बटला हाउस प्रकरण पर सलमान खुर्शीद महोदय का ये बयान कि उस समय सोनिया गाँधी रोई थीं कई सवाल खड़े करता है . विचारणीय बात यह है कि हमारी राजनीति इतनी संवेदनहीन हो चुकी है कि हमें अब यह भी बताना पड़ता है कि कौन कितना रोया और कौन कितना . वोट के लिए आंसुओं को बेचते राजनेता क्या किसी के आंसू पोंछ भी पायेंगे . कदाचित ही ऐसा हो पाए . देखते रहिये यदि हमें यह बताना पड़ रहा है कि हम रोये तो भला क्या रोये ? मुंह से बोले आंसू भला क्या औकात रखते हैं किसी के दर्द की . दर्द को समझने की . किसी को खुश करने के लिए उसको बताना कि हम रोये . हैरानी होती है. किसी के घर का चिराग उजाड़ना और किसी दुसरे के लिए आपका रोना . वाह सोनिया जी ! आपसे तो ये उम्मीद नहीं थी क्योंकि आप तो आंसू का मतलब जानती हैं या क्या इटली में आंसुओं की अभिव्यक्ति ऐसे ही होती है ?.
शनिवार, 11 फ़रवरी 2012
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