बुधवार, 25 दिसंबर 2019

गंगा जमुनी तहजीब। कितना सुकून है इस शब्द में।  पर यह सुकून खो गया था जब कमलेश तिवारी को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि उसने एक धर्म विशेष के खिलाफ कुछ कह दिया था।  इनाम घोषित हुआ कि जो सर कलम करेगा उसे इक्यावन लाख रुपये मिलेंगे। मारने वाले को तो पता नहीं कि पैसा मिला या नहीं मगर कमलेश तिवारी जिहाद का शिकार हो गया।  गीता में कहा है कि  धर्म युद्ध में जो मरता है उसे स्वर्ग मिलता है मगर कमलेश तिवारी को इस जहां से मुक्ति मिल गयी ।
गंगा जमुनी तहजीब। बहुत सुकून है इस शब्द में।  मक़बूल फ़िदा हुसैन।जब  हिन्दू देवी देवताओं पर बनाये नग्न और अर्धनग्न चित्र और उस पर हिन्दू समाज का चुपचाप सह जाना देखता था तब समझ पाता  था गंगा जमुनी तहजीब । अभिव्यक्ति की आजादी यहीं तो है। हिन्दू धर्म और इसके देवी देवता अभिव्यक्ति की प्रयोगशाला हैं , ऐसा ही समझाया जाता रहा है।
सी ए  ए  या सी ए  बी के नाम पर हुड़दंग मचाकर देश की संपत्ति सिर्फ इसलिए फूंक देना कि  इससे उन धर्म प्रताड़ित पाकिस्तानी हिन्दुओं को नागरिकता मिल जायेगी और उन  घुसपैठियों को नहीं जिन्हें पाक और बांग्लादेश मिला फिर भी यहीं घुसना चाहते हैं। यही है गंगा जमुनी तहजीब ?  कितना सुकून देता है यह शब्द।  अयोध्या में पुस्तकालय बना लो , हॉस्पिटल बना लो , विश्वविद्यालय बना लो ताकि दुनिया में एक सन्देश जाए भाईचारे का।  यही तो कहते रहे बाबर के साथ खड़े लोग। गंगा जमुनी तहजीब निभाते रहे। मस्जिद न बने तो कोई बात नहीं।  मगर मंदिर नहीं बनना चाहिए।  गंगा जमुनी तहजीब।  स्वाभाविक है , जिन्हे मस्जिद की जगह हॉस्पिटल में कोई दिक्कत नहीं थी उन्हें दिक्कत तो मंदिर से ही थी। कितनी खूबसूरत है ये गंगा जमुनी तहजीब। लेकिन किसके लिए।
रामलला केस जीत  गए। कोर्ट ने कहा कि पांच एकड़ जमीन मस्जिद के लिए दी जाए।  यही तो है गंगा जमुनी तहजीब। लोगों ने , हिंद्युओं ने खुशियां भी न मनाई कि  कोर्ट के निर्णय से किसी का दिल न दुखे।  इसलिए इस गंगा जमुनी तहजीब पर चुप रहे सब।  मगर किसी दूसरे  ने कहा हमें मस्जिद चाहिए , फिर से कोर्ट जाएंगे।  गंगा जमुनी तहजीब।  बाबर के साथ खड़े हुए लोग।  बाबर लाखों हिन्दुओ को मारकर भी एक समाज के दिल में जगह बनाये हुए है और यही लोग बार बार गंगा जमुनी तहजीब सीखने और सिखाने की बात करते हैं। औरंगजेब रोड का नाम  बदलने पर हंगामा हो गया था।   हिन्दुओं के रक्त से दिल्ली की जमीन को लाल कर देने वाला औरंगजेब और उसके साथ खड़े उस गंगा जमुना के पानी से अपनी प्यास बुझाते गंगा जमुनी तहजीबी वाले लोग । गंगा जमुनी तहजीब।
लाखों कश्मीरी पंडितों को मार कर भगा दिया गया। कोई नहीं बोला। गंगा जमुनी तहजीब। चुपचाप रहे।  शायद उन्हें लगा होगा कि  कहीं बोलने से गंगा जमुनी तहजीब खत्म न हो जाए। जब कश्मीर में उन कश्मीरी पंडितों के घरों पर पोस्टर लगाए जाते रहे होंगे , कहा जाता रहा होगा कि  कश्मीर छोड़ दो माइक से बोला  जाता रहा होगा कि घर छोड़ दो। तब याद न आयी होगी गंगा जमुनी तहजीब।  कान पाक गए  हैं मेरे इस शब्द को सुनकर।  गंगा जमुनी जमुनी तहजीब।
एक दुकान  है। नाई  की।  दूकान का नाम - रुद्राक्ष।  अंदर गणेश का फोटो है।  दूकान का नाई।  गंगा जमुनी तहजीब वाला । ऐसे में इस्लाम भी खतरे में नहीं। वर्ना बात बात पर इस्लाम खतरे में। हैरानी हुई कि  कैसे गणपति बप्पा  के चरणों में बैठा है। और बार बार इस्लाम खतरे में पाता  है।  बप्पा  के आगे धूप  बत्ती करता होगा या नहीं।  मालूम नहीं।  धूप का कहीं धुआं या कोई धूप  का टुकड़ा नहीं दिखाई दिया।  मगर प्यार से गंगा जमुनी तहजीब निभाने के लिए बप्पा  की फोटो लगा बैठा है।
एक दूसरी दुकान है। कारपेंटर की। लक्ष्मी कारपेंटर।  काम करवाता हूँ घर पर।  गुरुवार को पूछता हूँ , कल की क्या चाल है।  कहता है - कल तो हम काम नहीं करते।  सोचता हूँ तो समझ आता है , ओह , कल तो फ्राइडे है।  जुमे की नमाज होगी।  गंगा जमुनी तहजीब निभाने के लिए दुकान का नाम लक्ष्मी रख लिया होगा।  गंगा जमुनी तहजीब नष्ट न हो जाए इसलिए इसे बचाने के लिए नाम लक्ष्मी रख लिया होगा।  शायद दूसरों पर भरोसा नहीं रहा होगा कि  सलीम  जावेद नाम से कहीं धंधा कमजोर न पड़  जाए।  तो क्या गंगा जमुनी तहजीब पर भरोसा नहीं है ? बाल कटाने वाला तो बाल कटाने जाएगा ही , वह चाहे सलीम हो या जावेद।  फिर रुद्राक्ष क्यों ? गंगा जमुनी तहजीब के लिए ? काम करवाएगा ही।  फिर लक्ष्मी क्यों ? वाज़िद क्यों नहीं ? छुपना छुपाना क्या और क्यों ? तो कैसी है ये गंगा जमुनी तहजीब ? ऐसी ही है क्या ? या फिर तुम्हारा पुराण रक्त आज भी हिलोरें लेता है जो तुम्हें अपने पुरखों की याद दिलाता है और मजबूर करता है हिंदुस्तानी बनने को  या हिन्दू नाम रखने को।
बाबर और औरंगजेब के बाद गंगा और जमुना के किनारे रहने वाले हिन्दू मुस्लिम ने अवध से शुरू की यह गंगा जमुनी तहजीब और बनारस , प्रयाग और कानपुर जैसे शहरों का प्रमुखतः हिस्सा बनी  यह तहजीब। और फिर सारे शहर में फ़ैल गयी यह तहजीब।  ऐसा कुछ लोगों का मानना है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ में है यह तहजीब ? या फिर कॉमन सिविल लॉ में दिखती है यह तहजीब। सब बराबर हैं तो कॉमन सिविल लॉ में क्यों नहीं है यह तहजीब ? एक शादी , चार शादी के अंतर में कहाँ है यह तहजीब ?  1954 में हिन्दुओं के लिए एक शादी का नियम बना , उसमें कहाँ है यह तहजीब ?
मज़ार में चादर  चढ़ाते हिन्दुओं में दिखती है यह तहजीब। मगर मंदिर में घुसने से जिनका धर्म खतरे में पड़  जाए उनमे कहाँ ढूँढूँ यह तहजीब ? ईद की सेवईं खाते  हिन्दुओं में दिखती है यह तहजीब। गलती से भी होली का रंग पड़  जाने पर बवाल मचाने वालों में कहाँ ढूँढू यह तहजीब ? बिस्मिल्लाह खान में दिखती थी यह तहजीब।  अब्दुल कलाम आज़ाद में दिखती थी यह तहजीब।  अब्दुल कलाम के जनाजे से जो तमाम लोग गायब हो गए उनमे कहाँ ढूँढू यह तहजीब ? जो अब्दुल कलाम के जनाजे में न जाकर अफजल गुरु , बुरहान वानी  जैसों के जनाजों में शामिल हो जाते हैं उनमें  कहाँ से ढूँढूँ यह तहजीब ? बंगाल की नव निर्वाचित सांसद नुसरत जहां के दुर्गा पूजा में शामिल होने पर होती है गंगा जमुनी तहजीब। उस पर फतवा जारी करने वाले मौलानाओं में कैसे ढूँढू यह तहजीब ? कान पक  गए हैं यह सुनते सुनते कि  यहां है गंगा जमुनी तहजीब।
कोई तो सही ढंग से समझाए - क्या है यह गंगा जमुनी तहजीब ?

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

नागरिकता बिल पास हो गया है और इमरान खान परेशां हो उठे हैं।  साथ में विपक्ष के कुछ दल  भी।  ये  विपक्ष इसलिए परेशां है क्योंकि  उसे लगता है कि  अमित शाह का फ्लोर मैनेजमेंट  कुछ भी कर जाएगा। आखिर अगर सरकार कुछ भी पास करा ले जायेगी तो फिर विपक्ष क्या करेगा।  शिवसेना बेवकूफ बनाने की खुशफहमी में  बेवकूफी कर गयी।  जहां उसके बगैर भी यह बिल पास हो जाता वहां तो समर्थन कर गयी मगर राज्यसभा में ? सोचिये अगर जीत हार का फैसला एक दो  वोट से होना होता तो क्या होता ? शिवसेना के वाक् आउट से बिल गिर जाता।  वह तो अमित शाह का मैनेजमेंट था कि  विपक्ष चित्त है ? विपक्ष को ज्यादा दर्द तो इसलिए ही होगा कि  सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने वाली कांग्रेस के लिए यह फिर से मुश्किल घडी है।  वह क्या करे ? मुस्लिम वोट भी चाहिए मगर सब कुछ तो हाथ से निकला ही जा रहा है। वर्ना  कांग्रेस भी समय समय पर नागरिकता  देती रही  है। जैसे तमिलों को , राजस्थान के पाकिस्तानी हिन्दू और सिखों को। खैर।  पर तब कोई समस्या नहीं हुई। 
एक समाज सेवी हैं - जॉन  दयाल , ईसाई हैं। परेशान  हैं कि  मुस्लिमों  को क्यों नहीं लिया।  ईसाईयों को लेने की ख़ुशी भले ही मन के अंदर हो मगर मोदी विरोध कब काम आएगा ? सो मुस्लिमों के लिए परेशां हैं ? बिल में तो पीड़ित अल्पसंख्यकों  की बात हैं और वे भी वे जो इन ३ देशों में प्रताड़ित हैं।  अब क्या करें।  
अब काम की बात करते हैं।  कहते हैं कि  मोदी वहां से सोचना शुरू करते हैं जहां और लोगों की सोच ख़त्म हो जाती है।  अब इमरान परेशां हैं।  क्या करेंगे ? बदला लेंगे ? कैसे ? क्या इमरान बदला लेने के लिए  ऐसा ही एक बिल पाकिस्तानी संसद में लाएंगे कि  जो कोई मुस्लिम हिंदुस्तान में प्रताड़ित हैं वे यदि पाकिस्तान आना चाहते हैं तो आ सकते हैं। मगर यह उन्हें कैसे पता चलेगा कि  हिंदुस्तान के मुस्लिम परेशां हैं? क्योंकि वहाँ पाक में तो कोई मुस्लिम शरणार्थी टेंटो में नहीं रह रहे हैं जो हिंदुस्तान से परेशान  हों।  यहां तो जो मोदी के  पी एम  बनने पर भी हिंदुस्तान छोड़ने के बात कर रहे थे वे भी अभी तक डटे  हुए हैं। जो डरे हुए थे वे नायक सरीखे लोग  भी चैन की बंसी बजा रहे हैं।  तो इमरान बिल लाएंगे ? यदि लाये तो एक नया खेल हो जाएगा।  क्योंकि अगर कोई वहां गया ही नहीं तो यह साबित होगा कि मुस्लिम यहां भारत में आराम से हैं। और यदि गया तो ? तब साबित हो पायेगा कि  हाँ उन्हें परेशानी है।  पर किसे यह अंदाजा हैं कि मुस्लिम्स यहाँ से प्रताड़ना का बहाना बनाकर वहां जायेगें। क्या वहां कोई टेंट में रहते मुस्लिम किसी ने देखे हैं जो यहां से परेशां होकर वहां गए हों।  जिसे भी जरा भी अंदाजा है वह गलत है। कोई नहीं जाएगा और इसलिए यह साबित करेगा कि मुस्लिम्स यहां सुरक्षित हैं। तभी तो वे बिल में मुस्लिम्स को भी शामिल करने की बात कर रहे हैं।  अन्यथा क्या उन्हें पाक के मुस्लिम्स को यह संदेश नहीं देना चाहिए था कि यहां न आना।  वे भले ही अपने डर  की बात करते हों मगर वे डरे हुए नहीं हैं बल्कि आराम से हैं।  इसलिए तो सिब्बल गृहमंत्री से  बोले कि  अब आपसे कोई नहीं डरता तो अमित शाह का जवाब था कि डरना भी नहीं चाहिए।  पर कांग्रेस तो मुश्किल में हैं , खुद ही बार बार कहती है कि  भाजपा से मुस्लिम्स डरे हुए हैं। अब यहीं कांग्रेस कन्फ्यूज्ड हैं।  इधर भी उधर भी।  खैर , यदि इमरान खान ने कोई बिल  पास न किया तो ? क्या कहेंगे मुस्लिम्स ? जिस इमरान खान पर , पाकिस्तान पर थोड़ा बहुत भरोसा उन कुछ लोगों का होगा जो अभी भी पाक से जुड़े हो सकते हों तो पाक तो बिल लाएगा ही नहीं  कि कोई यदि भारत में पीड़ित हैं तो वहां आ सकते हैं , तो इमरान के बिल न लाने से स्वाभाविक तौर पर यहाँ के मुस्लिम्स को यह समझने में देर नहीं लगेगी कि पाकिस्तान उन्हें वहाँ नहीं लेने वाला। इसलिए उनका यह चश्मा भी उतर जाएगा।  और यदि पाक , बांग्लादेश व अफगानिस्तान से अल्पसंख्यक ये छह समुदाय के लोग भारत आना शुरू हो गए तो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इन देश की किरकिरी होनी स्वाभाविक है।  पाक , अफगानिस्तान और बांग्ला देश धार्मिक देश हैं और इसलिए वहां पर धार्मिक उत्पीड़न है और इसलिए यह बिल लाना पड़ा है।  पिछले पांच साल में पाक व भारत के शहरों में कितने बम  विस्फोट हुए हैं ? भारत में लगभग जीरो और पाक में आये दिन लोग बम विस्फोट में मरते लोग इस बात के गवाह हैं कि भारत कितना सुरक्षित है।  पचपन से ज्यादा मुस्लिम देशों में क्या कोई देश है जो चीन में उत्पीड़ित मुस्लिमों के लिए अपने दरवाजे खोल सके ?  सवाल भारत से किये जाते हैं।  क्या भारत के बुद्धिजीवी किसी मुस्लिम देश को लिख पाएंगे कि  वह कम  से कम  मुस्लिम्स के लिए ही CAB  लाए।  शायद आसानी से नहीं होगा यह काम।  इसलिए इमरान के CAB  का इतंजार कीजिये और यह साबित होने की प्रतीक्षा कीजिये कि  न तो इमरान खान कोई CAB  लाने जा रहे हैं और न उनके CAB  लाने पर कोई हिंदुस्तानी मुस्लिम पाक जा रहा है क्योंकि मुस्लिम भी जानते हैं कि  इससे बेहतर स्थान दुनिया में शायद ही हो जहां मुस्लिम्स सहित सभी धर्मों के लोग आराम से रह सकें।  इसलिए पाक के मुस्लिम्स की चिंता न करें , वहाँ वे ठीक हैं।  यदि इस्लामिक देश में ही मुस्लिम ठीक नहीं हैं तो कहाँ ठीक होंगे ? हाँ , अफगानिस्तान और बांग्ला देश के पी एम ने चुप रहकर जो समझदारी दिखाई है इसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं।