शनिवार, 14 अप्रैल 2018

आज चौदह अप्रैल है और अम्बेडकर  दिवस।  भीमराव राम जी आंबेडकर।  जी हाँ , कैंब्रिज की उनकी डिग्री में यही नाम लिखा है।  भगवान  का शुक्र मनाना  चाहिए कि  इस बात पर दो अप्रैल नहीं हुआ क्योंकि यह सच भी है।  उनके पिता का नाम रामजी मालोजी आंबेडकर।  दक्षिण भारत सहित देश के कई हिस्सों में कई परम्परा हैं जिसमे पिता का नाम भी साथ ही लगाया जाता है।  थोड़ी सी आपत्तियां उठी मगर शांत हो गयीं।  1991 में इन पर एक डाक टिकट भी निकला जिस पर इनका नाम यही है।  इससे पहले भी इसी नाम वाले डाक टिकट निकल चुके हैं।  लेकिन आपत्ति क्यों नहीं हुई।  कम  से कम इस बात पर तो आपत्ति तो होती कि इनके नाम से राम जी हटाया किसने था।  लेकिन कोई हल्ला नहीं है। उनको भी  नहीं जिन्हें कुछ दिन पहले सिर्फ इस बात से आपत्ति हो गयी थी कि  डॉ अम्बेकर की मूर्ति को भगवा कर दिया गया था।  जब आंबेडकर बौद्ध बने तब उन्होंने भगवा वेश ही धारण किया था क्योंकि उनका वस्त्र ही भगवा या बहुत हल्का लाल होता है।  क्या वे नहीं समझ पाते कि  क्या कर रहे हैं कि  क्या कर रहे हैं ? शायद नहीं।  उन्हें वह भगवा सिर्फ इसलिए पसंद नहीं क्योंकि वह एक पार्टी के ध्वज का रंग है।  उन्हें नहीं मतलब कि  भगवा  राग का , विराग का , ऊर्जा का , सूर्योदय का प्रतीक है।  उनको नीला पसंद है।  आंबेडकर वकील थे और उनके कोट का रंग काला हुआ करता था।  वकील काला कोट पहनते हैं। यह नीला रंग कब से आया , सब जानते हैं। 
किसी को इस बात पर कोई मलाल नहीं है कि  किसी ने अतीत में इनके नाम से राम जी हटा दिया था।  वर्षों पहले सरकारी चैनल पर एक कार्यक्रम आया करता था जिसका नाम था - कृषि दर्शन , कृषि दर्शन की शुरुआत राम राम जी से होती थी जिसका मतलब सर नमस्कार होता था जैसा कि  गांव में नमस्ते के लिए राम राम कहा जाता है।  लेकिन इस देश की धर्मनिरपेक्ष आँखों को यह राम राम जी नहीं सुहाया।  हटा दिया।  और बाद में आंबेडकर जी के नाम से भी।  भीमराव रामजी आंबेडकर।  इसी का संक्षेप है - बी आर आंबेडकर। 
डॉ आंबेडकर हिन्दू धर्म में अस्पृश्यता से इतने दुखी हुए कि  बौद्ध धर्म अपना लिया मगर आज उनकी ही लड़ाई है कि  वे किसके हैं।  वे बौद्ध हैं।  क्या हममें से कोई दलाई लामा के लिए लड़ रहा है कि  वे किसके हैं , नहीं।  क्योंकि दलाई लामा ने संविधान नहीं लिखा।  मगर संविधान तो उन्होंने सबके लिए लिखा तो फिर यह  लड़ाई क्यों कि  वे किसके हैं ? कुछ लोगों ने जिंदगी भर अम्बेकर के लिए कुछ नहीं किया यहां तक कि  उन्हें चुनाव तक हरा दिया मगर वे भी उनका झंडा उठाये फिर रहे हैं।  उनका चित्र तक वे संसद में नहीं लगा पाए , उन्हें भारत रत्न के लायक तक नहीं समझा , खुद को जिन्दा रहते ही भारत रत्न दे दिया मगर उनके लिए आज भागे भागे फिर रहे हैं।  एक और हैं जो यह समझते हैं कि  आंबेडकर उनके पेटेंट हैं।  तिलक तराजू और तलवार , इनको मारो जूते चार , से इनकी राजनैतिक यात्रा शुरू हुई और आज एक ब्राह्मण मिश्रा के सलाह पर ये राजनीती की राह चल रही हैं।  अम्बेडकर  ने आरक्षण की व्यवस्था शुरू हुई।  कालांतर में यह प्रोमोशन में आरक्षण में भी बढ़ा।  और इस प्रोमोशन में आरक्षण को समाप्त करने वाली उत्तर प्रदेश की एक पार्टी के साथ मिलकर ये सरकार बनाने की इच्छा रखती हैं।