शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

 छान्दोग्य उपनिषद में गाड पार्टिकल -
बारहवां  अध्याय  -
ऋषि उद्दालक अपने पुत्र को समझाते हुए कहते हैं कि -
हे सौम्य ! इस सामने विद्यमान महान वट वृक्ष से एक फल तोड़कर ले आओ । ऐसा सुनते ही वह श्वेतकेतु शीघ्रता से फल को ले आया । आरुणि यानि उद्दालक ने पुनः कहा - इसे तोड़ दो । तोड़ते हुए श्वेतकेतु बोला - भगवन  तोड़ दिया । आरुणि  ने कहा - इसके अन्दर क्या दिखाई दे रहा है ? श्वेतकेतु बोला - इसके भीतर ये अणु  सदृश  दाने दिखाई दे रहे हैं । आरुणि  ने फिर कहा - इन दानों में से एक को लेकर तोड़ दो । श्वेतकेतु बोला  - भगवन ! तोड़ दिया । आरुणि  ने कहा - इसके अन्दर क्या देखते हो ? श्वेतकेतु बोला - हे भगवन ! मुझे इसके अन्दर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है ।
तब उद्दालक यानि आरुणि  ने कहा - हे सौम्य ! इस वट  वृक्ष के फल के इस बीज के अन्दर जिस अति सूक्ष्म अणु  रूप को तुम नहीं देख सकते हो , उसमे ही इतना विशाल वृक्ष स्थिर है । यह अणु  रूप ही सत्य है और वही  सत्य तुम भी हो । अणु रूप ही यह सूक्ष्म जगत है ।


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