आजकल टी वी पर जब देखो तब चुनावी हलचल . आइये बात करें उमा भारती के उ प्र से चुनाव लड़ने की . जब से बी जे पी ने उमा भारती को उ प्र से चुनाव लड़ने की बात की है तब से सभी पार्टियाँ उमा के स्थानीय नहीं होने की बात उठा कर उन्हें मध्य प्रदेश का साबित करने की कोशिश कर रहे हैं. एक ऐसी राजनीति में जहां जब चाहे कोई नेता अपनी पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में चला जाता है वहाँ एक नेता के एक प्रदेश से दूसरी जगह आकर चुनाव लड़ना व प्रचार करना किस प्रकार मुद्दा बन जाता है और पार्टियों को परेशान करने लगता है ये देखने लायक बात है . यहाँ तक की इससे सबसे ज्यादा चिंता कांग्रेस पार्टी को है. उनके भोले भाले महासचिव जिनका राजनीतिक कैरियर दांव पर लगा है बड़े ही भोले भले अंदाज में सब जगह बताते फिर रहे हैं कि क्यों उमा भारती मध्य प्रदेश छोड़कर उत्तर प्रदेश में आ गयी हैं . उनके इस सवाल के जवाब में उमा ने भी बम दाग दिया है कि जब रोम की सोनिया गाँधी हिंदुस्तान में स्वीकार्य हो सकती हैं तो मैं तो मध्य प्रदेश की हूँ. पहले राहुल अपनी माँ को जाने तब अपनी बुआ के बारे में बोलें . अब राहुल बाबा तो फंस गए न . बड़ी मुश्किल से बुन्देल खंड का गणित बनाया था जिसे बी जे पी चट करने में लगी है. आखिर कांग्रेस करे तो क्या करे . एक बार सत्ता हाथ से गयी तो दोबारा हाथ को दो दो हाथ करने में पसीना बहाना पड़ रहा है. खैर , जिस राजनीति में बड़े बड़े गुंडे मवाली हाथ आजमा रहे हों वहाँ पर ये कहना कि एक बाहरी व्यक्ति क्यों चुनाव लड़ रहा है एक बचकाना सा सवाल लगता है . जब राजनीति और जंग और प्यार में सब कुछ जायज है तो फिर ये सवाल बेकार सा ही लगता है. हर पार्टी अपनी संख्या बल बढ़ाने के लिए व्याकुल है . और वो किसी को भी अपने राज्य या चुनाव क्षेत्र में बुला सकता है और चुनाव भी लड़ा सकता है. अब ये विपक्षी टीम का दायित्व बनता है कि वो किस प्रकार से अपनी सीट बचाए . कोई सवाल उठा सकता है कि व्यक्ति अपने अपने संसदीय या विधान सभा क्षेत्र में ही चुनाव प्रचार करे तो राहुल तो उत्तर प्रदेश के अमेठी से हैं तो क्या वे अमेठी तक सीमित रहना पसंद करेंगे ? और फिर वे तो पार्लियामेंट के सदस्य हैं क्यों भला उत्तर प्रदेश से प्रचार कर रहे हैं . उत्तर प्रदेश के ही नेता चुनाव करें , केंद्र से लोग क्यों आ रहे हैं तो कोई कह सकता है कि ये तो महासचिव हैं . फिर भी हैं तो अमेठी संसदीय क्षेत्र से ही . इसलिए ये सब बातें फिजूल हैं और कांग्रेस को लगता है कि उसका नुक्सान है तो वो सही तर्क ही दे . ये फिजूल की बातें कह कर वो क्या कहना चाहती है ?
गुरुवार, 19 जनवरी 2012
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें