तुम्हें तो आना ही था कोरोना! तुम क्यों न आते जब मुझे खाने से पहले हाथ धोने में शर्म आती। कहीं आने पर सीधे घर में घुस जाता, हाथ मुंह धोने के प्रवचन पर चिढ़ जाता। हाथ मुंह फुलाकर पानी पी जाता। खा पी लेता। पैरों से जूते उतारने में मुझे लगता कि अंग्रेज तो हमसे ज्यादा स्वस्थ हैं। क्या रखा है इस सबमें। जब मुझे कहा जाता कि रसोई में भोजन करो तो मैं उत्तेजित हो जाता। मुझे कहा जाता कपड़े बदलकर पूजा करो बाहर से कीटाणु आ जाते हैं तो मैं हंसता। कपडे़ ही बदलता रहूं क्या? मॉडर्न लोग क्या कहेंगे ? ब्रिटिशर्स की नकल करने में खुशी होती थी मुझे। सुना है, तुम ब्रिटिश राजकुमार पर चिपक गये हो। वो तो बीस दिन से नमस्ते कर रहे थे। अच्छा, तुमने सोचा होगा जब मैं नहीं था तब हाथ मिलाते थे और अब नमस्ते का नाटक? खैर, ये तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है। पर देखो , मैं कई दिन से घर पर हूँ। मेरे को माफ़ करना। हाथ छूने से कीटाणु आ जाते हैं ये बात तब तो मुझे समझ आती थी जब मैं डॉक्टर्स को मुँह पर मास्क और हाथों में ग्लब्स पहने ऑपरेशन करते देखता था पर जब बात मेरी आती और कभी मैं इस तरह की साफ़ सफाई की बात करता तो लोग जाने क्यों मुझे पोंगा पंडित कहने लगते। तुमने तो उस हिसाब से सबको पोंगा पंडित बना दिया है। बदला ले रहे हो क्या ? दिन में बीस बीस बार हाथ धुलवा रहे हो। कपडे बदलवा रहे हो। तुम्हे नाम भी तो बढ़िया दिया गया है - कोरोना। अब सब कह रहे हैं - हाथ धोया करो ना। कपडे बदला करोना। सब तुम्हें ही याद कर रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री तक कोरोना को कोई रोड पर ना निकले , कहकर सम्बोधित कर रहे हैं। तुम्हें अल्लाह ने तो नहीं भेजा है न ? कुछ लोग कह रहे थे कि उन्हें कुछ नहीं होगा क्योंकि कोरोना अल्लाह ने भेजा है। कुरान से निकला है। पर सरकार ने उन सबको घर के अंदर कर दिया है। संस्कृत वांग्मय में शब्द को आकाश का गुण कहा गया है। पर प्रकृति में हमने इतने शब्द और इतना शोरगुल भेज दिया है कि आकाश को भी सांस लेना दूभर हो रहा होगा। यह शब्द आजकल कमी बन कर रह गया था सो तुम आये और सब तरफ शांति है। आकाश चैन से साँसे ले रहा होगा। हमने कितना प्रदूषण दिया है आकाश को । तुम न आते तो अब भी साँसे घुट रही होती आकाश की। पवन तो पवित्र करती है। यही तो अर्थ है पवन में संस्कृत में। पर हमने तो पवन भी खराब कर दी थी। इतना प्रदूषण। गंगा को माँ कहा और माँ के पल्लू में जैसे हम अपनी नाक पौंछ दिया करते थे वैसे ही हमने अपनी गन्दगी की ठेका माँ गंगा को सौंप दिया है। हम हैं तो कमाल के। पर देखो। विदेशियों ने तो इसे माँ नहीं मन पर पानी मानकर साफ़ रखा। पर अपराधी तो वे भी हैं। हवा और आकाश खराब करने के। तुम्हारे कई और भाई बंद पवन , आकाश और जल में अभी भी घूम रहे होंगे। क्यों। खुश तो बहुत होंगे वे सब अब।
मैं मुंह पर पट्टी बांधे जैन मुनियों को देखता, हंसता था पर तुमने तो हम सबको जैनी बना दिया। जैनी तो किसी प्राणी की उनसे हिंसा न हो जाए इसलिए मुंह पर मास्क लगाते थे पर मैं तो इसलिए लगाता हूं क्योंकि मैने कुछ भी नहीं छोड़ा - कहते हैं - पारिस्थितिकी तंत्र में कीडों को मेंढक खाता है मेंढक को सांप और सांप को नेवला पर मैं तो सब कुछ निगल लेता था चूहे, सांप, नेवले, अजगर, मेंढक, चमगादड़, मगरमच्छ। मैं प्रकृति से ऊपर हूं उस पर नियंत्रण करने की इच्छा रही है मेरी। मैं भूल गया था कि - प्रकृतिकोप: सर्वकोपेभ्यो बलीयान्। प्रकृति का क्रोध सभी क्रोधों से बढ़कर होता है। अब मैं मगरमच्छ के आंसू बहा रहा हूं। मगरमच्छ को खा जाता हूं और उसी के ही नाम के आंसू बहाता हूं। कुत्ते! हां। ये मेरी प्रिय गाली रही है। फिल्म शोले का वह डॉयलॉग भी मुझे याद है अभी तक। वसंती ! इन कुत्तों के सामने मत नाचना। हां। कुत्ते भी खा जाता हूं मैं। वह ही मेरे अंदर खाये जाने के बाद भी जिंदा रहते होगा शायद। बकरे की तरह मिमिया जाता हूं मैं, जब डर जाता हूँ मैं। शायद जब उसे मारने के लिए माइए मैंने कुल्हाड़ी चलाई होगी तो डर से काँपा होगा वह । मिमियाया होगा और मेरे अंदर जाने के बाद भी वह कई बार मेरे अंदर से निकल पड़ते होगा मेरी मिमियाहट में। कभी-कभी जब कोई कहता है कि ज्यादा कांव-कांव मत करो तो मुझे लगता है कौवे के रूप में तुम्हारा ही कोई मेरे अंदर है । उसे भूनकर खाया होगा मैंने। कभी कोई उल्लू कहता है तो कोई गधा। जब कोई कहता है चमगादड़ की तरह लटका दूंगा तो मुझे तुम याद आते हो अरे! तुम्हारा सूप? कैसा होता है? सॉरी। तुम्हारा तो इसी से रिश्ता है न? तुम्हारा सूप ही तो पिया था चीनियों ने। चीनी डालकर पिया या नमक डालकर, पता नहीं। शंघाई में आज से उनके रेस्टॉरेंट फिर से खुल गए हैं। पर परसों गांव के दो लड़के छोटे से लड़के एक तार पर चिपके एक चमगादड़ को देख रहे थे। मैंने उन्हें डरा दिया। बता दिया कि तुम कैसे आये हो। सुनते ही भाग गए। वो क्या , हम सब भागे भागे फिर रहे हैं। थका दोगे तुम। घर के अंदर करके हमें खुद तुम बाहर घूम रहे हो। दिखाई भी दिए तो देख लेंगे। दिखाई तो दो। बहुत पहले तुम्हारा एक दूसरा भाई भी आया था इबोला। पर उससे तो निपट लिए हम सब। प्लेग से भी निपट लेते है। तुम्हारा भी नंबर आएगा। तुम्हें भी निपटाएंगे जरूर। तुमने गीता नहीं पड़ी है शायद। शरीर मरणधर्मा है। तुम्हारा भी शरीर ही तो था। क्या हुआ अगर हमने उसे जलाया या दफनाया नहीं। उपयोग ही तो किया। क्या जैन धर्म को नहीं पढ़ा तुमने ? वे तो अपना शरीर जंगलों में फिंकवा दिया करते थे ताकि किसी के काम आ सके। पर शायद तुम अकालमृत्यु के कारण नाराज होंगे। भरी जवानी में तुम्हें मारकर तुम्हारा जूस बनाकर पी जाने का गुस्सा होगा तुम्हारे अंदर। इसलिए नाराज होंगे। तुम्हारे एक और भाई हन्ता की खबर आयी है अभी उसी देश से। चीन से। सुना है चूहे और गिलहरी से पैदा होता है वह। एक मरा है। देखो , उसे मना करो। एक मौका तो दो।
देखो , हम तो अहिंसक गाँधी के देश के है। शांति प्रिय धर्म बौद्ध के देश के हैं। जैनियों के देश के हैं। बलिदानी सिखों के देश के हैं। पर तुम भी तो आये विदेश से ही हो। कितने दिनों तक टिकोगे। पर तुम्हारी नाराजगी भी जायज है। इसलिए तुम्हें तो आना ही था। सन्देश देने के लिए ही सही। पर हमें तो वर्षों से शुद्धि के लिए हमेशा से प्रयास किये है। यज्ञ किये हैं। प्रकृति पूजा की है। पेड़ पौधे आकाश पवन जल सूर्य चंद्र , सभी के प्रति तो कृतज्ञता व्यक्त की है। होंगे हमारे बीच भी कुछ लोग। पर तुम कोरोना हो। चमगादड़ को हमारे देश में कोई नहीं छूता। इसलिए क्यों परेशां कर रहे हो यार। जाओ भी।