मैं तब्लीगी जमात से हूँ। जी हाँ , तब्लीगी जमात से । जी हाँ , वर्षों पहले मेरे इस संगठन की स्थापना हुई थी। इसे आप हमारा चिंतन शिविर समझ लीजिये। मेरा कुछ दिन पहले निजामुद्दीन में भी कार्यक्रम था। बहुत से लोग बाहर से आये और उससे कई गुना भारत से। कोरोना दुनियां भर में फ़ैल रहा था और दुनियां लॉक डाउन की तरफ बढ़ रही थी। मुझे भी पता था कि हिंदुस्तान की सरकारें भी डिस्टेंस क्योर की तरफ बढ़ चुकी थी। लेकिन मुझे जो समझाया गया था उस हिसाब से मुझे कोरोना नहीं हो सकता था। और यदि होता भी तो मैं तो एक ऐसे स्थान पर उपस्थित थी जहां से सीधे जन्नत के दरवाजे खुलते हैं। 72 हूरों के दरवाजे खुलते हैं। यहाँ मरने से बेहतर कुछ नहीं है। अब यह मत कहना कि उन बहत्तर हूरों का खर्चा कौन उठाएगा या मेरे किसी सदस्य के मरने पर वह कैसे इस खर्च को उठाएगा। क्या मेरे किसी सदस्य ने कभी महंगाई के लिए कोई आंदोलन इस देश में किया है ? जब मेरे घर में मेरी चार पत्नियां अपने अपने बच्चों के साथ मेरे परिवार को पंद्रह बीस तक पहुंचा देती हैं तो उनका खर्चा तो मेरा वह सदस्य ही उठता है। क्या वह कभी सड़क पर आया कि महंगाई हो गयी है। मेरे लोग हमेशा संघर्ष के लिए तैयार रहे हैं। मेरे सदस्य के परिवार जन चाहे किसी नाई की दुकान पर बैठकर चार पैसे कमाएं या कहीं सब्जी बेचें या पंक्चर लगाएं। हम सब कुछ अल्लाह की देन समझ करअपना लेते हैं और जैसे तैसे गुजारा कर लेते हैं। कोई कम पैसे की ज्यादा शिकायत नहीं करते। जब शाहीन बाग में मेरे लोग बैठे थे तो वहाँ रात को अपने आप खाना पहुँच जाता था। क्या हमने कभी सरकार से खाना माँगा था। हम पर तो अल्लाह की मेहरबानी थी ।
मेरे लोगों को कोरोना हो गया था। मेरा मुखिया मोहम्मद साद कहीं छुप गया है । ऐसा सरकार कहती है। मगर मुझे लगता है यह गलत है और इसलिए जब आप मेरे लोगों को ढूंढ रहे हैं तो वे उन पर पत्थर बरसा रहे हैं। क्योंकि मेरे सदस्यों को पता है कि उन्हें कोरोना नहीं हो सकता। और आप जब जबरन मेरे लोगों का इलाज करेंगे तो मैं कैसे मान लूँ कि मेरे लोगों को कोरोना हुआ है। आखिर मेरे समाज के जिन सदस्यों ने एक सरकार को हराने के लिए कोई विचारधारा तक नहीं अपनायी और कभी कांग्रेस , कभी सपा तो कभी बसपा की गोद में बैठते रहे। मेरा कोई चिंतन तक हिंदुस्तान में कभी पनपा ही नहीं और मेरे लोग सिर्फ एक नकारात्मक राजनीति के तहत सिर्फ इस सरकार को न आने देने के लिए या इसके सत्ता में होने पर इसको बाहर करने के लिए कोशिशें करते रहे तो ऐसे में वे कैसे मान लें कि यह सरकार उनका इलाज करेगी। नहीं। आज से पहले तमाम सरकारें हमारा नाम ले लेकर हमें पुचकारती थीं मगर यह सरकार जबसे आयी है तब से कभी भी इस सरकार ने हमें " मेरे मुसलमान भाइयों " कहकर पुकारा ही नहीं। हमें कोई अलग से सहूलियत दी ही नहीं। एक सौ तीस करोड़ भारतवासी। आखिर हम कहाँ ढूंढें खुद को इसमें। यदि हमारा अलग से नाम लिए हमें पुकारा होता तो हमें पता चलता कि हम कहीं तो हैं। गुड़ न देते पर गुड़ जैसा पुकार तो लेते। क्या हमें पहले किसी ने गुड़ दिया है? गुड़ दिया होता तो हमारे लिए बनी सच्चर कमिटी हमारे हालत को ऐसे कैसे बयां करती कि हम किस हालत में जी रहे हैं। हमें भले ही किसी ने कुछ न दिया हो पर हमें देश के संसाधनों पर हमारा पहला अधिकार का आश्वासन तो दिया है। क्या यह काम है ? पहले किसने भला यह कहने की हिम्मत की। जिस सरकार पर भरोसा करने की बात करते हो यह तो इस बात से ही चिढ जाती थी। अब कहती है - 130 करोड़। कहते हैं कि विश्वास कर लो।
देश में भले ही कितने दंगे हुए हों और भले ही अधिकांश दूसरी सरकारों के राज काज में हुए हों पर 2002 क्यों हुआ था ? यदि गोधरा में 59 लोग मार दिए गए। जिन्दा जला दिए गए। तो क्या हिंसा का जवाब हिंसा होता है ? हम तो गाँधी के देश में हैं। अहिंसा परमो धर्मः। गाँधी जी ने कहा था - कोई एक गाल पे थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो। क्या जिन्होंने प्रतिकारात्मक दंगा किया वे गाँधी को भूल गए थे ? गांधी का इतना अपमान कैसे किया गया ? हमारी बात करते हो ? हमने तो जिन्ना की बात पर पाकिस्तान के लिए वोट किया था। हम यहां हिंदुस्तान में बाई chance नहीं बल्कि बाई choice रुके। और यह देश तो वैसे भी अतिथिः देवो भव वाला रहा है। और हम तो अतिथि भी नहीं है। तुम तो जानते ही हो हम कौन हैं ? या तो हम औरंगजेब वगैरह से साथ आये थे या इस देश के धर्मान्तरित हिन्दू हैं। हमने यहां आठ सौ साल राज किया है। समझे ?
एक बात और सुन लो। हम थूकते हैं। गंद करते हैं। क्योंकि हम यहां हॉस्पिटल में अपने अल्लाह की मर्जी से नहीं लाये गए। काफिरों के द्वारा लाये गए हैं। इसलिए अपनी मर्जी से हटकर हम पर हुक्म नहीं चलाया जा सकता
और हम पर तुमने हाथ डाला ? क्या तुम्हें हमारी ताकत का पता नहीं कि मरकज भी हमने तब खाली करने का मन बनाया था जब तुम्हारे NSA अजित डोभाल आये थे। क्या तुम्हें इससे हमारी ताकत का अंदाजा नहीं लगा और तुम बेचारे उस थाना प्रभारी से उम्मीद लगाए थे कि वह हमारा मरकज खाली करवाए जो हमारे पिछवाड़े के पुलिस स्टेशन पर बैठता था। उसकी हमने सुनी जरूर पर की नहीं। क्योंकि हम अल्लाह के बन्दे हैं। भले ही हमारी कितनी ही बदनामी हो जाए। भले ही हमारे प्रति एक समाज में कितनी भी नकारात्मकता फैले पर हम अपनी राह से नहीं डिगने वाले। कभी आओ न। हमारी नमाज में। कितनी व्यवस्थित होती है हमारी नमाज। तुम्हारे मंदिरों में तो भक्तों को यही पता नहीं होता कि भगवान् के दर्शन करके जब वह बाहर आएगा तो उसे उसकी चप्पल भी मिलेंगी या नहीं। हमारा अनुशासन हमें बहुत कुछ सिखाता है। हमें जो इंजेक्शन शुक्रवार को लगाया जाता है वह हमारे DNA में है और हम आसानी से बदलने वाले नहीं।
आज कुछ लोग हमें अपनी कालोनियों में नहीं घुसने दे रहे। हमें शक की निगाह से देख रहे हैं हमारे आधार कार्ड चैक किये जा रहे हैं। हम पर फलों और सब्जियों पर थूकने के आरोप लगाए जा रहे हैं। हमें घृणा की नजर से देखा जा रहा है। मगर हमारा आका मोहम्मद साद कोई मैसेज हमारे बन्दों को देने को तैयार नहीं है। वह अमीर है और उसने कहा था कि हम अगर मस्जिद में रुके तो वहाँ की मौत बेहतर होगी। वह भी जरूर कहीं मस्जिद में ही होगा। वह नहीं चाहेगा कि अगर उसे कोरोना हुआ तो वह काफिरों के हाथों ठीक हो। हम अल्लाह के भरोसे हैं। हमारे बहुत से लोग छिपे बैठे हैं क्योंकि वे वैसा ही करने के लिए कहे गए हैं। हमारे प्रति तुम्हारी घृणा का क्या करना। कल सब ठीक हो जाएगा। बाल बनवाने तो हमारे ही पास आओगे न। सब्जी , दूध , फल , BIKE में पंक्चर , पोताई , मिस्त्री के काम , पेंट करना , कबाब खाना । ये सब किससे कराओगे ? कब तक हमसे घृणा करोगे ? कभी अपने अंदर के छेद देखे हैं तुमने ? छन्नी हो। किसी का शिव तो किसी का विष्णु तो किसी के राम ,किसी के कृष्ण। अपने मतभेद सुलझाओ तो हमें समझने आना। हाँ , हमें पता है , हमारे लोगों ने मरकत की गलती मानी होती , चुपचाप हॉस्पिटल में इलाज करवा लिया होता , जो जमाती छिपे बैठे हैं वे बाहर आकर इलाज करवा लेते , जो जमातियों को छिपाए बैठे है वे सूचना देकर बता देते कि जमाती यहाँ हैं और इनका इलाज कर दो। गलती हो गयी। बता देते कि कौन कौन कब कब कहाँ किससे मिला है। थूकते नहीं। फसाद नहीं करते तो क्यों होती यह नफरत। सब कुछ बहुत नार्मल होता। कही कुछ नहीं होने वाला था। पर हम लापरवाही के लिए माफ़ी किससे मांगे। और तुम कहोगे मत मांगो माफ़ी , पर इलाज भी क्यों कराएं। हमारे लोगों को कोरोना है भी या तुम्हारी साजिश है ? तुम्हें तो क्या यह डर लग रहा है कि कहीं कोरोना तुम्हारी सरकार न निगल ले। इसलिए तुम इतनी मेहनत कर रहे हो। करो। पर हम सहयोग नहीं करेंगे। सरकार गिर जाये तो हमारे लोग तो आएंगे सरकार में। जैसे दिल्ली में आये। तब देखेंगे। दिल्ली में हमने सरकार बनायी न ? हमारी पुरानी पार्टी कांग्रेस खुलकर हमारे साथ है। इसलिए सब ठीक होगा। हम माफ़ी उस सरकार से मांगे जिस पार्टी के हारने के लिए हमने आज तक अपनी कोई स्थायी सोच तक नहीं बनायीं ताकि हम किसी पार्टी से जुड़े रहते ? सॉरी , इस सरकार का तो कुछ भी बर्दास्त नहीं हमें। क्योंकि हमें सिखाया गया है इससे नफरत करना। मुरादाबाद , मेरठ , भागलपुर , बनारस , बम्बई , इमरजेंसी या 1947 के दंगों ने भले ही हमें कितने ही जख्म दिए हों। पर याद तो हमें 2002 ही है। क्योंकि वहां इस सरकार के राज काज में हमें प्रतिकारात्मक जवाब मिला था। इसलिए हम उसे नहीं भूल सकते। 2002 से पहले भले ही उस राज्य के लोगों ने साल के छह महीने CURFUE में गुजारे हों पर उसके बाद तो वहाँ शांति ही छा गयी थी।
तुम हमें समझते क्या हो ? जब हमने कश्मीर से लाखों पंडितो को निकाला था तो क्या कोई ख़ास हलचल हुई थी। नहीं न। ये ही हमारी स्वीकार्यता थी। तुम हमें जमाती कहते हो , क्यों ? क्या हमारे लोगों ने तुम्हें हमको जमाती कहने से नहीं रोका ? रोका होगा। और तुम रुक नहीं रहे हो। हमें जमाती मत कहो क्योंकि इससे हमारी बदनामी होती है। हमारे धर्म , सॉरी, हमारे मजहब की बदनामी होती है। इसलिए हमें सिर्फ covid 19 के मरीज समझो। हमें पता है कि हमारे आका साद यदि हमारे लोगों से कहें कि वे बाहर निकल आएं तो शायद वे बाहर निकल आएंगे पर वे नहीं कहेंगे। क्योंकि वे अपने इरादों के पक्के हैं। और वे खुद भी अभी बाहर नहीं आएंगे क्योंकि अभी बाहर आये तो उनकी भारी सुताई हो सकती है और लॉक डाउन के कारण हमारे लोग प्रदर्शन के लिए भी वहाँ पर नहीं आ पाएंगे। तो फिर जान छुड़ाना भारी पड़ जाएगा इसलिए अल्लाह के भरोसे वे बैठे हैं और जैसे ही सही वक्त आएगा वे भी आ जाएंगे। चिंता मत करें। तुम्हें मेरी ताकत का तो अंदाजा होगा कि जब जुनैद , अख़लाक़ और तबरेज मरे थे तब किस तरह से हमारे हजारों समर्थक अपने अपने बिलों से निकल आये थे और उन्होंने तुम्हारे लिए जवाब देना भारी कर दिया था। सारा देश हमारे लिए उमड़ पड़ा था। आज तुम्हारे तीन साधु मारे गए हैं। क्या कोई बोला तुम्हारे लिए। तुम्ही तो बोले। तुम्हारे बोलने से क्या होता है ? तुम इस देश की धर्म निरपेक्ष संस्कृति के प्रतिरूप तो नहीं हो। तुम कम्युनल हो। भगवा यदि सुबह के सूर्य में है तो क्या ? शिवाजी के ध्वज में था तो क्या ? तुम्हारी शिवसेना का प्रतीक है तो क्या ? हमारे ध्वज में है तो क्या ? तुम्हें समझना चाहिए कि यहाँ तो सब सावन के अंधे हैं और इन्हें सिर्फ हरा ही हरा दिखाई देता है। और वह हरा हमारे पास है। सिर्फ हमारे पास।
इसलिए फर्क करो हममें और तुममें। अगर हम बदल गए तो तुममें और हममें फर्क क्या रहेगा। फर्क से ही तो दुनियां चलती है। तुम हमारे लोगों को रोकोगे ? कब तक ? कल का कायर हिन्दू आज का मुसलमान है और आज का कायर हिन्दू कल का मुसलमान होगा ऐसी अफवाहें चलती रहती हैं। जानते हो न। अब पहचान गए मुझको। मैं खुद भी तो अफवाहों का ही शिकार हूँ पर तुम्हारी नहीं सुनूंगा। खैर , बहुत हो चुका। मिलेंगे कोरोना के बाद प्यार से। जैसे पहले मिले थे। बॉय।
मेरे लोगों को कोरोना हो गया था। मेरा मुखिया मोहम्मद साद कहीं छुप गया है । ऐसा सरकार कहती है। मगर मुझे लगता है यह गलत है और इसलिए जब आप मेरे लोगों को ढूंढ रहे हैं तो वे उन पर पत्थर बरसा रहे हैं। क्योंकि मेरे सदस्यों को पता है कि उन्हें कोरोना नहीं हो सकता। और आप जब जबरन मेरे लोगों का इलाज करेंगे तो मैं कैसे मान लूँ कि मेरे लोगों को कोरोना हुआ है। आखिर मेरे समाज के जिन सदस्यों ने एक सरकार को हराने के लिए कोई विचारधारा तक नहीं अपनायी और कभी कांग्रेस , कभी सपा तो कभी बसपा की गोद में बैठते रहे। मेरा कोई चिंतन तक हिंदुस्तान में कभी पनपा ही नहीं और मेरे लोग सिर्फ एक नकारात्मक राजनीति के तहत सिर्फ इस सरकार को न आने देने के लिए या इसके सत्ता में होने पर इसको बाहर करने के लिए कोशिशें करते रहे तो ऐसे में वे कैसे मान लें कि यह सरकार उनका इलाज करेगी। नहीं। आज से पहले तमाम सरकारें हमारा नाम ले लेकर हमें पुचकारती थीं मगर यह सरकार जबसे आयी है तब से कभी भी इस सरकार ने हमें " मेरे मुसलमान भाइयों " कहकर पुकारा ही नहीं। हमें कोई अलग से सहूलियत दी ही नहीं। एक सौ तीस करोड़ भारतवासी। आखिर हम कहाँ ढूंढें खुद को इसमें। यदि हमारा अलग से नाम लिए हमें पुकारा होता तो हमें पता चलता कि हम कहीं तो हैं। गुड़ न देते पर गुड़ जैसा पुकार तो लेते। क्या हमें पहले किसी ने गुड़ दिया है? गुड़ दिया होता तो हमारे लिए बनी सच्चर कमिटी हमारे हालत को ऐसे कैसे बयां करती कि हम किस हालत में जी रहे हैं। हमें भले ही किसी ने कुछ न दिया हो पर हमें देश के संसाधनों पर हमारा पहला अधिकार का आश्वासन तो दिया है। क्या यह काम है ? पहले किसने भला यह कहने की हिम्मत की। जिस सरकार पर भरोसा करने की बात करते हो यह तो इस बात से ही चिढ जाती थी। अब कहती है - 130 करोड़। कहते हैं कि विश्वास कर लो।
देश में भले ही कितने दंगे हुए हों और भले ही अधिकांश दूसरी सरकारों के राज काज में हुए हों पर 2002 क्यों हुआ था ? यदि गोधरा में 59 लोग मार दिए गए। जिन्दा जला दिए गए। तो क्या हिंसा का जवाब हिंसा होता है ? हम तो गाँधी के देश में हैं। अहिंसा परमो धर्मः। गाँधी जी ने कहा था - कोई एक गाल पे थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो। क्या जिन्होंने प्रतिकारात्मक दंगा किया वे गाँधी को भूल गए थे ? गांधी का इतना अपमान कैसे किया गया ? हमारी बात करते हो ? हमने तो जिन्ना की बात पर पाकिस्तान के लिए वोट किया था। हम यहां हिंदुस्तान में बाई chance नहीं बल्कि बाई choice रुके। और यह देश तो वैसे भी अतिथिः देवो भव वाला रहा है। और हम तो अतिथि भी नहीं है। तुम तो जानते ही हो हम कौन हैं ? या तो हम औरंगजेब वगैरह से साथ आये थे या इस देश के धर्मान्तरित हिन्दू हैं। हमने यहां आठ सौ साल राज किया है। समझे ?
एक बात और सुन लो। हम थूकते हैं। गंद करते हैं। क्योंकि हम यहां हॉस्पिटल में अपने अल्लाह की मर्जी से नहीं लाये गए। काफिरों के द्वारा लाये गए हैं। इसलिए अपनी मर्जी से हटकर हम पर हुक्म नहीं चलाया जा सकता
और हम पर तुमने हाथ डाला ? क्या तुम्हें हमारी ताकत का पता नहीं कि मरकज भी हमने तब खाली करने का मन बनाया था जब तुम्हारे NSA अजित डोभाल आये थे। क्या तुम्हें इससे हमारी ताकत का अंदाजा नहीं लगा और तुम बेचारे उस थाना प्रभारी से उम्मीद लगाए थे कि वह हमारा मरकज खाली करवाए जो हमारे पिछवाड़े के पुलिस स्टेशन पर बैठता था। उसकी हमने सुनी जरूर पर की नहीं। क्योंकि हम अल्लाह के बन्दे हैं। भले ही हमारी कितनी ही बदनामी हो जाए। भले ही हमारे प्रति एक समाज में कितनी भी नकारात्मकता फैले पर हम अपनी राह से नहीं डिगने वाले। कभी आओ न। हमारी नमाज में। कितनी व्यवस्थित होती है हमारी नमाज। तुम्हारे मंदिरों में तो भक्तों को यही पता नहीं होता कि भगवान् के दर्शन करके जब वह बाहर आएगा तो उसे उसकी चप्पल भी मिलेंगी या नहीं। हमारा अनुशासन हमें बहुत कुछ सिखाता है। हमें जो इंजेक्शन शुक्रवार को लगाया जाता है वह हमारे DNA में है और हम आसानी से बदलने वाले नहीं।
आज कुछ लोग हमें अपनी कालोनियों में नहीं घुसने दे रहे। हमें शक की निगाह से देख रहे हैं हमारे आधार कार्ड चैक किये जा रहे हैं। हम पर फलों और सब्जियों पर थूकने के आरोप लगाए जा रहे हैं। हमें घृणा की नजर से देखा जा रहा है। मगर हमारा आका मोहम्मद साद कोई मैसेज हमारे बन्दों को देने को तैयार नहीं है। वह अमीर है और उसने कहा था कि हम अगर मस्जिद में रुके तो वहाँ की मौत बेहतर होगी। वह भी जरूर कहीं मस्जिद में ही होगा। वह नहीं चाहेगा कि अगर उसे कोरोना हुआ तो वह काफिरों के हाथों ठीक हो। हम अल्लाह के भरोसे हैं। हमारे बहुत से लोग छिपे बैठे हैं क्योंकि वे वैसा ही करने के लिए कहे गए हैं। हमारे प्रति तुम्हारी घृणा का क्या करना। कल सब ठीक हो जाएगा। बाल बनवाने तो हमारे ही पास आओगे न। सब्जी , दूध , फल , BIKE में पंक्चर , पोताई , मिस्त्री के काम , पेंट करना , कबाब खाना । ये सब किससे कराओगे ? कब तक हमसे घृणा करोगे ? कभी अपने अंदर के छेद देखे हैं तुमने ? छन्नी हो। किसी का शिव तो किसी का विष्णु तो किसी के राम ,किसी के कृष्ण। अपने मतभेद सुलझाओ तो हमें समझने आना। हाँ , हमें पता है , हमारे लोगों ने मरकत की गलती मानी होती , चुपचाप हॉस्पिटल में इलाज करवा लिया होता , जो जमाती छिपे बैठे हैं वे बाहर आकर इलाज करवा लेते , जो जमातियों को छिपाए बैठे है वे सूचना देकर बता देते कि जमाती यहाँ हैं और इनका इलाज कर दो। गलती हो गयी। बता देते कि कौन कौन कब कब कहाँ किससे मिला है। थूकते नहीं। फसाद नहीं करते तो क्यों होती यह नफरत। सब कुछ बहुत नार्मल होता। कही कुछ नहीं होने वाला था। पर हम लापरवाही के लिए माफ़ी किससे मांगे। और तुम कहोगे मत मांगो माफ़ी , पर इलाज भी क्यों कराएं। हमारे लोगों को कोरोना है भी या तुम्हारी साजिश है ? तुम्हें तो क्या यह डर लग रहा है कि कहीं कोरोना तुम्हारी सरकार न निगल ले। इसलिए तुम इतनी मेहनत कर रहे हो। करो। पर हम सहयोग नहीं करेंगे। सरकार गिर जाये तो हमारे लोग तो आएंगे सरकार में। जैसे दिल्ली में आये। तब देखेंगे। दिल्ली में हमने सरकार बनायी न ? हमारी पुरानी पार्टी कांग्रेस खुलकर हमारे साथ है। इसलिए सब ठीक होगा। हम माफ़ी उस सरकार से मांगे जिस पार्टी के हारने के लिए हमने आज तक अपनी कोई स्थायी सोच तक नहीं बनायीं ताकि हम किसी पार्टी से जुड़े रहते ? सॉरी , इस सरकार का तो कुछ भी बर्दास्त नहीं हमें। क्योंकि हमें सिखाया गया है इससे नफरत करना। मुरादाबाद , मेरठ , भागलपुर , बनारस , बम्बई , इमरजेंसी या 1947 के दंगों ने भले ही हमें कितने ही जख्म दिए हों। पर याद तो हमें 2002 ही है। क्योंकि वहां इस सरकार के राज काज में हमें प्रतिकारात्मक जवाब मिला था। इसलिए हम उसे नहीं भूल सकते। 2002 से पहले भले ही उस राज्य के लोगों ने साल के छह महीने CURFUE में गुजारे हों पर उसके बाद तो वहाँ शांति ही छा गयी थी।
तुम हमें समझते क्या हो ? जब हमने कश्मीर से लाखों पंडितो को निकाला था तो क्या कोई ख़ास हलचल हुई थी। नहीं न। ये ही हमारी स्वीकार्यता थी। तुम हमें जमाती कहते हो , क्यों ? क्या हमारे लोगों ने तुम्हें हमको जमाती कहने से नहीं रोका ? रोका होगा। और तुम रुक नहीं रहे हो। हमें जमाती मत कहो क्योंकि इससे हमारी बदनामी होती है। हमारे धर्म , सॉरी, हमारे मजहब की बदनामी होती है। इसलिए हमें सिर्फ covid 19 के मरीज समझो। हमें पता है कि हमारे आका साद यदि हमारे लोगों से कहें कि वे बाहर निकल आएं तो शायद वे बाहर निकल आएंगे पर वे नहीं कहेंगे। क्योंकि वे अपने इरादों के पक्के हैं। और वे खुद भी अभी बाहर नहीं आएंगे क्योंकि अभी बाहर आये तो उनकी भारी सुताई हो सकती है और लॉक डाउन के कारण हमारे लोग प्रदर्शन के लिए भी वहाँ पर नहीं आ पाएंगे। तो फिर जान छुड़ाना भारी पड़ जाएगा इसलिए अल्लाह के भरोसे वे बैठे हैं और जैसे ही सही वक्त आएगा वे भी आ जाएंगे। चिंता मत करें। तुम्हें मेरी ताकत का तो अंदाजा होगा कि जब जुनैद , अख़लाक़ और तबरेज मरे थे तब किस तरह से हमारे हजारों समर्थक अपने अपने बिलों से निकल आये थे और उन्होंने तुम्हारे लिए जवाब देना भारी कर दिया था। सारा देश हमारे लिए उमड़ पड़ा था। आज तुम्हारे तीन साधु मारे गए हैं। क्या कोई बोला तुम्हारे लिए। तुम्ही तो बोले। तुम्हारे बोलने से क्या होता है ? तुम इस देश की धर्म निरपेक्ष संस्कृति के प्रतिरूप तो नहीं हो। तुम कम्युनल हो। भगवा यदि सुबह के सूर्य में है तो क्या ? शिवाजी के ध्वज में था तो क्या ? तुम्हारी शिवसेना का प्रतीक है तो क्या ? हमारे ध्वज में है तो क्या ? तुम्हें समझना चाहिए कि यहाँ तो सब सावन के अंधे हैं और इन्हें सिर्फ हरा ही हरा दिखाई देता है। और वह हरा हमारे पास है। सिर्फ हमारे पास।
इसलिए फर्क करो हममें और तुममें। अगर हम बदल गए तो तुममें और हममें फर्क क्या रहेगा। फर्क से ही तो दुनियां चलती है। तुम हमारे लोगों को रोकोगे ? कब तक ? कल का कायर हिन्दू आज का मुसलमान है और आज का कायर हिन्दू कल का मुसलमान होगा ऐसी अफवाहें चलती रहती हैं। जानते हो न। अब पहचान गए मुझको। मैं खुद भी तो अफवाहों का ही शिकार हूँ पर तुम्हारी नहीं सुनूंगा। खैर , बहुत हो चुका। मिलेंगे कोरोना के बाद प्यार से। जैसे पहले मिले थे। बॉय।