छान्दोग्य उपनिषद में गाड पार्टिकल -
बारहवां अध्याय -
ऋषि उद्दालक अपने पुत्र को समझाते हुए कहते हैं कि -
हे सौम्य ! इस सामने विद्यमान महान वट वृक्ष से एक फल तोड़कर ले आओ । ऐसा सुनते ही वह श्वेतकेतु शीघ्रता से फल को ले आया । आरुणि यानि उद्दालक ने पुनः कहा - इसे तोड़ दो । तोड़ते हुए श्वेतकेतु बोला - भगवन तोड़ दिया । आरुणि ने कहा - इसके अन्दर क्या दिखाई दे रहा है ? श्वेतकेतु बोला - इसके भीतर ये अणु सदृश दाने दिखाई दे रहे हैं । आरुणि ने फिर कहा - इन दानों में से एक को लेकर तोड़ दो । श्वेतकेतु बोला - भगवन ! तोड़ दिया । आरुणि ने कहा - इसके अन्दर क्या देखते हो ? श्वेतकेतु बोला - हे भगवन ! मुझे इसके अन्दर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है ।
तब उद्दालक यानि आरुणि ने कहा - हे सौम्य ! इस वट वृक्ष के फल के इस बीज के अन्दर जिस अति सूक्ष्म अणु रूप को तुम नहीं देख सकते हो , उसमे ही इतना विशाल वृक्ष स्थिर है । यह अणु रूप ही सत्य है और वही सत्य तुम भी हो । अणु रूप ही यह सूक्ष्म जगत है ।