शायद उसे कोई भी ब्याहता न देखना चाहता होगा । या हो सकता है मैं गलत होऊं । कारण कुछ अलग भी हो सकता है । खैर , आगे बढ़ते है । -
वह कहीं भी पहुँच जाता है । जहां भी भीड़ देखता है पहुँच जाता है । वह हैदराबाद पहुँच गया । जे एन  यू पहुँच गया । कहते हैं यदि वह पहले ही कहीं पहुंच जाता है तो उसे देखकर अब भीड़ नहीं आती । या जो आती भी है वह चली जाती है । उसके सहायक नेताओं को भीड़ से प्रार्थना करनी पड़ती है कि  उसको सुन कर ही जाएँ । इसलिए उसने यह नया तरीका निकाला है । जहां भीड़ देखो। धरना प्रदर्शन देखो वहां पहुँच जाओ । लेकिन फिर भी कहूँगा कि  उसे नहीं पता कहाँ जाना है और कहाँ नहीं । उसके पूर्वजों में से एक हैं जिन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है । उनके नाम पर एक विश्वविद्यालय भी है । उस विश्वविद्यालय को इस देश में प्रथम रैंकिंग दी गयी है । कहा जाता है कि  वहाँ  देश की बौद्धिक सम्पदा निवास करती है । मैं जब उस क्षेत्र के आसपास रहा करता था तो उस प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर क्षेत्र को बड़े उत्साह से और लालच से देखा करता था । वहाँ के छात्रों को देखकर लगता था जैसे बस जो कुछ है यहीं है और बाकी  कहीं कुछ नहीं है । उस विश्वविद्यालय में नारे लगे । अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिन्दा हैं । भारत तेरे टुकड़े होंगे । कश्मीर मांगे आजादी । केरल मांगे आज़ादी । बंगाल मांगे आजादी । मोदी सुन ले आजादी । तोगड़िया सुन ले आजादी । वगैरह वगैरह । आजाद भारत के इतिहास में कश्मीर में तो जब तब  देश विरोधी नारे लगा ही करते थे मगर भारत की राजधानी में ये नारे ? भारत कौन सा ? जिसके निर्माता उसके पूर्वज हैं । या हम उनको कहते हैं कि  वे आधुनिक भारत के निर्माता हैं । देश के पहले प्रधानमंत्री वही हैं । उनकी स्मृति में यह विश्वविद्यालय है । जहां नारे लग रहे हैं भारत को तोड़ने के । आधुनिक भारत को तोड़ने के । वह वहां पहुँच जाता है और कहता है कि  छात्रों की आवाज को दबाया जा रहा है । ये नारे साबरमती हॉस्टल के पास लगाये जा रहे हैं । साबरमती को हम कैसे जानते है ? साबरमती के सन्ततों ने कर दिया कमाल । यानि ? गांधी जी । जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया । उसी धरती के नाम पर जो हॉस्टल है वहां से ये नारे लगे । कश्मीर देश के प्रथम प्रधानमन्त्री की पैदा की हुई समस्या है । उसका समाधान तो वह क्या करता उसके बजाय उनका लगभग समर्थन सा करने पहुँच गया जो उसको भारत से ही अलग करने का सपना पाले हुए हैं । उसकी समझ नहीं आया क्या कर रहा है । गांधी के देश में , प्रथम प्रधानमंत्री का  रिश्तेदार उनकी किरकिरी करने पहुँच गया और हताशा यह कि  छात्रों की आवाज़ दबाई जा रही है । उसे उसकी पार्टी के लोग इस देश के कर्णधार के रूप में देखते हैं । रटी  रटाई शब्दावली में सिमटा भाषण बोल बोल कर उसने देश को बता दिया है कि  वह किस लायक है । मैं उससे नफरत नहीं करता , प्यार करता हूँ। वह प्यार पाने का हक़दार है । मगर वोट पाने का हक़दार नहीं । वह मेरी सहानुभूति का पात्र है क्योंकि उसके ऊपर उसकी धृतराष्ट्र सरीखी आँखों पर पुत्रमोह में फांसी माँ की इच्छाएं लड़ी पड़ी हैं । उसके ऊपर उसके खानदान का बोझ है जिसे शायद वह उतार देना भी चाहता हो मगर उतार नहीं पा रहा है क्योंकि उतारने नहीं दिया जा रहा । उसके आसपास के लोग अपने स्वार्थ के कारण उसे गुमराह किये हुए है   । उसको देखकर मुझे इस देश के हर उस माँ बाप की याद आती है जो अपनी इच्छाएं पूरी न होने पर अपनी संतान से अपनी इच्छाएं पूरी होते देखना चाहते हैं इसलिए उसकी माँ ने उसके लिए वह सीट सुरक्षित कर रखी   है जिस पर कभी वह खुद बैठ सकती थी मगर नहीं बैठ पायी और महान बना दी गयी ।  उससे सहानुभूति रखो , उस पर बोझ है उसकी पार्टी के उन तमाम नेताओं के उन वक्तव्यों का या चमचागिरी का जिस चमचागिरी की बदौलत इन सब लोगों ने उसे बांस पर चढ़ा रखा है और यथार्थ से परिचित नहीं होने देते । कभी मैं समझता हूँ वह बांस पर चढ़ाया गया है जो बहुत ऊँचा होता है , कभी लगता है नहीं चने के झाड़ पर उसे चढ़ाया गया है । यह बहस का विषय हो सकता है । मगर उसे प्यार करिये , भले ही कोई पांच साल में ही घिस घिस कर नेता बन जाए मगर वह पंद्रह साल से राजनीति में है मगर अभी बाल रूप में है । उसे बड़ा होने दीजिये । उसका ब्याह कराइये ताकि जब उसके घर किलकारी गूंजे तब उसे पता चले कि  वह बड़ा हो गया है । - मैं आपका अपना - डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा , मोतीचूर हरिपुर कलां , रायवाला देहरादून से । 

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