द्विजपति: स सुधाकर ओषधिप्रभुरथापि च रत्ननिधे: सुत:।
क्षयविमुक्तिमगान्नदिशो भ्रमन् यदपि तत्सुहृदौ भिषगश्विनौ।।
द्विजपति: स सुधाकर ओषधिप्रभुरथापि च रत्ननिधे: सुत:।
क्षयविमुक्तिमगान्नदिशो भ्रमन् यदपि तत्सुहृदौ भिषगश्विनौ।।
द्विजपति: स सुधाकर ओषधिप्रभुरथापि च रत्ननिधे: सुत:।
क्षयविमुक्तिमगान्नदिशो भ्रमन् यदपि तत्सुहृदौ भिषगश्विनौ।।
द्विजपति: स सुधाकर ओषधिप्रभुरथापि च रत्ननिधे: सुत:।
क्षयविमुक्तिमगान्नदिशो भ्रमन् यदपि तत्सुहृदौ भिषगश्विनौ।।
द्विजपति: स सुधाकर ओषधिप्रभुरथापि च रत्ननिधे: सुत:।
क्षयविमुक्तिमगान्नदिशो भ्रमन् यदपि तत्सुहृदौ भिषगश्विनौ।।
द्विजपति: स सुधाकर ओषधिप्रभुरथापि च रत्ननिधे: सुत:।
क्षयविमुक्तिमगान्नदिशो भ्रमन् यदपि तत्सुहृदौ भिषगश्विनौ।।
द्विजपति: स सुधाकर ओषधिप्रभुरथापि च रत्ननिधे: सुत:।
क्षयविमुक्तिमगान्नदिशो भ्रमन् यदपि तत्सुहृदौ भिषगश्विनौ।।