भाजपाइयों के मजबूरी में चुप रह जाने से लेकर उनके अंदर ही अंदर किलसने तक , मायावती की बौखलाहट से लेकर मुलायम सिंह के मिमियाने तक , राहुल के खिसियाने से लेकर केजरी के लोगों को भड़काने तक और सी पी एम् के भड़भड़ाने से लेकर ममता के खुद को नुचियाने तक ,के ये तमाम दृश्य आज हर कोई देख रहा है । इनको लगता है कि ये तो चुनाव हार चुके हैं । फिर मुलायम सिंह का यह कहना कि सप्ताह भर आगे बढ़ाया जाए , सिर्फ इसलिए हो सकता है ताकि जनता को यह कहा जा सके कि हमने भी हामी भरी है काले धन के विरोध के खिलाफ और पीएम से कहा कि वे इसे बंद करें या फिर हो सकता हैं इसे लागू ही न होने दें । मायावती १०० साल तक स्वयं के लिए मोदी जी द्वारा इंतजाम करने का दावा कर रही हैं , निश्चित ही कोई यकीन नहीं करेगा । उन्हें भी अपना वोट खिसकता दिख रहा है , धन बल ख़त्म हो गया है । ब्लैक मनी और फेक करेंसी बंगाल से बहुत मात्रा में हिंदुस्तान पहुचती है तो सी पी एम् व ममता का बौखलाना बनता है । कांग्रेस बेहोश हैं , सब ख़त्म होता दिख रहा है । कई दिनों से उत्तराखंड में हरीश रावत मुख्यमंत्री का प्रचार थम सा गया है क्योंकि करेंसी ख़त्म हो गयी है । खैर , आगे बढ़ते है - कभी पी एम् पद के प्रबल दावेदार आडवाणी जी कहाँ हैं , किसी को खबर नहीं है । उनका तो बयान तक लेने कोई नहीं गया मगर अन्ना के पास अभी तक कोई पत्रकार नहीं पहुंचा , निश्चित ही अन्ना तो सो ही रहे होंगे यह सोचकर कि चलो कोई तो मिला जिसने कुछ हटकर करने की कोशिश की । अन्ना यह भी देख रहे होंगे कि उनका एक शिष्य जो कभी काले धन की लड़ाई में उनके साथ हुआ करता था , आज कभी लोगों को चुपचाप भड़काने की कोशिश कर रहा है और अपने प्रति लोगों के आक्रोश को देखकर चुपचाप लौट जाता है , तो कभी बीजेपी की पूँजी कहे जाने वाले कारोबारियों को मिलने जाता है उनके साथ सहानुभूति देखने चला जाता है , जाहिर है उन्हें बेवकूफ समझता होगा । जिस बीजेपी को कारोबारी जीवन भर पालते पोसते रहे , ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी होने का अभिशाप जो पार्टी जीवन भर झेलती रही उसने ही उस शाप से एक झटके में खुद को ऐसे मुक्त कर लिया है कि देखकर पक्ष और विपक्ष दोनों परेशां हैं । निश्चित तौर पर ज्यादा परेशां वे बीजेपी के ही लोग होंगे क्योंकि परायों के घाव कौन गिनता हैं , चोट तो अपनों की ज्यादा दर्द देती है । मोदी मोदी मोदी कर कर के जो लोग २८२ सीटों के साथ सत्ता में आ गए , उन्हें पता है कि कितनों को तो अपने जीतने की कोई उम्मीद भी नहीं रही होगी , वे जीते भी तो मोदी लहर में और अब काला धन बर्बाद भी हुआ तो मोदी लहर में । मोदी जी को भी यह पता है कि कौन किसके प्रताप से जीता है । इसलिए बोलने की हिम्मत जुटाना आसान नहीं । कदम कितना सार्थक होगा यह तो भविष्य ही बताएगा मगर फ़िलहाल तो हर जगह मोदी मोदी ही है । पिछले चुनाव में बिहार में भाजपा को जो हार झेलनी पड़ी क्या यह उसका भी नतीजा हो सकता है जिसमें मोहन भागवत के एक बयान ने सारा तख्ता ही पलट दिया था और भाजपा को सांप सूंघ गया था । क्या मोदी स्वयं अंदर अंदर ही इससे बहुत आहत हुए होंगे और क्या यही सोचकर उन्होंने एक ऐसी चाल चली जिससे कोई और इस तरह का बयान उनके विजय रथ को यूं पी में न रोक पाए ? क्या वे एक ऐसी छवि लेकर यू पी चुनाव में जाना चाहते हैं जहां कोई भी उन्हें हरा न पाए ? वर्ना किसी का भी कोई बयान उन्हें हरा सकता है जैसे यू पी में हुआ था । यह उन्हें पता होगा मगर इस एक प्रहार ने इतनी बुरी तरह से चारों और चोट की है कि हर कोई अब यह तो सोच ही रहा होगा कि यदि वैट जनता से ही लेना है तो दिक्कत क्या है ? क्यों अपने ग्राहक को खुश करने व अपने लिए काला धन जमा करने के बजाय ईमानदारी से ही चला जाए । इसमें बुराई ही क्या है ? गर्दन ऊँची करना क्या जीना नहीं होता । पीएम ने कभी कहा था कि हम न तो गर्दन नीचे करके बात करेंगे और न गर्दन ऊंची करके बात करेंगे । हम आँखों में ऑंखें डाल कर बात करेंगे । यानि हम सब स्वाभिमान से जीयेंगे । मैं न तो कोई चीज फ्री दूंगा मगर मैं आपको स्वाभिमान से जीना सिखाऊंगा । क्या यह उन्हीं पंक्तियों का क्रियान्वयन है । यदि है तो अब पी एम् की बातों को शायद ही कोई हलके में लेने की भूल करे । बीजेपी आज सोच रही होगी कि किस आदमी से पाला पड़ा हैं । जो करोड़ों खर्च करके सांसद बने थे उनके उन करोड़ों की भरपाई तो क्या हुई होगी बल्कि ढाई साल में कोई खास कमाई नहीं हुई और जो रहा सहा संदूकों में भरा था वह भी गया । यह देखना दिलचस्प होगा कि पीएम ने जो कहा है कि वे ३० दिसंबर के बाद एक नया भारत देंगे वह कैसा होगा । कहीं सबकी तनख्वाह एक सी तो नहीं हो जायेगी । चपरासी से लेकर अधिकारी तक । आंखों से आँखों मिलकर बात करना क्या यही है ? यह आशंका है । सभी सरकारी कर्मचारी एक तनख्वाह में ,सभी पढ़े लिखे बेरोजगार एक तनख्वाह में और सभी अनपढ़ बेरोजगार एक तनख्वाह में और बाकि सब एक तनख्वाह में । या फिर कुछ और । कैशलेस शॉपिंग तो तय है । शायद २००० का नोट भी वापस हो जाये और फ़िलहाल यह भी एक स्ट्रेटजी का हिस्सा हो । बाकि बेनामी संपत्ति पर जो मार पड़ने वाली है उसने जरूर एक बार फिर हड़कंप मचा दिया है । हम लोग अब आने वाले दिन यही कयास लगाने के लिए बैठे है कि ३० दिसंबर के बाद क्या । देखते हैं , ३० दिसंबर के बाद कितने लोग आई सपोर्ट नरेंद्र मोदी को छोड़ते हैं और कितने नए जुड़ते हैं ।
रविवार, 13 नवंबर 2016
रविवार, 13 मार्च 2016
आजकल एक नया चलन शुरू हुआ है कि आर्मी वालों को गाली दो । अभी कन्हैया ने गाली दी थी और अब एक नयी छात्रा जो जे एन यू की ही है , उसने भी कहा है कि आर्मी वाले देश के लिए नहीं बल्कि नेताओं के लिए मरते हैं । यह कुल मिलाकर देश में सेना को उत्तेजित करके उससे कुछ गलत करवाने और फिर उस पर हल्ला करने और सारी दुनिया में भारत को बदनाम करने का कुचक्र चल रहा है जिसमें वे सब शामिल हैं जो इस सम्बन्ध में पूछे जाने पर किन्तु परन्तु कहकर या फिर इसकी सीधे आलोचना न करके नयी बातें सामने रखकर बात को घुमाने का प्रयास करते हैं । ये सब इसलिए है कि सेना सोचना शुरू कर दे कि वह क्यों देश के लिए कुछ करे क्योंकि उसके किये को तो माना ही नहीं जा रहा है यानि उसकी देश सेवा पर सवाल उठाये जा रहे हैं । कभी उसको बलात्कारी कहा जा रहा है तो कभी उसको नेता के लिए लड़ने वाला यानि एक प्रकार से चमचा कहा जा रहा है । और ऐसे बयान देने वाले अपने आप बयान नहीं दे रहे हैं बल्कि वे किसी की शह पाकर ही बयान दे रहे हैं । इस देश में कितनी ही समस्याएं हैं जो आज तक नहीं सुलझी और वह क्यों नहीं सुलझी इसका पता लोगों को अब चल रहा है । जब सत्ता में वे लोग बैठे थे जो किसी आतंकवादी को जी के सम्मान के साथ बात किये बगैर नहीं रह पाते और सैनिकों के अपमान पर चुपचाप बैठे रह जाते हैं तो यह समस्याएं सुलझती भी कैसे ? अब ये छात्र तो अपना भविष्य नेतागिरी में देख रहे हैं और अपने आप को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर देशद्रोही कहलाने से भी इनको कोई गुरेज नहीं है तो ऐसे में यह सोचना बेहद जरूरी हो जाता है कि क्या इस देश में जिन छात्रों को जे एन यू जैसी सुविधा नहीं मिल रही है तो क्या उनका गुनाह सिर्फ यही है कि वे चुपचाप अपने देश के लिए समर्पित हैं और कभी ऐसा सोच भी नहीं सकते जैसा जे एन यू के छात्र सोच लेते हैं । अक्सर मीडिया में देखा जाता है कि देश द्रोह के सवाल पर सीधा पूछे जाने पर नेता हाँ या न में जवाब ही नहीं दे पाते और इधर उधर की बातें करने लगते हैं और यही सबसे चिंता का कारण है । देश का सवाल आने पर तो कुछ सोचने का मतलब ही नहीं होता । क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि दुनिया के किसी देश में अपने देश के ही खिलाफ सवाल उठाने पर कोई कार्यवाही न हो । मगर , सच यह है कि असहिष्णुता का झंडा उठाये लोग तैयार बैठे हैं कि सरकार कोई कार्यवाही करे और वे सड़क पर उतरें और यदि सरकार कार्यवाही न करे तो उससे सवाल करें । ऐसे दलों की राजनीति हमेशा के लिए ख़त्म हो जानी चाहिए । इन राजनैतिक दलों की कोई विचारधारा हो ही नहीं सकती जिसे दुनियां में कहीं मान्यता मिले । रही बात सेना की तो जो सेना माइनस पचास डिग्री के कष्ट को झेल लेती है वह इन देश विरोधी बात करने वालों को भी आसानी से समझ जायेगी । ख़ुशी है कि मोदी राज में सारे सांप निकल निकल कर सामने आ रहे है ।
myself -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर हरिपुर कलां
रायवाला देहरादून
myself -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर हरिपुर कलां
रायवाला देहरादून
मंगलवार, 8 मार्च 2016
एक कहावत है कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा । कन्हैया भी उसी राह पर चल पड़ा है । उसे लगता है कि जैसे ही वह कुछ भी बिगड़े बोल बोलेगा तो लोग उसको जानेंगे , सुनेंगे और वह एक नेता बनकर निकलेगा । उसके पीछे तो लोग हैं ही । ये तमाम एन जी ओ जिनकी विदेशी फंडिंग बंद हो गयी है , मिलकर काम कर रहे हैं कि किसी तरह देश का माहौल इस प्रकार बनाया जाये ताकि देश में रोज तमाशा हो और दुनिया देखे और धीरे धीरे यह सरकार विश्व में बदनाम हो जाए । मोदी जो बाहर जाकर देश का नाम रोशन कर रहे हैं , उनका देश के बाहर भी वे संघ या संगठन विरोध करें जिनकी फंडिंग यहां रोक दी गयी है । भारत में वे अपनी फंडिंग नहीं भेज पा रहे हैं पर विदेश में तो हल्ला कर ही सकते हैं । यह सारे विश्व में मोदी जी के खिलाफ एक गुट तैयार किया जा रहा है जो आजकल चुपचाप काम कर रहा है । ये परेशान हैं कि देश की सरकार में अब वह भ्रष्टाचार क्यों नहीं हो रहा जिसके साथ साथ ये लोग भी बहती गंगा में हाथ धो लेते थे । इसलिए इस मूर्ख की बातों को इस ढंग से हाई लाइट मत करें क्योंकि यह एक मानसिक रोगी है और इसका यदि इलाज़ करोगे तो भी यह हल्ला ही मचायेगा और अन्य तथाकथित संगठनों को अपने पीछे लगा लेगा । जैसे ही समय बीतेगा और जे एन यू की जो प्रतिष्ठा दांव पर लग गयी है जिसका असर इसी साल आने वाले दिनों में एडमिशन प्रक्रिया में दिखने वाला है , उसका इन्तजार कीजिये और ये लोग जो अपने को टॉप क्लास यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट मानकर हल्ला मचाये हुए है , सबकी अक्ल ठिकाने आ जायेगी । कन्हैया के लिए तो कोर्ट ही काफी है । यह जानबूझकर कोर्ट की अवमानना कर रहा है । इसे भाव न दें । ये ऐसे ही काम करेगा जिससे पुलिस और प्रशासन इसके पीछे लग जाए । थोड़ा सा केजरीवाल महोदय को याद कर लीजिये जो जब तब सब पर आरोप मढ़ते रहते थे और आज मुख्यमंत्री बने बैठे हैं । इसलिए सावधान होकर काम करें और इन जैसों को बड़बड़ाने दें । ये जब देखेंगे कि इनकी बड़बड़ाहट का कोई प्रभाव नहीं पद रहा है तो अपनेआप चुप हो जाएंगे ।
रविवार, 6 मार्च 2016
उसे समझ नहीं आता कि क्या करना है । उसके सलाहकार गलत हैं या उसे समझ ही नहीं है कि करना क्या है । वह बड़ा हो गया है । मैं भी उसकी उम्र का ही हूँ । मेरा बड़ा बेटा चौदह साल का है और छोटा बेटा बारह साल का । मगर उसकी अभी शादी भी नहीं हुई है । या उसके आसपास रहने वाले उसके सलाहकार ऐसे हैं कि वे शायद उसे कुंवारा ही रखने पर आमादा हों । कहीं ऐसा न हो कि शादी के बाद कोई अक्ल वाली आ जाए और उसे समझाने लगे और फिर सलाहकारों के दिन फिर जाएँ । इसलिए शायद उसे कोई भी ब्याहता न देखना चाहता होगा । या हो सकता है मैं गलत होऊं । कारण कुछ अलग भी हो सकता है । खैर , आगे बढ़ते है । -
वह कहीं भी पहुँच जाता है । जहां भी भीड़ देखता है पहुँच जाता है । वह हैदराबाद पहुँच गया । जे एन यू पहुँच गया । कहते हैं यदि वह पहले ही कहीं पहुंच जाता है तो उसे देखकर अब भीड़ नहीं आती । या जो आती भी है वह चली जाती है । उसके सहायक नेताओं को भीड़ से प्रार्थना करनी पड़ती है कि उसको सुन कर ही जाएँ । इसलिए उसने यह नया तरीका निकाला है । जहां भीड़ देखो। धरना प्रदर्शन देखो वहां पहुँच जाओ । लेकिन फिर भी कहूँगा कि उसे नहीं पता कहाँ जाना है और कहाँ नहीं । उसके पूर्वजों में से एक हैं जिन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है । उनके नाम पर एक विश्वविद्यालय भी है । उस विश्वविद्यालय को इस देश में प्रथम रैंकिंग दी गयी है । कहा जाता है कि वहाँ देश की बौद्धिक सम्पदा निवास करती है । मैं जब उस क्षेत्र के आसपास रहा करता था तो उस प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर क्षेत्र को बड़े उत्साह से और लालच से देखा करता था । वहाँ के छात्रों को देखकर लगता था जैसे बस जो कुछ है यहीं है और बाकी कहीं कुछ नहीं है । उस विश्वविद्यालय में नारे लगे । अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिन्दा हैं । भारत तेरे टुकड़े होंगे । कश्मीर मांगे आजादी । केरल मांगे आज़ादी । बंगाल मांगे आजादी । मोदी सुन ले आजादी । तोगड़िया सुन ले आजादी । वगैरह वगैरह । आजाद भारत के इतिहास में कश्मीर में तो जब तब देश विरोधी नारे लगा ही करते थे मगर भारत की राजधानी में ये नारे ? भारत कौन सा ? जिसके निर्माता उसके पूर्वज हैं । या हम उनको कहते हैं कि वे आधुनिक भारत के निर्माता हैं । देश के पहले प्रधानमंत्री वही हैं । उनकी स्मृति में यह विश्वविद्यालय है । जहां नारे लग रहे हैं भारत को तोड़ने के । आधुनिक भारत को तोड़ने के । वह वहां पहुँच जाता है और कहता है कि छात्रों की आवाज को दबाया जा रहा है । ये नारे साबरमती हॉस्टल के पास लगाये जा रहे हैं । साबरमती को हम कैसे जानते है ? साबरमती के सन्ततों ने कर दिया कमाल । यानि ? गांधी जी । जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया । उसी धरती के नाम पर जो हॉस्टल है वहां से ये नारे लगे । कश्मीर देश के प्रथम प्रधानमन्त्री की पैदा की हुई समस्या है । उसका समाधान तो वह क्या करता उसके बजाय उनका लगभग समर्थन सा करने पहुँच गया जो उसको भारत से ही अलग करने का सपना पाले हुए हैं । उसकी समझ नहीं आया क्या कर रहा है । गांधी के देश में , प्रथम प्रधानमंत्री का रिश्तेदार उनकी किरकिरी करने पहुँच गया और हताशा यह कि छात्रों की आवाज़ दबाई जा रही है । उसे उसकी पार्टी के लोग इस देश के कर्णधार के रूप में देखते हैं । रटी रटाई शब्दावली में सिमटा भाषण बोल बोल कर उसने देश को बता दिया है कि वह किस लायक है । मैं उससे नफरत नहीं करता , प्यार करता हूँ। वह प्यार पाने का हक़दार है । मगर वोट पाने का हक़दार नहीं । वह मेरी सहानुभूति का पात्र है क्योंकि उसके ऊपर उसकी धृतराष्ट्र सरीखी आँखों पर पुत्रमोह में फांसी माँ की इच्छाएं लड़ी पड़ी हैं । उसके ऊपर उसके खानदान का बोझ है जिसे शायद वह उतार देना भी चाहता हो मगर उतार नहीं पा रहा है क्योंकि उतारने नहीं दिया जा रहा । उसके आसपास के लोग अपने स्वार्थ के कारण उसे गुमराह किये हुए है । उसको देखकर मुझे इस देश के हर उस माँ बाप की याद आती है जो अपनी इच्छाएं पूरी न होने पर अपनी संतान से अपनी इच्छाएं पूरी होते देखना चाहते हैं इसलिए उसकी माँ ने उसके लिए वह सीट सुरक्षित कर रखी है जिस पर कभी वह खुद बैठ सकती थी मगर नहीं बैठ पायी और महान बना दी गयी । उससे सहानुभूति रखो , उस पर बोझ है उसकी पार्टी के उन तमाम नेताओं के उन वक्तव्यों का या चमचागिरी का जिस चमचागिरी की बदौलत इन सब लोगों ने उसे बांस पर चढ़ा रखा है और यथार्थ से परिचित नहीं होने देते । कभी मैं समझता हूँ वह बांस पर चढ़ाया गया है जो बहुत ऊँचा होता है , कभी लगता है नहीं चने के झाड़ पर उसे चढ़ाया गया है । यह बहस का विषय हो सकता है । मगर उसे प्यार करिये , भले ही कोई पांच साल में ही घिस घिस कर नेता बन जाए मगर वह पंद्रह साल से राजनीति में है मगर अभी बाल रूप में है । उसे बड़ा होने दीजिये । उसका ब्याह कराइये ताकि जब उसके घर किलकारी गूंजे तब उसे पता चले कि वह बड़ा हो गया है । - मैं आपका अपना - डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा , मोतीचूर हरिपुर कलां , रायवाला देहरादून से ।
शुक्रवार, 4 मार्च 2016
आज फेसबुक में योगेन्द्र यादव का एक पोस्ट देखा जिसमे चित्र के रूप में वे कन्हैया को भाषण देते हुए दिखाते हैं और गुजारिश करते हैं कि सभी लोग यह ऐतिहासिक भाषण जरूर सुनें। योगेन्द्र यादव जी व्युत्पन्न व्यक्तित्व हैं और मेरे चहेते हैं। उनका विश्लेषण का अपना वैज्ञानिक तरीका होता है और यह मैंने कई बार देश में चुनाव के दौरान देखा है । मगर जब उन्होंने यह कहा तब मुझे लगा कि कदाचित वे आप पार्टी में अपनी बात नहीं सुने जाने व वहां से निकाल दिए जाने की पीड़ा से त्रस्त हैं और शायद इसीलिए इस भाषण को ऐतिहासिक कह गए हैं । हाँ , यह भाषण इस रूप में जरूर ऐतिहासिक हो सकता है कि किस प्रकार एक छात्र पहले देश द्रोही नारों के आरोप में पकड़ा जाता हैं और फिर जब कोर्ट द्वारा छह माह के लिए बेल पर आता है तो किस तरह खुद को नेता बनाने की हसरत में फिर से कुछ भी बोल देने के लिए आतुर रहता है । वह न केवल कोर्ट की उस शिक्षा की अवमानना करता है जिसमे कोर्ट ने उसे कहा था कि वह अपने व्यवहार को सही करने का प्रयास करेगा और दूसरे लोगों को भी सही व्यवहार के लिए प्रेरित करेगा । मगर वह ऐसा नहीं करता क्योंकि उसे नेता बनना है , फिर से चर्चा में रहना है । और इसके लिए उसे पी एम को गालियां देनी हैं और उन पार्टियों के लिए रास्ता बनाना है जिनके रास्ते बंद होने के कगार पर हैं । पार्टियां उसे उस मजदूर के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं और उसके हाथ में गालियों और अभद्र टिप्पणियों का कुदाल और फावड़ा पकड़कर अपने लिए रास्ता तलाश रही हैं । कन्हैया को भी पता है कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा । ये वही लोग हैं जिनमे एक वे केजरीवाल आते हैं जिनके नेता कभी कश्मीर में जनमत संग्रह कराये जाने की बात करते हैं तो कभी कहते हैं कि हाँ वे अराजक हैं । कभी न्यायालय पर टिप्पणी करते हैं तो कभी राष्ट्रपति को सीख देते हैं । लेकिन फिलहाल वे चुपचाप हैं । केजरीवाल भी खुले मन से इसके साथ हैं लेकिन वे दिखा नहीं रहे हैं। लेकिन मैं अब अपनी उस बात पर आता हूँ जिसलिए मैंने यह लिखना शुरू किया है ।
सोच रहा हूँ , जिस विश्वविद्यालय में पी एच डी का छात्र इस छिछले अंदाज में अपना भाषण देता है उस विश्वविद्यालय का क्या स्तर होगा ? जहां उसके भाषण को सुनकर ये तथाकथित बुद्धिजीवी सरीखा खुद को दिखाने वाले बाकी छात्र तालियां पीटते नज़र आते हैं । सोच रहा हूँ कि यदि यह बौद्धिक चिंतन का नतीजा है तो फिर वह क्या है जिसे मैं कई बार अपने मोहल्ले में काम काज से दूर युवकों में देखता हूँ जहां वे इकठ्ठा होकर किसी के द्वारा मजाकिया अंदाज में दिए जा रहे भाषण पर तालियां पीटते हैं और हल्ला मचाते हैं । उनके पास कोई काम नहीं होता । कोई उन्नत शिक्षित भी वे नहीं होते मगर अंदाज वही होता है जो मैंने जे एन यू में देखा है । मगर एक फर्क है , जे एन यू वाले दिल्ली में हैं , हाई प्रोफाइल हैं , उनकी बात का अलग महत्व हैं , भले ही वह मेरे गली मोहल्ले के लड़कों के तौर तरीकों सरीखे अंदाज में पेश की गयी हो । भले ही इनमे से कोई जेल नहीं गया हो , किसी पर देश द्रोह का आरोप न लगा हो पर हैं तो मेरे मोहल्ले की ही । पर मैं सोचता हूँ , शिक्षा से क्या हमारा बात कहने का तरीका नहीं बदलना चाहिए , हमारी प्रतिक्रियायें देने का तरीका नहीं बदलना चाहिए । यदि नहीं तो क्या मैं अपने गली मोहल्ले के लड़कों को बेहतर मान लूँ जिनके पास भले ही ज्ञान न हो पर तरीका तो उनका भी वही हैं । उसमे कोई फर्क नहीं है । हाँ , वे बौद्धिक अकाल से ग्रस्त माने जाते हैं क्योंकि वे जे एन यू या किसी इसी तरह के विश्वविद्यालय के छात्र नहीं हैं ।
एक बात और , देश के अन्य विश्वविद्यालयों का क्या दोष है जिन्हें छब्बीस छात्रों पर एक प्रोफ़ेसर मिले हैं और सब्सिडी भी उस तरह नहीं मिलती जिस तरह जे एन यू को। उन्हें जे एन यू की तरह पन्द्रह छात्रों पर एक प्रोफेसर नहीं मिलता। इसलिए कि यहां पर वैचारिक स्वतंत्रता इस हद तक नहीं सिखाई गई कि देशद्रोह के नारे भी लगाए जा सकें । क्या ऐसी स्वतंत्रता पाने के बाद या इतना बुद्धिजीवी होने के बाद ऐसी सुविधाएं मिल जाती हैं ? क्या कहेंगे आप ?
सच्चाई यह है कि एक नेता के छात्र यदि इस प्रकार की गतिविधियां करते हैं तो या तो वह उन्हें रोके या कम से कम तत्काल प्रतिक्रिया दे जिससे उसकी निर्दोषता तत्काल सिद्ध हो सके। या पद परित्याग कर दे पर कन्हैया ऐसा न कर सका। रही बात विपक्ष की तो वह कुछ भी तलाशने को तैयार है ताकि काम करती सरकार को किसी तरह रोका जा सके और अपना बोरिया बिस्तर सिमटने से बचा जा सके।
सुना था कि नक्सलियों द्वारा सी आर पी ऍफ़ के जवान मारे जाने के बाद यहां के बुद्धिजीवियों ने छात्रों ने जश्न मनाया था । आज भी तीन सी आर पी ऍफ़ के जवान मारे गए हैं ? डर लगने लगा हैं ऐसी बौद्धिकता से ।
नमस्कार ,
मैं -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर हरिपुर कलां , रायवाला देहरादून - २४९२०५
सहायक अध्यापक , म्युनिसिपल इंटर कॉलेज , ज्वालापुर हरिद्वार
आज फेसबुक में योगेन्द्र यादव का एक पोस्ट देखा जिसमे चित्र के रूप में वे कन्हैया को भाषण देते हुए दिखाते हैं और गुजारिश करते हैं कि सभी लोग यह ऐतिहासिक भाषण जरूर सुनें। योगेन्द्र यादव जी व्युत्पन्न व्यक्तित्व हैं और मेरे चहेते हैं। उनका विश्लेषण का अपना वैज्ञानिक तरीका होता है और यह मैंने कई बार देश में चुनाव के दौरान देखा है । मगर जब उन्होंने यह कहा तब मुझे लगा कि कदाचित वे आप पार्टी में अपनी बात नहीं सुने जाने व वहां से निकाल दिए जाने की पीड़ा से त्रस्त हैं और शायद इसीलिए इस भाषण को ऐतिहासिक कह गए हैं । हाँ , यह भाषण इस रूप में जरूर ऐतिहासिक हो सकता है कि किस प्रकार एक छात्र पहले देश द्रोही नारों के आरोप में पकड़ा जाता हैं और फिर जब कोर्ट द्वारा छह माह के लिए बेल पर आता है तो किस तरह खुद को नेता बनाने की हशरत में फिर से कुछ भी बोल देने के लिए आतुर रहता है । वह न केवल कोर्ट की उस शिक्षा की अवमानना करता है जिसमे कोर्ट ने उसे कहा था कि वह अपने व्यवहार को सही करने का प्रयास करेगा और दूसरे लोगों को भी सही व्यवहार के लिए प्रेरित करेगा । मगर वह ऐसा नहीं करते क्योंकि उसे नेता बनना है , फिर से चर्चा में रहना है । और इसके लिए उसे पी एम को गालियां देनी हैं और उन पार्टियों के लिए रास्ता बनाना है जिनके रास्ते बंद होने के कगार पर हैं । पार्टियां उसे उस मजदूर के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं और उसके हाथ में गालियों और अभद्र टिप्पणियों का कुदाल और फावड़ा पकड़कर अपने लिए रास्ता तलाश रही हैं । कन्हैया को भी पता है कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा । ये वही लोग हैं जिनमे एक वे केजरीवाल आते हैं जिनके नेता कभी कश्मीर में जनमत संग्रह कराये जाने की बात करते हैं तो कभी कहते हैं कि हाँ वे अराजक हैं । कभी न्यायालय पर टिप्पणी करते हैं तो कभी राष्ट्रपति को सीख देते हैं । लेकिन फिलहाल वे चुपचाप हैं । केजरीवाल भी खुले मन से इसके साथ हैं लेकिन वे दिखा नहीं रहे हैं। लेकिन मैं अब अपनी उस बात पर आता हूँ जिसलिए मैंने यह लिखना शुरू किया है ।
सोच रहा हूँ , जिस विश्वविद्यालय में पी एच डी का छात्र इस छिछले अंदाज में अपना भाषण देता है उस विश्वविद्यालय का क्या स्तर होगा ? जहां उसके भाषण को सुनकर ये तथाकथित बुद्धिजीवी सरीखा खुद को दिखाने वाले बाकी छात्र तालियां पीटते नज़र आते हैं । सोच रहा हूँ कि यदि यह बौद्धिक चिंतन का नतीजा है तो फिर वह क्या है जिसे मैं कई बार अपने मोहल्ले में काम काज से दूर युवकों में देखता हूँ जहां वे इकठ्ठा होकर किसी के द्वारा मजाकिया अंदाज में दिए जा रहे भाषण पर तालियां पीटते हैं और हल्ला मचाते हैं । उनके पास कोई काम नहीं होता । कोई उन्नत शिक्षित भी वे नहीं होते मगर अंदाज वही होता है जो मैंने जे एन यू में देखा है । मगर एक फर्क है , जे एन यू वाले दिल्ली में हैं , हाई प्रोफाइल हैं , उनकी बात का अलग महत्व हैं , भले ही वह मेरे गली मोहल्ले के लड़कों के तौर तरीकों सरीखे अंदाज में पेश की गयी हो । भले ही इनमे से कोई जेल नहीं गया हो , किसी पर देश द्रोह का आरोप न लगा हो पर हैं तो मेरे मोहल्ले की ही । पर मैं सोचता हूँ , शिक्षा से क्या हमारा बात कहने का तरीका नहीं बदलना चाहिए , हमारी प्रतिक्रियायें देने का तरीका नहीं बदलना चाहिए । यदि नहीं तो क्या मैं अपने गली मोहल्ले के लड़कों को बेहतर मान लूँ जिनके पास भले ही ज्ञान न हो पर तरीका तो उनका भी वही हैं । उसमे कोई फर्क नहीं है । हाँ , वे बौद्धिक अकाल से ग्रस्त माने जाते हैं क्योंकि वे जे एन यू या किसी इसी तरह के विश्वविद्यालय के छात्र नहीं हैं ।
एक बात और , देश के अन्य विश्वविद्यालयों का क्या दोष है जिन्हें छब्बीस छात्रों पर एक प्रोफ़ेसर मिले हैं और सब्सिडी भी उस तरह नहीं मिलती जिस तरह जे एन यू को। क्या इसलिए कि यहां पर वैचारिक स्वतंत्रता इस हद तक नहीं सिखाई गई कि देशद्रोह के नारे भी लगाए जा सकें । क्या ऐसी स्वतंत्रता पाने के बाद या इतना बुद्धिजीवी होने के बाद ऐसी सुविधाएं मिल जाती हैं ? क्या कहेंगे आप ?
हाँ , सुना था कि नक्सलियों द्वारा सी आर पी ऍफ़ के जवान मारे जाने के बाद यहां के बुद्धिजीवियों ने छात्रों ने जश्न मनाया था । आज भी तीन सी आर पी ऍफ़ के जवान मारे गए हैं ? डर लगने लगा हैं ऐसी बौद्धिकता से ।
नमस्कार ,
मैं -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर हरिपुर कलां , रायवाला देहरादून - २४९२०५
सहायक अध्यापक , म्युनिसिपल इंटर कॉलेज , ज्वालापुर हरिद्वार
सोच रहा हूँ , जिस विश्वविद्यालय में पी एच डी का छात्र इस छिछले अंदाज में अपना भाषण देता है उस विश्वविद्यालय का क्या स्तर होगा ? जहां उसके भाषण को सुनकर ये तथाकथित बुद्धिजीवी सरीखा खुद को दिखाने वाले बाकी छात्र तालियां पीटते नज़र आते हैं । सोच रहा हूँ कि यदि यह बौद्धिक चिंतन का नतीजा है तो फिर वह क्या है जिसे मैं कई बार अपने मोहल्ले में काम काज से दूर युवकों में देखता हूँ जहां वे इकठ्ठा होकर किसी के द्वारा मजाकिया अंदाज में दिए जा रहे भाषण पर तालियां पीटते हैं और हल्ला मचाते हैं । उनके पास कोई काम नहीं होता । कोई उन्नत शिक्षित भी वे नहीं होते मगर अंदाज वही होता है जो मैंने जे एन यू में देखा है । मगर एक फर्क है , जे एन यू वाले दिल्ली में हैं , हाई प्रोफाइल हैं , उनकी बात का अलग महत्व हैं , भले ही वह मेरे गली मोहल्ले के लड़कों के तौर तरीकों सरीखे अंदाज में पेश की गयी हो । भले ही इनमे से कोई जेल नहीं गया हो , किसी पर देश द्रोह का आरोप न लगा हो पर हैं तो मेरे मोहल्ले की ही । पर मैं सोचता हूँ , शिक्षा से क्या हमारा बात कहने का तरीका नहीं बदलना चाहिए , हमारी प्रतिक्रियायें देने का तरीका नहीं बदलना चाहिए । यदि नहीं तो क्या मैं अपने गली मोहल्ले के लड़कों को बेहतर मान लूँ जिनके पास भले ही ज्ञान न हो पर तरीका तो उनका भी वही हैं । उसमे कोई फर्क नहीं है । हाँ , वे बौद्धिक अकाल से ग्रस्त माने जाते हैं क्योंकि वे जे एन यू या किसी इसी तरह के विश्वविद्यालय के छात्र नहीं हैं ।
एक बात और , देश के अन्य विश्वविद्यालयों का क्या दोष है जिन्हें छब्बीस छात्रों पर एक प्रोफ़ेसर मिले हैं और सब्सिडी भी उस तरह नहीं मिलती जिस तरह जे एन यू को। क्या इसलिए कि यहां पर वैचारिक स्वतंत्रता इस हद तक नहीं सिखाई गई कि देशद्रोह के नारे भी लगाए जा सकें । क्या ऐसी स्वतंत्रता पाने के बाद या इतना बुद्धिजीवी होने के बाद ऐसी सुविधाएं मिल जाती हैं ? क्या कहेंगे आप ?
हाँ , सुना था कि नक्सलियों द्वारा सी आर पी ऍफ़ के जवान मारे जाने के बाद यहां के बुद्धिजीवियों ने छात्रों ने जश्न मनाया था । आज भी तीन सी आर पी ऍफ़ के जवान मारे गए हैं ? डर लगने लगा हैं ऐसी बौद्धिकता से ।
नमस्कार ,
मैं -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर हरिपुर कलां , रायवाला देहरादून - २४९२०५
सहायक अध्यापक , म्युनिसिपल इंटर कॉलेज , ज्वालापुर हरिद्वार
बुधवार, 13 जनवरी 2016
गुमशुदा -
नाम - महेंद्र वल्लभ शर्मा
मैं - बड़ा भाई - द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
ग्राम - हरिपुर कलां , मोतीचूर
वाया - रायवाला , देहरादून
मेरा भाई आज से 15 वर्ष पूर्व दिनांक 18 सितम्बर 2001 को घर से चला गया था जो आज तक नहीं लौटा है । यदि आप में से किसी को भी इस सन्दर्भ में कोई सूचना मिले तो कृपया निम्नलिखित फ़ोन नंबर पर सूचित करने की कृपा करेंगे और इस सन्देश को फॉरवर्ड करने की कृपा करेंगे । आप सबका आभारी रहूंगा ।
फ़ोन नंबर - 9359768881 , 9458950605 , 8057405101
सन्देश - प्रिय महेंद्र ! तुम जहां भी हो , तुरंत घर चले आओ । माँ और पिताजी और हम सभी लोग तुम्हारा बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं । सभी तुम्हारे बगैर दुखी हैं ।
निवेदक - द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
हरिपुर कलां , मोतीचूर
वाया रायवाला , देहरादून
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