आदरणीय गुप्ता जी ! सादर नमस्कार , गुस्सा जितना जरूरी है उससे भी ज्यादा जरूरी है धैर्य , धैर्य यदि गुस्से को खा जाए तब तो ठीक और यदि गुस्सा धैर्य को खा जाए तो बहुत बुरा होता है.आपका गुस्सा धैर्य को खा रहा है . हमें भी गुस्सा आता है . गुस्सा जब सही शब्दावली के साथ प्रकट होता है तो प्रभावी होता है. आपके गुस्से को समझ रहा हूँ . सोचिये यदि एक १०० % इमानदार अन्ना के साथ सरकार इस तरह से पेश आ सकती है तो बात बात में धैर्य खोने वाले हम लोगों का क्या वजूद . इसलिए शब्द चुनकर गुस्से की अभिव्यक्ति बहुत जरूरी है. आपका रेप शब्द आपके गुस्से को तो अभिव्यक्त कर सकता है लेकिन आपके धैर्य को तोड़ता है . धैर्य बनाए रखें . रेप शब्द एक उचित शब्द बिलकुल नहीं है इस सन्दर्भ में . लोग चीरहरण जैसे शब्द भी प्रयोग करते हैं जो उन्हीं भावों को थोडा ज्यादा अच्छे शब्दों में प्रकट करता है. और इससे भी बेहतर शब्द अपमान हो सकता है . हो सकता है आपको लगता हो कि ये शब्द आपके गुस्से को सही रूप में प्रकट नहीं कर पायेगा . लेकिन कुछ गुस्सा मन में भी बनाए रखिये . क्रान्ति में ऐसा मन में दबा गुस्सा ही काम आता है. गुस्सा प्रकट ही हो जाए तो वो कम हो जाता है. धन्यवाद.
शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012
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