गुरुवार, 30 जुलाई 2015

याकूब मेमन की फांसी पर बहुत से राजनेता रो रहे हैं।  हैरानी की बात यह है कि  ये लोग कैसे आतंकवाद के खिलाफ लड़ पाएंगे । इन लोगों को कौन समझाये कि  यदि हमारी न्याय व्यवस्था उस तरह चुस्त दुरस्त होती जिस प्रकार से याकूब मेमन को फांसी देने से पहले राजनाथ सिंह जी की सक्रियता और उसके बाद रात में कोर्ट का चलना और तमाम उन औपचारिकताओं को पूरा करना ताकि हमारे देश में याकूब का कोई  समर्थक कल को कोई अंगुली न उठा सकें , आदि तरीकों में यह सक्रियता देखने में आई उस प्रकार की न्याय व्यवस्था होती तो शायद हाफिज सईद कभी का फांसी पा चुका  होता और फिर उसे छुड़ाने के लिए कोई कंधार काण्ड न होता और जब यह हाफिज सईद को हमें न छोड़ना पड़ता तो २६/११ न होता।  लेकिन इस वक्त ऐसे तमाम लोग कोई एक प्रतिक्रिया उन लोगों के लिए नहीं दे रहे हैं जो उन धमाकों में मारे गए थे। जाके पैर न परी  बिवाई वो क्या जाने पीर पराई । खैर , हैरानी है कि  ये लोग न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठा रहे हैं । देशद्रोह पर न कोई माफ़ी , न विलम्ब । शास्त्र कहते हैं - सतयुग तब शुरू होता है जब न्याय व्यवस्था दंड का आश्रय लेती है । इसलिए दंड में कोई देर नहीं ।  

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