भाजपाइयों के मजबूरी में चुप रह जाने से लेकर उनके अंदर ही अंदर किलसने तक , मायावती की बौखलाहट से लेकर मुलायम सिंह के मिमियाने तक , राहुल के खिसियाने से लेकर केजरी के लोगों को भड़काने तक और सी पी एम् के भड़भड़ाने से लेकर ममता के खुद को नुचियाने तक ,के ये तमाम दृश्य आज हर कोई देख रहा है । इनको लगता है कि ये तो चुनाव हार चुके हैं । फिर मुलायम सिंह का यह कहना कि सप्ताह भर आगे बढ़ाया जाए , सिर्फ इसलिए हो सकता है ताकि जनता को यह कहा जा सके कि हमने भी हामी भरी है काले धन के विरोध के खिलाफ और पीएम से कहा कि वे इसे बंद करें या फिर हो सकता हैं इसे लागू ही न होने दें । मायावती १०० साल तक स्वयं के लिए मोदी जी द्वारा इंतजाम करने का दावा कर रही हैं , निश्चित ही कोई यकीन नहीं करेगा । उन्हें भी अपना वोट खिसकता दिख रहा है , धन बल ख़त्म हो गया है । ब्लैक मनी और फेक करेंसी बंगाल से बहुत मात्रा में हिंदुस्तान पहुचती है तो सी पी एम् व ममता का बौखलाना बनता है । कांग्रेस बेहोश हैं , सब ख़त्म होता दिख रहा है । कई दिनों से उत्तराखंड में हरीश रावत मुख्यमंत्री का प्रचार थम सा गया है क्योंकि करेंसी ख़त्म हो गयी है । खैर , आगे बढ़ते है - कभी पी एम् पद के प्रबल दावेदार आडवाणी जी कहाँ हैं , किसी को खबर नहीं है । उनका तो बयान तक लेने कोई नहीं गया मगर अन्ना के पास अभी तक कोई पत्रकार नहीं पहुंचा , निश्चित ही अन्ना तो सो ही रहे होंगे यह सोचकर कि चलो कोई तो मिला जिसने कुछ हटकर करने की कोशिश की । अन्ना यह भी देख रहे होंगे कि उनका एक शिष्य जो कभी काले धन की लड़ाई में उनके साथ हुआ करता था , आज कभी लोगों को चुपचाप भड़काने की कोशिश कर रहा है और अपने प्रति लोगों के आक्रोश को देखकर चुपचाप लौट जाता है , तो कभी बीजेपी की पूँजी कहे जाने वाले कारोबारियों को मिलने जाता है उनके साथ सहानुभूति देखने चला जाता है , जाहिर है उन्हें बेवकूफ समझता होगा । जिस बीजेपी को कारोबारी जीवन भर पालते पोसते रहे , ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी होने का अभिशाप जो पार्टी जीवन भर झेलती रही उसने ही उस शाप से एक झटके में खुद को ऐसे मुक्त कर लिया है कि देखकर पक्ष और विपक्ष दोनों परेशां हैं । निश्चित तौर पर ज्यादा परेशां वे बीजेपी के ही लोग होंगे क्योंकि परायों के घाव कौन गिनता हैं , चोट तो अपनों की ज्यादा दर्द देती है । मोदी मोदी मोदी कर कर के जो लोग २८२ सीटों के साथ सत्ता में आ गए , उन्हें पता है कि कितनों को तो अपने जीतने की कोई उम्मीद भी नहीं रही होगी , वे जीते भी तो मोदी लहर में और अब काला धन बर्बाद भी हुआ तो मोदी लहर में । मोदी जी को भी यह पता है कि कौन किसके प्रताप से जीता है । इसलिए बोलने की हिम्मत जुटाना आसान नहीं । कदम कितना सार्थक होगा यह तो भविष्य ही बताएगा मगर फ़िलहाल तो हर जगह मोदी मोदी ही है । पिछले चुनाव में बिहार में भाजपा को जो हार झेलनी पड़ी क्या यह उसका भी नतीजा हो सकता है जिसमें मोहन भागवत के एक बयान ने सारा तख्ता ही पलट दिया था और भाजपा को सांप सूंघ गया था । क्या मोदी स्वयं अंदर अंदर ही इससे बहुत आहत हुए होंगे और क्या यही सोचकर उन्होंने एक ऐसी चाल चली जिससे कोई और इस तरह का बयान उनके विजय रथ को यूं पी में न रोक पाए ? क्या वे एक ऐसी छवि लेकर यू पी चुनाव में जाना चाहते हैं जहां कोई भी उन्हें हरा न पाए ? वर्ना किसी का भी कोई बयान उन्हें हरा सकता है जैसे यू पी में हुआ था । यह उन्हें पता होगा मगर इस एक प्रहार ने इतनी बुरी तरह से चारों और चोट की है कि हर कोई अब यह तो सोच ही रहा होगा कि यदि वैट जनता से ही लेना है तो दिक्कत क्या है ? क्यों अपने ग्राहक को खुश करने व अपने लिए काला धन जमा करने के बजाय ईमानदारी से ही चला जाए । इसमें बुराई ही क्या है ? गर्दन ऊँची करना क्या जीना नहीं होता । पीएम ने कभी कहा था कि हम न तो गर्दन नीचे करके बात करेंगे और न गर्दन ऊंची करके बात करेंगे । हम आँखों में ऑंखें डाल कर बात करेंगे । यानि हम सब स्वाभिमान से जीयेंगे । मैं न तो कोई चीज फ्री दूंगा मगर मैं आपको स्वाभिमान से जीना सिखाऊंगा । क्या यह उन्हीं पंक्तियों का क्रियान्वयन है । यदि है तो अब पी एम् की बातों को शायद ही कोई हलके में लेने की भूल करे । बीजेपी आज सोच रही होगी कि किस आदमी से पाला पड़ा हैं । जो करोड़ों खर्च करके सांसद बने थे उनके उन करोड़ों की भरपाई तो क्या हुई होगी बल्कि ढाई साल में कोई खास कमाई नहीं हुई और जो रहा सहा संदूकों में भरा था वह भी गया । यह देखना दिलचस्प होगा कि पीएम ने जो कहा है कि वे ३० दिसंबर के बाद एक नया भारत देंगे वह कैसा होगा । कहीं सबकी तनख्वाह एक सी तो नहीं हो जायेगी । चपरासी से लेकर अधिकारी तक । आंखों से आँखों मिलकर बात करना क्या यही है ? यह आशंका है । सभी सरकारी कर्मचारी एक तनख्वाह में ,सभी पढ़े लिखे बेरोजगार एक तनख्वाह में और सभी अनपढ़ बेरोजगार एक तनख्वाह में और बाकि सब एक तनख्वाह में । या फिर कुछ और । कैशलेस शॉपिंग तो तय है । शायद २००० का नोट भी वापस हो जाये और फ़िलहाल यह भी एक स्ट्रेटजी का हिस्सा हो । बाकि बेनामी संपत्ति पर जो मार पड़ने वाली है उसने जरूर एक बार फिर हड़कंप मचा दिया है । हम लोग अब आने वाले दिन यही कयास लगाने के लिए बैठे है कि ३० दिसंबर के बाद क्या । देखते हैं , ३० दिसंबर के बाद कितने लोग आई सपोर्ट नरेंद्र मोदी को छोड़ते हैं और कितने नए जुड़ते हैं ।
रविवार, 13 नवंबर 2016
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